Homeधार्मिक ग्रंथसम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीतासम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता – अध्याय 4 शलोक 1 से 42

सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता – अध्याय 4 शलोक 1 से 42

सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता – अध्याय 4 शलोक 1 से 42

सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 1

श्रीभगवानुवाच (THE LORD SAID):

इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।
विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्॥1॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 1 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi इस अव्यय योगा को मैने विवस्वान को बताया। विवस्वान ने इसे मनु को कहा। और मनु ने इसे इक्ष्वाक को बताया॥

En It was I who taught the eternal yog to the Sun- (Vivaswat), who then taught it to Manu, who taught it to Ikshwaku.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 2

एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः।
स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप॥2॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 2 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi हे परन्तप, इस तरह यह योगा परम्परा से राजर्षीयों को प्राप्त होती रही। लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया, बहुत समय बाद, इसका ज्ञान नष्ट हो गया॥

En Derived from tradition, this yog was known to sages of the royal stage (rajarshi),2 but at this point, O the destroyer of foes, it declined and was almost extinct.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 3

स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः।
भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम्॥3॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 3 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi वही पुरातन योगा को मैने आज फिर तुम्हे बताया है। तुम मेरे भक्त हो, मेरे मित्र हो और यह योगा एक उत्तम रहस्य है॥

En That is the timeless yog which I now impart to you, because you are my devotee and beloved friend, and because this yog embodies a supreme mystery.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 4

अर्जुन उवाच (Arjun Said):

अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वतः।
कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति॥4॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 4 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi आपका जन्म तो अभी हुआ है, विवस्वान तो बहुत पहले हुऐ हैं। कैसे मैं यह समझूँ कि आप ने इसे शुरू मे बताया था॥

En Since Vivaswat (craving for God) was born in the distant antiquity and your birth is only recent, how am I to believe that you had taught yog to him?
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 5

श्रीभगवानुवाच (THE LORD SAID):

बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन।
तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप॥5॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 5 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi अर्जुन, मेरे बहुत से जन्म बीत चुके हैं और तुम्हारे भी। उन सब को मैं तो जानता हूँ पर तुम नहीं जानते, हे परन्तप॥

En O Arjun, you and I have passed through innumerable births but, O vanquisher of foes, whereas you do not have memory of your previous births, I do.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 6

अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन्।
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया॥6॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 6 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi यद्यपि मैं अजन्मा और अव्यय, सभी जीवों का महेश्वर हूँ, तद्यपि मैं अपनी प्रकृति को अपने वश में कर अपनी माया से ही संभव होता हूँ॥

En Although imperishable, birthless, and God of all beings, I manifest myself subduing the materialistic world of nature by the mysterious power of atm-maya.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 7

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥7॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 7 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi हे भारत, जब जब धर्म का लोप होता है, और अधर्म बढता है, तब तब मैं स्वयंम सवयं की रचना करता हूँ॥

En Whenever, O Bharat, righteousness (dharm) declines and unrighteousness is rampant, I manifest myself.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 8

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥8॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 8 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi साधू पुरुषों के कल्याण के लिये, और दुष्कर्मियों के विनाश के लिये, तथा धर्म कि स्थापना के लिये मैं युगों योगों मे जन्म लेता हूँ॥

En I manifest myself from age to age to defend the pious, destroy the wicked, and strengthen dharm.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 9

जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः।
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन॥9॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 9 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi मेरे जन्म और कर्म दिव्य हैं, इसे जो सारवत जानता है, देह को त्यागने के बाद उसका पुनर्जन्म नहीं होता, बल्कि वो मेरे पास आता है, हे अर्जुन॥

En He who has perceived the essence of my radiant incarnations and works, O Arjun, is never born again after discarding his body, but dwells in me.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 10

वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः।
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः॥10॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 10 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi लगाव, भय और क्रोध से मुक्त, मुझ में मन लगाये हुऐ, मेरा ही आश्रय लिये लोग, ज्ञान और तप से पवित्र हो, मेरे पास पहुँचते हैं॥

En Free from passion and anger, wholly dedicated to me, finding shelter in me, and purified by knowledge and penance, many have realized my being.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 11

ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः॥11॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 11 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi जो मेरे पास जैसे आता है, मैं उसे वैसे ही मिलता हूँ। हे पार्थ, सभी मनुष्य हर प्रकार से मेरा ही अनुगमन करते हैं॥

En O Parth, as men worship me, even so do I accept them, and knowing this the wise follow me in every way.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 12

काङ्क्षन्तः कर्मणां सिद्धिं यजन्त इह देवताः।
क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा॥12॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 12 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi जो किये काम मे सफलता चाहते हैं वो देवताओ का पूजन करते हैं। इस मनुष्य लोक में कर्मों से सफलता शीघ्र ही मिलती है॥

En Desiring fruits of their action, men worship manifold gods, for the rewards of action are then earned quickly.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 13

चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः।
तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम्॥13॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 13 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi ये चारों वर्ण मेरे द्वारा ही रचे गये थे, गुणों और कर्मों के विभागों के आधार पर। इन कर्मों का कर्ता होते हुऐ भी परिवर्तन रहित मुझ को तुम अकर्ता ही जानो॥

En Although I have created the four classes (varn )-Brahmin, Kshatriya, Vaishya and Shudr-according to innate properties and actions, know me the immutable as a nondoer.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 14

न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा।
इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते॥14॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 14 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi न मुझे कर्म रंगते हैं और न ही मुझ में कर्मों के फलों के लिये कोई इच्छा है। जो मुझे इस प्रकार जानता है, उसे कर्म नहीं बाँधते॥

En I am unsullied by action because I am not attached to it, and they who are aware of this are in the like fashion unfettered by action.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 15

एवं ज्ञात्वा कृतं कर्म पूर्वैरपि मुमुक्षुभिः।
कुरु कर्मैव तस्मात्त्वं पूर्वैः पूर्वतरं कृतम्॥15॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 15 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi पहले भी यह जान कर ही मोक्ष की इच्छा रखने वाले कर्म करते थे। इसलिये तुम भी कर्म करो, जैसे पूर्वों ने पुरातन समय में किये॥

En Since it is with this wisdom that men aiming at salvation from worldly existence have also performed action in earlier times, you too should follow the example of your predecessors.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 16

किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः।
तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्॥16॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 16 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi कर्म क्या है और अकर्म कया है, विद्वान भी इस के बारे में मोहित हैं। तुम्हे मैं कर्म कया है, ये बताता हूँ जिसे जानकर तुम अशुभ से मुक्ति पा लोगे॥

En Even wise men are confused about the nature of action and actionlessness, and so I shall explain the meaning of action to you well, so that knowing it you may be emancipated from evil.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 17

कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः।
अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः॥17॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 17 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi कर्म को जानना जरूरी है और न करने लायक कर्म को भी। अकर्म को भी जानना जरूरी है, क्योंकि कर्म रहस्यमयी है॥

En It is essential to know the nature of action as well as of actionlessness, and also that of meritorious action, for the ways of action are (So) inscrutable.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 18

कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः।
स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत्॥18॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 18 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi कर्म करने मे जो अकर्म देखता है, और कर्म न करने मे भी जो कर्म होता देखता है, वही मनुष्य बुद्धिमान है और इसी बुद्धि से युक्त होकर वो अपने सभी कर्म करता है॥

En One who can perceive non-action in action and action in non-action is a wise man and an accomplished doer of perfect action.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 19

श्रीभगवानुवाच (THE LORD SAID):

यस्य सर्वे समारम्भाः कामसंकल्पवर्जिताः।
ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहुः पण्डितं बुधाः॥19॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 19 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi जिसके द्वारा आरम्भ किया सब कुछ इच्छा संकल्प से मुक्त होता है, जिसके सभी कर्म ज्ञान रूपी अग्नि में जल कर राख हो गये हैं, उसे ज्ञानमंद लोग बुद्धिमान कहते हैं॥

En Even the learned call that man a sage all of whose actions are free from desire and will, (both) burnt to ashes by the fire of knowledge.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 20

