एक समय की घटना है|
बीरबल को कहीं से एक गधा मिल गया| वह उसे बादशाह अकबर के पास लाया और बोला – “हुजूर, यह गधा काफी बुद्धिमान नजर आ रहा है| यदि इसे पढ़ना सिखाया जाए तो यह पढ़ाकू गधा बन सकता है|”
वर्धमान नगर में आभूषणों का एक व्यापारी दंतिल सेठ रहता था| वहाँ का राजा उसके व्यवहार से काफ़ी प्रसन्न था| जिस रानी को कभी कोई आभूषण बनवाना होता था तो दंतिल सेठ को ही बुलाया जाता| उसे रनिवास में आने-जाने की खुली छूट थी|
नेपोलियन बोनापार्ट का नाम संसार के प्रमुख विजेताओं में फ्रांस के योद्धा एवं प्रसिद्ध सेनापति में स्मरण किया जाता है|
एक बार की बात है कि एक मधुमक्खी किसी सरोवर के ऊपर से उड़ती हुई जा रही थी कि एकाएक ही उस सरोवर में गिर पड़ी| उसके पँख भीग चुके थे| अब वह उड़ने में असमर्थ थी| इस तरह उसकी मृत्यु अवश्य संभावी थी|
वह साधु विचित्र स्वभाव का था। वह बोलता कम था। उसके बोलने का ढंग भी अजब था। माँग सुनकर सब लोग हँसते थे। कोई चिढ़ जाता था, तो कोई उसकी माँग सुनी-अनुसनी कर अपने काम में जुट जाता था।
पूर्वकाल में घोड़े भी जंगली जानवरों की तरह ही जंगलों में रहा करते थे| लोग अन्य जंगली जानवरों की तरह उनका भी शिकार किया करते थे|
महर्षि आयोदधौम्य अपनी विद्या, तपस्या और विचित्र उदारता के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। वे ऊपर से तो अपने शिष्यों के प्रति अत्यंत कठोर थे, किंतु भीतर से शिष्यों को असीम स्नेह करते थे।
रामदास और मोतीराम दोनों बहुत अच्छे मित्र थे| एक बार मोतीराम को किसी काम से दूसरे शहर में जाना पड़ा| काम अधिक समय तक चलने वाला था, अत; वह सपरिवार गया और जाते समय अपने मकान की चाबी तथा कीमती समान अपने मित्र रामदास को सौंप दिया|
किसी वृक्ष पर एक कौए और बटेर का बसेरा था| एक बार पक्षियों को जानकारी मिली कि उनके राजा गरुड़ सागर किनारे आने वाले है| सभी पक्षी एकत्रित होकर उनके दर्शनार्थ सागर किनारे की ओर चल पड़े| कौआ और बटेर भी गए|
छान्दोग्य की कहानी है| ऋषि आरुणि का पुत्र श्वेतकेतु गुरुकुल से शिक्षा ग्रहण करके जब लौटा, तब उसके पिता को अनुभूति हुई कि पुत्र में कुछ अहंकार पैदा हो गया है| पुत्र ने बताया उसने सब विधाएँ पढ़ ली है|
यूं तो भगवान हनुमान जी को अनेक नामों से पुकारा जाता है, जिसमें से उनका एक नाम वायु पुत्र भी है। जिसका शास्त्रों में सबसे ज्यादा उल्लेख मिलता है। शास्त्रों में इन्हें वातात्मज कहा गया है अर्थात् वायु से उत्पन्न होने वाला।
एक समय की बात है| दिल्ली विश्वविय के भूतपूर्व कुलपति एवं भूतपूर्व संसद सदस्य डॉ० स्वरुप सिंह अपनी मित्र-मण्डली में बैठे थे|
बीरबल से बहुत भारी भूल हो गई| दरबारियों से सलाह लेते हुए बादशाह अकबर ने पूछा – “बीरबल को इस किए की क्या सजा दी जाए?”
एक राजा के भवन का शयनकक्ष अत्यंत सुंदर था| राजा के प्रतिदिन के इस्तेमाल में आनेवाले वस्त्रों में एक जूं रहती थी| वह राजा का रक्त चूसकर आनंद से जीवन व्यतीत कर रही थी|
एक दिन राजा विक्रमादित्य दरबार को सम्बोधित कर रहे थे तभी किसी ने सूचना दी कि एक ब्राह्मण उनसे मिलना चाहता है। विक्रमादित्य ने कहा कि ब्राह्मण को अन्दर लाया जाए। जब ब्राह्मण उनसे मिला तो विक्रम ने उसके आने का प्रयोजन पूछा।
बादशाह अकबर अक्सर बीरबल की पगड़ी की तारीफ किया करते थे, क्योंकि वे पगड़ी बहुत ही बढ़िया ढंग से बांधा करता था, किंतु मुल्ला दोप्याजा को इससे जलन होती थी| मुल्लाजी ने तय कर लिया कि वह भी एक दिन इतनी अच्छी तरह से पगड़ी बांधेंगे कि उसकी तारीफ बादशाह को करनी ही पड़ेगी|
दो बकरे थे, उन बकरों के नाम उनके रंगों के अनुसार थे| एक था कालू और दूसरा था भूरा| दोनों एक-दूसरे को फूटी आँख भी नही सुहाते थे|
इस उत्सव उत्पत्ति की दूसरी कथा
इस त्योहार का मुख्य संबंध बालक प्रहलाद से है। प्रहलाद था तो विष्णुभक्त मगर उसने ऐसे परिवार में जन्म लिया, जिसका मुखिया क्रूर और निर्दयी था।
बादशाह अकबर ने बीरबल को हुक्म दिया – “नगर के सबसे शूरवीर और सबसे कायर को दरबार में पेश करो?”
