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सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता – अध्याय 5 शलोक 1 से 29

सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता – अध्याय 5 शलोक 1 से 29

सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 5 शलोक 1

अर्जुन उवाच (Arjun Said):

संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि।
यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम्॥1॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 शलोक 1 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi हे कृष्ण, आप कर्मों के त्याग की प्रशंसा कर रहे हैं और फिर योग द्वारा कर्मों को करने की भी। इन दोनों में से जो ऐक मेरे लिये ज्यादा अच्छा है वही आप निश्चित कर के मुझे कहिये॥

En You have so far commended, O Krishn, both the Way of knowledge through Renunciation and then the Way of Selfless Action; so now tell me which one of the two is decidedly more propitious.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 5 शलोक 2

श्रीभगवानुवाच (THE LORD SAID):

संन्यासः कर्मयोगश्च निःश्रेयसकरावुभौ।
तयोस्तु कर्मसंन्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते॥2॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 शलोक 2 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi संन्यास और कर्म योग, ये दोनो ही श्रेय हैं, परम की प्राप्ति कराने वाले हैं। लेकिन कर्मों से संन्यास की जगह, योग द्वारा कर्मों का करना अच्छा है॥

En Both renunciation and selfless action achieve salvation, but of the two the Way of Selfless Action is the better because it is easier to practise.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 5 शलोक 3

ज्ञेयः स नित्यसंन्यासी यो न द्वेष्टि न काङ्क्षति।
निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते॥3॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 शलोक 3 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi उसे तुम सदा संन्यासी ही जानो जो न घृणा करता है और न इच्छा करता है। हे महाबाहो, द्विन्दता से मुक्त व्यक्ति आसानी से ही बंधन से मुक्त हो जाता है॥

En He, O the mighty-armed (Arjun), who envies none and desires nothing is fit to be regarded as a true sanyasi and, liberated from the conflicts of passion and repugnance, he breaks away from worldly bondage.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 5 शलोक 4

सांख्ययोगौ पृथग्बालाः प्रवदन्ति न पण्डिताः।
एकमप्यास्थितः सम्यगुभयोर्विन्दते फलम्॥4॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 शलोक 4 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi संन्यास अथवा सांख्य को और कर्म योग को बालक ही भिन्न भिन्न देखते हैं, ज्ञानमंद नहीं। किसी भी एक में ही स्थित मनुष्य दोनो के ही फलों को समान रूप से पाता है॥

En It is the ignorant rather than men of wisdom who make a distinction between the Way of Knowledge and the Way of Selfless Action, for he who dwells well in any one of the two attains to God.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 5 शलोक 5

यत्सांख्यैः प्राप्यते स्थानं तद्योगैरपि गम्यते।
एकं सांख्यं च योगं च यः पश्यति स: पश्यति॥5॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 शलोक 5 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi सांख्य से जो स्थान प्राप्त होता है, वही स्थान योग से भी प्राप्त होता है। जो सांख्य और कर्म योग को एक ही देखता है, वही वास्तव में देखता है॥

En That man perceives reality who regards the Way of Knowledge and the Way of Selfless Action as identical, because the liberation attained by knowledge is also achieved by selfless action.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 5 शलोक 6

संन्यासस्तु महाबाहो दुःखमाप्तुमयोगतः।
योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म नचिरेणाधिगच्छति॥6॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 शलोक 6 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi संन्यास अथवा त्याग, हे महाबाहो, कर्म योग के बिना प्राप्त करना कठिन है। लेकिन योग से युक्त मुनि कुछ ही समय मे ब्रह्म को प्राप्त कर लेते है॥

En But, O the mighty-armed, renunciation is well highly impossible to achieve without selfless action, but the one whose mind is set on God is soon united with him.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 5 शलोक 7

योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः।
सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते॥7॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 शलोक 7 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi योग से युक्त हुआ, शुद्ध आत्मा वाला, सवयंम और अपनी इन्द्रियों पर जीत पाया हुआ, सभी जगह और सभी जीवों मे एक ही परमात्मा को देखता हुआ, ऍसा मुनि कर्म करते हुऐ भी लिपता नहीं है॥

