Homeभगवान शिव जी की कथाएँतप का प्रभाव (भगवान शिव जी की कथाएँ) – शिक्षाप्रद कथा

तप का प्रभाव (भगवान शिव जी की कथाएँ) – शिक्षाप्रद कथा

तप का प्रभाव (भगवान शिव जी की कथाएँ) - शिक्षाप्रद कथा

एक बार पृथ्वी पर जल-वृष्टि न होने के कारण चारों ओर अकाल फैला हुआ था| सरिता, ताल-तलैया और सरोवर सूख गए थे| कुओं में भी पानी नहीं रह गया था| कहीं भी हरियाली देखने को नहीं मिलती थी| मनुष्य, पशु और पक्षी जल के अभाव में तड़प रहे थे|

पर महर्षि गौतम के आश्रम पर उस भीषण अकाल का नाम-निशान भी नहीं था| आश्रम के आस-पास घनी हरियाली तो थी ही, सरोवर में भी स्वच्छ जल लहराया करता था| जब चारों ओर जल का अभाव हो गया, तो दूर-दूर के पशु-पक्षी सरोवर के पास आकर रहने लगे और सरोवर के पानी को पीकर सुख से जीवन बिताने लगे|

मनुष्यों को भी जब उस सरोवर का पता चला तो झुंड के झुंड गौतम के पास पहुंचे, और उनसे विनीत स्वर में बोले – “ऋषिवर! हम सब पानी के बिना दुख पा रहे हैं| अनुमति दीजिए, ताकि हम सब आपके सरोवर के जल का उपयोग कर सकें|”

गौतम ने कहा – “आश्रम आप सबका है, सरोवर भी आप सबका ही है| आप स्वतंत्रतापूर्वक सरोवर के जल का उपयोग कर सकते हैं|”

बस, फिर क्या था, झुंड के झुंड लोग तरह-तरह की सवारियों पर अपना सामान लादकर सरोवर के पास आकर बसने लगे| कुछ ही दिनों में सरोवर के आस पास चारों ओर अच्छा-खासा नगर बस गया| सरोवर के जल से सबको नया जीवन मिलने लगा| सब गौतम के तप और त्याग की भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे| पर मनुष्यों में कुछ ऐसे भी लोग थे, जो दुष्ट प्रकृति के थे| उन्होंने जब जन-जन के मुख से गौतम की प्रशंसा सुनी, तो उनके मन में गौतम के प्रति ईर्ष्याग्नि जल उठी| उन्हें गौतम की प्रशंसा नहीं सुहाई| वे कोई ऐसा उपाय सोचने लगे जिससे गौतम को नीचा देखना पड़े|

उनके इस प्रयत्न में कुछ ऋषि-मुनि भी सम्मिलित हो गए, पर गौतम को नीचा दिखाना सरल काम नहीं था, क्योंकि वे बड़ी निष्ठा से सदा मानव की भलाई में लगे रहते थे| जब दुष्ट स्वभाव के मनुष्यों का किसी तरह वश नहीं चला, तो वे सब मिलकर गणपति की सेवा में उपस्थित हुए| सबने हाथ जोड़कर निवेदन किया – “गणपति! ऋषि गौतम गर्व से फूलकर पथ-भ्रष्ट हो रहे हैं| कोई ऐसा उपाय कीजिए, जिससे उनका गर्व धूल में मिल जाए|”

गणपति ने कहा – “आश्चर्य है, आप लोग गौतम के संबंध में मन में ऐसी धारणा रखते हैं| गौतम तो तप और त्याग की मूर्ति हैं| उन्होंने वरुण की उपासना करके उस स्वच्छ जलवाले सरोवर को प्राप्त किया| यदि आज वह सरोवर न होता, तो क्या आप लोगों का जीवन सुरक्षित रह सकता था?”

पर उन दुष्ट मनुष्यों के हृदय पर गणपति की बात का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा| वे अपनी बात पर अड़े रहे और प्रार्थना पूर्वक गणपति से आग्रह करते रहे| गणपति ने विवश होकर कहा – “आप लोग नहीं मानते, तो मैं कुछ करूंगा लेकिन उससे आप लोगों का ही अहित होगा|”

गणपति की बात सुनकर दुष्ट स्वभाव के सभी मनुष्य तुष्ट होकर अपने-अपने घर चले गए|

एक दिन दोपहर के बाद गौतम अपने आश्रम की वाटिका में पुष्पों के पौधों को सींच रहे थे| हठात एक दुबली-पतली गाय वाटिका में घुसकर पौधों को खाने लगी| गौतम गाय को पकड़कर उसे अलग कर देना चाहते थे, पर ज्यों ही उन्होंने गाय को हाथ लगाया, वह गिर पड़ी और निष्प्राण हो गई| यह देख गौतम स्तब्ध रह गए और गाय की ओर देखकर बोले – “ओह, यह कैसा अनर्थ हो गया|