त्यक्त्वा कर्मफलासङ्गं नित्यतृप्तो निराश्रयः।
कर्मण्यभिप्रवृत्तोऽपि नैव किंचित्करोति सः॥20॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 20 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi कर्म के फल से लगाव त्याग कर, सदा तृप्त और आश्रयहीन रहने वाला, कर्म मे लगा हुआ होकर भी, कभी कुछ नहीं करता है॥

En Independent of the world, ever contented, and renouncing all attachment to action as well as its fruits, such a man is free from action even while he is engaged in it.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 21

निराशीर्यतचित्तात्मा त्यक्तसर्वपरिग्रहः।
शारीरं केवलं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम्॥21॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 21 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi मोघ आशाओं से मुक्त, अपने चित और आत्मा को वश में कर, घर सम्पत्ति आदि मिनसिक परिग्रहों को त्याग, जो केवल शरीर से कर्म करता है, वो कर्म करते हुऐ भी पाप नहीं प्राप्त करता॥

En He who has conquered his mind and senses, and given up all objects of sensual pleasure, does not partake of sin even when his body seems to be engaged in action.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 22

यदृच्छालाभसंतुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः।
समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते॥22॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 22 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi सवयंम ही चल कर आये लाभ से ही सन्तुष्ट, द्विन्द्वता से ऊपर उठा हुआ, और दिमागी जलन से मुक्त, जो सफलता असफलता मे एक सा है, वो कार्य करता हुआ भी नहीं बँधता॥

En Contented with what comes to him unsought, he who is indifferent to happiness and sorrow, free from envy, and even-minded in success and failure, is a man of equanimity, unenslaved by action even when he performs it.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 23

गतसङ्गस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतसः।
यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते॥23॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 23 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi संग छोड़ जो मुक्त हो चुका है, जिसका चित ज्ञान में स्थित है, जो केवल यज्ञ के लिये कर्म कर रहा है, उसके संपूर्ण कर्म पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं॥

En When a man is free from attachment, his mind rests firmly in the knowledge of God, and when his actions are like the yagya made to God, he is truly emancipated and all his actions cease to be.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 24

श्रीभगवानुवाच (THE LORD SAID):

ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना॥24॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 24 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi ब्रह्म ही अर्पण करने का साधन है, ब्रह्म ही जो अर्पण हो रहा है वो है, ब्रह्म ही वो अग्नि है जिसमे अर्पण किया जा रहा है, और अर्पण करने वाला भी ब्रह्म ही है। इस प्रकार कर्म करते समय जो ब्रह्म मे समाधित हैं, वे ब्रह्म को ही प्राप्त करते हैं॥

En Since both the dedication and the oblation itself are God, and it is the Godlike teacher who offers the oblation to the fire which is also God, the attainment, too, of the man whose mind is set on Godlike action is God himself.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 25

दैवमेवापरे यज्ञं योगिनः पर्युपासते।
ब्रह्माग्नावपरे यज्ञं यज्ञेनैवोपजुह्वति॥25॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 25 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi कुछ योगी यज्ञ के द्वारा देवों की पूजा करते हैं। और कुछ ब्रह्म की ही अग्नि मे यज्ञ कि आहुति देते हैं॥

En Some yogis perform yagya to foster divine impulses, whereas some other yogis offer the sacrifice of yagya to (a seer who is) the fire of God.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 26

श्रोत्रादीनीन्द्रियाण्यन्ये संयमाग्निषु जुह्वति।
शब्दादीन्विषयानन्य इन्द्रियाग्निषु जुह्वति॥26॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 26 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi अन्य सुनने आदि इन्द्रियों की संयम अग्नि मे आहुति देते हैं। और अन्य शब्दादि विषयों कि इन्द्रियों रूपी अग्नि मे आहूति देते हैं॥

En While some offer their hearing and other senses as sacrifice to the fire of self-restraint, others offer speech and other sense objects to the fire of the senses.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 27

सर्वाणीन्द्रियकर्माणि प्राणकर्माणि चापरे।
आत्मसंयमयोगाग्नौ जुह्वति ज्ञानदीपिते॥27॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 27 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi और दूसरे कोई, सभी इन्द्रियों और प्राणों को कर्म मे लगा कर, आत्म संयम द्वारा, ज्ञान से जल रही, योग अग्नि मे अर्पित करते हैं

