तपेदिक को राजयक्ष्मा या टी.बी. भी कहा जाता है| यह एक बड़ी भयानक बीमारी है| आम जनता इसका नाम लेने से भी डरती है| जिस परिवार में यह रोग हो जाता है, उसकी हालत बड़ी दयनीय हो जाती है|
तरबूज़ ग्रीष्म ऋतु का फल है। यह बाहर से हरे रंग के होते हैं, परन्तु अंदर से लाल और पानी से भरपूर व मीठे होते हैं। तरबूज तो आप खाते ही होंगे पर इसके बीज का आप क्या करते हैं? जाहिर है आप इसके बीज को फेंक ही देते होंगे। लेकिन इसके स्वास्थ लाभ ( Health Benefits) को जानने के बाद शायद आप ऐसा नहीं करेंगे? तरबूज के बीज को चबाकर खाएं या फिर इसके तेल का इस्तेमाल करें, दोनों ही रूप में यह फायदेमंद है। आयरन, पोटैशियम और विटामिन्स से भरपूर तरबूज के बीज सेहत, स्किन और बालों के लिए काफी फायदेमंद हैं।
तिल का हमारे खान-पान में बहुत महत्व है। तिल का हमारे खान-पान में बहुत महत्व है। सर्दियों में तो इसका महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है। तिल के बीज छोटे पीले भूरे रंग के बीज हैं जो कि मुख्य रूप से अफ्रीका में पाए जाते हैं, लेकिन वे भारतीय उपमहाद्वीप पर भी कम संख्या में उगाए जाते हैं।
तिल्ली में वृद्धि होने से पेट के विकार, खून में कमी तथा धातुक्षय की शिकायत शुरू हो जाती है| यह रोग भी मनुष्य को बेचैनी एवं कष्ट प्रदान करता है| शुरू में इस रोग का उपचार करना आसान होता है, परंतु बाद में कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ता है|
हमारे देश में तुलसी का पौधा घर-घर में मिलता है| तुलसी का अर्थ है – तु’ से भौतिक, ‘ल’ से दैविक और ‘सी’ से आध्यात्मिक तापों का संहार करने वाली| इसका पौधा लगभग 3-4 फुट ऊंचा होता है|
इसकी प्रकृति गर्म है तथा इसका स्वाद कुछ चरपरा होता है| यह सर्दी व कफ को नष्ट करता है| खांसी आदि श्वास रोग में भी लाभकारी है| इससे पाचन-क्रिया में सुधार पैदा होता है तथा वायु से उत्पन्न पीड़ा भी नष्ट हो जाती है| इसका सेवन शरीर के अनेक रोगों में लाभकारी है|
वास्तव में दिल की धड़कन कोई रोग नहीं है| किन्तु जब दिल तेजी से धड़कने लगता है तो मनुष्य के शरीर में कमजोरी आ जाती है, माथे पर हल्का पसीना उभर आता है तथा पैर लड़खड़ाने लगते हैं|
उष्ण प्रकृति वालों को एवं पित्तजन्य व्याधियों में तोरई का सेवन विशेष हितकर है| यह मधुर, पित्तनाशक, कफ-वात वर्धक, मृदु-रेचक, कृमि-नाशक, मूत्रल ज्वर, रक्त पित्त तथा कुष्ठादि विकारों में पथ्यकर व लाभप्रद है|
नुस्खा – पीपल, आंवला, हर्र, बहेड़ा और सेंधा नमक – सभी चीजें बराबर की मात्रा में लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें| फिर इसे शीशी में भरकर डॉक लगा दें ताकि सीलन न जाने पाए|
श्वसन-संस्थान से सम्बंधित एक भयावह रोग दमा या अस्थमा है| यह श्वास नली का रोग है| श्वास नली में सूजन हो जाने से यह रोग भुक्त भोगी को चैन से नहीं बैठने देता|
दस्त आंतों का रोग है| जब शरीर का सम्पूर्ण जल दूषित हो जाता है तो दस्त आने लगता है| इसमें बच्चे को पतला-पतला मल उतरता है| पेट में मरोड़, ऐंठन तथा भारीपन हो जाता है|
मंद, मधुर, मधुराम्ल, आम्ल, अत्याम्ल दही उष्णवीर्य, बलकारक, रुचिवर्धक, मलावरोधक है| यह पेट की जलन को दूर करता है| कफनाशक है, मूत्रल है, खांसी एवं विषम ज्वर में लाभकारी है| इसके साथ जीरा, सैंधा नमक एवं त्रिकुटे का चूर्ण मिलाकर खाने से अधिक उपयोगी होता है| इनका योग शरीर को दृढ बनाता है| अंगों में स्फूर्ति एवं कांति पैदा करता है|
दाद छूत का रोग है| यह रोगी व्यक्ति के कपड़ों तथा वस्तुओं को छूने मात्र से ही हो जाता है| यह शुरू में धीरे-धीरे लेकिन कुछ दिनों बाद बड़ी तेजी से फैलता है|
