यह जटायुक्त फल होता है| इसका छिलका बहुत सख्त होता है| इसको तोड़ने के बाद अंदर से गिरी निकलती है, इसमें पानी भी होता है| स्वाद में यह मीठा होता है| इसमें विटामिन-ए न्यूनाधिक मात्रा में होता है|
ख़रबूज़ा एक फल है। यह पकने पर हरे से पीले रंग के हो जाते है, हलांकि यह कई रंगों मे उपलब्ध है। मूल रूप से इसके फल लम्बी लताओं में लगते हैं। गर्मियों के मौसम में शरीर को ठंड़ा रखना बहुत ही जरूरी हो जाता है। हमारा शरीर ठंड़ा रहे इसलिए हम तरह-तरह के तरीकों को अपनाते हैं। खरबूजे की कई किस्में बहुत स्वादिष्ट और पौष्टिक होती है।
प्रकृति ने बादाम को नयन की आकृति देकर इसके गौरव को अधिक ऊंचा उठा दिया| कोषाकारों ने प्रकृति के अमूल्य अनुदान का मूल्यांकन किया| उसे नेत्रोपम की संज्ञा से संबोधित किया| वास्तव में बादाम मेवा जगत् में नेत्रोपम है| यह शरीर को नववीर्य प्रदान करता है, नये रक्त का निर्माण करता है तथा मस्तिष्क को अभिनव शक्ति देता है और हृदय को बलशाली बनाता है| औषधि निर्माण में मुख्यत: कागजी बादाम प्रयुक्त होता है|
करेले के बारे में एक कहावत है, ‘करेला, वो भी नीम चढ़ा|’ अर्थात् करेला अत्यंत कड़वा होता है| इसकी तासीर ठंडी होती है, तथा पचने में यह हल्का होता है| यह आयु को बढ़ाता है और पाचन-क्रिया प्रदीप्त करके शौच साफ लाता है|
हमारे देश में गोभी तीन प्रकार का मिलता है – पत्ता गोभी, गांठ गोभी और फूल गोभी| किन्तु फूल गोभी का सेवन ही यहां अधिक मात्रा में किया जाता है| इसकी प्रकृति ठंडी है| यह रक्त-संचार को बढ़ाने के साथ-साथ वायु की भी वृद्धि करता है|
केरोसीन कच्चे पेट्रोलियम का वह अंश है जो 175-275 सें. ताप पर आसुत होता है। इसका भौतिक और रासायनिक गुण उपस्थित हाइड्रोकार्बनों के अनुपात, संघटन और क्वथनांक पर निर्भर करता है। कच्चे केरोसीन में सौरभिक हाइड्रोकार्बन (40 प्रतिशत तक) आक्सिजन, गंधक और नाइट्रोजन के कुछ यौगिक रहते हैं।
संसार का शायद ही कोई ऐसा प्राणी रहा हो जिसने कभी चाय न पी हो| यानी चाय का स्वाद न चखा हो| अमीर-गरीब, मालिक-मजदूर सभी चाय का प्रयोग करते हैं| चाय ज्यों ही गले से उतर कर हृदय के साथ संपर्क स्थापित करती है, उसी क्षण शरीर में स्फूर्ति का संचार हो उठता है, तथा स्नायु में एक प्रकार की चेतना-शक्ति व्याप्त हो जाती है| चाय के साथ, रासायनिक विश्लेषण का वर्णन निम्न है –
अंगूर एक बलवर्घक एवं सौन्दर्यवर्घक फल है। अंगूर फल मां के दूघ के समान पोषक है। फलों में अंगूर सर्वोत्तम माना जाता है। अंगूर में पर्याप्त मात्रा में कैलोरी, फाइबर और विटामिन सी, ई पाया जाता है| अंगूर के लाजवाब स्वाद से तो हम सभी परिचित हैं लेकिन कम ही लोगों को पता होता है कि ये सेहत का खजाना भी है|
हरेक प्रकार के अन्न हो पचाने में अजवाइन को महारथ हासिल है| अजवाइन में चिरायते का कटु पौष्टिक, हींग का वायुनाशक और कालीमिर्च का अग्निदिपन-ये समस्त गुण विद्यमान हैं| इन्हीं गुणों के कारण अजवाइन वायु-कफ, उदर पीड़ा, अफारा एवं कृमि को नष्ट करने में समक्ष है| यह शरीर की वेदना को मिटाती है, कामोद्दीपक है| आमाशय को सक्रीय बनाती है| इससे पक्षाघात एवं कम्पन वायु में लाभ पहुंचता है| इसके काढ़े से आंखें धोने से ज्योति बढ़ती है|
मक्का एक साबुत अनाज के रूप में उपयोग होने वाला भारत मेें प्रसिद्ध खाद्यपदार्थ है। इसे सभी प्रकार की मिट्टियों में उगाया जा सकता है। मक्का अनाज में विटामिन ए , निकोटिनिक एसिड, राइबोफ्लेविन और विटामिन-ई भी पर्याप्त मात्रा में होता है।
कपूर उड़नशील वानस्पतिक द्रव्य है। यह सफेद रंग का मोम की तरह का पदार्थ है। कपूर का इस्तेमाल खास तौर से हवन पूजन और कई ब्यूटी उत्पादों में खुशबू के साथ ही ठंडाई के लिए किया जाता है। कपूर को संस्कृत में कर्पूर, फारसी में काफ़ूर और अंग्रेजी में कैंफ़र कहते हैं।
अंजीर एक ऐसा फल है जो न सिर्फ आपके वज़न को घटाने में मदद करता है बल्कि दिल को भी स्वस्थ रखने में मदद करता है। अंजीर एक ऐसा फल है जो न सिर्फ आपके वज़न को घटाने में मदद करता है बल्कि दिल को भी स्वस्थ रखने में मदद करता है।
