हिचकी (हिक्का रोग) के 21 घरेलु उपचार – 21 Homemade Remedies for Hiccough Disease
हिचकी या हिक्का रोग में सांस-रुक-रुककर या हिक्-हिक् की आवाज के साथ बाहर निकलते है| यह रोग पेट में समान वायु तथा गले में उदान वायु के प्रकोप से पैदा होती है|
हिचकी या हिक्का रोग में सांस-रुक-रुककर या हिक्-हिक् की आवाज के साथ बाहर निकलते है| यह रोग पेट में समान वायु तथा गले में उदान वायु के प्रकोप से पैदा होती है|
स्त्री या पुरुष घुटनों पर हाथ रखकर उठता है तो समझ लेना चाहिए कि वह वृद्ध हो चला है और उसके घुटनों में दर्द बनने लगा है| ऐसी अवस्था में घुटनों के दर्द से बचने के लिए उचित उपचार तथा आहार-विहार का पालन करना चाहिए|
अनिद्रा एक सामान्य रोग है| यह चिंता, शोक, विषाद, निराशा आदि के कारण उत्पन्न होता है| यदि नकारात्मक भावनाओं से स्वयं को दूर रखा जाए तो इस रोग से छुटकारा पाया जा सकता है|
चोट लगने और खून बहने पर इस बात की तत्काल व्यवस्था करनी चाहिए कि खून अधिक मात्रा में न बहने पाए| इसके लिए तुरंत खून रोकने का उपाय करना चाहिए| साथ ही विषक्रमण न होने पाए, इसका भी ध्यान रखना चाहिए|
वास्तव में दिल की धड़कन कोई रोग नहीं है| किन्तु जब दिल तेजी से धड़कने लगता है तो मनुष्य के शरीर में कमजोरी आ जाती है, माथे पर हल्का पसीना उभर आता है तथा पैर लड़खड़ाने लगते हैं|
गठिया एक विचित्र और कष्टप्रद रोग है| यह अधिकतर प्रौढ़ावस्था और बुढ़ापे में ही होती है| परन्तु कभी-कभी छोटी उम्र में भी यह बहुत से मनुष्यों को हो जाती है|
शीतपित्त को साधारण भाषा में पित्ती उछलना कहते हैं| इसमें रोगी के शरीर में खुजली मचती रहती है, दर्द होता है तथा व्याकुलता बढ़ जाती है| कभी-कभी ठंडी हवा लगने या दूषित वातावरण में जाने के कारण भी यह रोग हो जाता है|
आमाशय और अंतड़ियों में बहुत से विकार पाए जाते हैं| उनमें से कृमि रोग भी बच्चे को परेशान करता है| ये कृमि लगभग 20 प्रकार के होते हैं जो अंतड़ियों में घाव पैदा कर देते हैं| अत: रोगी बेचैन हो जाता है| ये पेट में वायु को बढ़ा देते हैं जिसके कारण हृदय की धड़कन बढ़ जाती है| कृमि रोग में रोगी को उबकाई आती रहती है| कई बार भोजन के प्रति अरुचि भी उत्पन्न हो जाती है| चक्कर आने लगते हैं तथा प्यास अधिक लगती है|
भोजन न पचने (अग्निमांद्य) की वजह से द्रव्य धातु से मिलकर पाखाना (मल) वायु सहित गुदा से बाहर निकलता है, इसे अतिसार या दस्त कहते हैं| यह छ: प्रकार का होता है – वातिक, पैत्तिक, श्लेष्मज, त्रिदोषज, शोकज तथा आमज|
कब्ज छोटे-बड़े सभी लोगों को हो जाता है| इसमें खाया हुआ भोजन शौच के साथ बाहर नहीं निकलता| वह आंतों में सूखने लगता है| मतलब यह कि आंतों में शुष्कता बढ़ने के कारण वायु मल को नीचे की तरफ सरकाने में असमर्थ हो जाती है| यही कब्ज की व्याधि कहलाती है|