Homeतिलिस्मी कहानियाँ29 – शैतान छिपकली | Shaitaan Chipkali | Tilismi Kahaniya

29 – शैतान छिपकली | Shaitaan Chipkali | Tilismi Kahaniya

चिड़िया- ” कविता तुम ने हमारी जितनी सहायता की है , हम उस के लिए शुक्रिया अदा भी नहीं कर पा रहे हैं!”

कविता- ” अरे राजकुमारी जी,आप मेरी सखी हैं जिस तरह से आप ने हमारी सहायता की थी उसी प्रकार हम ने भी आप की सहायता की है इस में शुक्रिया अदा करने की क्या आवश्यकता है? ”

चिड़िया कविता को गले लगा लेती है।,,, और रोने भी लगती है।

कविता- “मैं जानती हूं तुम क्यों रो रही हो। अपने कुछ पुराने पलों को याद कर रही हो ना, जब आप राजकुमारी हुआ करती थी।”

चिड़िया- “हां कविता!! कितना अच्छा था, हम सब साथ मे खुश थे!”

बुलबुल- “राजकुमारी जी,, हमें पता है कि आप के लिए यह बहुत ही दुख का समय है परंतु आप चिंता मत करिये। जल्दी वह समय आएगा जब आप अपने उस पुराने रूप में आ जाएगी!”

करण- ” राजकुमारी जी चिंता मत करिए। देखना ईश्वर सब कुछ अच्छा कर देंगे!”

टॉबी- “कोई बात नहीं राजकुमारी…. आप थोड़ा सा रो लीजिये…..क्योंकि रोने से आप का दिल थोड़ा हल्का हो जाएगा! हा हा हा!”

चिड़िया- ” तुम कितनी प्यारी बातें करती हो टॉबी! हा हा हा”

टॉबी- ” क्योंकि मैं प्यारा हूँ….ना राजकुमारी!”

शुगर- “टॉबी,,,,, तुम ने आखिर राजकुमारी को हंसा ही दिया.. हा हा हा हा!”

टॉबी- ” इस काम में तो मैं बहुत ही तेज हूं!”

वधिराज- ” हां नन्हे बालक,, इस में कोई शक नहीं,,कि आप सभी को हंसा सकते हैं!!”

और इतना कह कर टॉबी शुगर नाचने लगते है…यह देख कर सभी काफी खुश हो जाते हैं और हंसने लगते हैं।

कविता- ” अच्छा राजकुमारी अब मैं चलती हूं,,, मुझे अपने राज्य को देखना होगा!”

राजकुमारी- ” हां हां कविता,, तुम अब जाओ!”

और कविता वहां से चली जाती है।

करमजीत- “अब हमे भी अपने मार्ग पर आगे बढ़ना होगा साथियों!”

कुश- “हां चलो सब!”

वधिराज- “अब फिर से उज्ज्वल पुर का रास्ता पूछना पड़ेगा।”

लव- “कहीं इस बार फिर से छल ना हो जाए!”

कुश- “कहीं ये बुलबुल फिर से करमजीत का विवाह ना करवा दे। हा हा हा!”

बुलबुल- “चुप रहो बदमाशों!”

करण- “लेकिन बुलबुल ने बहुत समझदारी वाला कार्य किया था!”

बुलबुल- “औऱ क्या । ये लव कुश तो बुध्धु है!”

लव कुश- “तुम बुध्धु!’

बुलबुल- “नही तुम हो!”

वधिराज- “अरे शांत हो जाओ। वो देखो कोई स्त्री आ रही है।”

करमजीत- “मैं नही पूछूंगा इस से कुछ भी!”

चिड़िया- “हा हा हा, ये विवाह नहीं करेगी।!”

बुलबुल- “मैं पूछ लेती हूं। ये स्त्री मुझे छल करती हुई नही लगती!”

करण- “हां बुलबुल!”

तो बुलबुल उस स्त्री से उज्ज्वल पुर का रास्ता पूछ लेती हैं। और फिर वे लोग आगे की ओर बढ़ जाते हैं।

कुश- ” मैं आशा करता हूं कि उस स्त्री के द्वारा बताया गया रास्ता सही होगा!”

लव- ” हां भाई समझ में नहीं आ रहा है कि कौन सही है कौन गलत है!”

वधिराज- ” हां मित्रों,, मैं समझ सकता हूं कि आप सभी को कैसा अनुभव हो रहा होगा परंतु आगे बढ़ने के अलावा और इन पर विश्वास करने के अलावा हमारे पास कोई और रास्ता भी नहीं है….

करण- “हां बिल्कुल! ना चाह कर भी हमें उन की बातों को मानना ही होगा…!”

कर्मजीत- ” कोई बात नहीं मित्रों,,,, अपने ईश्वर पर विश्वास रखो । हमें पता है कि हम सब अपने लक्ष्य को पा ही लेंगे!”

करण- “हाँ,, मित्र,,, हमें अपने से ज्यादा ईश्वर पर भरोसा है,, और फिर जिन के ऐसे मित्र हों उन की विजय तो निश्चित ही है!”

