लीची उत्तम स्वास्थ्यवर्धक फल है| पकी लीची अत्यंत स्वादिष्ट और खाने में मीठी, रसीली होती है, जबकि कच्ची लीची खाने में खट्टी प्रतीत होती है| रासयनिक दृष्टि-से लीची में शर्करा, वसा और प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं| साथ ही इसमें आयरन (लोहा) भी विद्यमान है, जो नया रक्त बनाने में अग्रणी है| स्वास्थ्य की दृष्टि-से लीची एक उत्तम फल है|
इसे घिया के नाम से भी जाना जाता है| यह लम्बी और गोलाकार भी होती है| इसका रंग हल्का हरा होता है| यह स्वाद में मीठी, हल्की और सुपाच्य होती है| यह सब्जी से लेकर मिष्ठान्न तक में प्रयुक्त होती है|
हमारे देश में लौंग को मसालों का राजा माना जाता है| मसाले को स्थायी तथा खुशबूदार बनाने के लिए लौंग का प्रयोग किया जाता है| पान में भी लौंग डालकर खाया जाता है| इसके सेवन से गला खुल जाता है और छाती में जमा कफ बाहर निकल जाता है|
वमन या उल्टी अजीर्ण रोग का एक लक्षण माना जाता है| कई बार देखा गया है की खाली पेट में गैस या विकार भर जाता है जो उबकाई के रूप में प्रकट होता है| उसमें कड़वा पित्त या अम्ल निकलता है|
विविध परेशानियों एवं कष्टों के कारण जब मस्तिष्क कमजोर हो जाता है तो व्यक्ति को वहम घेर लेता है| ऐसे में वह हर समय नकारात्मक बातें सोचता रहता है| उसके अंदर आत्मविश्वास की कमी, हीन भावना, निराशा एवं चिंता व्यापक रूप से अपनी जड़ जमा लेती है|
इस ज्वर को फ्लू भी कहा जाता है| यह एक संक्रामक रोग है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हो जाता है| इससे रोगी को काफी कष्ट होता है| यह रोग तीसरे, चौथे या सातवें दिन उतर जाता है|
वात-कफ ज्वर मौसम परिवर्तन तथा आहार-विहार में लापरवाही के फलस्वरूप होता है| यह ज्वर प्राय: धीरे-धीरे बढ़ता है| इसमें रोगी काफी बेचैनी महसूस करता है| मुंह से लार टपकने लगती है| वह ठीक से भोजन नहीं पचा पाता|
नुस्खा – देवदारु, अजमोद, बायबिड़ंग, सेंधा नमक, पीपरामूल, पीपल, सौंफ एवं कालीमिर्च 20-20 ग्राम तथा बड़ी हरड़, सोंठ और बिधारा 100-100 ग्राम – सबको कूट-पीसकर महीन चूर्ण बनाकर शीशी में रख लें|
पेट में मन्दाग्नि के कारण एक रोग उत्पन्न हो जाता है जो ‘गैस बनने’ के नाम से प्रसिद्ध है| यह रोग कोष्ठ के मार्ग से बनकर रोगी को परेशान करता है| मुख से लेकर गुदा तक का मार्ग कोष्ठ माना जाता है|
हैजा का नाम सुनते ही लोग भयभीत हो जाते हैं| यह प्राय: महामारी के रूप में फैलता है| यह रोग गरमी के मौसम के अंत में या वर्षा ऋतु की शुरू में पनपता है|
