पहले महायुद्ध के दिनों की बात है| सन् 1918 के प्रारंभिक दिनों में उत्तराखंड-गढ़वाल में भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा| कुछ समाचार पत्रों में उत्तराखंड-गढ़वाल में दुर्भिक्ष फैलने के समाचार प्रकाशित हुए|
अर्जुन कुंती का सबसे छोटा पुत्र था| इसके पिता का नाम पाण्डु था, लेकिन वास्तविक पिता तो इसका इंद्र था| पाण्डु रोगग्रस्त था और पुत्र पैदा करने की उसमें सामर्थ्य नहीं थी|
भीमसेन कुंती का दूसरा पुत्र था| इसका जन्म पवन देवता के संयोग से हुआ था, इसी कारण इसमें पवन की-सी शक्ति थी| इसके उदर में वृक नामक तीक्ष्ण अग्नि थी, इसीलिए इसका नाम वृकोदर भी पड़ा|
बादशाह अकबर और बीरबल बातें कर रहे थे| बात मियां-बीवी के रिश्ते पर चल निकली तो बीरबल ने कहा – “अधिकतर मर्द जोरू के गुलाम होते हैं और अपनी बीवी से डरते हैं|”
द्वापर नगर में द्रोण नामक एक दरीद्र ब्राह्मण रहता था| ब्राह्मण को भिक्षा अच्छी मिल जाती तो उसका सारा परिवार भरपेट भोजन करता और कम या कुछ न मिलने पर भूखे पेट सोना पड़ता| उसने या उसके परिजनों ने न कभी अच्छे वस्त्र पहने थे और न कभी बढ़या भोजन ही किया था|
युधिष्ठिर पांडु का ज्येष्ठ पुत्र था| धर्मराज द्वारा कुंती के आह्वान पर बुलाए जाने पर उनके अंश से ही यह पैदा हुआ था, इसलिए धर्म और न्याय इसके चरित्र में कूट-कूटकर भरा था| इसी के कारण इसको धर्मराज युधिष्ठिर पुकारा जाता था| वह कभी असत्य नहीं बोलता था, तभी शत्रु पक्ष के लोग भी उनकी बात पर पूरा विश्वास करते थे| स्वार्थ के कारण किसी प्रकार अनुचित कार्य करना इनको नहीं सुहाता था|
बादशाह अकबर और बीरबल शिकार पर गए हुए थे| उनके साथ कुछ सैनिक तथा सेवक भी थे| शिकार से लौटते समय एक गांव से गुजरते हुए बादशाह अकबर को उस गांव के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई| उन्होंने इस बारे में बीरबल से कहा तो उसने जवाब दिया – “हुजूर, मैं तो इस गांव के बारे में कुछ नहीं जानता, किंतु इसी गांव के किसी बाशिन्दे से पूछकर बताता हूं|”
एक किसान था- धरमपाल| उसके पास एक दुधारू गाय थी जो सुबह-शाम दूध देती थी| धरमपाल उस गाय का दूध बेचकर काफ़ी धनी भी हो गया था|
गांधार देश के राजा सुबल के बेटे का नाम शकुनि और बेटी का नाम गांधारी था| बेटा जैसा कुटिल, क्रूर और कपटी था, बेटी वैसी ही सती-शिरोमणि थी| गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र के साथ हुआ था| ये भारतीय पातिव्रत की सजीव मूर्ति हैं |
दिल्ली में उन दिनों मुगलों का शासन था| एक दिन एक शिकारी बादशाह औरंगजेब के दरबार में एक शेर को जिंदा पकड़कर लाया| बादशाह बहुत प्रसन्न हुआ|
दरबार में बीरबल से जलने वालों की कमी न थी| बादशाह अकबर का साला तो कई बार बीरबल से मात खाने के बाद भी बाज न आता था| बेगम का भाई होने के कारण अक्सर बेगम की ओर से भी बादशाह को दबाव सहना पड़ता था|
सड़क पर एक रोटी पड़ी हुई थी| तभी एक बिल्ली की नज़र उस रोटी पर पड़ी| लेकिन जब तक वह उस रोटी तक पहुँचती कि एक दूसरी बिल्ली ने उस पर झपट्टा मारा|
दरबार लगा हुआ था| बादशाह अकबर राज-काज देख रहे थे| तभी दरबान ने सूचना दी कि दो व्यक्ति अपने झगड़े का निपटारा करवाने के लिए आना चाहते हैं|
एक पेड़ की शाख पर कौवों का एक जोड़ा रहता था| उसी पेड़ के नीचे एक साँप ने भी बिल बना रखा था| मादा कौआ जब अंडे देती तो वह साँप उस अण्डों को खा जाता| ऐसा कई बार हो चुका था लेकिन वे सिवाय अफ़सोस करने के कुछ नही कर पाते|
बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा – “क्या किसी मनुष्य में एक साथ पीर, बावर्ची, भिश्ती और खर (मजदूरी करने वाला) के गुण हो सकते हैं? मुझे ऐसे मनुष्य से मिलने की बहुत इच्छा है|”
