हिचकी या हिक्का रोग में सांस-रुक-रुककर या हिक्-हिक् की आवाज के साथ बाहर निकलते है| यह रोग पेट में समान वायु तथा गले में उदान वायु के प्रकोप से पैदा होती है|
स्त्री या पुरुष घुटनों पर हाथ रखकर उठता है तो समझ लेना चाहिए कि वह वृद्ध हो चला है और उसके घुटनों में दर्द बनने लगा है| ऐसी अवस्था में घुटनों के दर्द से बचने के लिए उचित उपचार तथा आहार-विहार का पालन करना चाहिए|
अनिद्रा एक सामान्य रोग है| यह चिंता, शोक, विषाद, निराशा आदि के कारण उत्पन्न होता है| यदि नकारात्मक भावनाओं से स्वयं को दूर रखा जाए तो इस रोग से छुटकारा पाया जा सकता है|
चोट लगने और खून बहने पर इस बात की तत्काल व्यवस्था करनी चाहिए कि खून अधिक मात्रा में न बहने पाए| इसके लिए तुरंत खून रोकने का उपाय करना चाहिए| साथ ही विषक्रमण न होने पाए, इसका भी ध्यान रखना चाहिए|
वास्तव में दिल की धड़कन कोई रोग नहीं है| किन्तु जब दिल तेजी से धड़कने लगता है तो मनुष्य के शरीर में कमजोरी आ जाती है, माथे पर हल्का पसीना उभर आता है तथा पैर लड़खड़ाने लगते हैं|
गठिया एक विचित्र और कष्टप्रद रोग है| यह अधिकतर प्रौढ़ावस्था और बुढ़ापे में ही होती है| परन्तु कभी-कभी छोटी उम्र में भी यह बहुत से मनुष्यों को हो जाती है|
शीतपित्त को साधारण भाषा में पित्ती उछलना कहते हैं| इसमें रोगी के शरीर में खुजली मचती रहती है, दर्द होता है तथा व्याकुलता बढ़ जाती है| कभी-कभी ठंडी हवा लगने या दूषित वातावरण में जाने के कारण भी यह रोग हो जाता है|
आमाशय और अंतड़ियों में बहुत से विकार पाए जाते हैं| उनमें से कृमि रोग भी बच्चे को परेशान करता है| ये कृमि लगभग 20 प्रकार के होते हैं जो अंतड़ियों में घाव पैदा कर देते हैं| अत: रोगी बेचैन हो जाता है| ये पेट में वायु को बढ़ा देते हैं जिसके कारण हृदय की धड़कन बढ़ जाती है| कृमि रोग में रोगी को उबकाई आती रहती है| कई बार भोजन के प्रति अरुचि भी उत्पन्न हो जाती है| चक्कर आने लगते हैं तथा प्यास अधिक लगती है|
भोजन न पचने (अग्निमांद्य) की वजह से द्रव्य धातु से मिलकर पाखाना (मल) वायु सहित गुदा से बाहर निकलता है, इसे अतिसार या दस्त कहते हैं| यह छ: प्रकार का होता है – वातिक, पैत्तिक, श्लेष्मज, त्रिदोषज, शोकज तथा आमज|
कब्ज छोटे-बड़े सभी लोगों को हो जाता है| इसमें खाया हुआ भोजन शौच के साथ बाहर नहीं निकलता| वह आंतों में सूखने लगता है| मतलब यह कि आंतों में शुष्कता बढ़ने के कारण वायु मल को नीचे की तरफ सरकाने में असमर्थ हो जाती है| यही कब्ज की व्याधि कहलाती है|
पेट में दर्द होने पर बच्चा अत्यंत व्याकुल हो जाता है| वह बार-बार रोता और चिल्लाता है| कभी-कभी कुछ बच्चों के पेट गैस से फूल जाते हैं|
हैजा का नाम सुनते ही लोग भयभीत हो जाते हैं| यह प्राय: महामारी के रूप में फैलता है| यह रोग गरमी के मौसम के अंत में या वर्षा ऋतु की शुरू में पनपता है|
जब मल त्याग करते समय या उससे कुछ समय पहले अंतड़ियों में दर्द, टीस या ऐंठन की शिकायत हो तो समझ लेना चाहिए कि यह पेचिश का रोग है| इस रोग में पेट में विकारों के कारण अंतड़ी के नीचे की तरफ कुछ सूजन आ जाती है|