यह मुख्यत: मसालों में प्रयुक्त होती है| अत्यंत गर्म है तथा वायु और कफ को नष्ट करके उनसे उत्पन्न होने वाले अनेक रोगों में भी उपयोगी है| यह मुंह व गले को भी शुद्ध कर देती है| इससे मूत्राशय का शोधन भी हो जाता है|
शुद्ध दूध / Milk पूरी तरह से कैल्शियम और महत्वपूर्ण मिनरल्स से भरा हुआ होता है। दूध हमारे आहार का अहम हिस्सा है। यह मानव का पहला आहार होता है। दूध में सारे पौष्टिक तत्व उपस्थित होते हैं जो एक स्वस्थ शरीर में होने चाहिए। अक्सर लोग दूध को लेकर भ्रमित रहते हैं कि दूध पीने से वो मोटे हो सकते हैं लेकिन यहां आपको बता दें कि दूध से मोटापा नहीं बढ़ता है बल्कि शरीर को शक्ति मिलती है।
दूब या दुर्वा एक घास है जो जमीन पर पसरती है। आयुर्वेद के अनुसार दूब का स्वाद कसैला-मीठा होता है। विभिन्न प्रकार के पित्त एवं कब्ज विकारों को दूर करने के लिए दूब का प्रयोग किया जाता है। इसके आध्यात्मिक महत्वानुसार प्रत्येक पूजा में दूब को अनिवार्य रूप से प्रयोग में लाया जाता है
शुद्ध देशी घी जैसी वस्तु इस संसार में दूसरी कोई नहीं है| यह स्मरण-शक्ति को तीव्र बनाता है| इससे मेधा प्रखर व बुद्धि प्रबल बनती है| चिन-यौवन का अनुदान मिलता है| अणु-अणु में सौंदर्य स्फूर्त रहता है| शुद्ध घी अमृत के समान है| यह बात, कफ एवं पित्त को विदा करता है, थकान को दूर करता है| हृदय को अत्यंत हितकर है| चित्त को प्रसन्न करता है| किन्तु रक्तचाप, श्वास एवं खांसी में घी हानि करता है| तथा ज्वर रोगी को कभी भूलकर भी इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए|
प्रत्येक घर में धनिया को मसाले के एक अंग के रूप में प्रयोग किया जाता है|इसकी तासीर ठंडी होती है| लेकिन इसमें इतने गुण हैं कि यह शरीर के अंग-प्रत्यंग को शक्ति प्रदान करता है|
इस रोग में धातु क्षीणता के कारण व्यक्ति जल्दी स्खलित हो जाता है| ऐसे रोगी का वीर्य पतला होता है| इसके शिश्न में बहुत कम उत्थान हो पाता है|
नाक से अचानक खून की धार फूटने की नकसीर कहते हैं| यह बच्चों तथा युवकों को अधिक होती है| कभी-कभी वृद्धों को भी इससे पीड़ित होते देखा गया है| नकसीर गरमी के वातावरण में शारीरिक गरमी बढ़ जाने के कारण फूटती है|
नजला या जुकाम ऐसा रोग है जो किसी भी दिन किसी भी स्त्री या पुरुष को हो सकता है| यह रोग वैसे तो ऋतुओं के आने-जाने के समय होता है लेकिन वर्षा, जाड़े और दो ऋतुओं के बीच के दिनों में ज्यादातर होता है|
स्वस्थ वीर्य हिमानुश्य का पुरुषार्थ है| स्त्री-भोग का आनंद स्तम्भन शक्ति में निहित है| बहुत अधिक मैथुन करने, असमय मैथुन करने, खट्टे, कड़वे, रूखे, कसैले, खारे एवं चटपटे पदार्थ खाने, मानसिक तनाव रखने तथा अप्राकृतिक साधनों से वीर्य त्यागने पर ही व्यक्ति में नपुंसकता उत्पन्न होती है|
नमक मानवीय भोजन में पड़ने वाली एक अनिवार्य वस्तु है| एक चम्मच नमक में औसत व्यक्ति की एक दिन की समग्र शरीर की क्रियाओं को सुचारू रूप-से चलने के लिए सोडियम की मात्रा पर्याप्त होती है| नमक को रसायन की भाषा में सोडियम क्लोराइड भी कहा जाता है| नमक को समग्र रसों का राजा माना गया है|
बच्चे के जन्म के समय असावधानी बरतने तथा संक्रमण के कारण उनकी नाभि पाक जाती है| ऐसी स्थिति में बच्चा बार-बार रोता रहता है|
नारंगी एक फल है। नारंगी को हाथ से छीलने के बाद पेशीयोँ को अलग कर के चूसकर खाया जा सकता है। नारंगी का रस निकालकर पीया जा सकता है। और शरीर को भरपूर शक्ति मिलती है। इसके सेवन से न केवल पाचन क्रिया दुरुस्त रहती है बल्कि बॉडी में उत्साह और स्फूर्ति का संचार होता है।
नुस्खा – पीपल 5 ग्राम, निशोथ 25 ग्राम और कच्ची खांड़ 50 ग्राम – इन सबको पीसकर चूर्ण बनाकर शीशी में भरकर रख लें|
