सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - Sanskrit, Hindi & English with Video

सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 1 से 18

श्री साईं बाबा जी

दामोदर को सांप के काटने और साईं बाबा द्वारा बिना किसी मंत्र-तंत्र अथवा दवा-दारू के उसके शरीर से जहर का बूंद-बूंद करके टपक जाना, सारे गांव में इसी की ही सब जगह पर चर्चा हो रही थी|

बाबा को द्वारिकामाई मस्जिद में आए अभी दूसरा ही दिन था कि अचानक मस्जिद के दूसरे छोर पर शोर मच गया – “काट लिया! काट लिया! काले नाग ने काट लिया|”

|| चौपाई ||

पहले साई के चरणों में, अपना शीश नमाऊं मैं।
कैसे शिरडी साई आए, सारा हाल सुनाऊं मैं॥

श्री साईं बाबा व्रत के फलस्वरूप निम्नलिखित लाभ व फल प्राप्त हो सकते है: पुत्र की प्राप्ति, कार्य सिद्धि, वर प्राप्ति, वधु प्राप्ति, खोया धन मिले, जमीन जायदात मिले, धन मिले, साईं दर्शन, मन की शान्ति, शत्रु शांत होना, व्यापार में वृद्धि, बांझ को भी बच्चे की प्राप्ति हो, इच्छित वास्तु की प्राप्ति, पति का खोया प्रेम मिले, परीक्षा में सफलता, यात्रा का योग, रोग निवारण, कार्य सिद्धि, सर्व मनोकामना पूर्ती, इत्यादि|

श्री साईं बाबा जी की लीलाएं

परमार्थी साखियाँ

श्री गुरु नानक देव जी – साखियाँ

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“एक-दो-तीन-चार…….।” जयंतीलाल पाँच-पाँच सौ के नोटों की गिनती कर रहा था। तीस की संख्या पर वह रुक गया।

विश्वामित्र की बात सुनकर राजा हरिश्चंद्र ने कहा, “भगवन! मुझसे अपराध हो गया| इस राज्य की प्रत्येक वस्तु पर अब आपका अधिकार है|

काशी में एक कर्मकांडी पंडित का आश्रम था, जिसके सामने एक जूते गांठने वाला बैठता था। वह जूतों की मरम्मत करते समय कोई न कोई भजन जरूर गाता था। लेकिन पंडित जी का ध्यान कभी उसके भजन की तरफ नहीं गया था। एक बार पंडित जी बीमार पड़ गए और उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया।

एक बाबा जी कहीं जा रहें थे| रास्ते में एक खेत आया| बाबा जी वहाँ लघुशंका के लिये (पेशाब करने) बैठ गये| पीछे से खेत के मालिक ने उनको देखा तो समझा कि हमारे खेत में से मतीरा चुराकर ले जाने वाला यही है; क्योंकि खेत में से मतीरों की चोरी हुआ करती थी| उसने पीछे से आकर बाबा जी के सिर पर लाठी मारी और बोला-‘हमारे खेतो में मतीरा चुराता है?’

एक बार की बात है एक जिज्ञासु साधक सच्चे आनंद की तलाश में एक महात्मा के पास गया| महात्मा जी से उसने

बात तब की है, जब भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था। बंगाल के न्यायाधीश नीलमाधव बैनर्जी अपनी न्यायप्रियता, सत्यनिष्ठा व दयालुता के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे। अपने जीवन काल में उन्होंने अपने इन्हीं गुणों के कारण बेहद सम्मान व प्रसिद्धि पाई। वृद्धावस्था में उन्हें प्राण घातक रोग ने जकड़ लिया तथा उनका शरीर बेहद कमजोर हो गया।

एक राजा था, उसका नाम था श्रेणिक| उसकी चेतना नाम की एक रानी थी, एक बार वे दोनों भगवान महावीर के दर्शन करके लौट रहे थे तो रानी ने देखा, भंयकर शीत में एक मुनि तप में लीन हैं| उनकी कठोर साधना के लिए उसने मन-ही-मन उन्हें बारम्बार प्रणाम किया|

किसी जंगल में चंडल नाम का श्रृंगाल रहता था| एक बार भूख के कारण एक नगर में घुस गया| बस फिर क्या था नगर के कुत्ते उसे देखते ही भौंकने लगे| उसके पीछे-पीछे थे वह बेचारा आगे-आगे भाग रहा था|

जब शिक्षा पूरी हो गयी, तब शिष्यों ने आचार्य से दक्षिणा माँगने के लिए कहा| पहले तो आचार्य ने माँगना न चाहा, किन्तु शिष्यों के बार-बार आग्रह करने पर उन्होंने कहा, “कोई ऐसी चीज लाओ, जब कोई देखे नहीं|”

किसी गांव में कुछ शरारती लड़के रहते थे| एक दिन वे गांव के एक तालाब में मेंढकों पर पत्थर फेंक कर खेल का आनन्द ले रहे थे| जैसे ही मेंढ़क पानी की सतह पर आते, लकड़े उनको पत्थरों से मारते| मेंढकों को घायल होकर मरता देखकर उन्हें बहुत प्रसन्नता होती और वे तालियां बजाते|


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