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शिक्षाप्रद कथाएँ (1569)

पाण्डव अपनी मां कुंती के साथ इधर से उधर भ्रमण कर रहे थे| वे ब्राह्मणों का वेश धारण किए हुए थे| भिक्षा मांगकर खाते थे और रात में वृक्ष के नीचे सो जाया करते थे| भाग्य और समय की यह कैसी अद्भुत लीला है| जो पांडव हस्तिनापुर राज्य के भागीदार हैं और जो सारे जगत को अपनी मुट्ठी में करने में समर्थ हैं, उन्हीं को आज भिक्षा पर जीवन-यापन करना पड़ रहा है|

बीरबल को तम्बाकू खाने का शौक था, किंतु बादशाह अकबर को यह पसंद न था| एक दिन बादशाह अकबर तथा बीरबल सैर कर रहे थे| वहीं एक गधा भी चर रहा था|

बर्बरीक भीमसेन का पोता और उनके पुत्र घटोत्कच का पुत्र था| इसकी माता मौवीं थीं, जिसे शस्त्र, शास्त्र तथा बुद्धि द्वारा पराजित कर घटोत्कच ने ब्याहा था| बर्बरीक बड़ा वीर था, इसने एक बार भीमसेन को अत्यंत साधारण युद्ध-कौशल से पराजित कर दिया था|

बादशाह अकबर, उनकी बेगम तथा बीरबल तीनों बाग में बैठे आम खा रहे थे| बादशाह अकबर को मजाक सूझा और वे आम खाकर उसके छिलके व गुठलियां बेगम की तरफ फेंकने लगे|

एक बार युधिष्ठिर ने पितामह भीष्म ने पूछा, “पितामह ! क्या आपने कोई ऐसा पुरुष देखा या सुना है, जो एक बार मरकर पुन: जी उठा हो?”

बादशाह अकबर ने बीरबल से कहा – “जिन लोगों के नाम अथवा उपनाम के अन्त में वान या बान लगा होता है वे लोग आमतौर पर कोई छोटा काम करने वाले ही होते हैं – जैसे दरबान,कोचवान आदि| तुम्हारा क्या विचार है इस बारे में बीरबल?”

द्रौपदी के साथ पाण्डव वनवास के अंतिम वर्ष अज्ञातवास के समय में वेश तथा नाम बदलकर राजा विराट के यहां रहते थे| उस समय द्रौपदी ने अपना नाम सैरंध्री रख लिया था और विराट नरेश की रानी सुदेष्णा की दासी बनकर वे किसी प्रकार समय व्यतीत कर रही थीं|

बादशाह अकबर के साले साहब हर बार बीरबल से मात खाने के बाद भी दीवान बनने के सपने देखते रहते थे और इसके लिए वह अपनी बहन से कहते और बहन अपने मियां यानी बादशाह से| आब जोरू का भाई होने के कारण बादशाह को हर बार उसका एक नया इम्तहान लेना पड़ता था|

शकुनि गांधारराज सुबल का पुत्र था| गांधारी इसी की बहन थी| वह गांधारी के स्वभाव से विपरीत स्वभाव वाला था| जहां गांधारी के स्वभाव में उदारता, विनम्रता, स्थिरता और साधना की पवित्रता थी, वहीं शकुनि के स्वभाव में कुटिलता, दुष्टता, छल और दुराचार का अधिकार था| वह जीवन के उदात्त मूल्यों की तरफ कभी भी आकृष्ट नहीं हुआ|

महाराज एकनाथ महाराष्ट्र के एक महान् संत थे| वे गोस्वामी तुलसीदास के समकालीन एक ग्रहस्थ संत थे; मराठी साहित्य का उन्हें प्राण कहा जाता था| उन्होंने ‘भागवत् एकादश स्कंध,- ‘भावार्थ रामायण,- ‘आनन्द लहरी- आदि अनेक ग्रंथ लिखे थे| एक बार रातभर जागते रहे| रात्रि का तीसरा पहर हो गया, तब भी एकनाथ अपने हिसाब में एक पाई की भूल खोज रहे थे| अंत में वह परेशान हो उठे|