माजूफल, मायाफल, मज्जफल, माईफल, माजुफल, गाल्स व ओक गाल्स एक पेड़ से प्राप्त होने वाला पदार्थ `है| कुदरत ने अपने नायाब ख़ज़ाने में से हमको ढेरो ऐसी सौगाते दी हैं जो के अमृत से कम नहीं नहीं। मगर हम पहचान नहीं पाते एक अनोखा सा फल है माजूफल – इसको अंग्रेजी में Gall-nut कहते हैं|
यह गोल आकार का और थोड़े कसैले स्वाद का फल है| इसका छिलका तरबूज के छिलके की भांति थोड़ा सख्त होता है, तथा भीतर खरबूजे की भांति गूदा भरा होता है|
पौष्टिक एवं विटामिन प्रधान खाद्य-पदार्थों में काजू सर्वश्रेष्ठ है| यह स्निग्ध है, मधुर है, ग्राही है व धातु परिवर्तक है, मूत्रल है; हृदय एवं नाड़ी-दौर्बल्यनाशक है तथा स्मृति को उजागर करता है| प्रात: खाली पेट काजू खाकर, ऊपर से शहद का प्रयोग अतिशीघ्र स्मृति-विकास करता है| इसके प्रयोग से छूत का रोग सहज ही दूर हो जाता है| इसे मुनक्का के साथ खाने से कोष्ठबद्धता दूर होती है|
नारंगी एक फल है। नारंगी को हाथ से छीलने के बाद पेशीयोँ को अलग कर के चूसकर खाया जा सकता है। नारंगी का रस निकालकर पीया जा सकता है। और शरीर को भरपूर शक्ति मिलती है। इसके सेवन से न केवल पाचन क्रिया दुरुस्त रहती है बल्कि बॉडी में उत्साह और स्फूर्ति का संचार होता है।
यह अत्यन्त स्वास्थ्यवर्द्धक है, विशेष रूप से हरी मटर अधिक लाभकारी होती है, किन्तु यह पचती देर से है| सूखी मटर अपेक्षाकृत कम लाभदायक होती है|
गाजर सारे भारत में पैदा होती है| यह खाद्य तथा औषधीय गुणों की दृष्टि से बहुत उपयोगी है| कच्ची खाने से लेकर साग-सब्जी, अचार, मुरब्बा, हलवा, औषधि आदि बहुत से रूपों में गाजर का उपयोग होता है|
औषधि के रूप में इसका भी प्रयोग किया जाता है| खांसी व हृदय रोग में यह लाभ पहुंचाती है| स्वभाव से यह भारी है, किन्तु सेवन करने पर स्वादिष्ट लगती है| अरबी की सब्जी बनाकर खाएं| इसकी सब्जी में गर्म मसाला, दालचीनी और लौंग डालें| जिनके गैस बनती हो, गठिया और खांसी हो, उनके लिए अरबी हानिकारक है|
यह भारतीय नारी के हाथ-पैरों के श्रृंगार के प्रतीक के रूप में ही नहीं, बल्कि शरीर के स्वास्थ्य के रूप में भी विख्यात है| साथ ही यह नारी के सौभाग्य का चिह्न भी है, निरोगता का साधन भी है| इसके पत्ते वमन कारक, कफ निस्सारक, शरीर की दाह को शांत करने वाले एवं कुष्ठ में लाभप्रद हैं| इस के फूल उत्तेजक, हृदय तथा मज्जा-तंतुओं को बलशाली बनाते हैं| बीज मलारोधक, ज्वरनाशक और उन्माद में लाभ पहुंचाने वाले होते हैं| यह शीतवीर्य है|
सुश्रुत, वागभट्ट आदि प्राचीन आचार्यों ने औषधि विज्ञान में चूने का महत्वपूर्ण स्थान रखा है| शरीर की हड्डियों को मजबूत करने के लिए कैलशियम नामक तत्त्व को बहुत उपयोगी माना जाता है और वह कैलशियम चूने में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है| चूना जंतु-नाशक है, चूना में क्षार अधिक मात्रा में पाया जाता है| चूने में पाया जाने वाला कैलशियम सर्व प्रकार के प्रदाहिक सूजन में लाभ करता है| इसे चूने के पानी के रूप में प्रयोग किया जाता है| चूने के पानी के रूप में प्रयोग किया जाता है| चूने का पानी आम्ल-नाशक होता है|
साग-सब्जी, दाल, नमकीन हलवा, लड्डू आदि में नित्य हल्दी का प्रयोग किया जाता है| लेकिन यह मसाले के अलावा एक औषधि भी है जो बच्चे से लेकर वृद्ध तक के लिए परम गुणकारी है| इसके सेवन से शरीर में पैदा होने वाली छोटी-मोटी व्याधियां अपने आप दूर होती रहती हैं|
हमारे देश में तुलसी का पौधा घर-घर में मिलता है| तुलसी का अर्थ है – तु’ से भौतिक, ‘ल’ से दैविक और ‘सी’ से आध्यात्मिक तापों का संहार करने वाली| इसका पौधा लगभग 3-4 फुट ऊंचा होता है|
फिटकिरी एक ऐसी औषधि है जिसके बारे में हर घर की महिलाएं बहुत कुछ जानती हैं| यह त्वचा रोगों को दूर करने, शरीर के भीतरी अंगों को सुरक्षा प्रदान करने, कीड़ों को मारने, दर्द को कम करने और सूजन एवं बादी को शान्त करने की बेजोड़ दवा है| इसके प्रमुख औषधीय उपयोग अगले पृष्ठ पर दिए जा रहे हैं –
गूलर को उदुम्बर, उम्बर, अंजेर आदम और किमुटी भी कहते हैं| गूलर की विशेषता यह है कि इसके फूल दिखाई नहीं देते| इसकी शाखाओं पर केवल फल दिखाई देते हैं|