बुलबुल- ” हम भी बड़े भाग्यवान हैं जो हमें तुम्हारे जैसे मित्र मिले!”

चिड़िया- “हाँ, बुलबुल यह बात तो तुम ने बिल्कुल सही कही!”

सभी लोग इस बातचीत में व्यस्त ही थे कि अचानक से लव को एक औरत दिखाई देती है।

लव- ” मित्रों वह देखो… एक ओर कोई स्त्री हमारे पास आ रही है। उस ने अपने चेहरे पर नकाब लगा रखा है।

कुश- ” लगता है कोई मायावी स्त्री है!”

वधिराज- “सभी मित्र तैयार हो जाओ,, अब कुछ भी हो सकता है!”

तभी वह स्त्री धीरे-धीरे कदम बढ़ा कर उन के पास पहुंचती है।

वधिराज- ” अरे यह तो रानू है मेरी बचपन की मित्र!”

रानू- ” बड़ी देर से पहचाना तुम ने मुझे,,वधिराज… लगता है नए मित्रो के तुम्हारे जीवन में आ जाने से तुम हमें भूल ही गए हो!”

वधिराज- ” नहीं रानू ऐसी कोई बात नहीं है,!”

रानू- “तो फिर कैसी बात है?”

वधिराज- ” तुम तो नाराज हो रही हो!”

रानू- ” तुम कितने बुद्धू हो , कितनी जल्दी चिंतित हो उठते हो,, हम तो ऐसे ही मजाक कर रहे थे!”

वधिराज- ” फिर ठीक है। मुझे तुम्हारे प्रकोप से डर लगता है!”

तभी रानू एक पोटली निकलती है जिस मे मिठाई की छोटी पेटी थी।

लव- “इस पेटी में क्या है!”

रानू- “मिठाई “ये मै आप सभी के लिए खास मिठाई लाई हूं!”

सभी लोग एक-एक मिठाई ले लेते हैं लेकिन तभी चिड़िया को कुछ शक होता है।
वह पहले से संकोच करती है लेकिन उसे बोलना ही पड़ता है।

चिड़िया- “रुको,,, ये मिठाई,,,, मत खाओ कोई भी!”

रानू (गुस्सा हो कर)- ” राजकुमारी यह आप क्या कर रही हैं। आप हमारे भोजन का अपमान कर रही हैं? ”

चिड़िया- ” नहीं रानू ऐसा नहीं है परंतु हमें शक हो रहा है कि इस में कुछ मिला हुआ है,,, हो सकता है कि तुम भी इस से परिचित ना हो और किसी ने जानबूझ कर यह किया हो!”

रानू- “राजकुमारी। तू भूल रही है तू अपने रूप में नही है। छोटी सी चिड़िया को तो यूं ही कुचल देंगे!”

वधिराज- “रुको। कोई मत खाना यह रानू नहीं हो सकती,,, अवश्य ही यह भी कोई छल है जो हमें रोकने के लिए आई है!”.

करमजीत- “जल्दी बताओ तुम कौन हो?… नहीं तो मैं तुम्हारा सिर धड़ से अलग कर दूंगा!”

तभी रानू की आंखों का रंग नीला होने लग जाता है।

करण और चिड़िया तुरंत समझ जाते हैं कि यह उस जादूगर काम है।

चिड़िया- “करण ये तो उसी दुष्ट जादूगर का काम है”

करण- ” हां सभी लोग अपने-अपने हथियार निकाल लो!”

रानू जोर जोर से हंसने लगती है और देखते ही देखते वह किसी भयानक प्राणी में बदल जाती है….जिस की आंखे पूरी नीली है और उस का शरीर किसी छिपकली की तरह है.

चिड़िया- “इस राक्षस का नाम नील है और सावधान रहना। इस के मुंह से नीले रंग का विषैली हवा निकालता है… जो कि यदि किसी के भी चेहरे पर पड़ गया तो वह व्यक्ति बेहोश हों जाता है।

राक्षस- “सही पहचाना चंदा! तुम सब को मैं अपनी जहरीली हवा से मार दूंगा… हा हा हा!”

कुश- ” वह अब अपने मुंह से नीले रंग की विषैली हवा निकाल रहा है।

लव- ” दोस्तों सभी लोग बच के रहना!”

करमजीत- “सब लोग अपनी नाक ढक लो। और इस से दूर हो जाओ।”

करण- “हट जाओ सब!”

वधिराज- “इस हवा की वजह से हम इस के पास नही जा सकते करण!”

करमजीत- “तो हम यहां से चले जाते हैं। पर कैसे ?”

वधिराज- ” मैं अपना आकार बड़ा करता हूँ, तुम सब मेरी पीठ पर बैठ जाओ और कुछ दूर तक यहाँ से उड़ कर चलेंगे।”

बुलबुल- “लेकिन वधिराज तुम्हे तो उड़ना आता ही नही!”

वधिराज- “मैं कुछ क्षणों के लिए उड़ सकता हूँ। शायद उस से बच जाएंगे हम!”