तभी गौतम के कानों में एक आवाज पड़ी – “गौतम पापी है| गाय का हत्यारा है|”

गौतम ने पीछे मुड़कर देखा, बहुत से लोग खड़े थे| उनके साथ कुछ ऋषि-मुनि भी थे| वे सम्मिलित स्वर में गौतम को पापी और हत्यारा घोषित कर रहे थे| चारों ओर गौतम की निंदा होने लगी| गौतम बहुत दुखी हुए| वे अपने पाप का प्रायश्चित करने के लिए अहल्या को साथ लेकर आश्रम छोड़कर चले गए| दुष्ट स्वभाव के मनुष्य बहुत प्रसन्न हुए| उनका मनचाहा पूरा हो गया|

गौतम एक वन में गए| वन के वृक्षों को काटकर, उन्होंने एक कुटी बनाई और वहां रहकर तप करने लगे| अहल्या दिन-रात उनकी सेवा में लगी रहती थी| तप करते हुए गौतम को बहुत दिन बीत गए| प्राय: ऋषि-मुनि भी वहां आया करते थे| उन्होंने गौतम से कहा – “तप से गौ हत्या का पाप दूर नहीं होगा| यदि आप भी गौ हत्या के पाप से मुक्त होना चाहते हैं तो गंगा में स्नान कीजिए|”

पर गौतम गंगा में स्नान करें, तो कैसे करें? गंगा तो वहां थी ही नहीं| गौतम गंगा को प्रकट करने के लिए भगवान शिव की आराधना करने लगे| गौतम के तप, त्याग और आराधना से भगवान शंकर प्रसन्न हुए| वे प्रकट होकर बोले – “महामुने! मैं आपकी आराधना से प्रसन्न हूं| बोलिए, आपको क्या चाहिए?”

गौतम ने निवेदन किया – “प्रभु! मुझे गौ हत्या का पाप लगा है| कृपा करके मुझे गंगा दीजिए| मैं गंगा में नहाकर पाप से मुक्त होना चाहता हूं|”

भगवान शंकर मुस्कुराकर बोले – “महामुने! आपको गौ हत्या का पाप नहीं लगा है| आपको छल का शिकार बनाया गया है| जिन्होंने आपके साथ षड्यंत्र किया है, उनका कभी भी कल्याण नहीं होगा| आप कोई और वर मांगें|”

गौतम ने कहा – “प्रभो! जिन्होंने मेरे साथ छल किया है, मैं तो उन्हें अपना परम हितैषी मानता हूं| यदि उन्होंने मेरे साथ वैसा न किया होता, तो आज मुझे आपके दर्शन का सौभाग्य कैसे मिलता? मुझे तो केवल गंगा दीजिए|”

गौतम के त्याग पर भगवान शिव और भी अधिक प्रसन्न हो उठे| उन्होंने कहा – “महामुने आप धन्य हैं, जो अपने शत्रुओं को भी अपना हितैषी मान रहे हैं| आपकी इच्छा अवश्य पूरी होगी, गंगा अब अवश्य प्रकट होंगी|”

शिव के इस कथन पर गंगा जी प्रकट होकर बोलीं – “मैं जलधारा के रूप में प्रकट होने के लिए तैयार हूं, पर आपको भी मेरे साथ ही रहना पड़ेगा|”

शिव ने कहा – “मैं बिना देवताओं के किसी जगह कैसे रह सकता हूं?”

गौतम ने हाथ जोड़कर निवेदन किया – “प्रभो! आप देवाधिदेव हैं| आप जहां रहेंगे, देवता भी वहीं रहेंगे|”

गौतम के कथन पर शिव मुस्कुरा उठे| उनकी मुस्कुराहट के साथ ही साथ देवता वहां उपस्थित होने लगे| देवताओं ने कहा – “हम अवश्य यहां रहेंगे| प्रकृति के रूप में निवास करेंगे| भांति-भांति के फूल बनकर खिलेंगे| हरी-हरी फसलों के रूप में लहराएंगे और हरितमा के रूप में चारों ओर छा जाएंगे|”

देवताओं के कथन के साथ ही गंगा की जलधारा फूट उठी और ‘हर-हर’ ध्वनी के साथ लहराने लगी| उस जलधारा के प्रभाव से अकाल दूर हो गया, धरती तृप्त हो गई| गौतम के तप से प्रकट हुई उस जलधारा का नाम पड़ा गौतमी| कालांतर में गौतमी ही गोदावरी बन गई|

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