यह रक्त, मांस, मेद तथा धातुवर्धक होती है| यह ओजकारक, रुचिकारक और तृप्तिदायक भी है| इसका नियमित सेवन हृदय के लिए भी अच्छा है| इससे प्यास दूर होकर शांति मिलती है| भोजन में इसका सेवन आवश्यक है| दस्त न रुकने पर शरीर से बहुत-सा पानी निकल जाने पर, शक्कर में थोड़ा-सा नमक मिलाकर पानी का सेवन करने से पानी की पूर्ति हो जाती है और जीवन बच जाता है| शक्कर के शरबत में नींबू का रस मिलाने से वो अधिक गुणकारी हो जाता है| आंखों की दुर्बलता दूर करने में भी यह उत्तम है|
शरीर में सूजन होने का एकमात्र कारण है निठल्लापन| यदि शरीर में सूजन उत्पन्न होते ही उचित ही उचित आहार-विहार पर ध्यान दिया जाए तो इस रोग से शीघ्र ही छुटकारा पाया जा सकता है| इस रोग के बढ़ जाने पर कई अन्य रोग पनप सकते हैं| अत: इस बारे में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है|
कभी-कभी बैठे-बैठे या काम करते हुए शरीर का कोई अंग या त्वचा सुन्न हो जाती है| कुछ लोग देर तक एक ही मुद्रा में बैठकर काम करते या पढ़ते-लिखते रहते हैं| इस कारण रक्तवाहिनीयों तथा मांसपेशियों में शिथिलता आ जाने से शरीर सुन्न हो जाता है|
इसमें विटामिन-ए, बी और सी प्रमुख रूप से होते हैं| कच्चा खाने पर इसका स्वाद मीठा लगता है| यह पाचन-क्रिया को बढ़ाने वाला है| वात और कफ में भी अत्यन्त लाभकारी है| हृदय की दुर्बलता को भी दूर करने में यह सहायता प्रदान करता है| जिन लोगों में विटामिन-बी की कमी हो, उन्हें शलजम अवश्य ही प्रयोग करना चाहिए| इसकी सब्जी खाना भी लाभदायक है|
शहतूत भी समस्त फलों की श्रेणी में अपना प्रमुख स्थान रखता है| इसमें शर्करा, कार्बोहाइड्रेट और साइट्रेड प्रमुख रूप से होते हैं| शहतूत तथा उसका शर्बत शरीर की चर्बी चढ़ाने के साथ-साथ पाचन-क्रिया को भी उत्तेजित करता है | यह रक्तपित्त नाशक होता है|
यह बहुत चिपचिपा, कुछ पारदर्शक तथा भूरे रंग का गाढ़ा होता है| साथ ही यह अत्यंत सुगंधित, मधुर, सघन पानी में सहज ही घुल जाने वाला होता है| यह कई प्रकार का होता है, किन्तु सबकी अपनी गंध, वर्ण और स्वाद होता है| मधुमक्खी सर्व प्रकार के फूलों से, उनका रस खींचकर शहद का निर्माण करती है|
नुस्खा – हींग, कालीमिर्च, अजवायन, छोटी हरड़, शुद्ध सज्जीखार तथा सेंधा नमक – सभी चीजें बराबर की मात्रा में लेकर कूट-पीस लें| फिर इसे तीन बार कपड़े से छानें| अब शीशी में बंद करके रख लें|
पुरुष द्वारा स्त्री को संतुष्ट किए बिना उद्वेग के चरम क्षणों में स्खलित हो जाना, शीघ्रपतन कहलाता है| इसका मुख्य कारण हीन भावना तथा आत्मविश्वास की कमी होता है| ऐसे व्यक्ति को मन में कामुकता का विचार नहीं रखना चाहिए|
शीतपित्त को साधारण भाषा में पित्ती उछलना कहते हैं| इसमें रोगी के शरीर में खुजली मचती रहती है, दर्द होता है तथा व्याकुलता बढ़ जाती है| कभी-कभी ठंडी हवा लगने या दूषित वातावरण में जाने के कारण भी यह रोग हो जाता है|
नुस्खा – अदरक, लाल चन्दन, हर्र तथा जवाखार – सबको 20-20 ग्राम की मात्रा में कूट-पीसकर चूर्ण बना लें|
