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श्री राम जी के भजन (42)

अब कृपा करो श्री राम नाथ दुख टारो।
इस भव बंधन के भय से हमें उबारौ।

अर्थ न धर्म न काम रुचि, पद न चहहुं निरवान |
जनम जनम रति राम पद, यह वरदान न आन ||

आराध्य श्रीराम त्रिकुटी में .
प्रियतम सीताराम हृदय में ..

ऐसा राम हमारे आवै ।

बार पार कोइ अंत पावै ॥टेक॥

कभी राम बनके कभी श्याम बनके चले आना प्रभुजी चले आना….

किसी का राम किसी का श्याम किसी का गोपाला – 2
जाकि जैसी भक्ति बाबा – 2 वैसा ही रंग डाला

कौशल्या रानी अपने लला को दुलरावे
सुनयना रानी अपनी लली को दुलरावे

घूँघट का पट खोल रे,
तोहे पिया मिलेंगे।

जग मे सुंदर हैं दो नाम चाहे कृष्ण कहो या राम (३)
बोलो राम राम राम, बोलो शाम शाम श्याम (३)

जय राम रमारमनं शमनं . भव ताप भयाकुल पाहि जनं ..
अवधेस सुरेस रमेस विभो . शरनागत मांगत पाहि प्रभो ..

जानकी नाथ सहाय करें
जानकी नाथ सहाय करें जब कौन बिगाड़ करे नर तेरो ..

ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियां ॥

दाता राम दिये ही जाता ।
भिक्षुक मन पर नहीं अघाता।

पढ़ो पोथी में राम लिखो तख्ती पे राम ।
देखो खम्बे में राम हरे राम राम राम ॥

पाई न केहिं गति पतित पावन राम भजि सुनु सठ मना।
गनिका अजामिल ब्याध गीध गजादि खल तारे घना।।

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो ..
वस्तु अमोलिक दी मेरे सतगुरु किरपा करि अपनायो .

पावन तेरा नाम है पावन तेरा धाम .
अतिशय पावन रूप तू पावन तेरा काम ..

बिरहणिकौं सिंगार न भावै ।

है कोइ ऐसा राम मिलावै ॥टेक॥

बोले बोले रे राम चिरैया रे ।
बोले रे राम चिरैया ॥

भज मन मेरे राम नाम तू
गुरु आज्ञा सिर धार रे।

मनवा मेरा कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम,
तेरे चरणों में हैं बसते जग के सारे धाम…………..
जय-जय राम सीताराम,  जय-जय राम सीताराम………२

मेरे मन भैया राम कहौ रे ॥टेक॥

मेरे मन मन्दिर मे राम बिराजे। ऐसी जुगति करो हे स्वामी ॥ अधिष्ठान मेरा मन होवे। जिसमे राम नाम छवि सोहे । आँख मूंदते दर्शन होवे ऐसी जुगति करो हे स्वामी ॥ मेरे मन

मेरे मन में हैं राम मेरे तन में है राम
मेरे मन में हैं राम मेरे तन में है राम ।
मेरे नैनों की नगरिया में राम ही राम ॥

रघुकुल प्रगटे हैं रघुबीर ।

देस देस से टीको आयो रतन कनक मनि हीर ।

रघुपति राघव राजा राम
पतित पावन सीता राम

रघुपति राघव राजा राम
पतित पावन सीता राम

राम झरोखे बैठ के सब का मुजरा लेत ।
जैसी जाकी चाकरी वैसा वाको देत ॥
राम करे सो होय रे मनवा राम करे सो होये ॥

राम दो निज चरणों में स्थान
शरणागत अपना जन जान

राम बिराजो हृदय भवन में
तुम बिन और न हो कुछ मन में

राम रस मीठा रे, कोइ पीवै साधु सुजाण ।

सदा रस पीवै प्रेमसूँ सो अबिनासी प्राण ॥टेक॥

राम राम काहे ना बोले ।
व्याकुल मन जब इत उत डोले।

राम राम राम राम राम राम रट रे ॥
भव के फंद करम बंध पल में जाये कट रे ॥

अंत में निकला ये परिणाम, ये परिणाम,
राम से बड़ा राम का नाम ..

राम हि राम बस राम हि राम ।
और नाहि काहू से काम।
राम हि राम बस …

रोम रोम में रमा हुआ है,
मेरा राम रमैया तू,
सकल सृष्टि का सिरजनहारा,

सर्व शक्तिमते परमात्मने श्री रामाय नमः ..
बोलो राम बोलो राम बोलो राम राम राम .

सीताराम, सीताराम, सीताराम कहिये .
जाहि विधि राखे, राम ताहि विधि रहिये ..

हारिये न हिम्मत बिसारिये न राम ।
तू क्यों सोचे बंदे सब की सोचे राम ॥