Homeशिक्षाप्रद कथाएँसमझदारी किसमें है?

समझदारी किसमें है?

दो बकरे थे, उन बकरों के नाम उनके रंगों के अनुसार थे| एक था कालू और दूसरा था भूरा| दोनों एक-दूसरे को फूटी आँख भी नही सुहाते थे|

“समझदारी किसमें है?” सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio

एक दिन वे नदी के पुल पर से गुजर रहे थे|

इस छोर पर कालू था, उस छोर पर भूरा| दोनों आमने-सामने से आ रहे थे| पुल के बीचोबीच दोनों का आमना-सामना हो गया|

दोनों ही अड़कर खड़े हो गए| पुल बेहद संकरा था| उस पर एक बार में एक ही जानवर आ-जा सकता था| लेकिन वे दोनों ही आमने-सामने थे| कोई भी पीछे हटने को तैयार न हुआ| दोनों में लड़ाई हो गई और दोनों पुल से नीचे गिरकर मर गए|

इसी तरह दूसरी बार दो बकरियाँ इसी पुल के बीचोबीच आमने-सामने आ गई| वे दोनों समझदार और शांत स्वभाव की थी| दोनों का उद्देश्य था मिलकर रहो, मिल-बाँटकर खाओ, मुसीबत का सामना समझदारी से करो|

जब वे पुल के बीचोबीच मिली तो उनमें से एक बैठ गई और दूसरी उसके ऊपर से निकल गई| दोनों सही-सलामत अपने-अपने घर सुरक्षित पहुँच गई|


कथा-सार

गर्व, घमंड, दर्प, मद पहले तो होना ही नही चाहिए| यदि हो तो भी ऐसा नही कि प्राणों पर आ बने| घमंडी सदा घाटे में रहता है| बकरे यदि अपनी अकड़ छोड़कर समझदारी से काम लेते तो पुल पार कर लेते, जैसा कि समझदार बकरियों ने किया| बकरों की झूठी अकड़ ही उनके प्राण ले बैठी| अतः कठिनाई के समय घमंड के बजाय युक्ति से काम लेना चाहिए|