सलाद के रूप में सम्पूर्ण विश्व में खीरा का विशेष महत्त्व है। खीरा को सलाद के अतिरिक्त उपवास के समय फलाहार के रूप में प्रयोग किया जाता है। शरीर की भीतरी शुद्धि हो या बाहरी ठंडक, खीरा हर तरह से लाजवाब होता है। सलाद के रूप में सम्पूर्ण विश्व में खीरा का विशेष महत्त्व है। खीरा को सलाद के अतिरिक्त उपवास के समय फलाहार के रूप में प्रयोग किया जाता है।
यह शीतल प्रकृति की पत्तेदार होती है| पाचन-क्रिया को मजबूत करने व रुचि बढ़ाने में यह सहायता प्रदान करती है| यह शरीर के रोगात्मक विषों को नष्ट करने में समक्ष है| मुख्यत: इसको शाक के रूप में प्रयोग किया जाता है| पेट के रोग तथा गंजेपन की शिकायत भी इससे दूर हो जाती है| यह गठिया, ब्लडप्रेशर और हृदय रोगियों को भी लाभ पहुंचती है|
संभवतया सीताफल उतना ही विख्यात है, जितना कि सीता का नाम| वानरों का यह प्रिय फल है, इसका साग पूड़ियों के साथ अत्यंत स्वादिष्ट लगता है| आधुनिक साँस बनाने में भी इसका पयोग किया जाता है| यह तृप्तिजनक है, बलवर्धक है| रस-मधुर है| हृदय को हितकारी है| वात-कफ का कारक है, किन्तु पित्त का नाशक है|
खजूर को भी शीतकालीन फल ही माना गया है| यह गहरे लाल रंग का गूदेदार होता है| इसके अंदर से गिरी निकलती है| यह अत्यंत तृप्तिदायक, शीतल, मीठा और भारी होता है| इसकी तासीर ठंडी होती है, इसलिए पित्त के अनेक रोगों में यह लाभदायक सिद्ध होता हैं| यह शक्तिवर्धक और वीर्यवर्धक होता है तथा हृदय के लिए परम हितकारी है|
बर्फ़ जल की ठोस अवस्था को कहते हैं। सामन्य दाब पर ० डिग्री सेल्सियस पर जल जमने लगता है, जल की इसी जमी हुई अवस्था को बर्फ़ कहते हैं।
गांवों में पपीते का पेड़ घर-घर में देखने को मिल जाता है| पपीते का फल लम्बा होता है| कच्चे पपीते के दूध से ‘पेपन’ नामक पदार्थ बनाया जाता है| पपीते का फल, बीज और पत्ते विभिन्न प्रकार के रोगों में काम आते हैं|
पान अत्यन्त चरपरा, कटु, क्षारयुक्त एवं मधुर होता है| इसकी उपस्थिति में वात, कफ एवं कृमियों को विदा लेनी पड़ती है| मुंह की दुर्गन्ध को यह दूर करता है| बाजीकरण है, धारण-शक्ति एवं काम-शक्ति को बढ़ाता है| यह जितना पुराना होता है, उतना ही श्रेष्ठ माना जाता है| पान खाने से शारीरिक एवं मानसिक थकान दूर हो जाती है| पान के चबाने एवं चूसने पर लार की मात्रा अधिक निकलती है, जिससे पाचन-क्रिया में सहायता मिलती है| इससे प्यास और भूख भी शान्त हो जाती है तथा निम्न रोगों में भी यह बहुत लाभकारी है|
ग्वार, लेग्युमिनेसी कुल की, खरीफ ऋतु में उगाई जाने वाली एकवर्षीय फसल है। पशुओं को ग्वार खिलाने से उनमें ताकत आती है तथा दूधारू पशुओं कि दूध देने की क्षमता में बढोतरी होती है। ग्वार फली से स्वादिष्ट तरकारी बनाई जाती है। ग्वार फली को आलू के साथ प्याज में छोंक लगाकर खाने पर यह बहुत स्वाद लगती है तथा अन्य सब्जियों के साथ मिलाकर भी बनाया जाता है जैसे दाल में, सूप बनाने में पुलाव इत्यादि में।
यह रक्त, मांस, मेद तथा धातुवर्धक होती है| यह ओजकारक, रुचिकारक और तृप्तिदायक भी है| इसका नियमित सेवन हृदय के लिए भी अच्छा है| इससे प्यास दूर होकर शांति मिलती है| भोजन में इसका सेवन आवश्यक है| दस्त न रुकने पर शरीर से बहुत-सा पानी निकल जाने पर, शक्कर में थोड़ा-सा नमक मिलाकर पानी का सेवन करने से पानी की पूर्ति हो जाती है और जीवन बच जाता है| शक्कर के शरबत में नींबू का रस मिलाने से वो अधिक गुणकारी हो जाता है| आंखों की दुर्बलता दूर करने में भी यह उत्तम है|
इस विश्व-विख्यात फल की पैदावार विशेषकर पहाड़ी प्रदेशों में होती है| मुख्यत: यह हरा, पीला, लाल और सफेद रंग का होता है| इसका स्वाद मीठा होता है और इसकी तासीर ठंडी होती है|
आर्द्रक अर्थात् अदरक का अर्थ है – नमी की रक्षा करने वाली गुणकारी प्राकृतिक जड़ी| यही अदरक सूखने के बाद सोंठ बन जाती है| इसमें जितना जल होता है, उतनी ही उष्णता भी होती है|