एक व्यक्ति दरबार में तोता बेचने आया| वह तोता बहुत ही अच्छी नस्ल का था और बहुत ही अच्छा बोलता भी था| अकबर को तोता पसंद आ गया और उन्होंने उसे खरीद लिया|

शल्य ही बहन माद्री का विवाह पाण्डु से हुआ था| नकुल और सहदेव उनके सगे भांजे थे| पांडवों को पूरा विश्वास था कि शल्य उनके पक्ष में युद्ध में उपस्थित रहेंगे| महारथी शल्य की विशाल सेना दो-दो कोस पर पड़ाव डालती धीरे-धीरे चल रही थी| शल्य पांडव पक्ष की ओर से लड़ने जा रहे थे|

अकबर ने बीरबल पर व्यंग्य करते हुए कहा – “बीरबल, तुम सिर्फ बातों के तीरंदाज हो, अगर तीन-कमान पकड़कर तीरदांजी करनी पड़े तो हाथ-पांव फूल जाएंगे|”

बादशाह अकबर की अंगूठी गुम हो गई| बादशाह ने बहुत तलाश की किंतु अंगूठी नहीं मिली| उन्होंने इस बात का जिक्र बीरबल से किया तो उसने पूछा – “हुजूर, आपको याद है, आपने अंगूठी कब उतारी थी?”

वनवास के समय पाण्डव द्वैत वन में थे| वन में घूमते समय एक दिन उन्हें प्यास लगी| धर्मराज युधिष्ठिर ने वृक्ष पर चढ़कर इधर-उधर देखा| एक स्थान पर हरियाली तथा जल होने के चिह्न देखकर उन्होंने नकुल को जल लाने भेजा| नकुल उस स्थान की ओर चल पड़े| वहां उन्हें स्वच्छ जल से पूर्ण एक सरोवर मिला, किंतु जैसे ही वे सरोवर में जल पीने उतरे, उन्हें यह वाणी सुनाई पड़ी, “इस सरोवर का पानी पीने का साहस मत करो| इसके जल पर मैं पहले ही अधिकार कर चुका हूं| पहले मेरे प्रश्नों का उत्तर दो, तब पानी पीना|”

एक राजा था| उसने सुना कि राजा परीक्षित् ने भगवती की कथा सुनी तो उनका कल्याण हो गया| राजा के मन में आया कि अगर मैं भी भागवती की कथा सुन लूँ तो मेरा भी कल्याण हो जायगा|

एक गाँव में एक किसान रहता था| उसका नाम था शेरसिंह| शेरसिंह शेर-जैसा भयंकर और अभिमानी था| वह थोड़ी सी बात पर बिगड़कर लड़ाई कर लेता था| गाँव के लोगों स सीधे मुँह बात नहीं करता था| न तो वह किसी के घर जाता था और न रास्ते में मिलने पर किसी को प्रणाम करता था| गाँव के किसान भी उसे अहंकारी समझकर उससे नहीं बोलते थे|

बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा-“बीरबल, हमारे नगर में कितने अंधे होंगे?”

युधिष्ठिर जुए में अपना सर्वस्व हार गए थे| छलपूर्वक, शकुनि ने उनका समस्त वैभव जीत लिया था| अपने भाइयों को, अपने को और रानी द्रौपदी को भी बारी-बारी से युधिष्ठिर ने दांव पर रखा|

बादशाह अकबर बीरबल को बहुत मानते थे| बीरबल बड़े बुद्धिमान थे और अपनी विनोदपूर्ण बातों से बादशाह को प्रसन्न रखते थे| अकबर और बीरबल के विनोद की बहुत-सी बातें प्रचलित हैं| उनमें से कुछ बातें बड़े काम की हैं| एक घटना हम यहाँ सुना रहे हैं|

बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा -“बीरबल सबसे अधिक कृतज्ञ और सबसे अधिक कृतघ्न कौन है?”