श्वेत प्रदर होने पर स्त्री की योनि से सफेद रंग का चिकना स्त्राव पतले या गाढ़े रूप में निकलने लगता है| इस प्रदर में तीक्ष्ण बदबू उत्पन्न होती है| ऐसे में दिमाग कमजोर होकर सिर चकराने लगता है| स्त्री को बड़ी बैचेनी एवं थकान महसूस होती है|
संग्रहणी एक भयंकर रोग है| इसमें रोगी को पाखाना अधिक आता है| मल में चर्बी भी होती है| इस रोग के कारण रोगी हर समय दु:खी रहता है| वह सभी प्रकार के खाद्य पदार्थों को पचा नहीं पाता| कई बार तो मृत्यु तक हो जाती है|
सन्निपात ज्वर को वात-पित्त-कफ ज्वर भी कहते हैं| यह मानव शरीर में इन्हीं तत्वों की अधिकता के कारण उत्पन्न होता है| इसमें ज्वर इतना तेज होता है कि रोगी का होशो-हवास उड़ जाता है| वह मूर्च्छावस्था में बड़बड़ाने लगता है| इस बुखार की अवधि 3 दिन से 21 दिन मानी गई है|
इसकी प्रकृति गर्म है, संभवतया इसी कारण यह शरीर में पित्त को बढ़ाता है| यह रक्त के बहाव में भी तेजी लाता है| यह पेट के कीड़े नष्ट करने में समक्ष है| इसके साथ ही यह निम्न रोगों में भी अत्यन्त लाभकारी है|
यह एक वनस्पति है, जिसे सेनणा नाम से भी जाना है| इसके फूल और फल की सब्जी बनाकर खाई जाती है| इसकी पत्तियों में विटामिन-ए विशेष मात्रा में होता है, जो नेत्रों के लिए बहुत लाभकारी है|
साधारण ज्वर अनेक कारणों से होता है| यह हर किसी को हो सकता है| शरीर का तापक्रम 98.4 फोरनहाइट माना गया है| यदि शरीर का तापक्रम इससे अधिक हो जाता है तो ज्वर की हालत मान ली जाती है|
पित्त बच्चे के अंग-प्रत्यंग अत्यंत कोमल होते हैं| फलस्वरूप वे जल्दी ही बीमारियों के शिकार हो जाते हैं| इसी कारण उन्हें खांसी भी होने लगती है| यह मौसम बदलने, कब्ज रहने, अधिक भोजन करने, खट्टी चीजें और मैदे की चीजें अधिक खाने से हो जाती हैं|
सिघाड़े को ‘जलफल’ और ‘त्रिकोणफल’ भी कहा जाता है| यह तालाब के जल के गर्भ से उत्पन्न होता है| यह मधुर, मृदु एवं सरस होता है| रोग के कीटाणुओं को यह जड़ से नष्ट कर देता है| यह पौष्टिक, शीतल, स्वादिष्ट, रुचिकर, वीर्यवर्धक और त्रिदोषनाशक है तथा स्त्रियों के लिए तो बहुत अधिक लाभकारी है|
सिन्दूर एक लाल रंग का सौन्दर्य प्रसाधन होता है जिसे भारतीय महिलाए प्रयोग करती हैं। मगर इसका पार्श्व प्रभाव आपके स्वास्थ्य और सौन्दर्य के दृष्टि से कितना हानिकारक होता है इसके बारे में जानना भी ज़रूरी होता है।
जो लोग सिर दर्द को रोग मानते हैं, वे धोखा खा जाते हैं क्योंकि यह रोग है ही नहीं| वास्तव में यह किसी रोग का लक्षण है| यदि यह अधिक तेज नहीं होता तो बगैर किसी दवा के अपने आप ठीक हो जाता है|
