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लगभग दो-ढाई सौ साल पहले की बात है। आगरा शहर की एक व्यस्त और घनी आबादी वाली पुरानी बस्ती में भीड़-भाड़ वाली सड़क पर चतुरलाल नाम के बनिये की दुकान थी।

“आशीष ! यह तुम उलटे हाथ से क्या करे रहे हो ?” अपनी गन साफ़ करते हुए कर्नल देवराज चौहान ने अपने बेटे आशीष को एक कलरिंग बुक के फुलपेज स्केच पर आयल पेस्टल से कलर करते हुए  देखकर पूछा। 

करीमगंज में लड्डन शाह नाम का एक बड़ा ही तेज तर्रार और अपने फन में माहिर दर्जी रहता था, जिसे करीमगंज के लोग प्यार से लड्डू मास्टर कहते थे! 

अंगूरी चाची जहाँ बहुत ही खूबसूरत हट्टी-कट्टी थीं, वहीं उनके पति परमेश्वर विभूति नारायण मिश्रा जी दुबले पतले सींकिया पहलवान थे!

सुजानगढ़ के राजा सुजानसिंह के राज्य के खजाने में लगभग तीन सौ से भी अधिक सालों से, भगवान कृष्ण की सोने चाँदी की बनी हीरे जवाहरात जड़ी बत्तीस मूर्तियाँ थीं। हर मूर्ति वेशकीमती थी।