जिगर की सूजन प्राय: गलत खान-पान के कारण होती है| यह जिगर के कोशों में काफी कमी और निष्क्रियता आने से उत्पन्न हो जाती है| यदि इस रोग का शुरू में ही उपचार न कराया जाए तो शरीर में अनेक विकार उभर सकते हैं|
रतौंधी एक ऐसा रोग है जिससे रोगी को आंखों में कोई कष्ट तो नहीं होता, लेकिन उसे रात के समय देखने में बड़ी परेशानी होती है| ऐसा रोगी हीन भावना का शिकार हो सकता है|
कान में दर्द प्राय: बच्चों तथा प्रौढ़ों को हो जाता है| इस रोग में रोगी को बहुत तकलीफ होती है| कान में सूई छेदने की तरह रह-रहकर पीड़ा होती है|
गले में सूजन कोई बीमारी नहीं है| लेकिन जब किन्हीं दूसरी व्याधियों के कारण गला सूज जाता है या लाल पड़ जाता है तो इसे रोग की श्रेणी में माना जाता है|
हाथ, पैरों, टखने या कुहनी आदि में मोच आने पर बाजारू पहलवानों से मलीद आदि नहीं करानी चाहिए| इससे अधिकांशत: नुकसान उठाना पड़ता है| इसका कारण यह है की मोच आने से नस-नाड़ियों के तंतु टूट जाते हैं| ऐसे में कड़ी मालिश से वे अधिक क्षत-विक्षत हो सकते हैं|
स्मरण शक्ति कमजोर होने पर व्यक्ति को लगता है, जैसे उसका दिमाग खाली हो| उसे प्राय: चक्कर आता है| एकाग्रता नष्ट हो जाती है| यह रोग उन लोगों को अधिक होता है जो दूध, दही, घी, मक्खन, अंकुरित अनाज, फल आदि पौष्टिक पदार्थों का सेवन बहुत कम मात्रा में करते हैं|
शरीर के सभी महत्त्वपूर्ण कार्यों में प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से जिगर की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है| भोजन के पाचन के बाद आहार रस सबसे पहले जिगर में पहुंचता है| वहां उसमें अनेक जैव तथा रासायनिक परिवर्तन होते हैं|
श्वसन-संस्थान से सम्बंधित एक भयावह रोग दमा या अस्थमा है| यह श्वास नली का रोग है| श्वास नली में सूजन हो जाने से यह रोग भुक्त भोगी को चैन से नहीं बैठने देता|
जठराग्नि के मन्द पड़ जाने को अग्निमांद्य कहते हैं| इस रोग में आमाशय (मेदा) तथा आंतों के पचाने की शक्ति कम हो जाती है जिसके कारण खाया-पिया भोजन पिण्ड की तरह पेट में रखा रहता है|
पेट का दर्द छोटे-बड़े सभी को होता है| अधिकांश लोगों को भोजन करने के उपरांत पेट दर्द होता है, जबकि कुछ लोगों को भोजन से पहले यह पीड़ा होती है|
पीलिया (जांडिस) रोग में शरीर के सभी अवयवों में पीलापन आ जाता है| यह रोग अत्यधिक संभोग, खट्टे पदार्थों के सेवन, अधिक शराब पीने, मिट्टी खाने, दिन में अधिक सोने तथा अत्यधिक तेज पदार्थ, जैसे – राई आदि का सेवन करने से उत्पन्न होता है|
सूखा रोग होने पर बच्चा दिन-प्रतिदिन निर्बल होता चला जाता है| उसके हाथ-पांव सूख जाते हैं| पेट बढ़कर आगे की ओर निकल आता है| विशेषज्ञों का कहना है कि कुपोषण अथवा सन्तुलित आहार के अभाव में इस रोग की उत्पत्ति होती है|
आग या किसी गरम वस्तु से जल जाने पर उस स्थान की त्वचा नष्ट हो जाती है, जिससे विषक्रमण (सेप्टिक) होने का भय रहता है| इसलिए रोगी को बाहर की दूषित वायु से जले हुए भाग की सुरक्षाकरना भी बहुत जरूरी है|
कमर का दर्द प्राय: गलत रहन-सहन से होता है| कमर को असंतुलित अवस्था में रखना ही इस दर्द का कारण बनता है| अत: इस रोग की दवा के साथ-साथ कमर को संतुलित एवं सीधी दिशा में रखना हितकर होता है|
