Homeपरमार्थी साखियाँबंगाली बाबू की मन पर विजय

बंगाली बाबू की मन पर विजय

बंगाली बाबू की मन पर विजय

रावलपिण्डी का जिक्र है, एक बंगाली बाबू एक दफ्तर में नौकर था, बहत प्रेमी और अभ्यासी था| एक बार जब बड़े महाराज जी ने उससे पूछा कि क्या मन वश में आया? मन अन्दर शब्द के साथ जुड़ता है?
तो उसने कहा कि हाँ! आया, लेकिन बड़ी मुश्किल से आया| आपने पूछा, “किस तरह?” उसने कहा, “जब मैं घर लौटता हूँ, नहा-धोकर भजन पर बैठ जाता हूँ और जब तक अन्दर लज्जत नहीं आती, रोटी नहीं खाता हूँ| नौकर से कह देता हूँ कि तू रोटी पकाकर अपनी खाकर और मेरी रखकर सो जा, मेरा इन्तजार न करना| कभी-कभी रात के बैठे सुबह के तीन बजे जाते हैं, तब कहीं जाकर बिगड़ा मन ठहरता है| जब मन अन्दर ठहरता है| लज्ज़त आती है, तब उठकर रोटी खाता हूँ नहीं तो नहीं खाता|”

अगर मन के कहे लगें तो यह भक्ति नहीं करने देता| सभी महात्मा यही कहते आये हैं कि अगर मन के कहे लगोगे तो यह सीधा नरकों का भागी बना देगा|

हे स्वामी! तूने मुझे पाँच तोड़े (गुण) सौंपे थे, देख मैंने पाँच
तोड़े और कमाये हैं| उसके स्वामी ने उससे कहा, धन्य है अच्छे
और विश्वासयोग्य सेवक, तू थोड़े में विश्वासयोग्य रहा; मैं तुझे
बहत वस्तुओं का अधिकारी बनाऊँगा| अपने स्वामी के आनन्द
में सम्भागी हो|
(सेंट मैथ्यू)

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