इनका रस और विपाक कटु होता है| शीतवीर्य, मधुर, रुचिकर एवं सुगंधित है| इसी कारण यह मन को प्रफुल्लित कर देती है तथा वायु को विलीन कर, छाती, कंठ एवं आमाशय के द्रव को सुखाती है| मस्तिष्क, हृदय एवं उदर को बलशाली बनाती है| मुंह की दुर्गन्ध, मूत्र की रुकावट व पेट के अफारे को दूर करती है| आमाशय के दोषों को दूर करती है और डकारें लाकर भूख पैदा करती है| प्राय: सभी औषधि निर्माण कार्यों में यह प्रभावशाली है|
लीची उत्तम स्वास्थ्यवर्धक फल है| पकी लीची अत्यंत स्वादिष्ट और खाने में मीठी, रसीली होती है, जबकि कच्ची लीची खाने में खट्टी प्रतीत होती है| रासयनिक दृष्टि-से लीची में शर्करा, वसा और प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं| साथ ही इसमें आयरन (लोहा) भी विद्यमान है, जो नया रक्त बनाने में अग्रणी है| स्वास्थ्य की दृष्टि-से लीची एक उत्तम फल है|
खस या खसखस एक सुगंधित पौधा है। खसखस का इस्तेमाल सब्जी की ग्रेवी और सर्दी के दिनों में स्वादिष्ट हलवा बनाने के लिए किया जाता है। आइए जानें खसखस के स्वास्थ्य लाभ में से कुछ लाभों के बारे में|
फालसा दक्षिणी एशिया में भारत, पाकिस्तान से कम्बोडिया तक के क्षेत्र मूल का फल है। यह आपको गर्मी से तो राहत दिलाएगा ही, शरीर के लिए भी काफी पौष्टिक है। गर्मियों के सबसे लोकप्रिय फलों की सूची में फालसा प्रमुखता से शामिल है। अपने लाजवाब स्वाद के कारण फालसा हर किसी का पसंदीदा फल है।
आम फलों का राजा यूं ही नहीं कहलाता है। ये भारत का राष्ट्रीय फल है। आम के जितने भी फायदे गिनाए जाए कम है। यहां पर आम के कुछ महत्वपूर्ण लाभ के बारे में बताने जा रहे हैं।
इसमें विटामिन-बी होता है| तेल की आवश्यकता पूर्ति के लिए यह संसार भर में दूसरे नम्बर की वस्तु है| हेमोफिलिया एक भयानक और जानलेवा रोग है, जिसमें रक्त के भीतर जमने की शक्ति नहीं रहती| तनिक-सी भी खरास या रगड़ लग जाने से इतना रक्तस्त्राव होता है कि रोग की मृत्यु निश्चित हो जाती है|
शहतूत भी समस्त फलों की श्रेणी में अपना प्रमुख स्थान रखता है| इसमें शर्करा, कार्बोहाइड्रेट और साइट्रेड प्रमुख रूप से होते हैं| शहतूत तथा उसका शर्बत शरीर की चर्बी चढ़ाने के साथ-साथ पाचन-क्रिया को भी उत्तेजित करता है | यह रक्तपित्त नाशक होता है|
उष्ण प्रकृति वालों को एवं पित्तजन्य व्याधियों में तोरई का सेवन विशेष हितकर है| यह मधुर, पित्तनाशक, कफ-वात वर्धक, मृदु-रेचक, कृमि-नाशक, मूत्रल ज्वर, रक्त पित्त तथा कुष्ठादि विकारों में पथ्यकर व लाभप्रद है|
मूंगफली और चना का एक योग है| यह देश भर में सर्वत्र खाने के काम में लिया जाता है| बच्चों का यह मुख्य खाद्य है| यह प्यास को बुझाता है| सौन्दर्यवर्धक व बलवर्धक है| रक्त को भी यह साफ करता है, तथा जुकाम को दूर कर गले को सुरीला बनाता है| पेट के कृमियों को नष्ट करता है| यह एक ऐसा अनाज है जो अकेला ही भोजन के सारे खाद्य पदार्थों की पूर्ति कर देता है| विभिन्न प्रकार के रोगों में भी यह लाभकारी है|
खिरनी स्वाद में मीठी होती है, किन्तु इसकी तासीर ठंडी होती है| यह अत्यंत वीर्यवर्धक, शक्तिवर्धक, चिकनी, शीतल और भारी होती है, तथा प्यास, मूर्च्छा, मद, तीनो दोषों तथा रक्त-पित्त नाशक होती है|
यह फल कफ को बढ़ाता है, साथ ही यह शरीर में पित्त की अधिकता या ऊष्मा को कम करने में भी सहायक होता है| सुपाच्य है और रुग्णावस्था में पथ्य के रूप में भी इसका सेवन किया जा सकता है| इसे इसके नरम छिलके के साथ ही प्रयोग किया जाता है, छीलकर भी खाया जाता है| इसका स्वाद बहुत ही मिठास से भरा होता है| यह अत्यन्त शक्तिवर्धक एवं मांस और चर्बीवर्धक है|
यह गोंद का ही प्रतिरूप है| प्रत्येक मौसम में इसका प्रयोग किया जा सकता है| किन्तु ग्रीष्मकाल में विशेष लाभप्रद है| प्यास आदि को दूर करने में यह अद्वितीय है| स्त्री-पुरुषों के गुप्त रोगों में भी विशेष लाभकारी है|
अनार खट्टा भी होता है और मीठा भी| खट्टे अनार के छिलके का अर्क चूसने से खांसी चली जाती है जबकि मीठे अनार को खाने से खून बढ़ता है| इसका छिलका दस्त, ऐंठन, संग्रहणी, कांच निकलना, बवासीर आदि रोगों को दूर करता है|