यह बड़ा विचित्र रोग है| इसे अपस्मार भी कहते हैं| इसमें व्यक्ति को ऐसा महसूस होता है, जैसे वह अचानक अंधेरे में गिर रहा हो या उससे घिर गया हो| यह रोग सामान्यत: मस्तिष्क की कमजोरी से होता है| विशेषज्ञों का कहना है कि मिरगी अधिक टी.वी. देखने से उत्पन्न होता है| ऐसे रोगी को किसी योग्य मनोचिकित्सक को दिखाना और उसकी सलाह लेना लाभकारी हो सकता है|
महुमेह को सामान्य भाषा में पेशाब में शक्कर (शुगर) आना भी कहते हैं| आजकल अधिकांश लोगों को मधुमेह की शिकायत हो सकती है| इससे रोगी का शरीर कांतिहीन हो जाता है| मधुमेह एक असाध्य रोग है| इसका इलाज करने से पहले रोगी को अपना पेट साफ कर लेना चाहिए|
यह रोग तब होता है, जब व्यक्ति अधिक ठंडी चीजों तथा फ्रिज में रखे पानी का इस्तेमाल हर समय करता है| वैसे यह खतरनाक रोग नहीं है लेकिन दर्द शुरू होने पर रोगी को अपार कष्ट का सामना करना पड़ता है|
जो लोग सिर दर्द को रोग मानते हैं, वे धोखा खा जाते हैं क्योंकि यह रोग है ही नहीं| वास्तव में यह किसी रोग का लक्षण है| यदि यह अधिक तेज नहीं होता तो बगैर किसी दवा के अपने आप ठीक हो जाता है|
वमन या उल्टी अजीर्ण रोग का एक लक्षण माना जाता है| कई बार देखा गया है की खाली पेट में गैस या विकार भर जाता है जो उबकाई के रूप में प्रकट होता है| उसमें कड़वा पित्त या अम्ल निकलता है|
फेफड़े में प्रदाह होने की हालत को न्यूमोनिया का नाम दिया गया है| यह एक गंभीर ज्वर है| इसमें यथाशीघ्र डॉक्टर की सलाह लेना जरूरी रहता है| यदि ऐसा नहीं किया जाता तो मृत्यु की संभावना बढ़ जाती है|
कुछ बच्चे प्राय: बिस्तर पर पेशाब कर देते हैं| ऐसे बच्चों को शाम के समय अधिक गरम अथवा शीतल पेय नहीं देना चाहिए|
पेट में अम्ल का बढ़ जाना कोई रोग नहीं माना जाता, लेकिन इसके परिणाम अवश्य भयानक सिद्ध होते हैं| इसकी वजह से बहुत-सी व्याधियां उत्पन्न हो जाती हैं|
खून की खराबी अर्थात् रक्त विकार एक घातक रोग है| यदि समय रहते इसका उपचार न किया जाए तो कष्टदायी चर्म रोग घेर लेते हैं| इनसे व्यक्ति के मन में हीन भावना उत्पन्न हो जाती है|
प्रदर रोग में योनि मार्ग से पतला या गाढ़ा चिकना स्त्राव कम अथवा अधिक मात्रा में निकलने लगता है| यह स्त्राव मासिक धर्म से पूर्व या बाद में भी होता है| यह दो प्रकार का होता है – श्वेत प्रदर और रक्त प्रदर| श्वेत प्रदर में सफेद रंग का और रक्त प्रदर में रक्त युक्त प्रमेह होता है|
हृदय रोग से ज्यादातर वे लोग पीड़ित होते हैं जो दिनभर गद्दी पर बैठे रहते हैं और हर समय अनाप-शनाप खाते-पीते हैं| इस रोग के शुरू में साधारण दर्द होता है| फिर धीरे-धीरे रोग बढ़ जाता है जो सम्पूर्ण हृदय को जकड़ लेता है| यह रोग होने पर बड़ी बेचैनी रहती है| अचानक हृदय में पीड़ा उठती है और फिर सारा शरीर जकड़ जाता है| रोगी की सांस रुक-रुककर बड़ी तेजी से चलने लगती है| बेचैनी के साथ-साथ हाथ-पैरों में शिथिलता शुरू हो जाती है| यदि तुरन्त इस दौरे की चिकित्सा नहीं की जाती तो रोगी की मृतु तक हो सकती है|