पांडव वनवास का जीवन व्यतीत कर रहे थे| भगवान व्यास की प्रेरणा से अर्जुन अपने भाइयों की आज्ञा लेकर तपस्या करने गए| तप करके उन्होंने भगवान शंकर को प्रसन्न किया, आशुतोष ने उन्हें अपना पाशुपतास्त्र प्रदान किया| इसके अनंतर देवराज इंद्र अपने रथ में बैठाकर अर्जुन को स्वर्गलोक ले गए| इंद्र तथा अन्य लोकपालों ने भी अपने दिव्यास्त्र अर्जुन को दिए|

एक गाँव में एक धनी मनुष्य रहता था| उसका नाम भैरोमल था| भैरोमल के पास बहुत खेत थे| उसने बहुत-से नौकर और मजदूर रख छोड़े थे| भैरोमल बहुत सुस्त और आलसी था| वह कभी अपने खेतों को देखने नहीं जाता था| अपने मजदूर और नौकरों को भेजकर ही वह काम कराता था|

राजदरबार के एक सेवक से कुछ लापरवाही हो गई, जिसे देखकर बादशाह अकबर बिगड़ गए और उसे आदेश दिया-“जाओ बाजार से एक सेर चूना लेकर आओ और उसे मेरे सामने खाओ|”

महाराष्ट्र के चन्द्रपुर जिले में आनन्दवन नामक एक बस्ती है| यहाँ पर जनसेवी बाबा आम्टे ने कुष्ठरोग से पीड़ित हजारों लोगों का रोग से मुक्त कर स्वावलम्बी बनाया|

एक बार भगवान श्रीकृष्ण हस्तिनापुर से दुर्योधन के यज्ञ से निवृत्त होकर द्वारका लौटे थे| यदुकुल की लक्ष्मी उस समय ऐंद्री लक्ष्मी को भी मात कर रही थी| सागर के मध्य स्थित श्री द्वारकापुरी की छटा अमरावती की शोभा को और भी तिरस्कृत कर रही थी|

एक बार कुछ खरगोश गरमी के दिनों में झरबेरी की एक सूखी झाड़ी में इकट्ठे हुए| खेतों में उन दिनों अन्न न होने से वे सब भूखे थे और इन दिनों सुबह और शाम को गाँव से बाहर घुमने वालों के साथ आने वाले कुत्ते भी उन्हें बहुत तंग करते थे|

अकबर के दरबार में कलाकारों, विद्वानों तथा अपने-अपने क्षेत्र में माहिर लोगों की कद्र की जाती थी| जब भी ऐसा कोई व्यक्ति दरबार में आकर अपनी कला का प्रदर्शन करता, राजा उसे भारी इनाम देकर खुश कर देते थे|

दुर्योधन के कपट-द्यूत में सर्वस्त्र हारकर पांडव द्रौपदी के साथ काम्यक वन में निवास कर रहे थे, परंतु दुर्योधन के चित्त को शांति नहीं थी| पांडवों को कैसे सर्वथा नष्ट कर दिया जाए, वह सदा इसी चिंता में रहता था|

फारस देश का बादशाह नौशेरवाँ अपनी न्यायप्रियता के लिए बहुत प्रसिद्ध हो गया था| वह बहुत दानी भी था| एक दिन वह अपने मन्त्रियों के साथ घुमने निकला| उसने देखा कि एक बगीचे में एक बहुत बूढ़ा माली अखरोट के पेड़ लगा रहा है| बादशाह उस बगीचे में गया| उसने माली से पूछा-‘तुम यहाँ नौकर हो या यह तुम्हारा ही बगीचा है?’