घृत कुमारी या अलो वेरा/एलोवेरा, जिसे क्वारगंदल, या ग्वारपाठा के नाम से भी जाना जाता है, एक औषधीय पौधे के रूप में विख्यात है। ग्वारपाठा पेट की बीमारियों के लिये और जोड़ों के दर्द के लिये बहुत फायदेमन्द है| एलोवेरा की लगभग 200 जातियां होती हैं। इनमें से सिर्फ पहली 5 ही मानव शरीर के लिए उपयोगी होती हैं। तो आज इसके गुणों के बारे में बात करते हैं।
यह सर्व गुण संपन्न है| पुराना गुड़ पाचक होता है| स्वास्थ्यवर्धक है; भूख को खोलने वाला है| वायु नाशक, पित्त, वीर्यवर्धक एवं रक्त शोधक है| सोंठ के साथ गुड़ वायु-संबधी समग्र विकारों को अतिशीघ्र दूर करता है| हृदय की दुर्बलता के लिए यह एक रामबाण औषधि है|
यह अत्यन्त तृप्तिदायक, शीतल एवं शहद जितना मीठा होता है| यह बहुत अधिक शक्तिवर्धक और वीर्यवर्धक होता है तथा हृदय के लिए परम हितकारी है| इसका सेवन क्षयरोग में लाभकारी है| रक्तवर्धक होने के साथ-साथ इसमें सभी पौष्टिक तत्त्व विद्यमान रहते हैं| जो शरीर के विकास के लिए परमापयोगी हैं| ये शुक्राणु एवं डिम्बवर्धक हैं तथा मांसपेशियों की शिथिलता को दूर करने में उपयोगी हैं| कामशक्ति व यौनशक्ति को बढ़ाने में अद्वितीय हैं| इनके नित्य सेवन से शरीर हृष्ट-पुष्ट बनता है| चार से अधिक छुआरे एक बार में नहीं खाने चाहिए, वरना ये गर्मी करते हैं| दूध में भिगोकर छुआरा खाने से इसके पौष्टिक गुण बढ़ जाते हैं|
दूब या दुर्वा एक घास है जो जमीन पर पसरती है। आयुर्वेद के अनुसार दूब का स्वाद कसैला-मीठा होता है। विभिन्न प्रकार के पित्त एवं कब्ज विकारों को दूर करने के लिए दूब का प्रयोग किया जाता है। इसके आध्यात्मिक महत्वानुसार प्रत्येक पूजा में दूब को अनिवार्य रूप से प्रयोग में लाया जाता है
यह पचने में हल्की और रुक्षताकारक होती है| इसका प्रभाव शीतल होने से यह पित्तनाशक मानी गयी है| इससे शरीर तथा पेट की जलन शांत होती है| छिलके युक्त मूंग की दाल नेत्रों के लिए बहुत ही हितकर होती है| इसे साबुत, छिलके वाली तथा छिलका रहित प्रयोग किया जाता है| सभी प्रकार के ज्वरों में साबुत मूंग या मूंग की दाल का प्रयोग आहार के रूप में किया जाता है|
एक विलायती करौंदा भी होता है, जो भारतीय बगीचों में पाया जाता है। इसका फल थोड़ा बड़ा होता है और खाने में खट्टे स्वाद वाला ये फल कई तरह के रोगों से लड़ने की भी शक्ति रखता है। इसकी ऊंचाई 6 से 7 फीट तक होती है। पत्तों के पास कांटे होते है जो मजबूत होते है।
हर्र के नाम से सभी परिचित हैं| इसे हरड़ भी कहते हैं| इसमें इतने गुण हैं कि हमारे पूर्वजों और वैद्यों ने इसके अनेक नाम रख दिए हैं, जैसे – विजया, रोहिणी, जीवन्ती, कल्याणी, पूतना, हरीतिकी आदि|
घर में मसालदान में अजवायन का महत्त्वपूर्ण स्थान है| इसका प्रयोग साग-सब्जी, परांठे, काढ़ा आदि में होता रहता है| इसके गुणों के कारण विद्वानों ने इसे कल्याणकारी माना है| अजवायन रोगियों का तो कल्याण करती ही है – स्वस्थ व्यक्तिओं के लिए भी यह परम हितकारी है|
स्त्रियों के मिजाजों की भांति मूली के भी अपने स्वाद भरे मिजाज हैं| बहुत-सी मूली मीठी होती है, बहुत-सी फीकी और बहुत-सी तेज चिरमिरी, मानों दांतों तले तेज मिर्च आ गई हो| इसकी तासीर ठंडी होती है| फिर भी पेट के लिए यह बहुत लाभदायक है| इसके सेवन से भोजन में रुचि बढ़ती है| पेट में गैस (वायु) को तो यह दूर करती ही है, अग्निमांद्य तथा कब्ज को दूर करने में भी समक्ष है|
यह मधुर, स्निग्ध, शीतल, शुक्रजनक एवं वीर्यवर्धक है| रक्त-पित्त एवं पित्त-विकार में अत्यंत लाभकारी है| यह हृदय को बल प्रदान करती है| सूखे मेवों में इसका स्थान भी बहुत महत्वपूर्ण है|
सिघाड़े को ‘जलफल’ और ‘त्रिकोणफल’ भी कहा जाता है| यह तालाब के जल के गर्भ से उत्पन्न होता है| यह मधुर, मृदु एवं सरस होता है| रोग के कीटाणुओं को यह जड़ से नष्ट कर देता है| यह पौष्टिक, शीतल, स्वादिष्ट, रुचिकर, वीर्यवर्धक और त्रिदोषनाशक है तथा स्त्रियों के लिए तो बहुत अधिक लाभकारी है|
केला बहुत पौष्टिक फल है, लेकिन इसे खाली पेट नहीं खाना चाहिए| क्योंकि यह मल को बांध देता है और कब्ज की शिकायत हो जाती है| इसलिए केला सदैव भोजन के बाद कम से कम तीन की संख्या में खाना चाहिए|
इसे घिया के नाम से भी जाना जाता है| यह लम्बी और गोलाकार भी होती है| इसका रंग हल्का हरा होता है| यह स्वाद में मीठी, हल्की और सुपाच्य होती है| यह सब्जी से लेकर मिष्ठान्न तक में प्रयुक्त होती है|