यह जटायुक्त फल होता है| इसका छिलका बहुत सख्त होता है| इसको तोड़ने के बाद अंदर से गिरी निकलती है, इसमें पानी भी होता है| स्वाद में यह मीठा होता है| इसमें विटामिन-ए न्यूनाधिक मात्रा में होता है|
नाशपाती अथवा नाशपाती का रस शीतलता प्रदान करता है| कुछ लोगों ने इसे ‘अमृत फल’ का नाम भी दिया हुआ है| छिलके सहित खाने पर नाशपाती अधिक लाभ करती है| इसका रस शरीर की धातुओं में वृद्धि करता है| यह जलोदर और अतिसार में भी लाभदायक है, तथा खाने में अत्यंत स्वादिष्ट भी होती हैं|
नीबू छोटा और बड़ा दो प्रकार का होता है| इसका स्वाद खट्टा होता है| लेकिन इसमें इतने अधिक औषधीय गुण हैं कि लोग सभी ऋतुओं में इसका प्रयोग करते हैं| यह प्यास तथा गरमी को शान्त करता है|
नीम खाने में कड़वी लगती है, लेकिन उसके गुण मीठे होते हैं| नीम में अमृत तत्त्व मौजूद हैं| यह कमजोर व्यक्ति को भी उठाकर बैठा देता है| निम्ब का अर्थ ही है – नीरोग करने वाला|
फेफड़े में प्रदाह होने की हालत को न्यूमोनिया का नाम दिया गया है| यह एक गंभीर ज्वर है| इसमें यथाशीघ्र डॉक्टर की सलाह लेना जरूरी रहता है| यदि ऐसा नहीं किया जाता तो मृत्यु की संभावना बढ़ जाती है|
लकवा एक गम्भीर रोग है| इसमें शरीर का एक अंग मारा जाता है| रोगी का अंग विशेष निष्क्रिय हो जाने के कारण वह असहाय-सा हो जाता है| उसे काम करने या चलने-फिरने के लिए दूसरे के सहारे की जरूरत होती है|
पत्ता गोभी अन्य सब्जियों की तरह न्यूट्रिशन और प्रोटीन से भरपूर होती है। पत्ता गोभी खाने के बहुत फायदे होते हैं। पत्ता गोभी कई रंगो और कई किस्मों में आती है। आज हम आपको पत्ता गोभी में मौजूद गुणों के बारे में बता रहे हैं।
गांवों में पपीते का पेड़ घर-घर में देखने को मिल जाता है| पपीते का फल लम्बा होता है| कच्चे पपीते के दूध से ‘पेपन’ नामक पदार्थ बनाया जाता है| पपीते का फल, बीज और पत्ते विभिन्न प्रकार के रोगों में काम आते हैं|
परवल या ‘पटोल’ एक प्रकार की सब्ज़ी है। इसकी लता जमीन पर पसरती है। इसके बीजो में पाए जाने वाले कुछ पोषक तत्व जो होते है वो कब्जनाशक होते है और टिंडे भारत में पंजाब, उत्तर प्रदेश ,राजस्थान एवं महाराष्ट्र में सब्जी के रूप में इसकी खेती की जाती है | आईये जानते हैं टिंडे और परवल के कुछ औषधीय गुणों के बारे में –
यह रोग तब होता है, जब व्यक्ति अधिक ठंडी चीजों तथा फ्रिज में रखे पानी का इस्तेमाल हर समय करता है| वैसे यह खतरनाक रोग नहीं है लेकिन दर्द शुरू होने पर रोगी को अपार कष्ट का सामना करना पड़ता है|
पान अत्यन्त चरपरा, कटु, क्षारयुक्त एवं मधुर होता है| इसकी उपस्थिति में वात, कफ एवं कृमियों को विदा लेनी पड़ती है| मुंह की दुर्गन्ध को यह दूर करता है| बाजीकरण है, धारण-शक्ति एवं काम-शक्ति को बढ़ाता है| यह जितना पुराना होता है, उतना ही श्रेष्ठ माना जाता है| पान खाने से शारीरिक एवं मानसिक थकान दूर हो जाती है| पान के चबाने एवं चूसने पर लार की मात्रा अधिक निकलती है, जिससे पाचन-क्रिया में सहायता मिलती है| इससे प्यास और भूख भी शान्त हो जाती है तथा निम्न रोगों में भी यह बहुत लाभकारी है|
संसार का प्रत्येक जीव-जंतु और पशु-पक्षी भूखा रह सकता है, पर प्यासा नहीं रह सकता| जल (पानी) के बिना जीवन नहीं है? प्यास केवल पानी से ही बुझ सकती है| पानी के अभाव में संसार की हजार नियामतें भी बेकार हैं| पानी केवल प्यास ही नहीं बुझाता, शरीर के अनेक रोगों को भी दूर करता है|
यह देर से पचता है, किन्तु फिर भी पेट के विकारों में अत्यन्त लाभदायक है| इसमें लौह तत्व अधिक होते हैं, अत: नये रक्त की रचना भी इससे सहज ही हो जाती है| यह दुर्बल शरीर वालों को शक्ति प्रदान करता है| इसे शाक के रूप में ही अधिक प्रयोग जाता है|
