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शिक्षाप्रद कथाएँ (1569)

कर्ण कुंती का पुत्र था| पाण्डु के साथ कुंती का विवाह होने से पहले ही इसका जन्म हो चुका था| लोक-लज्जा के कारण उसने यह भेद किसी को नहीं बताया और चुपचाप एक पिटारी में रखकर उस शिशु को अश्व नाम की नदी में फेंक दिया था| इसके जन्म की कथा बड़ी विचित्र है|

एक कुत्ते को पक्षियों के अंडे खा जाने का अभ्यास हो गया| वह खेत की मेड़ों और नदी के किनारे घुमा करता और टिटिहरी के अंडे देखते ही खा जाया करता था| नदी-किनारे की रेत में वह कछुए के अंडे ढूँढ़ा करता था| 

बादशाह अकबर ने बीरबल को एक बकरी दी और आदेश देते हुए कहा – “बीरबल, यह बकरी तुम एक महीने तक अपने पास रखो| इसे पूरी खुराक देना, किन्तु इस बात का ध्यान रहे कि इस बकरी का वजन न घटे और न ही बढ़े|”

प्राय: भगवान श्रीकृष्ण की पटरानियां ब्रजगोपियों के नाम से नाक-भौं सिकोड़ने लगतीं| इनके अहंकार को भंग करने के लिए प्रभु ने एक बार एक लीला रची| नित्य निरामय भगवान बीमारी का नाटक कर पड़ गए| नारद जी आए| वे भगवान के मनोभाव को समझ गए| उन्होंने बताया कि इस रोग की औषधि तो है, पर उसका अनुपान प्रेमी भक्त की चरण-रज ही हो सकती है| रुक्मिणी, सत्यभामा सभी से पूछा गया| पर पदरज कौन दे प्रभु को| भगवान ने कहा, “एक बार ब्रज जाकर देखिए तो|”

धृतराष्ट्र के एक वैश्य वर्ण की पत्नी थी| उसी के गर्भ से युयुत्सु का जन्म हुआ था| युयुत्सु का स्वभाव गांधारी के सभी पुत्रों से बिलकुल अलग था| वह आपसी कलह और विद्वेष का विरोधी था और सदा धर्म और न्याय की बातें करता था, लकिन चूंकि सत्ता गांधारी के पुत्रों के हाथ में थी, इसलिए कोई भी इसकी नहीं सुनता था|

पुराण में एक बहुत सुन्दर कथा आती है| एक जंगल में एक तालाब था| उस जंगल के पशु उसी तालाब में पानी पीने आया करते थे| एक दिन एक शिकारी उस तालाब के पास आया| उसने तालाब में हाथ-मुँह धोकर पानी पिया|

बीरबल से किसी बात पर नाराज हो गए बादशाह अकबर और गुस्से में बीरबल से कह दिया कि तुरन्त यहां से चले जाओ और दुबारा कभी हमारे राज्य की धरती पर पैर मत रखना वरना मृत्युदण्ड दे दिया जाएगा|

एक किसान के पास एक गाय और एक घोड़ा था| वे दोनों एक साथ जंगल में चरते थे| किसान के पड़ोस में एक धोबी रहता था| धोबी के पास एक गधा और एक बकरी थी| धोबी भी उन्हें उसी जंगल में चरने को छोड़ देता था| एक साथ चरने से चारों पशुओं में मित्रता हो गयी| वे साथ ही जंगल में आते और शाम को एक साथ जंगल से चले जाते थे|

अभिमन्यु अर्जुन का पुत्र था| श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा इनकी माता थी| यह बालक बड़ा होनहार था| अपने पिता के-से सारे गुण इसमें विद्यमान थे| स्वभाव का बड़ा क्रोधी था और डरना तो किसी से इसने जाना ही नहीं था| इसी निर्भयता और क्रोधी स्वभाव के कारण इसका नाम अभि (निर्भय) मन्यु (क्रोधी) ‘अभिमन्यु’ पड़ा था|

अमेरिका ने दूसरे विश्व-महायुद्ध में जापान के विरुद्ध अनुबम का प्रयोग किया| 1945 की गर्मियों में जापान खंडहरों का देश बन गया| लाखों आदमी मारे गए थे, जो बच गए थे उनके माँस के लौथड़े रह गए थे|

केशव और राघव दो पड़ोसी थे| उनके मकान के सामने ही एक आम का पेड़ था| उन दोनों के बीच पेड़ के मालिकाना हक को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया| बात काफी आगे बढ़ गई और न्याय के लिए दोनों बादशाह अकबर के पास पहुंचे|

समुद्र तट के किसी नगर में एक धनवान वैश्य के पुत्रों ने एक कौआ पाल रखा था| वे उस कौए को बराबर अपने भोजन से बचा अन्न देते थे| उनकी जूँठन खाने वाला वह कौआ स्वादिष्ट तथा पुष्टिकर भोजन खाकर खूब मोटा हो गया था| इससे उसका अहंकार बहुत बढ़ गया| वह अपने से श्रेष्ठ पक्षियों को भी तुच्छ समझने और उनका अपमान करने लगा|

संध्या का समय था| सूर्य अस्त हो चुका था| ब्राह्मण कुमारों के वेश में पांडव द्रौपदी को साथ लिए हुए अपनी मां के पास गए| कुंती कुम्हार के घर में, कमरे का दरवाजा बंद करके भीतर बैठी हुई थी|