स्वास्थ्य के लिए इसे अमृत तुल्य माना गया है| जो लोग नियमित रूप से भोजनोपरान्त छाछ लेते हैं, वो कष्ट के चक्रव्यूह से सदैव मुक्त रहते हैं| आयुर्वेदिक चिकित्सा में कहा गया है कि भोजन के अन्त में छाछ, रात्रि के अन्त में जल और रात्रि के मध्य में दूध पीने वाला व्यक्ति सदा स्वस्थ रहता है| इसमें एक अलौकिक शक्ति विद्यमान है| कहा गया है कि धरती पर मनुष्य के लिए छाछ यानी मट्ठा एक अमृत समान है|
शुद्ध दूध / Milk पूरी तरह से कैल्शियम और महत्वपूर्ण मिनरल्स से भरा हुआ होता है। दूध हमारे आहार का अहम हिस्सा है। यह मानव का पहला आहार होता है। दूध में सारे पौष्टिक तत्व उपस्थित होते हैं जो एक स्वस्थ शरीर में होने चाहिए। अक्सर लोग दूध को लेकर भ्रमित रहते हैं कि दूध पीने से वो मोटे हो सकते हैं लेकिन यहां आपको बता दें कि दूध से मोटापा नहीं बढ़ता है बल्कि शरीर को शक्ति मिलती है।
बड़े अंगूर ही सूखकर मुनक्कों का रूप धारण कर लेते हैं| इसकी तासीर, तर व गर्म है| इसके प्रयोग से शारीरिक-क्षीणता दूर होती है, रक्त व शक्ति उत्पन्न होती है| फेफड़ों को बल मिलता है, दुर्बल रोगियों के लिए यह अमृत-तुल्य है| यह पाचन-शक्ति को बढ़ाने में अद्वितीय है| यौन-शक्ति को बढ़ाने में भी यह सहायक होते हैं| हृदय के लिए अत्यंत बलवर्धक हैं| नेत्रों की ज्योति भी इनसे बढ़ जाती है| अर्थात् इसके प्रयोग से रस, रक्त आदि धातुओं का संवर्धन होता है| निम्न उपचारों में इसका बहुत अधिक उपयोग है|
इसकी आम्ल प्रकृति है| आयुर्वेदिक औषधि के अनुपात में इमली को सर्वत: प्रथम वर्जित किया गया है| सामान्य स्थिति में यदि इसका प्रयोग कर लिया जाता है, तो यह अनेक उपद्रव उत्पन्न कर, व्यक्ति को प्राण-हरण की चरमसीमा तक पहुंचा देती है| यह अत्यंत खट्टी, भारी, गर्म, रुचिकारक, मलावरोधक, अग्निदीपक, वातनाशक, रक्तदूषक, कफ-वित्तकारक एवं आंत्र-संकोचक है| पकी हुई इमली मधुर, शीतल, दाह, व्रण, अर्श (बवासीर), लू, कृमि एवं अतिसार नाशक होती है| इसे निम्न रोगों में प्रयोग किया जाता है –
नमक मानवीय भोजन में पड़ने वाली एक अनिवार्य वस्तु है| एक चम्मच नमक में औसत व्यक्ति की एक दिन की समग्र शरीर की क्रियाओं को सुचारू रूप-से चलने के लिए सोडियम की मात्रा पर्याप्त होती है| नमक को रसायन की भाषा में सोडियम क्लोराइड भी कहा जाता है| नमक को समग्र रसों का राजा माना गया है|
जामुन कई प्रकार के होते हैं| लेकिन लोगों को फरैंदा और मीठा जामुन अधिक पसंद आता है| जंगली जामुन खट्टा और छोटा होता है| जामुन का फल भारी, कसैला, मलरोधक, बादी, रूखा तथा कफ-पित्त नाशक होता है|
परवल या ‘पटोल’ एक प्रकार की सब्ज़ी है। इसकी लता जमीन पर पसरती है। इसके बीजो में पाए जाने वाले कुछ पोषक तत्व जो होते है वो कब्जनाशक होते है और टिंडे भारत में पंजाब, उत्तर प्रदेश ,राजस्थान एवं महाराष्ट्र में सब्जी के रूप में इसकी खेती की जाती है | आईये जानते हैं टिंडे और परवल के कुछ औषधीय गुणों के बारे में –
मंद, मधुर, मधुराम्ल, आम्ल, अत्याम्ल दही उष्णवीर्य, बलकारक, रुचिवर्धक, मलावरोधक है| यह पेट की जलन को दूर करता है| कफनाशक है, मूत्रल है, खांसी एवं विषम ज्वर में लाभकारी है| इसके साथ जीरा, सैंधा नमक एवं त्रिकुटे का चूर्ण मिलाकर खाने से अधिक उपयोगी होता है| इनका योग शरीर को दृढ बनाता है| अंगों में स्फूर्ति एवं कांति पैदा करता है|
इसकी प्रकृति गर्म है तथा इसका स्वाद कुछ चरपरा होता है| यह सर्दी व कफ को नष्ट करता है| खांसी आदि श्वास रोग में भी लाभकारी है| इससे पाचन-क्रिया में सुधार पैदा होता है तथा वायु से उत्पन्न पीड़ा भी नष्ट हो जाती है| इसका सेवन शरीर के अनेक रोगों में लाभकारी है|
नीम खाने में कड़वी लगती है, लेकिन उसके गुण मीठे होते हैं| नीम में अमृत तत्त्व मौजूद हैं| यह कमजोर व्यक्ति को भी उठाकर बैठा देता है| निम्ब का अर्थ ही है – नीरोग करने वाला|
