Homeभगवान शिव जी की कथाएँशिव का यतिनाथ रूप (भगवान शिव जी की कथाएँ) – शिक्षाप्रद कथा

शिव का यतिनाथ रूप (भगवान शिव जी की कथाएँ) – शिक्षाप्रद कथा

शिव का यतिनाथ रूप (भगवान शिव जी की कथाएँ) - शिक्षाप्रद कथा

प्राचीन समय में अर्बुद नामक पर्वत के पास आहुक नाम का एक भील रहता था| उसकी पत्नी का नाम आहुका था|पति-पत्नी दोनों शिव भक्त थे| वे अपने गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए अपनी दिनचर्या का अधिकांश समय शिवोपासना में व्यतीत करते थे| उस भील दंपति का जीवन भोले भंडारी शिव की पूजा-अर्चना के लिए पूर्णतया समर्पित था|

एक दिन संध्या के समय जब भगवान भास्कर अस्ताचल की ओर बढ़ रहे थे, तब भगवान शंकर भील की भक्ति की परीक्षा के लिए सन्यासी का वेश धारण कर उनकी कुटिया पर पहुंचे| उस समय केवल आहुका ही वहां थी| उसने सन्यासी को प्रणाम किया| सन्यासी बोले – “भील! मुझे आज की रात बिताने के लिए जगह दे दो| मैं कल प्रात:काल यहां से चला जाऊंगा|”

आहुका ने कहा – “यतिनाथ! हमारी यह झोंपड़ी छोटी है| इसमें केवल दो व्यक्ति ही ठहर सकते हैं| अभी सूर्यास्त नहीं हुआ है और कुछ रोशनी है| अत: आप रात बिताने के लिए किसी अन्य स्थान को तलाश लें|”

यह सुनकर आहुक बोला – “प्रिये! ये यतिनाथ हमारे अतिथि हैं| हम गृहस्थ हैं| गृहस्थ, धर्मानुसार हमें इनके सेवा करनी चाहिए| इन्हें किसी अन्य स्थान पर जाने के लिए नहीं कहना चाहिए| अत: रात में तुम दोनों झोंपड़ी के अंदर रहो और मैं शस्त्र लेकर बाहर पहरा दूंगा|”

भोजन के बाद यतिनाथ और भील की पत्नी कुटिया के अंदर सो गए तथा आहुक शस्त्र लेकर बाहर पहरा देने लगा| रात के समय जंगली हिंसक के अनुसार हिंसक पशुओं से बचाव करता रहा, लेकिन प्रारब्धनुसार जंगली पशु उसे मारकर खा गए|

प्रात:काल आहुका ने कुटिया से बाहर निकलकर अपने पति को मृत देखा तो वह बहुत दुखी हुई| जब यति कुटिया से बाहर निकले तो आहुक को मृत देखकर उन्होंने भीलनी से कहा – “यह सब मेरे कारण हुआ है|”

आहुका बोली – “यतिनाथ! आप दुखी मत होइए| मेरे पति की मृत्यु प्रारब्धवश हुई है| गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए इन्होंने अपने प्राण त्याग दिए हैं| इनका कल्याण हुआ है| आप मेरे लिए एक चिता तैयार कर दें जिससे मैं पत्नी धर्म का पालन करते हुए अपने पति का अनुसरण कर सकूं|”

आहुका की बात सुनकर सन्यासी ने उसके लिए एक चिता तैयार कर दी| ज्योंही आहुका ने चिता में प्रवेश किया, त्यों ही भगवान शिव साक्षात अपने रूप में उसके समक्ष प्रकट हो गए और उसकी प्रशंसा करते हुए बोले – “तुम धन्य हो आहुका! मैं तुमसे अत प्रसन्न हूं| तुम इच्छानुसार वर मांगो| तुम्हारे लिए मुझे कुछ भी अदेय नहीं है|

भगवान शिव को अपने सामने देखकर और उनकी वाणी सुनकर आहुका आत्मविभोर हो गई| उसके मुख से वचन नहीं निकले| उसकी उस स्थिति को देखकर देवाधिदेव अति प्रसन्न होकर बोले – “मेरा यह पति रूप भविष्य में हंस रूप से प्रकट होगा| मेरे कारण तुम पति-पत्नी का विछोह हुआ है, मेरा हंस रूप तुम दोनों का मिलन करवाएगा| तुम्हारा पति निषध देश में राजा वीरसेन का पुत्र नल होगा और तुम विदर्भ नगर में भीमराज की पुत्री दमयंती होगी| मैं हंसावतार लेकर तुम दोनों का विवाह कराऊंगा| तुम लोग राजभोग भोगने के पश्चात मोक्ष पद प्राप्त करोगे जो बड़े-बड़े योगेश्वरों के लिए भी दुर्लभ है|” इतना कहकर भगवान शिव अंतर्धान हो गए और भीलनी आहुका ने अपने पति के मार्ग का अनुसरण किया|

दूसरे जन्म में भील राजा नल और भीलनी दमयंती के नाम से जाने गए| यतिनाथ शिव उस समय हंस रूप में प्रकट हुए और उन्होंने ही नल एवं दमयंती का विवाह कराया| हंस का अवतार लेकर भगवान शिव ने ही उनके बीच संदेश वाहक का कार्य कर उन्हें सुख पहुंचाया था|

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