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राष्ट्र का सम्मान

राष्ट्र का सम्मान

एक समय की बात है| दिल्ली विश्वविय के भूतपूर्व कुलपति एवं भूतपूर्व संसद सदस्य डॉ० स्वरुप सिंह अपनी मित्र-मण्डली में बैठे थे|

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चर्चा यह चली की अपने राष्ट्रीय गौरव को सर्वोपरि स्थान हमें किस प्रकार देना चाहिए| इस विषय में चर्चा चल ही रही थी कि डॉ० स्वरुप सिंह बोले- “मैं एक बार लंदन के बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर में गया|  मैं जिस समय घर के बाहर गया था, मौसम बरसात का था| बारिश से बचने के लिए मैंने ओवरकोट पहना हुआ था| मैंने उस स्टोर में एक काउंटर पर घड़ियाँ देखी- एक से एक बढ़िया, शानदार और टिकाऊ| मैंने एक अच्छी घड़ी पसंद की; उस घड़ी का भुगतान किया| मुझे कैश-रसीद से काउंटर पर एक पैकेट में घड़ी दे दी गई| वह घड़ी मैंने अपने ओवरकोट की जेब में डाली| स्टोर से बाहर निकलकर देखा तो मौसम एकदम साफ था| मैंने ओवरकोट उतारा, उसकी तह बनाकर हाथ में ले लिया| कुछ समय बाद खरीदी हुई घड़ी मुझे याद आई| कोट, कमीज और पैंट आदि की जेबें टटोल डाली, परंतु वह कीमती घड़ी कही नहीं मिली| मुझे उस ठंडे मौसम में भी पसीना आ गया| हवाइयाँ उड़ गई| लौटकर उसी डिपार्टमेंटल स्टोर पर गया| मैंने घड़ी की रसीद दिखाई कहा, मैंने घड़ी खरीदी थी, परंतु लगता है, मैं घड़ी लेना भूल गया| मैंने अपनी जेबें भी टटोल ली, परंतु कही नहीं मिली|”

काउंटर पर खड़े सज्जन के पास एक बड़े अधिकारी आ गये| सारी बात सुनकर उन्होंने एक घड़ी मँगवाई और मुझे सौंप दी| इस घटना के तीन-चार दिन के बाद बरसाती के प्रयोग का दुबारा मौका मिला तो उसकी जेब में उस दिन की घड़ी मिल गई| मिलते ही भागते हुए उस स्टोर पर गया| मैंने वहाँ अपनी भूल स्वीकार करते हुए वह घड़ी दे दी| साथ ही कहा- उस दिन आपने एक डिलीवरी होने के बावजूद कैसे दूसरी घड़ी दिलवा दी? स्टोर के अधिकारी बोले- हमें भरोसा था कि घड़ी दे दी गई है, पर उससे भी ज्यादा हम अपने कस्टमर का सम्मान करते हैं| यह हमारे राष्ट्रीय सम्मान का सवाल था, इसलिए तुरंत घड़ी मंगवा दी गई|”

इस कहानी से हमें शिक्षा लेनी चाहिए कि कितना सम्मान था उनके दिल में अपने देश के प्रति इसी प्रकार की भावना हमारे दिलों में भी होनी चाहिए|

इंसाफ (ब