पुरुष द्वारा स्त्री को संतुष्ट किए बिना उद्वेग के चरम क्षणों में स्खलित हो जाना, शीघ्रपतन कहलाता है| इसका मुख्य कारण हीन भावना तथा आत्मविश्वास की कमी होता है| ऐसे व्यक्ति को मन में कामुकता का विचार नहीं रखना चाहिए|
यदि रात को सोते समय किसी काल्पनिक स्त्री से मैथुन क्रिया करने के पश्चात् वीर्य स्खलित हो जाए तो यह स्वप्नदोष कहलाता है| महीने में एक-दो बार स्वप्नदोष का होना, रोग नहीं माना जाता|
श्वेत प्रदर होने पर स्त्री की योनि से सफेद रंग का चिकना स्त्राव पतले या गाढ़े रूप में निकलने लगता है| इस प्रदर में तीक्ष्ण बदबू उत्पन्न होती है| ऐसे में दिमाग कमजोर होकर सिर चकराने लगता है| स्त्री को बड़ी बैचेनी एवं थकान महसूस होती है|
कफ-पित्त ज्वर भी धीरे-धीरे चढ़ता है और अंतत: उग्न रूप धारण कर लेता है| यह ज्वर दिन के तीसरे प्रहर तथा रात के अंतिम प्रहर में हल्का पड़ जाता है| इसमें रोगी की नाड़ी धीमी चलती है| मल मटमैले रंग का आता है|
तपेदिक को राजयक्ष्मा या टी.बी. भी कहा जाता है| यह एक बड़ी भयानक बीमारी है| आम जनता इसका नाम लेने से भी डरती है| जिस परिवार में यह रोग हो जाता है, उसकी हालत बड़ी दयनीय हो जाती है|
मूत्र विकार के अंतर्गत कई रोग आते हैं जिनमें मूत्र की जलन, मूत्र रुक जाना, मूत्र रुक-रुककर आना, मूत्रकृच्छ और बहुमूत्र प्रमुख हैं| यह सभी रोग बड़े कष्टदायी होते हैं| यदि इनका यथाशीघ्र उपचार न किया जाए तो घातक परिणाम भुगतने पड़ते हैं|
इस ज्वर को फ्लू भी कहा जाता है| यह एक संक्रामक रोग है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हो जाता है| इससे रोगी को काफी कष्ट होता है| यह रोग तीसरे, चौथे या सातवें दिन उतर जाता है|
मोटापा शरीर के लिए अभिशाप है| इससे मनुष्य की आकृति बेडौल हो जाती है| मोटापे से हृदय रोग, रक्तचाप, मधुमेह आदि पैदा हो सकते हैं| खान-पान, योगासन एवं व्यायाम द्वारा मोटापे पर काबू पाया जा सकता है|
साधारण ज्वर अनेक कारणों से होता है| यह हर किसी को हो सकता है| शरीर का तापक्रम 98.4 फोरनहाइट माना गया है| यदि शरीर का तापक्रम इससे अधिक हो जाता है तो ज्वर की हालत मान ली जाती है|
इस रोग में धातु क्षीणता के कारण व्यक्ति जल्दी स्खलित हो जाता है| ऐसे रोगी का वीर्य पतला होता है| इसके शिश्न में बहुत कम उत्थान हो पाता है|
गले के प्रवेश द्वार के दोनों ओर मांस की एक-एक गांठ होती है| यह बिलकुल लसीका ग्रंथि की तरह होती है| इसी को टांसिल कहते हैं| इस रोग के कारण खाने-पीने में बड़ी तकलीफ होती है| यहां तक की थूक को निगलने में भी कष्ट होता है|
स्त्री की सुन्दरता तथा यौवन का निखार पुष्ट स्तनों से दिखाई देता है| इसलिए से प्राय: अपना स्तन पुष्ट और कठोर बनाने के लिए प्रयत्नशील रहती हैं| स्तनों में ढीलापन होना, समय के साथ उनका विकास न होना तथा उनमें कठोरता का अभाव होना आदि स्थितियां स्त्री को हीन भावना से ग्रस्त कर देती है|
इस रोग में आंखों की किसी एक पलक पर या कोने में एक फुन्सी निकल आती है| यह बंद गांठ-सी होती है| इसे छूने पर कड़ापन मालूम पड़ता है|
