Homeभगवान हनुमान जी की कथाएँवानरों की विदाई पर भोज (भगवान हनुमान जी की कथाएँ) – शिक्षाप्रद कथा

वानरों की विदाई पर भोज (भगवान हनुमान जी की कथाएँ) – शिक्षाप्रद कथा

वानरों की विदाई पर भोज (भगवान हनुमान जी की कथाएँ) - शिक्षाप्रद कथा

राज्याभिषेक के पश्चात श्रीराम ने कौसल राज्य की जनता को एक भारी दावत दी| उस दावत के लिए जो सामग्री चाहिए थी और जिन-जिन प्रबंधों की आवश्यकता थी, उसका सारा आयोजन हनुमान जी ने ही किया था| एक क्षण की भी उन्हें फुरसत नहीं थी| उन्होंने राम के इस प्रबंध को फसल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी|

सीता ने देखा कि हनुमान परिश्रम कर रहा है| उन पर उनका प्रेम पुत्र-वात्सल्य जैसा था| वहीं प्रथम था, जिसने लंका में उनको ढूंढ निकाला था| उन्होंने हनुमान जी को अपने पास बुलाया और कहा – “पुत्र हनुमान! सुबह से एक क्षण का भी विश्राम किए बिना परिश्रम कर रहे हो| भोजन का समय हो गया है| अतिथियों के सत्कार में कोई त्रुति न आए, इसकी देखभाल की जिम्मेदारी तुम्हीं पर है| इसलिए अच्छा यही होगा कि उनसे पहले तुम भोजन कर लो|”

सीता की बात सुनकर हनुमान जी सीता के पीछे-पीछे रसोई घर में चले गए| सीता ने पत्तल बिछाकर खाना परोसना शुरू कर दिया| जो-जो वह परोसती, हनुमान जी तक्षण ही उसे निगल जाते| यह क्रम थोड़ी देर तक चलता रहा और देखते ही देखते हजारों अतिथियों के लिए पकाई गई भोजन सामग्री समाप्त हो गई| यह देखकर सीता आश्चर्य में डूब गई और दौड़ती हुई राम के पास जाकर उन्हें सब कुछ बता दिया|

राम ने हंसते हुए कहा – “तुमने हनुमान को क्या समझ रखा है? परमशिव इस रूप में अवतरित हुआ है| उसे कैसे संतुष्ट करना है, यह तुम्हारी शक्ति पर आधारित है| इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता|”

श्रीराम की बात सुनकर सीता रसोई घर में वापस आईं और हनुमान जी के पीछे खड़ी हो गई| वह मन-ही-मन कहने लगीं – ‘परमेश्वर! मैं जान गई हूं कि तुम कौन हो? कम-से-कम अब तुम अपनी भूख नहीं त्यागोगे तो हमारी मर्यादा मिट्टी में मिल जाएगी| प्रभु, मेरी रक्षा करो|’ यह कहकर सीता ने पंघाक्षरी मंत्र का सौ बार पठन किया|

दूसरे ही क्षण हनुमान जी ने संतृप्ति से डकार ली| सीता उनके आगे आई और बोलीं – “पुत्र और परोसू?”

“नहीं माते! नहीं! पेट भर गया है|” यह कहकर हनुमान जी रसोई घर से बाहर निकल गए|

उसके बाद सीता ने देवी अन्नपूर्णा का स्मरण किया| देवी ने पहले की ही तरह सब बर्तनों में पदार्थों से भर दिया| नागरिक और वानर खाने में जुट गए| वानर पंक्ति को कोने में बैठा एक छोकरा वानर आंवले को बड़े आश्चर्य से देख रहा था| उसने अपनी उंगलियों से उसे दबाया तो उसका बीज ध्वनि करता हुआ, छलांग मारता ऊपर उठा| बालक वानर ने उसे देखते हुए कहा – “अरे, तू क्या समझता है कि तुझे ही छलांग मारनी आती है| देखा मेरा कौशल!”

यह कहकर वह वानर उठ खड़ा हुआ और ऊपर उड़ा| उसे देखकर एक और वानर उससे भी ऊपर उड़ा| तीसरा भी यह देखता रहा और बड़े उत्साह से उससे भी ऊपर उड़ा| इस प्रकार वानर समूह एक-दूसरे से अधिक अंतरिक्ष में उड़ने लगे| अंगद, नल, नील और सुग्रीव भी उड़े| हनुमान जी ने सोचा कि शायद राजा की यह आज्ञा होगी| वह भी उड़े| उन्होंने केवल औपचारिक छलांग मारी|

वहां आए हुए राम ने वानरों के इस कोलाहल को देखा और हनुमान जी से पूछा – “हनुमान जी! जबकि सब वानर आकाश में उड़ रहे हैं, तब तुम केवल एक छलांग मारकर चुप क्यों हो गए?”

हनुमान जी ने विनयपूर्वक कहा – “प्रभु! इतने महान वीरों के सामने मेरी क्या हस्ती?”

हनुमान जी की बात सुनकर जांबवंत आगे आया और बोला – “प्रभु! जब तक कोई दूसरा नहीं बताता, तब तक अपनी शक्ति सामर्थ्य से हनुमान जी अनभिज्ञ हैं|”

यह सुनकर श्रीराम ने एक श्वेत कमल हनुमान जी को देते हुए कहा – “हमारे वंश के मूल कारक सूर्य भगवान को यह श्वेत कमल समर्पित करना है| सूर्य को श्वेत पद्मधारी कहा जाता है| उन तक यह पहुंचाने की शक्ति केवल तुम्ही में है|”

हनुमान जी ने प्रभु श्रीराम की आज्ञा का पालन किया और एक छलांग में आकाश में उड़ गए| आकाश में पहुंचकर उन्होंने सूर्य के रथ को पकड़ लिया| उसने सूर्य भगवान से कहा – “गुरुदेव! श्रीराम ने इस श्वेत कमल को आपको समर्पित करने के लिए कहा है|” यह कहकर उन्होंने वह श्वेत कमल के चरणों में रख दिया|

सूर्य भगवान ने हनुमान जी को चिरंजीवी कहकर आशीर्वाद दिया और फिर अपने हाथ में सजे एक श्वेत पद्म को उन्हें देते हुए कहा – “यह पद्म श्रीराम को दे देना| इसके प्रभाव से राम के राज्य पालन के काल में देश सुसंपन्न रहेगा|”

सूर्य भगवान से अनुमति लेकर हनुमान जी श्वेत पद्म लेकर श्रीराम के पास लौट आए| श्रीराम ने हनुमान जी को गले लगाया और आशीर्वाद दिया| आशीर्वाद पाकर हनुमान जी गंधमादन पर्वत पर उड़ चले और वहां के प्रशांत वातावरण में राम नाम के स्मरण में अपना जीवन सार्थक करने लगे|

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