आंतरिक क्षमताओं की तुलना में यह बादाम के समकक्ष होता है, तथा मानसिक तनाव से मुक्ति दिलाने वाला है| यह हृदय और आमाशय को बलिष्ठ बनाता है| रक्त=विकार में अमृत-तुल्य है| भारी, गर्म बल और वीर्य को बढ़ाता है एवं स्वादिष्ट, पौष्टिक एवं सुगंधित होता है|
पीपल का वृक्ष पवित्र, अश्वत्थ, ज्ञान देने वाला, शुद्ध वायु प्रदाता तथा गुणों की खान माना गया है| कहते हैं कि एक गमले में पीपल का छोटा पौधा (वृक्ष) लगाकर बैठक में रखने से ऑक्सीजन के सिलेण्डर की जरूरत नहीं पड़ती|
पीलिया (जांडिस) रोग में शरीर के सभी अवयवों में पीलापन आ जाता है| यह रोग अत्यधिक संभोग, खट्टे पदार्थों के सेवन, अधिक शराब पीने, मिट्टी खाने, दिन में अधिक सोने तथा अत्यधिक तेज पदार्थ, जैसे – राई आदि का सेवन करने से उत्पन्न होता है|
जब मल त्याग करते समय या उससे कुछ समय पहले अंतड़ियों में दर्द, टीस या ऐंठन की शिकायत हो तो समझ लेना चाहिए कि यह पेचिश का रोग है| इस रोग में पेट में विकारों के कारण अंतड़ी के नीचे की तरफ कुछ सूजन आ जाती है|
नुस्खा – सोंठ, नागरमोथा, भुनी हींग, चीता की जड़, अतीस तथा कुण्डा की छाल – सबको कूट-पीसकर कपड़छन कर चूर्ण बना लें|
आमाशय और अंतड़ियों में बहुत से विकार पाए जाते हैं| उनमें से कृमि रोग भी बच्चे को परेशान करता है| ये कृमि लगभग 20 प्रकार के होते हैं जो अंतड़ियों में घाव पैदा कर देते हैं| अत: रोगी बेचैन हो जाता है| ये पेट में वायु को बढ़ा देते हैं जिसके कारण हृदय की धड़कन बढ़ जाती है| कृमि रोग में रोगी को उबकाई आती रहती है| कई बार भोजन के प्रति अरुचि भी उत्पन्न हो जाती है| चक्कर आने लगते हैं तथा प्यास अधिक लगती है|
पेट का दर्द छोटे-बड़े सभी को होता है| अधिकांश लोगों को भोजन करने के उपरांत पेट दर्द होता है, जबकि कुछ लोगों को भोजन से पहले यह पीड़ा होती है|
कृशांगता, रक्ताल्पता, यकृत मस्तिष्क, हृदय एवं फेफड़ों की शक्तिहीनता तथा वात संस्थान तथा पित्त सम्बन्धी समस्त व्याधियों में पेठा का उपयोग हितकर है| पेठा रक्तचाप और गर्मी से भी बचाता है|
महर्षि वात्सयायन का कहना है कि पुरुष को सबसे पहले अपने स्वास्थ्य की ओर ध्यान देना चाहिए| यदि व्यक्ति पूर्ण आयु तक जीवित रहना चाहता है तो उसे पौष्टिक पदार्थों और पुष्टिकारक योगों का सेवन करते रहना चाहिए| इनके उपयोग से धातु पुष्ट रहती है, मैथुन क्रिया में अपार आनंद आता है और जीवन में हर समय सुख के क्षण उपस्थित रहते हैं| तब व्यक्ति को ग्लानि, दुर्बलता, धातुक्षय, शुक्र हीनता आदि की शिकायतें कभी नहीं होतीं| यहां उपयोगी तथा शक्तिवर्द्धक नुस्खे बताए जा रहे हैं –
प्याज का सेवन अधिकतर लोग इसलिये नहीं करते क्योंकि इसमें बहुत तीव्र गंध आती है, विशेषकर कच्ची प्याज में| इसकी प्रकृति ठंडी होती है तथा यह गर्मी को शांत करती है| इसके सेवन से पाचन-क्रिया प्रदीप्त होती है| यह अत्यंत धातुवर्धक तथा बलवर्धक है| इसका सेवन यदि थोड़ी मात्रा में किया जाए, तो छाती में जमे हुए कफ को यह निकाल बाहर करती है तथा मूत्र साफ लाने में भी सहायक है| लू से बचाव करने में भी यह अद्वितीय है|
प्रदर रोग में योनि मार्ग से पतला या गाढ़ा चिकना स्त्राव कम अथवा अधिक मात्रा में निकलने लगता है| यह स्त्राव मासिक धर्म से पूर्व या बाद में भी होता है| यह दो प्रकार का होता है – श्वेत प्रदर और रक्त प्रदर| श्वेत प्रदर में सफेद रंग का और रक्त प्रदर में रक्त युक्त प्रमेह होता है|
प्रत्येक विवाहित स्त्री मां बनने को लालायित रहती है, अपितु उसे प्रसव के समय अपार कष्ट एवं परेशानियां भोगनी पड़ती हैं| कभी-कभी किन्हीं कारणवश स्त्री, बच्चे अथवा दोनों की जान जोखिम में पड़ जाती है| ऐसी स्थिति में विशेष रूप से ध्यान दिए जाने की आवश्यकता रहती है|