पेट में मन्दाग्नि के कारण एक रोग उत्पन्न हो जाता है जो ‘गैस बनने’ के नाम से प्रसिद्ध है| यह रोग कोष्ठ के मार्ग से बनकर रोगी को परेशान करता है| मुख से लेकर गुदा तक का मार्ग कोष्ठ माना जाता है|
कुछ संक्रामक रोगों के कारण शरीर पर फोड़े-फुंसियां निकल आती हैं| प्रदूषित वातावरण भी फोड़े-फुंसियों को उत्पन्न करने का कारण बनता है| फोड़े-फुंसियों के निकलने पर उनमें खुजली-जलन होती है तथा रोगी बेचैनी महसूस करता है|
पेट की खराबी, प्रदूषित भोजन तथा अम्लीय पदार्थों का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए| इससे गुर्दों से शोथ हो जाता है| इसी बात को चिकित्सक यूं कहते हैं कि गुर्दे में जब क्षारीय तत्त्व बढ़ जाते हैं तो उसमें सूजन आ जाती है| फलस्वरूप वहां दर्द होने लगता है|
प्राय: छोटे-बड़े लोगों की आंखें किन्हीं कारणवश दुःखने लगती हैं| यदि शुरुआती दौर में ही इन पर ध्यान दिया जाए तो घातक परिणाम नहीं होता| इसके अलावा नियमित रूप से आंखों को दिन में कई बार धोने अथवा उन पर पानी के छींटे मारने चाहिए| इससे भी आंखों का रोग होने की संभावना नहीं रहती|
मुंह के भीतर छाले पड़ने को ‘मुखपाक’ भी कहते हैं| यह एक ऐसा रोग है जिसके कारण रोगी को भोजन करने, बोलने तथा गाने आदि में अपार कष्ट होता है|
स्वस्थ वीर्य हिमानुश्य का पुरुषार्थ है| स्त्री-भोग का आनंद स्तम्भन शक्ति में निहित है| बहुत अधिक मैथुन करने, असमय मैथुन करने, खट्टे, कड़वे, रूखे, कसैले, खारे एवं चटपटे पदार्थ खाने, मानसिक तनाव रखने तथा अप्राकृतिक साधनों से वीर्य त्यागने पर ही व्यक्ति में नपुंसकता उत्पन्न होती है|
तिल्ली में वृद्धि होने से पेट के विकार, खून में कमी तथा धातुक्षय की शिकायत शुरू हो जाती है| यह रोग भी मनुष्य को बेचैनी एवं कष्ट प्रदान करता है| शुरू में इस रोग का उपचार करना आसान होता है, परंतु बाद में कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ता है|
आंखों में विविध रोगों को दूर करने के लिए निम्नांकित नुस्खे बहुत लाभकारी सिद्ध हुए हैं|
खून की खराबी के कारण खुजली हो जाती है| यह रोग अधिक खतरनाक नहीं है| लेकिन यदि असावधानी बरती जाती है तो यह रोग जटिल बन जाता है| इसलिए रोगी को खाने-पीने के मामले में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए|
वात-कफ ज्वर मौसम परिवर्तन तथा आहार-विहार में लापरवाही के फलस्वरूप होता है| यह ज्वर प्राय: धीरे-धीरे बढ़ता है| इसमें रोगी काफी बेचैनी महसूस करता है| मुंह से लार टपकने लगती है| वह ठीक से भोजन नहीं पचा पाता|
संग्रहणी एक भयंकर रोग है| इसमें रोगी को पाखाना अधिक आता है| मल में चर्बी भी होती है| इस रोग के कारण रोगी हर समय दु:खी रहता है| वह सभी प्रकार के खाद्य पदार्थों को पचा नहीं पाता| कई बार तो मृत्यु तक हो जाती है|
मासिक धर्म स्त्री में होने वाली एक स्वाभाविक प्रक्रिया है| यदि मासिक धर्म में अनियमितता होती है तो स्त्री के शरीर में अन्य विकार उत्पन्न हो जाते हैं| इसका कारण शरीर के भीतर किसी रोग का होना भी हो सकता है| इसके सुचारु रूप से न होने पर स्त्री जीवन भर मातृत्व सुख से वंचित रह जाती है|