संभवतया सीताफल उतना ही विख्यात है, जितना कि सीता का नाम| वानरों का यह प्रिय फल है, इसका साग पूड़ियों के साथ अत्यंत स्वादिष्ट लगता है| आधुनिक साँस बनाने में भी इसका पयोग किया जाता है| यह तृप्तिजनक है, बलवर्धक है| रस-मधुर है| हृदय को हितकारी है| वात-कफ का कारक है, किन्तु पित्त का नाशक है|
प्राय: दांत निकलते समय बहुत से बच्चों को तकलीफ उठानी पड़ती है| इस दौरान उन्हें कई व्याधियां घेर लेती हैं| यदि शुरुआती दौर में ध्यान दिया जाए तो बच्चे इन पीड़ाओं से बच सकते हैं|
सुपारी भोजन के बाद मुख-शुद्धि के रूप में ली जाती है| यह मुख-शुद्धि के अतिरिक्त मसूड़ों को भी दृढ़ करती है, ओत दांतों के मल को दूर करती है| सुपारी का सेवन करने से वातवाहिनियां सबल बनती हैं|
सूखा रोग होने पर बच्चा दिन-प्रतिदिन निर्बल होता चला जाता है| उसके हाथ-पांव सूख जाते हैं| पेट बढ़कर आगे की ओर निकल आता है| विशेषज्ञों का कहना है कि कुपोषण अथवा सन्तुलित आहार के अभाव में इस रोग की उत्पत्ति होती है|
नुस्खा – सेंधा नमक, कालीमिर्च एवं फिटकिरी फूली हुई 10-10 ग्राम तथा कपूर व अफीम 2-2 ग्राम – सबको कूट-पीसकर चूर्ण बना लें|
इस विश्व-विख्यात फल की पैदावार विशेषकर पहाड़ी प्रदेशों में होती है| मुख्यत: यह हरा, पीला, लाल और सफेद रंग का होता है| इसका स्वाद मीठा होता है और इसकी तासीर ठंडी होती है|
सर्वप्रथम इसे मुख-शुद्धि के लिए प्रयोग किया जाता है| यों सौंफ का उपयोग एक सुगन्धित, उत्तेजक और शांतिदायक पदार्थ के रूप में होता है| उदर की वायु दूर करने में यह रामबाण साबित होती है| यह आंतों में होने वाले मरोड़ों को शान्त करती है| बच्चों के उदरशूल को भी यह दूर करती है| इसके प्रयोग से मूत्र सहज और साफ आता है| अजीर्ण आदि से होने वाले दस्तों के लिए भी अति उत्तम औषधि है| सौंफ का काढ़ा बनाकर पीने से ज्वर की तेजी कम हो जाती है| यह शीतल और पाचक गुण प्रधान है| यह मेधा एवं स्मरण-शक्ति को तीव्र बनाती है| रक्तवाही संस्थानों को शुद्ध करती है| आमाशय की गर्मी दूर करती है|
स्त्री की सुन्दरता तथा यौवन का निखार पुष्ट स्तनों से दिखाई देता है| इसलिए से प्राय: अपना स्तन पुष्ट और कठोर बनाने के लिए प्रयत्नशील रहती हैं| स्तनों में ढीलापन होना, समय के साथ उनका विकास न होना तथा उनमें कठोरता का अभाव होना आदि स्थितियां स्त्री को हीन भावना से ग्रस्त कर देती है|
नवजात शिशु माता के दुग्ध पर ही अपना भरण-पोषण करता है| लेकिन कभी-कभी किन्हीं कारणों से माता के स्तनों में पर्याप्त दुग्ध का निर्माण नहीं हो पाता| ऐसे में माता को चिंताएं घेर लेती हैं|
स्मरण शक्ति कमजोर होने पर व्यक्ति को लगता है, जैसे उसका दिमाग खाली हो| उसे प्राय: चक्कर आता है| एकाग्रता नष्ट हो जाती है| यह रोग उन लोगों को अधिक होता है जो दूध, दही, घी, मक्खन, अंकुरित अनाज, फल आदि पौष्टिक पदार्थों का सेवन बहुत कम मात्रा में करते हैं|