फालसा दक्षिणी एशिया में भारत, पाकिस्तान से कम्बोडिया तक के क्षेत्र मूल का फल है। यह आपको गर्मी से तो राहत दिलाएगा ही, शरीर के लिए भी काफी पौष्टिक है। गर्मियों के सबसे लोकप्रिय फलों की सूची में फालसा प्रमुखता से शामिल है। अपने लाजवाब स्वाद के कारण फालसा हर किसी का पसंदीदा फल है।
यह स्वाद में तीक्ष्ण, स्निग्थ एवं कांतिवर्धक है, त्रिदोषनाशक है| इसकी संनिधि में प्रदर एवं प्रेमह का अतिशीघ्र प्रयाण हो जाता है| सूजन के लिए फिटकरी का प्रयोग बहुत उपयोगी एवं विश्वसनीय है| निम्न शारीरिक रोगों में भी इससे उपचार किया जाता है|
फिटकिरी एक ऐसी औषधि है जिसके बारे में हर घर की महिलाएं बहुत कुछ जानती हैं| यह त्वचा रोगों को दूर करने, शरीर के भीतरी अंगों को सुरक्षा प्रदान करने, कीड़ों को मारने, दर्द को कम करने और सूजन एवं बादी को शान्त करने की बेजोड़ दवा है| इसके प्रमुख औषधीय उपयोग अगले पृष्ठ पर दिए जा रहे हैं –
हमारे देश में गोभी तीन प्रकार का मिलता है – पत्ता गोभी, गांठ गोभी और फूल गोभी| किन्तु फूल गोभी का सेवन ही यहां अधिक मात्रा में किया जाता है| इसकी प्रकृति ठंडी है| यह रक्त-संचार को बढ़ाने के साथ-साथ वायु की भी वृद्धि करता है|
कुछ संक्रामक रोगों के कारण शरीर पर फोड़े-फुंसियां निकल आती हैं| प्रदूषित वातावरण भी फोड़े-फुंसियों को उत्पन्न करने का कारण बनता है| फोड़े-फुंसियों के निकलने पर उनमें खुजली-जलन होती है तथा रोगी बेचैनी महसूस करता है|
इसकी प्रकृति शीतल है| हरी पत्तियों को शाक होने के कारण यह पाचकाग्नि को सक्रिय करने एवं रुचि पैदा करने के लिए उपयोग में लाया जाता है| यह बलवर्धक है, किन्तु पचता देर से है| तिल्ली का विकार दूर करने में यह अद्वितीय है|
बर्फ़ जल की ठोस अवस्था को कहते हैं। सामन्य दाब पर ० डिग्री सेल्सियस पर जल जमने लगता है, जल की इसी जमी हुई अवस्था को बर्फ़ कहते हैं।
बहरापन एक गंभीर रोग है| इससे छुटकारा पाने के लिए तुरंत ही उपचार करना चाहिए| यह बीमारी कमजोर लोगों तथा असामान्य मस्तिष्क वाले व्यक्तियों को अधिक होती है| इस बीमारी होते ही उसके कारणों को जानकर ही उचित उपचार करना चाहिए|
प्रकृति ने बादाम को नयन की आकृति देकर इसके गौरव को अधिक ऊंचा उठा दिया| कोषाकारों ने प्रकृति के अमूल्य अनुदान का मूल्यांकन किया| उसे नेत्रोपम की संज्ञा से संबोधित किया| वास्तव में बादाम मेवा जगत् में नेत्रोपम है| यह शरीर को नववीर्य प्रदान करता है, नये रक्त का निर्माण करता है तथा मस्तिष्क को अभिनव शक्ति देता है और हृदय को बलशाली बनाता है| औषधि निर्माण में मुख्यत: कागजी बादाम प्रयुक्त होता है|
कुछ बच्चे प्राय: बिस्तर पर पेशाब कर देते हैं| ऐसे बच्चों को शाम के समय अधिक गरम अथवा शीतल पेय नहीं देना चाहिए|
बेर एक ऐसा फलदार पेड़़ है जो कि एक बार पूरक सिंचाई से स्थापित होने के पश्चात वर्षा के पानी पर निर्भर रहकर भी फलोत्पादन कर सकता है। बेर में बहुत कम मात्रा में कैलोरी होती है लेकिन ये ऊर्जा का एक बहुत अच्छा स्त्रोत है. इसमें कई प्रकार के पोषक तत्व, विटामिन और लवण पाए जाते हैं. इन पोषक तत्वों के साथ ही ये एंटी-ऑक्सीडेंट के गुणों से भी भरपूर होता है।
बेल (बिल्व) का पेड़ बड़ा होता है| इसकी पत्तियां तीन दल की होती हैं| उनको बेलपत्र कहते हैं| शिवजी की मूर्ति पर बेलपत्र चढ़ाए जाते हैं| श्रावण के महीने में शैव मतावलम्बी शिवजी की पूजा करते समय बेलपत्रों से ही उनका अभिषेक करते हैं| बेल का पका फल मीठा होता है|