मलेरिया ज्वर में जाड़ा लगने के साथ तेज बुखार चढ़ता है| इसमें प्रतिदिन या हर तीसरे-चौथे दिन भी बुखार आ सकता है| यह एक संक्रामक बीमारी मानी जाती है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हो जाती है|
पुरुष द्वारा समागम के पश्चात् स्त्री को गर्भ न ठहरना बांझपन कहलाता है| वस्तुत: स्त्री पूर्णता तभी प्राप्त करती है, जब वह मां बनती है| जो स्त्री विवाहोपरांत मातृत्व-सुख से वंचित रहती है, वह समाज में तिरस्कृत नजरों से देखी जाती है| परंतु ऐसा नहीं है की वह मां न बन सके| यदि उचित उपचार किया जाए तो बांझ स्त्री भी मां बन सकती है|
शरीर तथा चेहरे पर झुर्रियां वृद्धावस्था में ही आती हैं| लेकिन जब यह झुर्रियां यौवनावस्था में पड़ने लगती हैं तो किसी रोग विशेष के आगमन अथवा प्रभाव तथा दुष्कर्मों की ओर इंगित करती हैं|
महर्षि वात्सयायन का कहना है कि पुरुष को सबसे पहले अपने स्वास्थ्य की ओर ध्यान देना चाहिए| यदि व्यक्ति पूर्ण आयु तक जीवित रहना चाहता है तो उसे पौष्टिक पदार्थों और पुष्टिकारक योगों का सेवन करते रहना चाहिए| इनके उपयोग से धातु पुष्ट रहती है, मैथुन क्रिया में अपार आनंद आता है और जीवन में हर समय सुख के क्षण उपस्थित रहते हैं| तब व्यक्ति को ग्लानि, दुर्बलता, धातुक्षय, शुक्र हीनता आदि की शिकायतें कभी नहीं होतीं| यहां उपयोगी तथा शक्तिवर्द्धक नुस्खे बताए जा रहे हैं –
प्रत्येक विवाहित स्त्री मां बनने को लालायित रहती है, अपितु उसे प्रसव के समय अपार कष्ट एवं परेशानियां भोगनी पड़ती हैं| कभी-कभी किन्हीं कारणवश स्त्री, बच्चे अथवा दोनों की जान जोखिम में पड़ जाती है| ऐसी स्थिति में विशेष रूप से ध्यान दिए जाने की आवश्यकता रहती है|
कभी-कभी किन्हीं कारणवश महिलाओं को अधिक मासिक स्त्राव होता है| ऐसी स्थिति में स्त्री को काफी कष्ट तथा कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है| यदि शुरूआती दौर में ही इस रोग का उपचार हो जाए तो घातक परिणाम होने की संभावना नहीं रहती|
नजला या जुकाम ऐसा रोग है जो किसी भी दिन किसी भी स्त्री या पुरुष को हो सकता है| यह रोग वैसे तो ऋतुओं के आने-जाने के समय होता है लेकिन वर्षा, जाड़े और दो ऋतुओं के बीच के दिनों में ज्यादातर होता है|
आवाज बैठ जाने के कारण व्यक्ति को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है क्योंकि गले से शब्द नहीं निकल पाते| व्यक्ति समझता है कि उसका गला रुंध रहा है|
भोजन का ठीक प्रकार से न पचना अजीर्ण या अपच कहलाता है| यह एक ऐसी दशा है जिसके कारण छोटे-मोटे कई रोग मनुष्य को घेर लेते हैं| यदि यह व्याधि काफी दिनों तक बराबर बनी रहती है तो शरीर में खून बनना बंद हो जाता है|
चक्कर आने को हम रोग मान बैठे हैं, किन्तु यह रोग न होकर मस्तिष्क की व्याधि है| जब कभी दिमाग में खून की मात्रा पूर्ण रूप से नहीं पहुंचती तो दिमाग की नसें शिथिल पड़ जाती हैं| यही शिथिलता चक्कर लाती है|
खांसी अपने आप में कोई रोग नहीं नहीं वरन् यह दूसरे रोगों का लक्षण मात्र है| खांसी पांच प्रकार की होती है – तीन प्रकार की खांसी वात, पित्त और कफ के बिगड़ने से, चौथी कीड़ों में उत्पन्न होने से और पांचवीं टी.बी. रोग से|