किसी नगर में हरिदत नामक एक ब्राह्मण परिवार सहित निवास करता था| वह मन लगाकर अपने खेत में काम करता, परंतु फिर भी उसे पर्याप्त आय नही होती थी| उसका जीवन दुख और कठिनाइयों से भरा था| एक दिन ब्राह्मण अपना कार्य समाप्त करके थोड़ा विश्राम कर रहा था कि उसने समीप के रेत के टीले पर एक भयंकर सर्प को फन फैलाए बैठे देखा| ब्राह्मण ने सोचा कि यह मेरे क्षेत्र का देवता है|
कुरुवंश के देवापि बड़े और शांतनु छोटे थे| पिता के स्वर्गवास के बाद राज्याभिषेक का प्रश्न उठने पर देवापि चिंतित हो उठे| वे चर्मरोगी थे इसलिए वे शांतनु को राजा बनाना चाहते थे|
बादशाह अकबर दरबार में बैठे थे| तभी दरबान ने सूचना दी कि पक्षियों का एक सौदागर बादशाह से मिलना चाहता है| बादशाह ने आज्ञा दे दी|
जंगल में शिकारी के बड़े पिंजड़े में संयोग से एक शेर फँस गया| शेर ने वहाँ से गुजरने वाले कई जानवरों से विनती की लेकिन किसी ने भी उस पिंजरे को नही खोला|
“मुझे छोड़कर मत जाइए प्राणेश्वर – मत जाइए – मैं आपके बिना जीवित नहीं रह सकती – मत जाइए – प्राणनाथ – मत जाइए,” राजकुमारी उषा के कांपते हुए होठों से निकला और फिर वह एक झटके के साथ उठकर बिस्तर पर बैठ गई|
रोशन एक वृद्ध व्यक्ति था| जीवन के अन्तिम पड़ाव पर उसकी इच्छा हुई कि वह तीर्थयात्रा पर जाए|
एक बार की बात है| भिक्षुक उपगुप्त पीला वस्त्र धारण किये, भिक्षापात्र लिए मौन शांत भाव से नगर के राजपथ से गुजर रहे थे|
एक कुत्ते को घुमते-फिरते अचानक हड्डी का एक टुकड़ा मिला| उसने वह हड्डी मुहँ में दबा ली, इधर-उधर देखा, उसे कोई दूसरा कुता नज़र नही आया| इससे पहले कि कोई दूसरा कुता आकर उस हड्डी पर अपना हक जताता वह हड्डी लेकर वहाँ से दौड़ पड़ा|
“बेटा देवव्रत, तुमने तो मेरे विवाह के समय ही जीवन भर अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा कर ली थी| इसलिए तुम्हारे विवाह करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता जबकि बड़ा भाई होने के नाते पहले तुम्हारा विवाह होना चाहिए था|” राजमाता सत्यवती ने अपने ज्येष्ठ पुत्र देवव्रत से कहा जिन्हें संसार उनकी आजीवन अविवाहित तथा अखंड ब्रह्मचारी रहने की भीष्म प्रतिज्ञा के कारण ‘भीष्म’ कह कर पुकारने लगा था|
बादशाह अकबर का मुंहलगा हिजड़ा था खोजा| हालाकि खोजा काफी बुद्धिमान था किंतु वह स्वयं को बीरबल से भी ऊंचा समझने लगा था| एक दिन उसने दरबार में घोषणा कर दी कि यदि बीरबल उसके तीन सवालों का जवाब दे देगा तो वह जिंदगी भर बीरबल की गुलामी करेगा अन्यथा बीरबल को उसकी गुलामी करनी पड़ेगी|
एक गाँव में एक बुढ़िया अपनी पुत्री के साथ रहती थी| उनके पास एक बैल भी था| जहाँ बुढ़िया मेहनती और कर्तव्यनिष्ठ थी, वहीं उसकी पुत्री बेहद आलसी और कामचोर प्रवृति की थी|
कुरु को कौन नहीं जानता? कुरुवंश के प्रथम पुरुष का नाम कुरु था| कुरु बड़े प्रतापी और बड़े तेजस्वी थे| उन्हीं के नाम पर कुरुवंश की शाखाएं निकलीं और विकसित हुईं| एक से एक प्रतापी और तेजस्वी वीर कुरुवंश में पैदा हो चुके हैं|
सर्दी का मौसम था| बादशाह अकबर महल के ऊपरी हिस्से में बैठे हुए सूरज की गरमी ले रहे थे| बीरबल और दूसरे दरबारी विचार-विमर्श कर रहे थे|
स्वामी रामतीर्थ का दैनिक भोजन जमुनोत्री की गुफा में निवास करते हुए चौबीस घंटो में एक बार आलू और मिर्च का आहार था| उन्हें उस भोजन से आजीर्ण की शिकायत हो गई|
एक निर्धन किसान को कहीं से एक मुर्गी मिल गई| वह उस मुर्गी को घर ले आया| उसने यह सोचकर कि आज काफ़ी दिन बाद बढ़िया खाने को मिलेगा, उसे काटने के लिए बड़ा-सा चाकू उठा लिया| जैसे ही वह उस मुर्गी को काटने ले लिए बढ़ा कि मुर्गी बोली, ‘मुझ पर दया करो, मुझे मत मारो|’