En The doer, who is in perfect control of his body through a conquest of his senses, pure at heart and singlemindedly devoted to the God of all beings, is untainted by action even though he is engaged in it.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 5 शलोक 8, 9

नैव किंचित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्त्ववित्।
पश्यञ्श्रृण्वन्स्पृशञ्जिघ्रन्नश्नन्गच्छन्स्वपञ्श्वसन्॥8॥

प्रलपन्विसृजन्गृह्णन्नुन्मिषन्निमिषन्नपि।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेषु वर्तन्त इति धारयन्॥9॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 शलोक 8, 9 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi सार को जानने वाला यही मानता है कि वो कुछ नहीं कर रहा। देखते हुऐ, सुनते हुऐ, छूते हुऐ, सूँघते हुऐ, खाते हुऐ, चलते फिरते हुऐ, सोते हुऐ, साँस लेते हुऐ, बोलते हुऐ, छोड़ते या पकड़े हुऐ, यहाँ तक कि आँखें खोलते या बंद करते हुऐ, अर्थात कुछ भी करते हुऐ, वो इसी भावना से युक्त रहता है कि वो कुछ नहीं कर रहा। वो यही धारण किये रहता है कि इन्द्रियाँ अपने विषयों के साथ वर्त रही हैं॥

En The man who perceives, in whatever he is doing, whether hearing, touching, smelling, eating, walking, sleeping, breathing, giving up or seizing, and opening or closing his eyes, that only his senses are acting according to their properties and that he himself is a non-doer, is indeed the one with true knowledge.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 5 शलोक 10

ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः।
लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा॥10॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 शलोक 10 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi कर्मों को ब्रह्म के हवाले कर, संग को त्याग कर जो कार्य करता है, वो पाप मे नहीं लिपता, जैसे कमल का पत्ता पानी में भी गीला नहीं होता॥

En The man who acts, dedicating all his actions to God and abandoning all attachment, is untouched by sin as a lotus leaf is untouched by water.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 5 शलोक 11

कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि।
योगिनः कर्म कुर्वन्ति सङ्गं त्यक्त्वात्मशुद्धये॥11॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 शलोक 11 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi योगी, आत्मशुद्धि के लिये, केवल शरीर, मन, बुद्धि और इन्द्रियों से कर्म करते हैं, संग को त्याग कर॥

En Sages give up the attachment of their senses, mind, intellect and body, and act for inner purification.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 5 शलोक 12

युक्तः कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम्।
अयुक्तः कामकारेण फले सक्तो निबध्यते॥12॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 शलोक 12 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi कर्म के फल का त्याग करने की भावना से युक्त होकर, योगी परम शान्ति पाता है। लेकिन जो ऍसे युक्त नहीं है, इच्छा पूर्ति के लिये कर्म के फल से जुड़े होने के कारण वो बँध जाता है॥

En The sage who sacrifices the fruits of his action to God attains to his state of sublime repose, but the man who desires rewards of action is chained by desire.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 5 शलोक 13

श्रीभगवानुवाच (THE LORD SAID):


सर्वकर्माणि मनसा संन्यस्यास्ते सुखं वशी।
नवद्वारे पुरे देही नैव कुर्वन्न कारयन्॥13॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 शलोक 13 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi सभी कर्मों को मन से त्याग कर, देही इस नौं दरवाजों के देश मतलब इस शरीर में सुख से बसती है। न वो कुछ करती है और न करवाती है॥

En The man who is in perfect control of his heart and mind, and acts accordingly , dwells blissfully in the abode of his body with its nine apertures1 because he neither acts himself nor makes others act.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 5 शलोक 14

न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः।
न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते॥14॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 शलोक 14 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi प्रभु, न तो कर्ता होने कि भावना की, और न कर्म की रचना करते हैं। न ही वे कर्म का फल से संयोग कराते हैं। यह सब तो सवयंम के कारण ही होता है।

En God creates neither action nor the capacity for action, and not even the association of action with its fruits, but at the same time, vitalized by his spirit, it is nature that acts.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 5 शलोक 15

