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श्री गुरु तेग बहादर जी – गुरु गद्दी मिलना

जब श्री गुरु हरिगोबिंद जी (Shri Guru Hargobind Ji) ने गुरु गद्दी अपने छोटे पोत्र श्री हरि राय जी (Shri Guru Harrai Ji) को दी तथ स्वंय ज्योति-ज्योत समाने का निर्णय कर लिया तो माता नानकी जी ने आपको हाथ जोड़कर विनती की कि महाराज! मेरे पुत्र जो कि संत स्वरुप हैं, उनकी ओर आपने ध्यान नहीं दिया| उनका निर्वाह किस तरह होगा?

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गुरु हरि गोबिंद जी ने जब अपनी पत्नी की यह बात सुनी तो उन्होंने वचन किया कि आप इस समय अपने पुत्र श्री तेग बहादर जी को लेकर अपने मायके बकाले गाँव चले जाओ| समय पर इन्ही को गुरु गद्दी प्राप्त हो जायेगी|

गुरु जी का वचन मानकर माता नानकी जी श्री (गुरु) तेग बहादर जी को लेकर बकाले आ गई| वहाँ आकर श्री तेग बहादर जी अलग बैठकर भजन सिमरन करते रहते| वह किसी भी काम काज की ओर अपना ध्यान न देते| इस तरह ऐसी तप साधना में आपजी ने 21-22 साल व्यतीत किए|

आठवें गुरु श्री हरि कृष्ण जी (Shri Guru Har Krishan Ji) ने दिल्ली में ज्योति-ज्योत समाने से पहले पांच पैसे और नारियल थाली में रख कर और उसको माथा टेक कर वचन किया था कि “गुरु बाबा बकाले”| जब यह वचन सारे सिख सेवकों में प्रकट हो गया तो श्री तेग बहादर जी (Shri Guru Tek Bahadar Ji) कोष्ठ में समाधि लगाकर छुप कर बैठ गए| 15 दिनों के बाद जब आपकी समाधि खुली तो माता जी ने कहा कि बेटा! आप संगत में प्रकट होकर दर्शन दो और उनकी मनोकामना पूर्ण करो| पर गुरु जी अपनी लिव जोड़कर बैठे रहे|

दूसरी ओर धीरमल जी गुरु गद्दी लगाकर बकाले आकर गुरु बनकर बैठ गए| उसने जगह जगह यह प्रचार किया कि मैं ही गुरु हूँ| इनको देखकर और सोढ भी यहाँ डेरा लगाकर बैठ गए| यह आपा धापी देखकर श्रधालु सिख विचलित से होने लगे|

मखन शाह लुभाना जिला जेहलम गाँव टांडा में रहता था, जो कि देश विदेश में व्यपार का काम करता था| एक बार वह किसी विदेश से जहाज का माल लादकर समुन्द्र के रस्ते देश को आ रहा था| तूफान के कारण जहाज रेतीली जिल्हण में फस गया| कोई चारा ना चलता देखकर उसने गुरु जी से हाथ जोड़कर अरदास की कि सच्चे पातशाह! मैं आपके घर का सेवक हूँ मेरी सहायता करके पार लगाओ| मैं आपके आगे पांच सौ मोहरे भेंट करूँगा|

अपने भगत के हृदय की पुकार सुनकर अन्तर्यामी गुरु ने अपना कंधा देकर मखन शाह का डूबता जहाज पार लगा दिया| और अपने सेवक की प्रार्थना कबूल की|

जहाज पार लगाकर मखन शाह ने सारा माल बेच दिया| तो वह अपनी मनौत पूरी करने के लिए पंजाब आया| पंजाब आकर उसको पता लगा इस समय गुरु बकाले में निवास करते हें| तब उसने यह विचार किया कि अन्तर्यामी गुरु स्वंय ही मुझसे पांच सौ मोहरे माँगेगे| बकाले जाकर उसने देखा कि वहाँ कई गुरु बैठे हैं| उसने हर एक गद्दी लगाकर बैठे गुरु के आगे दो दो मोहरे रखकर माथा टेका| पर किसी भी गुरु ने पांच सौ मोहरे पूरी ना माँगी| फिर वह सच्चे गुरु को पूछता-पूछता श्री गुरु तेग बहादर जी के पास पहुँच गया| आप जी कोष्ठ में बैठे थे| आपने माता जी से पूछ कर कोष्ठ में जाकर जब दो मोहरे रखकर माथा टेका तो आपने हँस कर कहा – मखन शाह! तू पांच सौ मोहरे गुरु घर की मनौत मानकर अब दो ही मोहरे रखता है| तुम्हें गुरु घर की मनौत पूरी करनी चाहिए|

गुरु जी के यह वचन सुनकर मखन शाह को यकीन आ गया कि यही सच्चे गुरु हैं| उसने पांच सौ मोहरे गुरु जी के आगे भेंट कर दी और खुशी से कोठे पर चढ़कर ऊँची-ऊँची कपड़ा फेरकर कहा, “गुरु लाधो रे, गुरु लाधो रे|”

इस तरह जब सबको पता लग गया कि बकाले वाले बाबा श्री गुरु तेग बहादर जी (Shri Guru Tek Bahadar Ji) हैं तो संगत उमड़-उमड़ कर आपके दर्शन करने के लिए आने लगी| मखन शाह ने अपनी वार्ता सबको सुनाई कि सच्चे गुरु की परख किस तरह हुई है| यह वार्ता सुनकर श्रद्धालु सिख सेवकों ने गुरु जी के आगे भेंट रखकर माथा टेका|

दूसरे दिन माता जी तथा भाई गढ़ीये से सलाह करके मखन शाह ने चंदोआ और नीचे दरियाँ बिछाई और गुरु जी के दीवान के लिए तैयारी करके गुरु जी को गद्दी लगवाकर बिठा दिया| गुरु जी का दीवान में प्रगट होकर बैठना सुनकर सिख सेवक उमड़-उमड़ कर दर्शन करने को आए| आए हुए सभी श्रदालुओं ने यथा शक्ति भेंट अर्पण की और गुरु जी को माथा टेका|

धीरमल ने इस तरह संगत की आवाजाई और गुरु जी भेंट अर्पण होते देखकर आदमी भेजकर सारा चढ़ावा जो संगत ने भेंट किया था उठवा लिया| इस समय शीहें मसंद ने गुरु जी को मारने के लिए गोली भी चलाई| परन्तु वह खाली गई और गुरु जी बच गए|

मखन शाह अपने साथ आदमी लेकर धीरमल के डेरे से श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बीड़ के साथ-साथ डेरे से सब कुछ ले आया जो धीरमल के आदमी लूट कर ले गए थे| परन्तु गुरु जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब (Shri Guru Granth Sahib) की बीड़ के अतिरिक्त धीरमल को वापिस करा दिया| इस तरह अपना आदर ना होता देखकर अपना सामान उठवाकर करतारपुर चला गया|

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