इस रोग में व्यक्ति को बेहोशी छा जाती है| वह निष्प्राण-सा पड़ा रहता है| ऐसे समय में रोगी को किसी आरामदायक एवं सुरक्षित स्थान पर लिटाना चाहिए| उसके चारों ओर भीड़ नहीं लगनी चाहिए|
बैंगन में विद्यमान लौह तत्व शरीर में नये रक्त की रचना करते हैं| बैंगन किसी भी आकृति का हो, सबके गुण एक समान ही हैं| इसकी तासीर गर्म होती है| यह पाचन-क्रिया को बढ़ाने में सहायक है| किसी भी प्रकार के ज्वर के समय बैंगन न खाएं| बैंगन गर्म होता है, अत: बवासीर व अनिद्रा के रोगी बैंगन का लम्बे समय तक सेवन न करें|
नुस्खा – ब्राह्मी, आंवला, हर्र, बहेड़ा और मुण्डी – सबको बराबर की मात्रा में कूट-पीसकर चूर्ण बना लें| फिर इसमें थोड़ी-सी कच्ची खांड़ मिला दें|
यह पाचाकाग्नि को प्रदीप्त करने में समक्ष है तथा वायु विकार को दूर करने में हितकारी है| अत्यन्त शीतल, पाचक और लाभदायक है| इसका मुख्य प्रयोग सब्जी के रूप में किया जाता है| इसकी सब्जी में पोटेशियम, फास्फोरस, आयोडीन आदि पाये जाते हैं| इसमें लोहा, विटामिन-बी ओर प्रोटीन भी पाये जाते हैं| पकाने पर भी इसमें विटामिन-ए नष्ट नहीं होता|
मक्का एक साबुत अनाज के रूप में उपयोग होने वाला भारत मेें प्रसिद्ध खाद्यपदार्थ है। इसे सभी प्रकार की मिट्टियों में उगाया जा सकता है। मक्का अनाज में विटामिन ए , निकोटिनिक एसिड, राइबोफ्लेविन और विटामिन-ई भी पर्याप्त मात्रा में होता है।
मक्खन एक दुग्ध-उत्पाद है जिसे दही, ताजा या खमीरीकृत क्रीम या दूध को मथ कर प्राप्त किया जाता है। क्या आप जानते हैं, कि मक्खन खाने के भी अपने ही कुछ फायदे हैं।
शारीरिक दुर्बलता को दूर करने के लिए मखानों का प्रयोग विशेष रूप-से किया जाता है| यह अत्यंत बलवर्धक और स्वादिष्ट होते हैं| ये मधुर, कटु, वातपित्त एवं दाहनाशक हैं| यह वीर्य-स्तंभक और धातुवर्धक हैं| अत: शुक्र के दौर्बल्य को दूर करने के लिए हितकारी हैं| स्त्रियों के लिए विशेष लाभकारी है|
यह अत्यन्त स्वास्थ्यवर्द्धक है, विशेष रूप से हरी मटर अधिक लाभकारी होती है, किन्तु यह पचती देर से है| सूखी मटर अपेक्षाकृत कम लाभदायक होती है|
महुमेह को सामान्य भाषा में पेशाब में शक्कर (शुगर) आना भी कहते हैं| आजकल अधिकांश लोगों को मधुमेह की शिकायत हो सकती है| इससे रोगी का शरीर कांतिहीन हो जाता है| मधुमेह एक असाध्य रोग है| इसका इलाज करने से पहले रोगी को अपना पेट साफ कर लेना चाहिए|
मलेरिया ज्वर में जाड़ा लगने के साथ तेज बुखार चढ़ता है| इसमें प्रतिदिन या हर तीसरे-चौथे दिन भी बुखार आ सकता है| यह एक संक्रामक बीमारी मानी जाती है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हो जाती है|
इसका प्रयोग साबुत और धुली हुई दाल के रूप में किया जाता है| यह पचने में हल्की तथा मल को बांधने वाली होती है| यह गर्म, शुष्क, रक्त को बढ़ाने वाली तथा रक्त को गाढ़ा करने वाली होती है| वातकारक होने के कारण शरीर में रूक्षता की वृद्धि करती है| इसके नियमित सेवन से कफ की विभिन्न बीमारियां तथा पित्त आदि विकार नष्ट होते हैं|
माजूफल, मायाफल, मज्जफल, माईफल, माजुफल, गाल्स व ओक गाल्स एक पेड़ से प्राप्त होने वाला पदार्थ `है| कुदरत ने अपने नायाब ख़ज़ाने में से हमको ढेरो ऐसी सौगाते दी हैं जो के अमृत से कम नहीं नहीं। मगर हम पहचान नहीं पाते एक अनोखा सा फल है माजूफल – इसको अंग्रेजी में Gall-nut कहते हैं|
मासिक धर्म स्त्री में होने वाली एक स्वाभाविक प्रक्रिया है| यदि मासिक धर्म में अनियमितता होती है तो स्त्री के शरीर में अन्य विकार उत्पन्न हो जाते हैं| इसका कारण शरीर के भीतर किसी रोग का होना भी हो सकता है| इसके सुचारु रूप से न होने पर स्त्री जीवन भर मातृत्व सुख से वंचित रह जाती है|