नादत्ते कस्यचित्पापं न चैव सुकृतं विभुः।
अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तवः॥15॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 शलोक 15 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi न भगवान किसी के पाप को ग्रहण करते हैं और न किसी के अच्छे कार्य को। ज्ञान को अज्ञान ढक लेता है, इसिलिये जीव मोहित हो जाते हैं॥

En The all-pervading God, the Glorious One, accepts neither men’s sinful acts nor attachment because their knowledge is enveloped by ignorance (maya).
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 5 शलोक 16

ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मनः।
तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम्॥16॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 शलोक 16 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi जिन के आत्म मे स्थित अज्ञान को ज्ञान ने नष्ट कर दिया है, वह ज्ञान, सूर्य की तरह, सब प्रकाशित कर देता है॥

En But the knowledge of one whose ignorance has been dispelled by Self-perception shines like the sun and renders God brilliantly visible.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 5 शलोक 17

तद्बुद्धयस्तदात्मानस्तन्निष्ठास्तत्परायणाः।
गच्छन्त्यपुनरावृत्तिं ज्ञाननिर्धूतकल्मषाः॥17॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 शलोक 17 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi ज्ञान द्वारा उनके सभी पाप धुले हुऐ, उसी ज्ञान मे बुद्धि लगाये, उसी मे आत्मा को लगाये, उसी मे श्रद्धा रखते हुऐ, और उसी में डूबे हुऐ, वे ऍसा स्थान प्राप्त करते हैं जिस से फिर लौट कर नहीं आते॥

En Those men attain salvation-after which there is no next birth-whose mind and intellect are free from delusion, who dwell with a single mind in God and put themselves at his mercy, and who are freed from all sin by knowledge.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 5 शलोक 18

विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः॥18॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 शलोक 18 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi ज्ञानमंद व्यक्ति एक विद्या विनय संपन्न ब्राह्मण को, गाय को, हाथी को, कुत्ते को और एक नीच व्यक्ति को, इन सभी को समान दृष्टि से देखता है।

Sages who look evenly at a Brahmin, a cow, an elephant, a dog, and even the most despicable of men are blessed with the highest degree of knowledge.

सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 5 शलोक 19

इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः।
निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद्ब्रह्मणि ते स्थिताः॥19॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 शलोक 19 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi जिनका मन समता में स्थित है वे यहीं इस जन्म मृत्यु को जीत लेते हैं। क्योंकि ब्रह्म निर्दोष है और समता पूर्ण है, इसलिये वे ब्रह्म में ही स्थित हैं।

En They who achieve the state of equality conquer the whole world within the mortal life itself, because they rest in God who is also unblemished and impartial.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 5 शलोक 20

न प्रहृष्येत्प्रियं प्राप्य नोद्विजेत्प्राप्य चाप्रियम्।
स्थिरबुद्धिरसंमूढो ब्रह्मविद्ब्रह्मणि स्थितः॥20॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 शलोक 20 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi न प्रिय लगने वाला प्राप्त कर वे प्रसन्न होते हैं, और न अप्रिय लगने वाला प्राप्त करने पर व्यथित होते हैं। स्थिर बुद्धि वाले, मूर्खता से परे, ब्रह्म को जानने वाले, एसे लोग ब्रह्म में ही स्थित हैं।

En That equal-minded man dwells in God who is neither delighted by what others love nor offended by what others scorn, who is free from doubt, and who has perceived Him
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 5 शलोक 21

बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विन्दत्यात्मनि यत् सुखम्।
स ब्रह्मयोगयुक्तात्मा सुखमक्षयमश्नुते॥21॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 शलोक 21 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi बाहरी स्पर्शों से न जुड़ी आत्मा, अपने आप में ही सुख पाती है। एसी, ब्रह्म योग से युक्त, आत्मा, कभी न अन्त होने वाले निरन्तर सुख का आनन्द लेती है।

En That man becomes one with God and enjoys eternal bliss who is single-mindedly dedicated to him and whose heart is free from desire for worldly joys.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 5 शलोक 22

ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते।
आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः॥22॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 शलोक 22 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi बाहरी स्पर्श से उत्तपन्न भोग तो दुख का ही घर हैं। शुरू और अन्त हो जाने वाले ऍसे भोग, हे कौन्तेय, उनमें बुद्धिमान लोग रमा नहीं करते।

En Since the pleasures arising from the association of senses with their objects are a cause of grief and are transitory, O son of Kunti, men of wisdom do not desire them.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 5 शलोक 23

शक्नोतीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात्।
कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः॥23॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 शलोक 23 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi यहाँ इस शरीर को त्यागने से पहले ही जो काम और क्रोध से उत्तपन्न वेगों को सहन कर पाले में सफल हो पाये, ऍसा युक्त नर सुखी है।

En That man in this world is a true and blessed yogi who, even before the death of his mortal body, acquires the ability to withstand the onslaughts of passion and anger, and conquers them for ever.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 5 शलोक 24

योऽन्तःसुखोऽन्तरारामस्तथान्तर्ज्योतिरेव यः।
स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति॥24॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 शलोक 24 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi जिसकी अन्तर आत्मा सुखी है, अन्तर आत्मा में ही जो तुष्ट है, और जिसका अन्त करण प्रकाशमयी है, ऍसा योगी ब्रह्म निर्वाण प्राप्त कर, ब्रह्म में ही समा जाता है।

En The man who knows his Self and whose happiness and peace lie within merges into God, and he attains to the final beatitude that lies in him.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 5 शलोक 25

लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणमृषयः क्षीणकल्मषाः।
छिन्नद्वैधा यतात्मानः सर्वभूतहिते रताः॥25॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 शलोक 25 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi ॠषी जिनके पाप क्षीण हो चुके हैं, जिनकी द्विन्द्वता छिन्न हो चुकी है, जो संवयम की ही तरह सभी जीवों के हित में रमे हैं, वो ब्रह्म निर्वाण प्राप्त करते हैं।

En They attain to the eternal peace of God whose sins have been destroyed by perception and whose doubts are resolved, and who are single-mindedly concerned with the good of all beings.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 5 शलोक 26

कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम्।
अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम्॥26॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 शलोक 26 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi काम और क्रोध को त्यागे, साधना करते हुऐ, अपने चित को नियमित किये, आत्मा का ज्ञान जिनहें हो चुका है, वे यहाँ होते हुऐ भी ब्रह्म निर्वाण में ही स्थित हैं।

En Men who are free from passion and wrath, who have conquered their mind, and who have had a direct perception of God, see the all-tranquil Supreme Self wherever they look.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 5 शलोक 27, 28

श्रीभगवानुवाच (THE LORD SAID):

स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवोः।
प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ॥27॥

यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायणः।
विगतेच्छाभयक्रोधो यः सदा मुक्त एव सः॥28॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 शलोक 27, 28 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi बाहरी स्पर्शों को बाहर कर, अपनी दृष्टि को अन्दर की ओर भ्रुवों के मध्य में लगाये, प्राण और अपान का नासिकाओं में एक सा बहाव कर, इन्द्रियों, मन और बुद्धि को नियमित कर, ऍसा मुनि जो मोक्ष प्राप्ति में ही लगा हुआ है, इच्छा, भय और क्रोध से मुक्त, वह सदा ही मुक्त है।

En That sage is liberated for ever who shuts out of his mind all objects of sensual pleasure, keeps his eyes centered between the two brows, regulates his pran and apan, conquers his senses, mind and intellect, and whose mind is fixed on salvation.
सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता - अध्याय 5 शलोक 29

भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम्।
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति॥29॥

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय 5 शलोक 29 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hi मुझे ही सभी यज्ञों और तपों का भोक्ता, सभी लोकों का महान ईश्वर, और सभी जीवों का सुहृद जान कर वह शान्ति को प्राप्त करता है।

En Knowing the truth that it is I who enjoy the offerings of yagya and penances, that I am God of all the worlds, and that l am the selfless benefactor of all beings, he attains to final tranquillity.
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