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समृद्धि का रहस्य

अमेरिका ने दूसरे विश्व-महायुद्ध में जापान के विरुद्ध अनुबम का प्रयोग किया| 1945 की गर्मियों में जापान खंडहरों का देश बन गया| लाखों आदमी मारे गए थे, जो बच गए थे उनके माँस के लौथड़े रह गए थे|

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40 प्रतिशत नगर ध्वस्त हो गए थे| शहर की आबादी आधी रह गई थी, भूखा जापान- चिथड़ों में लिपटी जनता दीन-हीन, स्तब्ध, हतप्रभ और क्षत-विक्षत हो गई थी| जापान में न कोयला होता था, न लोहा, न तेल और न यूरेनियम| बस थोड़ी-सी कृषि योग्य जमीन थी| इस पराजय, दुःख और विनाश के बावजूद जापान फिर खड़ा हो गया- संसार का सर्वाधिक विकसित एक औधोगिक राष्ट्र बन गया| यह चमत्कार कैसे हुआ? जापान की समृद्धि एवं प्रगति के लिए सम्भवतः वहाँ की जनता के राष्ट्रीय गुणों को टटोलना होगा, जो कि वहाँ की जनता के स्वभाविक गुणों और चरित्र से मिलता है|

जापानी पराजय के बाद एक अमेरिकी व्यापारिक संस्था ने अपनी शाखा जापान में खोली| अमेरिकी लोग थोड़े समय काम कर कम मेहनत से बहुत पैसा कमा लेते हैं| अमेरिकी संस्था ने अपनी जापानी शाखा में सब कर्मचारी जापानी रखे| अमेरिकी कानून के अनुसार सप्ताह में केवल पाँच दिन काम करने का निश्चय किया गया| सप्ताह के दो दिन शनिवार और रविवार की छुट्टी रखी थी| अमेरिकी व्यापारी का ख्याल था कि उसकी उदारता का जापानी कर्मचारी एवं कारीगर स्वागत करेंगे, परंतु संस्था के व्यवस्थापक को देखकर अचंभा हुआ कि सभी जापानी कर्मचारी इस व्यवस्था का सामूहिक विरोध कर रहे थे| उसने कर्मचारी को बुलाया और पूछा- “तुम्हें क्या कष्ट है जो तुम विरोध कर रहे हो?”

जापानी कर्मचारी एक स्वर में बोले- “हमें कष्ट है| हम दो दिन खाली नहीं रहना चाहते| हमारे लिए सप्ताह में एक दिन का अवकाश ही पर्याप्त है|”

“यह क्यों?” पूछने पर जापानी कर्मचारी एवं कारीगर बोले- “आपका ख्याल है कि अधिक आराम से हम प्रसन्न होंगे| नहीं, यह बात ठीक नहीं| अधिक आराम से हम आलसी बन जाएँगे| मेहनत के काम में हमारा मन नहीं लगेगा; हमारा स्वास्थ्य गिरेगा, हमारा राष्ट्रीय चरित्र गिरेगा; अवकाश के कारण हम व्यर्थ ही घूमेंगे-फिरेंगे, हम फिजूल खर्च बनेंगे| जो छुट्टी हमारी सेहत बिगड़े, हमारी आदत खराब करें, आर्थिक स्थिति खराब करे, हमें ऐसा अवकाश नहीं चाहिए|”

अमेरिकी व्यवस्थापक में अपनी टोपी सिर से उतारी| उसने जापानी कारीगरों का अभिवादन करते हुए कहा- “आप जापानी भाइयों की समृद्धि और सफलता का रहस्य आपका परिश्रम और लगन है| आप कभी भी बीमार और गरीब नहीं रह सकते|” इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि प्रत्येक मनुष्य में श्रम के प्रति इतनी ही लगन होनी चाहिए जितनी जापानी लोगों में है|

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