En Yet other yogi offer the functions of their senses and operations of their life-breaths to the fire of yog (selfcontrol) kindled by knowledge.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 28

द्रव्ययज्ञास्तपोयज्ञा योगयज्ञास्तथापरे।
स्वाध्यायज्ञानयज्ञाश्च यतयः संशितव्रताः॥28॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 28 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi इस प्रकार कोई धन पदार्थों द्वारा यज्ञ करते हैं, कोई तप द्वारा यज्ञ करते हैं, कोई कर्म योग द्वारा यज्ञ करते हैं और कोई स्वाध्याय द्वारा ज्ञान यज्ञ करते हैं, अपने अपने व्रतों का सावधानि से पालन करते हुऐ॥

En Just as many perform yagya by making material gifts in service of the world, some other men perform yagya through physical mortification, some perform the sacrifice of yog, and yet others who practise severe austerities perform yagya through the study of scriptures.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 29

अपाने जुह्वति प्राणं प्राणेऽपानं तथापरे।
प्राणापानगती रुद्ध्वा प्राणायामपरायणाः॥29॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 29 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi और भी कई, अपान में प्राण को अर्पित कर और प्राण मे अपान को अर्पित कर, इस प्रकार प्राण और अपान कि गतियों को नियमित कर, प्राणायाम मे लगते हैँ॥

En As some offer their exhalation to inhalation, others offer their inhaled breath to the exhaled breath, while yet others practise serenity of breath by regulating their incoming and outgoing breath.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 30

अपरे नियताहाराः प्राणान्प्राणेषु जुह्वति।
सर्वेऽप्येते यज्ञविदो यज्ञक्षपितकल्मषाः॥30॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 30 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi अन्य कुछ, अहार न ले कर, प्राणों को प्राणों मे अर्पित करते हैं। ये सभी ही, यज्ञों द्वारा क्षीण पाप हुऐ, यज्ञ को जानने वाले हैं॥

En Yet others who subsist on strictly regulated breath and offer their breath to breath, and life to life, are all knowers of yagya, and the sins of all who have known yagya are destroyed.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 31

यज्ञशिष्टामृतभुजो यान्ति ब्रह्म सनातनम्।
नायं लोकोऽस्त्ययज्ञस्य कुतोऽन्यः कुरुसत्तम॥31॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 31 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi यज्ञ से उत्पन्न इस अमृत का जो पान करते हैं अर्थात जो यज्ञ कर पापों को क्षीण कर उससे उत्पन्न शान्ति को प्राप्त करते हैं, वे सनातन ब्रह्म को प्राप्त करते हैं। जो यज्ञ नहीं करता, उसके लिये यह लोक ही सुखमयी नहीं है, तो और कोई लोक भी कैसे हो सकता है, हे कुरुसत्तम॥

En O the best of Kuru, the yogi who have tasted the nectar flowing from yagya attain to the eternal supreme God, but how can the next life of men bereft of yagya be happy when even their life in this world is miserable?
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 32

एवं बहुविधा यज्ञा वितता ब्रह्मणो मुखे।
कर्मजान्विद्धि तान्सर्वानेवं ज्ञात्वा विमोक्ष्यसे॥32॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 32 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi इस प्रकार ब्रह्म से बहुत से यज्ञों का विधान हुआ। इन सभी को तुम कर्म से उत्पन्न हुआ जानो और ऍसा जान जाने पर तुम भी कर्म से मोक्ष पा जाओगे॥

En Many such yagya are laid down by the Ved but they all germinate and grow from the ordained action, and performing their various steps you will be free from worldly bondage.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 33

श्रीभगवानुवाच (THE LORD SAID):

श्रेयान्द्रव्यमयाद्यज्ञाज्ज्ञानयज्ञः परन्तप।
सर्वं कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते॥33॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 33 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi हे परन्तप, धन आदि पदार्थों के यज्ञ से ज्ञान यज्ञ ज्यादा अच्छा है। सारे कर्म पूर्ण रूप से ज्ञान मिल जाने पर अन्त पाते हैं॥

En Sacrifice through wisdom is, O Parantap, in every way superior to sacrifices made with material objects, because (O Parth) all action ceases in knowledge, their culmination.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 34

तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः॥34॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 34 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi सार को जानने वाले ज्ञानमंदों को तुम प्रणाम करो, उनसे प्रशन करो और उनकी सेवा करो॥वे तुम्हे ज्ञान मे उपदेश देंगे॥

En Obtain that knowledge (from sages) through reverence, inquiry and innocent solicitation, and the sages who are aware of reality will initiate you into it.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 35

यज्ज्ञात्वा न पुनर्मोहमेवं यास्यसि पाण्डव।
येन भूतान्यशेषेण द्रक्ष्यस्यात्मन्यथो मयि॥35॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 35 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi हे पाण्डव, उस ज्ञान में, जिसे जान लेने पर तुम फिर से मोहित नहीं होगे, और अशेष सभी जीवों को तुम अपने में अन्यथा मुझ मे देखोगे॥

En Knowing which, O son of Pandu, you will never again be a prey like this to attachment, and equipped with this knowledge you will see all beings within yourself and then within me.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 36

अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः।
सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं सन्तरिष्यसि॥36॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 36 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi यदि तुम सभी पाप करने वालों से भी अधिक पापी हो, तब भी ज्ञान रूपी नाव द्वारा तुम उन सब पापों को पार कर जाओगे॥

En Even if you are the most heinous sinner, the ark of knowledge will carry you safely across all evils.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 37

यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन।
ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा॥37॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 37 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi जैसे समृद्ध अग्नि भस्म कर डालती है, हे अर्जुन, उसी प्रकार ज्ञान अग्नि सभी कर्मों को भस्म कर डालती है॥

En As blazing fire turns fuel to ashes, so verily O Arjun, the fire of knowledge reduces all action to ashes.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 38

न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।
तत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति॥38॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 38 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi ज्ञान से अधिक पवित्र इस संसार पर और कुछ नहीं है। तुम सवयंम ही, योग में सिद्ध हो जाने पर, समय के साथ अपनी आत्मा में ज्ञान को प्राप्त करोगे॥

En Doubtlessly nothing in the world is more purifying than this knowledge and your heart will realize it spontaneously when you have attained to perfection on the Way of Action.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 39

श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥39॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 39 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi श्रद्धा रखने वाले, अपनी इन्द्रियों का संयम कर ज्ञान लभते हैं। और ज्ञान मिल जाने पर, जलद ही परम शान्ति को प्राप्त होते हैं॥

En The worshipper of true faith who has subdued his senses attains to this knowledge and at the very moment (of attainment) he is rewarded with the benediction of supreme peace.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 40

अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।
नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः॥40॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 40 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi ज्ञानहीन और श्रद्धाहीन, शंकाओं मे डूबी आत्मा वालों का विनाश हो जाता है। न उनके लिये ये लोक है, न कोई और न ही शंका में डूबी आत्मा को कोई सुख है॥

En For a skeptic, bereft of faith and knowledge, who strays from the path of righteousness, there is happiness neither in this world nor in the next; he loses both the worlds.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 41

योगसंन्यस्तकर्माणं ज्ञानसंछिन्नसंशयम्।
आत्मवन्तं न कर्माणि निबध्नन्ति धनंजय॥41॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 41 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi योग द्वारा कर्मों का त्याग किये हुआ, ज्ञान द्वारा शंकाओं को छिन्न भिन्न किया हुआ, आत्म मे स्थित व्यक्ति को कर्म नहीं बाँधते, हे धनंजय॥

En O Dhananjay, action cannot bind the man who relies on God and who has surrendered all his actions to him by the practice of karm-yog and all whose doubts have been put to rest by knowledge.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 4 शलोक 42

तस्मादज्ञानसम्भूतं हृत्स्थं ज्ञानासिनात्मनः।
छित्त्वैनं संशयं योगमातिष्ठोत्तिष्ठ भारत॥42॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 4 शलोक 42 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi इसलिये अज्ञान से जन्मे इस संशय को जो तुम्हारे हृदय मे घर किया हुआ है, ज्ञान रूपी तल्वार से चीर डालो, और योग को धारण कर उठो हे भारत॥

En So, O Bharat, dwell in yog and stand up to cut down this irresolution that has entered into your heart because of ignorance with the steel of knowledge.
<< सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 3 सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 >>