HomePosts Tagged "भगवान हनुमान जी की कथाएँ"

तुलसी का मन राम में इतना रम गया था कि वे अपना सारा दुख-दर्द भूल चुके थे| अब उन्हें पत्नी द्वारा किए गए अपमान के प्रति भी कोई शिकायत नहीं थी|

राज्याभिषेक के पश्चात श्रीराम ने कौसल राज्य की जनता को एक भारी दावत दी|

हनुमान जी जब लंका दहन करके लौट रहे थे, तब उन्हें समुद्रोलंघन, सीतान्वेषण, रावण मद-मर्दन एवं लंका दहन आदि कार्यों का कुछ गर्व हो गया|

द्वापर युग में अर्जुन भगवान शिव की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न करते और उनसे पाशुपत नामक अमोघ अस्त्र लिए हिमालय में पहुंचे तो जंगल में उनकी भेंट एक वानर से हो गई|

प्रातःकाल का समय था, हनुमान जी श्रीराम के ध्यान में डूबे थे| तन-मन का होश न था| समुद्र की लहरों का शोर तक उन्हें सुनाई नहीं दे रहा था|

रावण के दस सिर और बीस हाथ कटने पर भी पुनः जुड़ जाते थे| यह एक चमत्कार था| कई बार उसने राम के साथ युद्ध किया, पर हर बार वह लंका सुरक्षित लौट जाता था|

एक बार अर्जुन भगवान शंकर की तपस्या करने हिमालय के जंगलों में चले गए और शिव की घोर तपस्या में मग्न हो गए|

लक्ष्मण के शेल द्वारा घायल होने के पश्चात सभी देवताओं को बुलाया गया| शिव, ब्रह्मा, यम, कुबेर, वायुदेव आदि सभी वहां पहुंच गए|

एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने सोचा कि अपने कहलाने वाले भक्तों एवं सेवकों में जो अभिमान और दुर्गुण प्रवेश कर दिए गए हैं उन्हें अवश्य दूर करना चाहिए|

भगवान श्रीराम जब समुद्र पार सेतु बांध रहे थे, तब विघ्न-निवारणार्थ पहले उन्होंने गणेश जी की स्थापना कर नवग्रहों की नौ प्रतिमाएं नल के हाथों स्थापित करवाई|