केरोसीन कच्चे पेट्रोलियम का वह अंश है जो 175-275 सें. ताप पर आसुत होता है। इसका भौतिक और रासायनिक गुण उपस्थित हाइड्रोकार्बनों के अनुपात, संघटन और क्वथनांक पर निर्भर करता है। कच्चे केरोसीन में सौरभिक हाइड्रोकार्बन (40 प्रतिशत तक) आक्सिजन, गंधक और नाइट्रोजन के कुछ यौगिक रहते हैं।
यह बड़ा विचित्र रोग है| इसे अपस्मार भी कहते हैं| इसमें व्यक्ति को ऐसा महसूस होता है, जैसे वह अचानक अंधेरे में गिर रहा हो या उससे घिर गया हो| यह रोग सामान्यत: मस्तिष्क की कमजोरी से होता है| विशेषज्ञों का कहना है कि मिरगी अधिक टी.वी. देखने से उत्पन्न होता है| ऐसे रोगी को किसी योग्य मनोचिकित्सक को दिखाना और उसकी सलाह लेना लाभकारी हो सकता है|
मुंह के भीतर छाले पड़ने को ‘मुखपाक’ भी कहते हैं| यह एक ऐसा रोग है जिसके कारण रोगी को भोजन करने, बोलने तथा गाने आदि में अपार कष्ट होता है|
बड़े अंगूर ही सूखकर मुनक्कों का रूप धारण कर लेते हैं| इसकी तासीर, तर व गर्म है| इसके प्रयोग से शारीरिक-क्षीणता दूर होती है, रक्त व शक्ति उत्पन्न होती है| फेफड़ों को बल मिलता है, दुर्बल रोगियों के लिए यह अमृत-तुल्य है| यह पाचन-शक्ति को बढ़ाने में अद्वितीय है| यौन-शक्ति को बढ़ाने में भी यह सहायक होते हैं| हृदय के लिए अत्यंत बलवर्धक हैं| नेत्रों की ज्योति भी इनसे बढ़ जाती है| अर्थात् इसके प्रयोग से रस, रक्त आदि धातुओं का संवर्धन होता है| निम्न उपचारों में इसका बहुत अधिक उपयोग है|
मुलहठी के पत्ते गोल और छोटे होते हैं| इसकी लकड़ी तथा जड़ काम में लाई जाती है| यह मीठी, कुछ कड़वी, शीतल, भारी एवं चिकनी होती है| इसमें इतने गुण हैं जिनका वर्णन करना सरल नहीं है|
बच्चों के मुंह के छाले प्राय: पेट की खराबी से होते हैं| अत: उनकी पाचन क्रिया पर विशेष ध्यान देना चाहिए| बच्चे को अधिक गरम, तीखे तथा मिर्च-मसालेदार पदार्थों का सेवन न करने दें| उन्हें कब्ज एवं अपच से बचाना चाहिए| साथ ही उनकी सफाई एवं स्वच्छता पर भी निगाह रखनी चाहिए|
युवावस्था में जब शरीर में खून की गरमी पैदा हो जाती है तो वायु और कफ उस गरमी को शरीर से बाहर नहीं निकलने देते| उस दशा में त्वचा में गांठें या फुंसियां निकल आती हैं जो मुंहासे कहलाते हैं| ये उन लोगो को ज्यादा निकलते हैं जो गरम मसाले, मिर्च, तेल, खटाई एवं अम्लीय पदार्थ अधिक खाते हैं| "मुंहासे के 13 घरेलु उपचार" सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Homemade Remedies for Acne
यह पचने में हल्की और रुक्षताकारक होती है| इसका प्रभाव शीतल होने से यह पित्तनाशक मानी गयी है| इससे शरीर तथा पेट की जलन शांत होती है| छिलके युक्त मूंग की दाल नेत्रों के लिए बहुत ही हितकर होती है| इसे साबुत, छिलके वाली तथा छिलका रहित प्रयोग किया जाता है| सभी प्रकार के ज्वरों में साबुत मूंग या मूंग की दाल का प्रयोग आहार के रूप में किया जाता है|
इसमें विटामिन-बी होता है| तेल की आवश्यकता पूर्ति के लिए यह संसार भर में दूसरे नम्बर की वस्तु है| हेमोफिलिया एक भयानक और जानलेवा रोग है, जिसमें रक्त के भीतर जमने की शक्ति नहीं रहती| तनिक-सी भी खरास या रगड़ लग जाने से इतना रक्तस्त्राव होता है कि रोग की मृत्यु निश्चित हो जाती है|
मूत्र विकार के अंतर्गत कई रोग आते हैं जिनमें मूत्र की जलन, मूत्र रुक जाना, मूत्र रुक-रुककर आना, मूत्रकृच्छ और बहुमूत्र प्रमुख हैं| यह सभी रोग बड़े कष्टदायी होते हैं| यदि इनका यथाशीघ्र उपचार न किया जाए तो घातक परिणाम भुगतने पड़ते हैं|
स्त्रियों के मिजाजों की भांति मूली के भी अपने स्वाद भरे मिजाज हैं| बहुत-सी मूली मीठी होती है, बहुत-सी फीकी और बहुत-सी तेज चिरमिरी, मानों दांतों तले तेज मिर्च आ गई हो| इसकी तासीर ठंडी होती है| फिर भी पेट के लिए यह बहुत लाभदायक है| इसके सेवन से भोजन में रुचि बढ़ती है| पेट में गैस (वायु) को तो यह दूर करती ही है, अग्निमांद्य तथा कब्ज को दूर करने में भी समक्ष है|
