प्राचीन काल में कांपिल्य नगर में यज्ञदत नामक एक परम तपस्वी एवं सदाचारी ब्राह्मण रहते थे| वे संपूर्ण वेद-वेदांगों के ज्ञाता और सर्वदा श्रोत-स्मार्त्त कर्मों में प्रवृत्त रहते थे|
त्रेता युग की बात है| कैलाश पर्वत पर पार्वती भगवान शिव के साथ प्रात: भ्रमण कर रही थीं| शिव बड़े प्रसन्नचित थे|
एक बार भगवन शिव भगवती पार्वती के साथ कैलास के शिखर पर विहार कर रहे थे| उस समय पार्वती का सौंदर्य खिल रहा था|
समुद्र मंथन हो चुका था|
ब्रह्मा जी के पौत्र क्षुप एवं महर्षि-च्यवन के पुत्र दधीचि आपस में घनिष्ठ मित्र थे| एक बार दोनों में एक विवाद उठ खड़ा हुआ|
प्राचीनकाल में नंदी नामक वैश्य अपनी नगरी के एक धनी-मानी और प्रतिष्ठित पुरुष थे| वे बड़े सदाचारी और वर्णाश्रमोचित धर्म को दृढ़ता से पालन करते थे|
प्राचीन समय में अर्बुद नामक पर्वत के पास आहुक नाम का एक भील रहता था| उसकी पत्नी का नाम आहुका था|
विश्रवा मुनि का पुत्र रावण महान शूरवीर तथा विद्वान था| अपने पिता से उसने वेदों और शास्त्रों का अध्ययन किया हुआ था|
एक बार पृथ्वी पर जल-वृष्टि न होने के कारण चारों ओर अकाल फैला हुआ था| सरिता, ताल-तलैया और सरोवर सूख गए थे|
महाराज सगर के साठ हजार पुत्र कपिल मुनि की क्रोधाग्नि से भस्म हो गए थे|
शिव की पहली पत्नी थीं सती| यह विवाह उन्होंने सती के पिता दक्ष की इच्छा के विरुद्ध किया था|
दक्ष प्रजापति की कई पुत्रियां थीं| सभी पुत्रियां गुणवती थीं, पर दक्ष के मन में संतोष नहीं था|
किसी गांव में एक निर्धन ब्राह्मण अपनी पत्नी और पुत्र के साथ रहता था| ब्राह्मण को गांव से जो भिक्षा मिलती, उसी से वह अपने परिवार का भरण-पोषण करता था|
इक्ष्वाकु कुल में बहुत पहले एक पुण्यात्मा राजा राज्य करता था| उसका नाम मित्रसह था| वह बहुत धीर-वीर और श्रेष्ठ धनुर्धारी था|
एक समय की बात है कि देवर्षि नारद ने विषय-वासनाओं पर विजय प्राप्त करने के लिए परब्रह्म की कठोर साधना की|
एक बार भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए मृकंडु मुनि ने कठोर तपस्या की| उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए|
वैदिक काल में त्रिपुर नाम का एक असुर राजा था| उसने नागों, यक्षों, गंधर्वों तथा किन्नरों को जीतकर अपना राज्य दूर-दूर तक फैला लिया|
पार्वती जब भी अपने पति शिव के साथ दूसरे देवताओं के निवास स्थान पर जातीं और वहां उनके सजे-धजे सुंदर भवनों को देखतीं तो उन्हें बड़ी हीनता का बोध होता|
दैत्यराज शकुनि के पुत्र का नाम वृकासुर था| वृकासुर बहुत ही महत्वकांक्षी युवक था और उसकी हर समय यही इच्छा रहती थी कि वह संसार का अधिपति बन जाए|
प्राचीनकाल से ही काशी शिव-क्रीड़ा का केंद्र रहा है| एक बार भगवान शिव पार्वती सहित काशी पधारे| वे कुछ दिन काशी में रुके, तत्पश्चात मंदराचल पर चले गए|
तुलसी का मन राम में इतना रम गया था कि वे अपना सारा दुख-दर्द भूल चुके थे| अब उन्हें पत्नी द्वारा किए गए अपमान के प्रति भी कोई शिकायत नहीं थी|
राज्याभिषेक के पश्चात श्रीराम ने कौसल राज्य की जनता को एक भारी दावत दी|
हनुमान जी जब लंका दहन करके लौट रहे थे, तब उन्हें समुद्रोलंघन, सीतान्वेषण, रावण मद-मर्दन एवं लंका दहन आदि कार्यों का कुछ गर्व हो गया|
द्वापर युग में अर्जुन भगवान शिव की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न करते और उनसे पाशुपत नामक अमोघ अस्त्र लिए हिमालय में पहुंचे तो जंगल में उनकी भेंट एक वानर से हो गई|
प्रातःकाल का समय था, हनुमान जी श्रीराम के ध्यान में डूबे थे| तन-मन का होश न था| समुद्र की लहरों का शोर तक उन्हें सुनाई नहीं दे रहा था|
रावण के दस सिर और बीस हाथ कटने पर भी पुनः जुड़ जाते थे| यह एक चमत्कार था| कई बार उसने राम के साथ युद्ध किया, पर हर बार वह लंका सुरक्षित लौट जाता था|
एक बार अर्जुन भगवान शंकर की तपस्या करने हिमालय के जंगलों में चले गए और शिव की घोर तपस्या में मग्न हो गए|
लक्ष्मण के शेल द्वारा घायल होने के पश्चात सभी देवताओं को बुलाया गया| शिव, ब्रह्मा, यम, कुबेर, वायुदेव आदि सभी वहां पहुंच गए|
एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने सोचा कि अपने कहलाने वाले भक्तों एवं सेवकों में जो अभिमान और दुर्गुण प्रवेश कर दिए गए हैं उन्हें अवश्य दूर करना चाहिए|
भगवान श्रीराम जब समुद्र पार सेतु बांध रहे थे, तब विघ्न-निवारणार्थ पहले उन्होंने गणेश जी की स्थापना कर नवग्रहों की नौ प्रतिमाएं नल के हाथों स्थापित करवाई|