बहरापन एक गंभीर रोग है| इससे छुटकारा पाने के लिए तुरंत ही उपचार करना चाहिए| यह बीमारी कमजोर लोगों तथा असामान्य मस्तिष्क वाले व्यक्तियों को अधिक होती है| इस बीमारी होते ही उसके कारणों को जानकर ही उचित उपचार करना चाहिए|
नाक से अचानक खून की धार फूटने की नकसीर कहते हैं| यह बच्चों तथा युवकों को अधिक होती है| कभी-कभी वृद्धों को भी इससे पीड़ित होते देखा गया है| नकसीर गरमी के वातावरण में शारीरिक गरमी बढ़ जाने के कारण फूटती है|
गरदन का दर्द लोगों को प्राय: हो जाता है| ऐसे में गरदन को इधर-उधर घुमाने में काफी दर्द होता है| कभी-कभी लापरवाही के कारण गरदन में सूजन भी आ जाती है| गरदन में दर्द और सूजन होने पर तुरंत उपचार करना चाहिए तथा किसी योग्य वैद्य या चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए|
अल्सर का शाब्दिक अर्थ है – घाव| यह शरीर के भीतर कहीं भी हो सकता है; जैसे – मुंह, आमाशय, आंतों आदि में| परन्तु अल्सर शब्द का प्रयोग प्राय: आंतों में घाव या फोड़े के लिए किया जाता है| यह एक घातक रोग है, लेकिन उचित आहार से अल्सर एक-दो सप्ताह में ठीक हो सकता है|
दस्त आंतों का रोग है| जब शरीर का सम्पूर्ण जल दूषित हो जाता है तो दस्त आने लगता है| इसमें बच्चे को पतला-पतला मल उतरता है| पेट में मरोड़, ऐंठन तथा भारीपन हो जाता है|
शरीर में सूजन होने का एकमात्र कारण है निठल्लापन| यदि शरीर में सूजन उत्पन्न होते ही उचित ही उचित आहार-विहार पर ध्यान दिया जाए तो इस रोग से शीघ्र ही छुटकारा पाया जा सकता है| इस रोग के बढ़ जाने पर कई अन्य रोग पनप सकते हैं| अत: इस बारे में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है|
कीड़े-मकोड़े के काटने पर दंशित स्थान को छूना अथवा नाखून आदि से खुजलाना नहीं चाहिए| इससे विषक्रमण बढ़ जाने की संभावना होती है| इसका उपचार यथाशीघ्र करने का प्रयास करना चाहिए|
प्राय: दांत निकलते समय बहुत से बच्चों को तकलीफ उठानी पड़ती है| इस दौरान उन्हें कई व्याधियां घेर लेती हैं| यदि शुरुआती दौर में ध्यान दिया जाए तो बच्चे इन पीड़ाओं से बच सकते हैं|
बच्चों के मुंह के छाले प्राय: पेट की खराबी से होते हैं| अत: उनकी पाचन क्रिया पर विशेष ध्यान देना चाहिए| बच्चे को अधिक गरम, तीखे तथा मिर्च-मसालेदार पदार्थों का सेवन न करने दें| उन्हें कब्ज एवं अपच से बचाना चाहिए| साथ ही उनकी सफाई एवं स्वच्छता पर भी निगाह रखनी चाहिए|
कभी-कभी बैठे-बैठे या काम करते हुए शरीर का कोई अंग या त्वचा सुन्न हो जाती है| कुछ लोग देर तक एक ही मुद्रा में बैठकर काम करते या पढ़ते-लिखते रहते हैं| इस कारण रक्तवाहिनीयों तथा मांसपेशियों में शिथिलता आ जाने से शरीर सुन्न हो जाता है|
मोतियाबिन्द होने पर आंखों की पुतली पर सफेदी आ जाती है और रोगी की दृष्टि धुंधली पड़ जाती है| वह किसी चीज को स्पष्ट नहीं देख सकता| आंखों के आगे धब्बे और काले बिन्दु-से दिखाई पड़ने लगते हैं| जैसे-जैसे रोग बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे रोगी ठीक से देखने में असमर्थ हो जाता है|