प्याज का सेवन अधिकतर लोग इसलिये नहीं करते क्योंकि इसमें बहुत तीव्र गंध आती है, विशेषकर कच्ची प्याज में| इसकी प्रकृति ठंडी होती है तथा यह गर्मी को शांत करती है| इसके सेवन से पाचन-क्रिया प्रदीप्त होती है| यह अत्यंत धातुवर्धक तथा बलवर्धक है| इसका सेवन यदि थोड़ी मात्रा में किया जाए, तो छाती में जमे हुए कफ को यह निकाल बाहर करती है तथा मूत्र साफ लाने में भी सहायक है| लू से बचाव करने में भी यह अद्वितीय है|
यह मुख्यत: मसालों में प्रयुक्त होती है| अत्यंत गर्म है तथा वायु और कफ को नष्ट करके उनसे उत्पन्न होने वाले अनेक रोगों में भी उपयोगी है| यह मुंह व गले को भी शुद्ध कर देती है| इससे मूत्राशय का शोधन भी हो जाता है|
नीबू छोटा और बड़ा दो प्रकार का होता है| इसका स्वाद खट्टा होता है| लेकिन इसमें इतने अधिक औषधीय गुण हैं कि लोग सभी ऋतुओं में इसका प्रयोग करते हैं| यह प्यास तथा गरमी को शान्त करता है|
कृशांगता, रक्ताल्पता, यकृत मस्तिष्क, हृदय एवं फेफड़ों की शक्तिहीनता तथा वात संस्थान तथा पित्त सम्बन्धी समस्त व्याधियों में पेठा का उपयोग हितकर है| पेठा रक्तचाप और गर्मी से भी बचाता है|
शुद्ध देशी घी जैसी वस्तु इस संसार में दूसरी कोई नहीं है| यह स्मरण-शक्ति को तीव्र बनाता है| इससे मेधा प्रखर व बुद्धि प्रबल बनती है| चिन-यौवन का अनुदान मिलता है| अणु-अणु में सौंदर्य स्फूर्त रहता है| शुद्ध घी अमृत के समान है| यह बात, कफ एवं पित्त को विदा करता है, थकान को दूर करता है| हृदय को अत्यंत हितकर है| चित्त को प्रसन्न करता है| किन्तु रक्तचाप, श्वास एवं खांसी में घी हानि करता है| तथा ज्वर रोगी को कभी भूलकर भी इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए|
यह वायु को बढ़ाने के कारण शरीर में रूक्षता पैदा करती हैं, पचने में हल्की होती है| इसके सेवन से मल बंधकर आता है, तथा पित्त-दोषों में भी लाभकारी है| रक्त-विकार में भी उपयोगी है|
जौ पृथ्वी पर सबसे प्राचीन काल से कृषि किये जाने वाले अनाजों में से एक है। जौ में विटामिन बी-कॉम्प्लेक्स, आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, मैगनीज, सेलेनियम, जिंक, कॉपर, प्रोटीन, अमीनो एसिड, डायट्री फाइबर्स और कई तरह के एंटी-ऑक्सीडेंट पाए जाते हैं। जौ घुलनशील और अघुलनशील फाइबर का स्रोत होता है। इस गुण के कारण आपको देर तक पेट भरा हुआ महसूस होता है। आज हम आपको इसके औषधीय प्रयोग बता रहे हैं।
यह सब तेलों में सबसे अधिक उपयोगी है| कब्ज को दूर करने में इसका प्रयोग किया जाता है| वायु, जोड़ों का दर्द, हृदय रोग, आमाशय के विकार, सूजन तथा रक्त विकार में भी यह प्रयुक्त होता है| यह केस्टरऑयल के नाम से भी जाना जाता है|
बेर एक ऐसा फलदार पेड़़ है जो कि एक बार पूरक सिंचाई से स्थापित होने के पश्चात वर्षा के पानी पर निर्भर रहकर भी फलोत्पादन कर सकता है। बेर में बहुत कम मात्रा में कैलोरी होती है लेकिन ये ऊर्जा का एक बहुत अच्छा स्त्रोत है. इसमें कई प्रकार के पोषक तत्व, विटामिन और लवण पाए जाते हैं. इन पोषक तत्वों के साथ ही ये एंटी-ऑक्सीडेंट के गुणों से भी भरपूर होता है।
इसकी प्रकृति शीतल है| हरी पत्तियों को शाक होने के कारण यह पाचकाग्नि को सक्रिय करने एवं रुचि पैदा करने के लिए उपयोग में लाया जाता है| यह बलवर्धक है, किन्तु पचता देर से है| तिल्ली का विकार दूर करने में यह अद्वितीय है|
यह देर से पचता है, किन्तु फिर भी पेट के विकारों में अत्यन्त लाभदायक है| इसमें लौह तत्व अधिक होते हैं, अत: नये रक्त की रचना भी इससे सहज ही हो जाती है| यह दुर्बल शरीर वालों को शक्ति प्रदान करता है| इसे शाक के रूप में ही अधिक प्रयोग जाता है|
बेल (बिल्व) का पेड़ बड़ा होता है| इसकी पत्तियां तीन दल की होती हैं| उनको बेलपत्र कहते हैं| शिवजी की मूर्ति पर बेलपत्र चढ़ाए जाते हैं| श्रावण के महीने में शैव मतावलम्बी शिवजी की पूजा करते समय बेलपत्रों से ही उनका अभिषेक करते हैं| बेल का पका फल मीठा होता है|
धान के बीज को चावल कहते हैं। चावल बहुत फायदेमंद चीज है बशर्ते की आप उसे अगर खेतों से सीधे खरीद लें मतलब राईस मिल में जाने से पहले ही खरीद ले क्योंकि राईस मिल में चावल को पॉलिश करने के चक्कर में चावल के बहुत से गुणों का नाश हो जाता है !