कभी-कभी बादशाह अकबर दरबार में जब हंसी-मजाक के मूड में होते तो उल-जलूल सवाल पूछ लिया करते थे| इसी कड़ी में एक दिन बादशाह ने कहा – “आज मेरा हंसने का बहुत मन कर रहा है, अगर कोई मुझे हंसा देगा तो मैं उसे सौ मोहरें इनाम में दूंगा लेकिन अगर नहीं हंसा पाया तो पचास मोहरें के तौर पर देनी होंगी|”

बहुत समय पहले की बात है, एक घने वन में क्रूर बहेलिया अपने शिकार की खोज में इधर-उधर भटक रहा था| सुबह से शाम तक भटकने के बाद एक कबूतरी जैसे-तैसे उसके हाथ लग गई| कुछ ही क्षणों बाद तेज़ वर्षा होने लगी| सर्दी से काँपता हुआ बहेलिया वर्षा से बचने के लिए एक पेड़ के नीचे आकर बैठ गया| कुछ देर बाद वर्षा थम गई|

द्रोणाचार्य का जीवन बड़े सुख से व्यतीत हो रहा था| उन्हें हस्तिनापुर राज्य की ओर से अच्छी वृत्ति तो मिलती ही थी, अच्छा आवास भी मिला हुआ था| राजकुटुंब के छोटे-बड़े सभी लोग उन्हें मस्तक झुकाया करते थे| स्वयं देवव्रत भी उनका बड़ा आदर किया करते थे|

बादशाह अकबर अपनी बेगम से किसी बात पर नाराज हो गए| नाराजगी इतनी बढ़ गई कि उन्होंने बेगम को मायके जाने को कह दिया| बेगम ने सोचा कि शायद बादशाह ने गुस्से में ऐसा कहा है, इसलिए वह मायके नहीं गई|

एक कुम्हार के पास कई गधे थे| रोज़ सुबह जब वह गधों को मिट्टी लाने के लिए ले जाता तो एक जगह कुछ देर के लिए आराम करता था| वह सभी गधों को पेड़ से बाँध देता और खुद भी एक पेड़ के नीचे लेट जाता|

अश्वत्थामा द्रोणाचार्य का पुत्र था| कृपी उसकी माता थी| पैदा होते ही वह अश्व की भांति रोया था| इसलिए अश्व की भांति स्थाम (शब्द) करने के कारण उसका नाम अश्वत्थामा पड़ा था| वह बहुत ही क्रूर और दुष्ट बुद्धि वाला था| तभी पिता का उसके प्रति अधिक स्नेह नहीं था|धर्म और न्याय के प्रति उसके हृदय में सभी प्रेरणा नहीं होती थी और न वह किसी प्रकार का आततायीपन करने में हिचकता था|

बादशाह अकबर के दरबारियों को अक्सर यह शिकायत रहती थी कि बादशाह हमेशा बीरबल को ही बुद्धिमान बताते हैं, औरों को नहीं|

दूसरे महायुद्ध की विभीषिका के फलस्वरुप जापान क्षत-विक्षत हो गया था| उसका समस्त व्यापार, उधोग, कृषि एवं अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गई थी|

कृपी महर्षि शरद्वान की पुत्री थी| इनकी माता जानपदी नाम की एक देवकन्या थी| कृपी का जीवन सदा दुर्भाग्य और आपत्तियों से संघर्ष करते हुए ही बीता|

अकबर बादशाह को मजाक करने की आदत थी| एक दिन उन्होंने नगर के सेठों से कहा – “आज से तुम लोगों को पहरेदारी करनी पड़ेगी|”

एक राज था| उसने एक भव्य और मज़बूत महल का निर्माण कराया| सभी ने उस महल की खूब प्रशंसा की| एक बार एक संत-महात्मा राजा के उस महल में आए| राजा ने महात्मा की खूब सेवा-टहल की| उन्हें अपना पूरा महल दिखाया|

गुरु द्रोणाचार्य ब्राह्मण थे, धनुर्विद्या के महान आचार्य थे, पर बड़े गरीब थे| इतने गरीब थे कि जीवन का निर्वाह होना कठिन था| घर में कुल तीन प्राणी थे – द्रोणाचार्य स्वयं, उनकी पत्नी और उनका पुत्र अश्वत्थामा| पुत्र की अवस्था पांच-छ: वर्ष की थी|

तानसेन और बीरबल में किसी बात को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया| दोनों ही अपनी-अपनी बात पर अटल थे| हल निकलता न देख दोनों बादशाह की शरण में गए| बादशाह अकबर को अपने दोनों रत्न प्रिय थे| वे किसी को भी नाराज नहीं करना चाहते थे, अत: उन्होंने स्वयं फैसला न देकर किसी और से फैसला कराने की राय दी|

एक तालाब में बहुत-सी मछलियाँ व तीन बड़े मगरमच्छ थे, जो आपस में गहरे मित्र थे|

कृपाचार्य महर्षि शरद्वान के पुत्र थे| महर्षि शरद्वान महर्षि गौतम के पुत्र थे, इसी कारण इनको गौतम भी कहते थे| वे धनुर्विद्या में पूर्ण पारंगत थे| इंद्र भी इनकी असाधारण पटुता देखकर इनसे डरने लगा था|

बादशाह अकबर जंग में जाने की तैयारी कर रहे थे| फौज पूरी तरह तैयार थी| बादशाह भी अपने घोड़े पर सवार होकर आ गए| साथ में बीरबल भी था| बादशाह ने फौज को जंग के मैदान में कूच करने का निर्देश दिया|

एक राजा बेहद विलासी स्वभाव का था| उसे न प्रजा के सुख-दुख की चिंता थी और न राजकाज की| उसका सारा दिन अपने लिए सुख-सुविधाओं की व्यवस्था करने-करवाने में ही बीत जाता था|