सन्निपात ज्वर को वात-पित्त-कफ ज्वर भी कहते हैं| यह मानव शरीर में इन्हीं तत्वों की अधिकता के कारण उत्पन्न होता है| इसमें ज्वर इतना तेज होता है कि रोगी का होशो-हवास उड़ जाता है| वह मूर्च्छावस्था में बड़बड़ाने लगता है| इस बुखार की अवधि 3 दिन से 21 दिन मानी गई है|
बच्चे के जन्म के समय असावधानी बरतने तथा संक्रमण के कारण उनकी नाभि पाक जाती है| ऐसी स्थिति में बच्चा बार-बार रोता रहता है|
दाद छूत का रोग है| यह रोगी व्यक्ति के कपड़ों तथा वस्तुओं को छूने मात्र से ही हो जाता है| यह शुरू में धीरे-धीरे लेकिन कुछ दिनों बाद बड़ी तेजी से फैलता है|
किन्हीं कारणवश जब आंखों में कोई पदार्थ पड़ जाता है तो वे लाल हो जाती है| ऐसे में महसूस होता है, मानो आंख जल रही हो| आंखें लाल हो जाने पर गरम पदार्थों एवं मिर्च-मसालों का प्रयोग बंद कर देना चाहिए|
लकवा एक गम्भीर रोग है| इसमें शरीर का एक अंग मारा जाता है| रोगी का अंग विशेष निष्क्रिय हो जाने के कारण वह असहाय-सा हो जाता है| उसे काम करने या चलने-फिरने के लिए दूसरे के सहारे की जरूरत होती है|
होंठ प्राय: पेट की गरमी से जाड़े की ऋतु में फटते हैं| लेकिन कभी-कभी अत्यधिक गरमी में लू के कारण होंठ शुष्क होने पर भी फट जाते हैं| होंठ फटने पर उन्हें नाखून से नहीं नोचना चाहिए| इससे विषक्रमण होने का भय रहता है|
गरमी के दिनों में पसीना मरने या त्वचा में सूख जाने के कारण शरीर पर छोटे-छोटे दाने निकल आते हैं| इन्हीं को घमौरियां या अंधौरी कहते हैं| यह धूप में अधिक देर तक काम करने के कारण निकलती हैं|
नवजात शिशु माता के दुग्ध पर ही अपना भरण-पोषण करता है| लेकिन कभी-कभी किन्हीं कारणों से माता के स्तनों में पर्याप्त दुग्ध का निर्माण नहीं हो पाता| ऐसे में माता को चिंताएं घेर लेती हैं|
युवावस्था में जब शरीर में खून की गरमी पैदा हो जाती है तो वायु और कफ उस गरमी को शरीर से बाहर नहीं निकलने देते| उस दशा में त्वचा में गांठें या फुंसियां निकल आती हैं जो मुंहासे कहलाते हैं| ये उन लोगो को ज्यादा निकलते हैं जो गरम मसाले, मिर्च, तेल, खटाई एवं अम्लीय पदार्थ अधिक खाते हैं| "मुंहासे के 13 घरेलु उपचार" सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Homemade Remedies for Acne
इस रोग में व्यक्ति को बेहोशी छा जाती है| वह निष्प्राण-सा पड़ा रहता है| ऐसे समय में रोगी को किसी आरामदायक एवं सुरक्षित स्थान पर लिटाना चाहिए| उसके चारों ओर भीड़ नहीं लगनी चाहिए|
पेशाब के साथ निकलने वाले भिन्न-भिन्न प्रकार के क्षारीय तत्त्व जब किन्हीं कारणवश नहीं निकल पाते और मूत्राशय, गुर्दे अथवा मूत्र नलिका में एकत्र होकर कंकड़ का रूप ले लेते हैं, तो इसे पथरी कहा जाता है|
विविध परेशानियों एवं कष्टों के कारण जब मस्तिष्क कमजोर हो जाता है तो व्यक्ति को वहम घेर लेता है| ऐसे में वह हर समय नकारात्मक बातें सोचता रहता है| उसके अंदर आत्मविश्वास की कमी, हीन भावना, निराशा एवं चिंता व्यापक रूप से अपनी जड़ जमा लेती है|
पित्त बच्चे के अंग-प्रत्यंग अत्यंत कोमल होते हैं| फलस्वरूप वे जल्दी ही बीमारियों के शिकार हो जाते हैं| इसी कारण उन्हें खांसी भी होने लगती है| यह मौसम बदलने, कब्ज रहने, अधिक भोजन करने, खट्टी चीजें और मैदे की चीजें अधिक खाने से हो जाती हैं|