टमाटर को जिस रूप में भी प्रयोग किया जाए, स्वादिष्ट ही लगता है| यह कच्चा रहने पर हरा और पका होने पर लाल सुर्ख हो जाता है| इसके उपयोग से पाचन-क्रिया प्रदीप्त हो जाती है| रक्त का निर्माण करने में तथा जिगर को मजबूत बनाने में यह हितकर है| शरीर के अनेक रोगों में इसका उपयोग किया जाता है|
सर्वप्रथम इसे मुख-शुद्धि के लिए प्रयोग किया जाता है| यों सौंफ का उपयोग एक सुगन्धित, उत्तेजक और शांतिदायक पदार्थ के रूप में होता है| उदर की वायु दूर करने में यह रामबाण साबित होती है| यह आंतों में होने वाले मरोड़ों को शान्त करती है| बच्चों के उदरशूल को भी यह दूर करती है| इसके प्रयोग से मूत्र सहज और साफ आता है| अजीर्ण आदि से होने वाले दस्तों के लिए भी अति उत्तम औषधि है| सौंफ का काढ़ा बनाकर पीने से ज्वर की तेजी कम हो जाती है| यह शीतल और पाचक गुण प्रधान है| यह मेधा एवं स्मरण-शक्ति को तीव्र बनाती है| रक्तवाही संस्थानों को शुद्ध करती है| आमाशय की गर्मी दूर करती है|
संसार का प्रत्येक जीव-जंतु और पशु-पक्षी भूखा रह सकता है, पर प्यासा नहीं रह सकता| जल (पानी) के बिना जीवन नहीं है? प्यास केवल पानी से ही बुझ सकती है| पानी के अभाव में संसार की हजार नियामतें भी बेकार हैं| पानी केवल प्यास ही नहीं बुझाता, शरीर के अनेक रोगों को भी दूर करता है|
यह मस्तिष्क को ताजगी प्रदान करता है, रक्त बढ़ाता है, जोड़ों के दर्द को दूर करता है तथा स्त्रियों के स्तनों में दूध की मात्रा को बढ़ाता है| चुकंदर बलगम निकालकर श्वांस-नली को साफ रखता है|
ग्वारपाठे का ‘गूदा’ दवा बनाने के काम आता है| यह सफेद होता है| इसके गूदे में सचमुच हजारों औषधीय गुण भरे हैं| यह कफ-पित्त विकार को दूर करता है| भोजन पचाकर भूख बढ़ाता है| इसका अर्क कान में डालने से कान का दर्द दूर हो जाता है| इसके औषधीय गुणों की जानकारी निम्नवत् है –
चमेली का फूल झाड़ी या बेल जाति से संबंधित है, इसकी लगभग 200 प्रजाति पाई जती हैं। इसके फूलों से तेल और इत्र का निर्माण भी किया जाता है। चमेली के पत्ते हरे और फूल सफेद रंग के होते हैं, परंतु कहीं-कहीं पीले रंग के फूलों वाली चमेली की बेलें भी पाई जाती हैं।
यह एक वनस्पति है, जिसे सेनणा नाम से भी जाना है| इसके फूल और फल की सब्जी बनाकर खाई जाती है| इसकी पत्तियों में विटामिन-ए विशेष मात्रा में होता है, जो नेत्रों के लिए बहुत लाभकारी है|
यह स्वाद में तीक्ष्ण, स्निग्थ एवं कांतिवर्धक है, त्रिदोषनाशक है| इसकी संनिधि में प्रदर एवं प्रेमह का अतिशीघ्र प्रयाण हो जाता है| सूजन के लिए फिटकरी का प्रयोग बहुत उपयोगी एवं विश्वसनीय है| निम्न शारीरिक रोगों में भी इससे उपचार किया जाता है|
कच्ची ककड़ी में आयोडीन पाया जाता है। ककड़ी बेल पर लगने वाला फल है। गर्मी में पैदा होने वाली ककड़ी स्वास्थ्यवर्ध्दक तथा वर्षा व शरद ऋतु की ककड़ी रोगकारक मानी जाती है।
लहसुन में कई छोटी-छोटी पुतियां होती हैं| इन पूतियों पर पतला खोल चढ़ा होता है| जब तक पूतियों पर यह खोल चढ़ा रहता है, तब तक यह खराब नहीं होतीं| लहसुन को अमृततुल्य बताया गया है क्योंकि इसमें काफी गुण होते हैं|
हरी मिर्च कई तरह के पोषक तत्वों जैसे- विटामिन ए, बी6, सी, आयरन, कॉपर, पोटेशियम, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होती है| यह आपके स्वास्थ्य को कई तरह से बेहतर बनाए रखने में मदद करती है। नीचे दिए गए हरी मिर्च के बेहतरीन फायदे –
आलुओं को सभी सब्जियों में अग्रणी माना जाता है| यदि किसी भी पकवान में आलू न हो तो सब कुछ फीका-फीका ही प्रतीत होता है| आलू का प्रयोग बारहों महीने और तीसों दिन किया जाता है| सब्जी के रूप में, चाट-पकौड़ी के रूप में या फिर चिप्स और पापड़ के रूप में; सभी में आलू प्रयुक्त होता है| विश्व भर में इसका प्रयोग किया जाता है, किन्तु यह वायु को बढ़ाने वाला है| इससे मांस व चर्बी की वृद्धि होती है|
इसमें विटामिन-ए, बी और सी प्रमुख रूप से होते हैं| कच्चा खाने पर इसका स्वाद मीठा लगता है| यह पाचन-क्रिया को बढ़ाने वाला है| वात और कफ में भी अत्यन्त लाभकारी है| हृदय की दुर्बलता को भी दूर करने में यह सहायता प्रदान करता है| जिन लोगों में विटामिन-बी की कमी हो, उन्हें शलजम अवश्य ही प्रयोग करना चाहिए| इसकी सब्जी खाना भी लाभदायक है|
प्रकृति ने मनुष्य पर एक असीम कृपा की है अर्थात् उसने मनुष्य के मस्तिष्क को संतुलिन रखने के लिए एक अपर मस्तिष्क की रचना की, जो मनुष्य मस्तिष्क की क्षतिपूर्ति करे, उसे सशक्त बना सके! अखरोट की गिरी को देखने के बाद पता चलेगा कि आपने मनुष्य का मस्तिष्क ही हाथ में ले लिया है| दोनों की आकृति में कोई अंतर नहीं है| अखरोट में ऐसे तत्त्व भरे पड़े हैं, जो मनुष्य के मस्तिष्क को संतुलित एवं सक्षम बनाए रखने में अद्वितीय हैं|
जीरे के बिना मसालों का कोई महत्त्व नहीं है| जीरे की खुशबू और स्वाद दोनों मनभावन हैं| इस दृष्टि से जीरा पाचक, शीतल, मधुर, वात-पित्त नाशक, गरमी को शान्त करने वाला, दाह को मिटाने वाला तथा पुत्रदायक है|