करण- ” ठीक है हमें एक बार प्रयास तो करना ही चाहिए,,!”

तो फिर वधिराज अपना शरीर काफी बड़ा कर लेता है और सभी को अपनी पीठ पर बैठाता है।
और सभी को बैठा कर उड़ने लगता है परंतु थोड़ी ही दूरी पर जा कर वह धीमा हो जाता है।

वधिराज- “ज्यादा ऊंचाई पर नही उड़ पा रहा करण। माफ करना मुझे!”

करण- “नही वधिराज। माफी किस बात की, जैसा भी है चलते जाओ!”

बुलबुल- “जल्दी वधिराज! वो देखो। वो नील हमारी तरफ हवा फेंक रहा है। बचो!”

कुश- “वह हमारा पीछा कर रहा है।”

लेकिन वधिराज जैसे-तैसे कर के सभी को बचा लेता है।

और उन को नीचे ले आता है।

वहीं सभी लोग नील की विषैली हवा से बचने का प्रयास कर रहे हैं और करमजीत भी अपनी आग की शक्ति का इस्तेमाल कर के उसे हराने का प्रयास करता है। लेकिन नील हर बार बचता जाता है।

टॉबी- “हम हार रहे हैं क्या??”

बुलबुल- “लग तो रहा है। इस नील की हवा काफी विषैली है, मुझ पर असर हो रहा है इस का।”

करमजीत- “बुलबुल। अपनी नाक अच्छे से ढंक लो।”

चिड़िया- “इस से दूर होते जाओ सब!’

वो विषैली हवा आखिर बुलबुल को लग ही जाती है,, वह बेहोश हो जाती है… वहीं उसे देखने के लिए सुनहरी चिड़िया आगे जाती है तो उस को भी हवा लग जाती है।

करमजीत- “यह क्या। ये तो सब धीरे धीरे बेहोश हो रहे हैं !”

वधिराज- “अब क्या करें हम करण!”

करण- ” करमजीत क्या हुआ। तुम्हे भी बेहोशी हो रही है क्या!”

तभी करमजीत भी बेहोश हो गया।
करण और वधिराज को छोड़ कर सभी लोग बेहोश हो चुके हैं और दोनों लोग काफी हैरान और दुखी है।

वधिराज- “करण। नील हमारी तरफ आ रहा है। अब हमे ही इस से लड़ना होगा!”

करण- “तुम भी अपने वस्त्रों से एक टुकड़ा निकाल लो और नाक पर बांध लो! और हमले के लिए तैयार रहो”

वधिराज- “ठीक है। वो आ रहा है।”

तो वधिराज और करण अपने वस्त्रों से एक टुकड़ा निकाल कर अपनी नाक पर बांध लेते हैं।

लड़ते-लड़ते बीच में करण को याद आता है कि उस ने किस तरीके से उस आदमी से सुनहरी चिड़िया को चुराया था , उसे हराया था।

करण को उपाय सूझता है।

करन- “रुक जाओ वधिराज। हार मान लो। हम हार गए हैं… महाराज…आप जैसा कहेंगे हम वैसा ही करेंगे। कृपया हमें छोड़ दें!”

नील- ” पर मैं तुम्हारी बात पर विश्वास क्यों करूं? ”

वधिराज- ” विश्वास करिए महाराज,,, हम कभी झूठ नहीं बोलते,,,!”

और दोनों के बहुत कहने पर नील मान जाता है।

नील दोनों को अपने सामने झुकने के लिए कहता है….वही दोनों मित्रों को अपने दोस्तों के प्राण बचाने के लिए उस की यह बात माननी ही पड़ती है।

{ दोनों (करण और वधिराज ) झुके हुए हैं।}

तभी नील उस के पास आता है।

नील- “हा हा हा तुम लोग इसी लायक हो, कितने अच्छे लग रहे हो मेरे सामने झुके हुए। अद्भुत नजारा है।!”

तभी इसी दौरान करण जल्दी से उठता है और नील के गले में बाबा के द्वारा दिया गया वह ओम का लॉकेट पहना देता है।
जिस से नील होश में आ जाता है और वह उस जादूगर के जादू से मुक्ति पा लेता है।

करण- ” जय महाकाल!”

नील- ” जय महाकाल! यह सब मैंने किया है? !”

वधिराज- “हां नील ! चिंता मत करो। इस सब मे तुम्हारी गलती नहीं थी।” ये सब तो उस दुष्ट जादूगर की वजह से हुआ है।

करण- “तुम दुष्ट जादूगर के वश में थे, लेकिन अब नही हो!’

और फिर करण नील को सारी बातें बता देता है।

करण- “अब कृपा कर के मेरे साथियों को सही करने का उपाय बताओ!”

नील- “इन सब को मैं अभी ठीक कर दूंगा!”

करण- “पर कैसे??”

नील कैसे करण के सभी मित्रो को होश में वापस ला कर ठीक करता है? और आगे सबके साथ इस कहानी में और क्या क्या होता है जानने के लिए बने रहिये हमारे साथ।

FOLLOW US ON:
28 - जयदेव