मेथी की तासीर गरम होती है| गंगाफल (कद्दू) का बघार मेथी से किया जाता है| बहुत से अचारों में भी मसाले के साथ मेथी पीसकर मिलाई जाती है| गांव तथा शहर सभी जगह जाड़े के मौसम में मेथी का साग बड़े स्वाद से खाया जाता है|
यह भारतीय नारी के हाथ-पैरों के श्रृंगार के प्रतीक के रूप में ही नहीं, बल्कि शरीर के स्वास्थ्य के रूप में भी विख्यात है| साथ ही यह नारी के सौभाग्य का चिह्न भी है, निरोगता का साधन भी है| इसके पत्ते वमन कारक, कफ निस्सारक, शरीर की दाह को शांत करने वाले एवं कुष्ठ में लाभप्रद हैं| इस के फूल उत्तेजक, हृदय तथा मज्जा-तंतुओं को बलशाली बनाते हैं| बीज मलारोधक, ज्वरनाशक और उन्माद में लाभ पहुंचाने वाले होते हैं| यह शीतवीर्य है|
हाथ, पैरों, टखने या कुहनी आदि में मोच आने पर बाजारू पहलवानों से मलीद आदि नहीं करानी चाहिए| इससे अधिकांशत: नुकसान उठाना पड़ता है| इसका कारण यह है की मोच आने से नस-नाड़ियों के तंतु टूट जाते हैं| ऐसे में कड़ी मालिश से वे अधिक क्षत-विक्षत हो सकते हैं|
मोटापा शरीर के लिए अभिशाप है| इससे मनुष्य की आकृति बेडौल हो जाती है| मोटापे से हृदय रोग, रक्तचाप, मधुमेह आदि पैदा हो सकते हैं| खान-पान, योगासन एवं व्यायाम द्वारा मोटापे पर काबू पाया जा सकता है|
मोठ एक प्रकार का दलहन होता है। इससे दाल मिलती है। इसकी फलियों में जो दाने निकलते हैं, उनकी दाल बनती है। इसकी जड़ मादक और विषैली होती है।
मोतियाबिन्द होने पर आंखों की पुतली पर सफेदी आ जाती है और रोगी की दृष्टि धुंधली पड़ जाती है| वह किसी चीज को स्पष्ट नहीं देख सकता| आंखों के आगे धब्बे और काले बिन्दु-से दिखाई पड़ने लगते हैं| जैसे-जैसे रोग बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे रोगी ठीक से देखने में असमर्थ हो जाता है|
यह नींबू जाति का ही फल है परन्तु नींबू से अनेक गुना लाभदायक है। मौसमी का जूस हमारी सेहत के लिए फायदेमंद होता है| इसमें विटामिन सी और पोटेशियम जैसे खनिज पाए जाते हैं|
रतौंधी एक ऐसा रोग है जिससे रोगी को आंखों में कोई कष्ट तो नहीं होता, लेकिन उसे रात के समय देखने में बड़ी परेशानी होती है| ऐसा रोगी हीन भावना का शिकार हो सकता है|
राई दो रंगों में मिलती है – लाल और सफेद| दोनों बहुत गुणकारी एवं अग्नि प्रदीप्तकारी हैं| राई के सेवन से पेट की अग्नि तीव्र होती है जो भोजन पचाने में सहायता करती है| यह पेट के कीड़े मारती है और खाज-खुजली को नष्ट करती है| यह खाने में कुछ तेज तथा चरपरी-सी होती है|
अल्फा-अल्फा को रिजका भी कहते हैं। अल्फा-अल्फा का इस्तेमाल कई स्वास्थ्य स्थितियों के इलाज के लिए किया जाता है। अल्फा-अल्फा की जड़ें जमीन से लगभग बीस से तीस फीट नीचे होती हैं। यहां उन्हें वे खनिज लवण मिलते हैं।
नुस्खा – मुलहठी, लाख, भुनी हल्दी, मजीठ तथा नील कमल के फूल – सभी चीजें समान मात्रा में सुखाकर चूर्ण बना लें|
लहसुन में कई छोटी-छोटी पुतियां होती हैं| इन पूतियों पर पतला खोल चढ़ा होता है| जब तक पूतियों पर यह खोल चढ़ा रहता है, तब तक यह खराब नहीं होतीं| लहसुन को अमृततुल्य बताया गया है क्योंकि इसमें काफी गुण होते हैं|
यह भोजन का स्वाद मुखर करती है, अग्नि को उत्तेजित करती है तथा दाहजनक होती है| स्वरभंग, अजीर्ण एवं अरुचि को दूर करने में समक्ष है| पाचक होती है और चर्म रोग में लाभ करती है, किन्तु इसका अधिक प्रयोग पेट में अल्सर पैदा कर सकता है| साथ ही अमाशय में गर्मी उत्पन्न करती है, फिर भी विभिन्न रोगों में अत्यन्त लाभकारी है|