यदि रात को सोते समय किसी काल्पनिक स्त्री से मैथुन क्रिया करने के पश्चात् वीर्य स्खलित हो जाए तो यह स्वप्नदोष कहलाता है| महीने में एक-दो बार स्वप्नदोष का होना, रोग नहीं माना जाता|
हरी मिर्च कई तरह के पोषक तत्वों जैसे- विटामिन ए, बी6, सी, आयरन, कॉपर, पोटेशियम, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होती है| यह आपके स्वास्थ्य को कई तरह से बेहतर बनाए रखने में मदद करती है। नीचे दिए गए हरी मिर्च के बेहतरीन फायदे –
हर्र के नाम से सभी परिचित हैं| इसे हरड़ भी कहते हैं| इसमें इतने गुण हैं कि हमारे पूर्वजों और वैद्यों ने इसके अनेक नाम रख दिए हैं, जैसे – विजया, रोहिणी, जीवन्ती, कल्याणी, पूतना, हरीतिकी आदि|
साग-सब्जी, दाल, नमकीन हलवा, लड्डू आदि में नित्य हल्दी का प्रयोग किया जाता है| लेकिन यह मसाले के अलावा एक औषधि भी है जो बच्चे से लेकर वृद्ध तक के लिए परम गुणकारी है| इसके सेवन से शरीर में पैदा होने वाली छोटी-मोटी व्याधियां अपने आप दूर होती रहती हैं|
नुस्खा – सोंठ, कालीमिर्च, पीपल, अजवायन, सेंधा नमक, काला तथा सादा जीरा 10-10 ग्राम और हींग 2 ग्राम – सभी चीजों को अच्छी तरह कूट-पीसकर कपड़छन करके शीशी में भर लें|
हिचकी या हिक्का रोग में सांस-रुक-रुककर या हिक्-हिक् की आवाज के साथ बाहर निकलते है| यह रोग पेट में समान वायु तथा गले में उदान वायु के प्रकोप से पैदा होती है|
हींग का प्रयोग दाल, साग-सब्जी में डालने तथा उदर रोग नाशक चूर्ण बनाने में किया जाता है| हींग-जीरा से सब्जी छौंकने तथा दाल बघारने की क्रिया बहुत ही लाभदायक है| छौंक से निकलने वाली वायु जितनी दूर तक जाती है, उतनी दूर का वातावरण सुगंधित हो जाता है| इससे सूक्ष्म जीवाणु, जो स्वास्थ्य को हानि पहुंचाते हैं, नष्ट हो जाते हैं| असल में हींग एक पेड़ की गोंद है जो पर्वतों पर होता है| गोंद को पकाकर हींग बनाई जाती है|
हृदय रोग से ज्यादातर वे लोग पीड़ित होते हैं जो दिनभर गद्दी पर बैठे रहते हैं और हर समय अनाप-शनाप खाते-पीते हैं| इस रोग के शुरू में साधारण दर्द होता है| फिर धीरे-धीरे रोग बढ़ जाता है जो सम्पूर्ण हृदय को जकड़ लेता है| यह रोग होने पर बड़ी बेचैनी रहती है| अचानक हृदय में पीड़ा उठती है और फिर सारा शरीर जकड़ जाता है| रोगी की सांस रुक-रुककर बड़ी तेजी से चलने लगती है| बेचैनी के साथ-साथ हाथ-पैरों में शिथिलता शुरू हो जाती है| यदि तुरन्त इस दौरे की चिकित्सा नहीं की जाती तो रोगी की मृतु तक हो सकती है|
होंठ प्राय: पेट की गरमी से जाड़े की ऋतु में फटते हैं| लेकिन कभी-कभी अत्यधिक गरमी में लू के कारण होंठ शुष्क होने पर भी फट जाते हैं| होंठ फटने पर उन्हें नाखून से नहीं नोचना चाहिए| इससे विषक्रमण होने का भय रहता है|