एक किसान के पास एक बकरी, एक घास का गट्ठर और एक शेर था| मार्ग में एक नदी पड़ती थी, जिसे पार करने के लिए नदी तट पर एक छोटी नौका थी| लेकिन उस नौका से एक बार में दो ही चीजें नदी पार कर जा सकती थी|
अकबर ने दरबार में प्रश्न किया – “सबसे बड़ा कौन है?”
संपदा देवी की कथा
लोगों के मन में एक प्रश्न रहता है कि जिस होलिका ने प्रहलाद जैसे प्रभु भक्त को जलाने का प्रयत्न किया, उसका हजारों वर्षों से हम पूजन किसलिए करते हैं? होलिका-पूजन के पीछे एक बात है। जिस दिन होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठने वाली थी, उस दिन नगर के सभी लोगों ने घर-घर में अग्नि प्रज्वलित कर प्रहलाद की रक्षा करने के लिए अग्निदेव से प्रार्थना की थी। लोकहृदय को प्रहलाद ने कैसे जीत लिया था, यह बात इस घटना में प्रतिबिम्बित होती है।
एक घने जंगल में चंडरव नामक गीदड़ रहता था| भूख से व्याकुल होकर एक दिन वह जब नगर में घुसा तो वहाँ कुतों ने उस पर धावा बोल दिया|
भगवान शंकर को पति के रूप में पाने हेतु माता-पार्वती कठोर तपस्या कर रही थी। उनकी तपस्या पूर्णता की ओर थी। एक समय वह भगवान के चिंतन में ध्यान मग्न बैठी थी। उसी समय उन्हें एक बालक के डुबने की चीख सुनाई दी। माता तुरंत उठकर वहां पहुंची। उन्होंने देखा एक मगरमच्छ बालक को पानी के भीतर खींच रहा है।
बीरबल बुद्धिमान तो थे किंतु रूपरंग में कुछ खास न थे| एक दिन दरबार में सुंदरता की बात चल पड़ी तो मुल्ला दोप्याजा ने बीरबल को नीचा दिखाने के उद्देश्य से कहा – “बीरबल जब भगवान सुंदरता बांट रहा था तो तुम कहां थे?”
आसमान पर काले घने बादल घिर आए थे| मैना जल्दी से उठकर अपने घोंसलें में पहुँचना चाहती थी| अंधेरा भी हो चला था और उसका घोंसला अभी दूर था| मौसम खराब होता देख उसने नीम के एक पेड़ पर रुकने का फैसला किया| उसी पेड़ पर बहुत से कौए भी थे| जैसे ही उन कौओं की नज़र उस मैना पर पड़ी तो वे ‘काँव-काँव’ करते हुए मैना पर टूट पड़े और कहने लगे, ‘हमारे पेड़ से भाग जाओ|’
बादशाह अकबर के साले साहब ने एक बार फिर से स्वयं को दीवान बनाने की जिद की| अब बादशाह सीधे-सीधे तो साले साहब को इंकार कर नहीं सकते थे, सो उन्होंने फिर एक शर्त रखी और कहा – “ठीक है, मैं तुम्हें दीवान बना दूंगा|
शिकागो के ‘विश्व धर्म सम्मेलन’ में ‘भाइयों और बहनों’ के उद्बोधन से एवं अपनी वक्तृत्व- शक्ति के सम्मोहन से मुग्ध करने वाले स्वामी विवेकानंद की अपने देशवासियों से माँग थी कि उन्हें सब देवी-देवताओं को छोड़कर एक भाव भारत माता की पूजा एवं समुन्नती के लिए प्रयत्नशील हो जाना चाहिए|
आनंद रामायण की एक कथा के अनुसार लंका पर चढ़ाई के लिए समुद्र पर बांधे गए पुल की सुरक्षा का भार हनुमानजी को सौंपा गया था। हनुमानजी रात में भगवान राम का ध्यान करते हुए पुल की रक्षा कर रहे थे कि वहां शनिदेव आ पहुंचे और उन्हें व्यंग्यबाणों से परेशान करने लगे।