Chapter 174
“Sanjaya said, ‘During the progress of that battle between Karna and theRakshasa, the valiant Alayudha, that prince of Rakshasa, appeared (on thefield).
“Sanjaya said, ‘During the progress of that battle between Karna and theRakshasa, the valiant Alayudha, that prince of Rakshasa, appeared (on thefield).
“Kichaka said, ‘O thou of tresses ending in beautiful curls, thou artwelcome. Surely, the night that is gone hath brought me an auspiciousday, for I have got thee today as the mistress of my house. Do what isagreeable to me.
“Vasudeva said,–‘Arjuna hath indicated what the inclination should be ofone that is born in the Bharata race, especially of one who is the son ofKunti. We know not when death will overtake us, in the night or in theday.
एक युवक बनारस की सड़कों पर घूम रहा था| वहाँ बहुत बंदर थे, जो अक्सर अनायास ही लोगों पर झपट पड़ते थे| उस युवक के साथ भी उन्होंने वही किया|
एक साधु था| चलते-चलते वह एक शहर के पास पहुँचा तो शहर का दरवाजा बन्द हो गया| रात हो गयी थी| वह साधु दरवाजे के बाहर ही सो गया| दैवयोग से उस दिन उस शहर के राजा का शरीर शान्त हो गया था|
यह शीतल प्रकृति की पत्तेदार होती है| पाचन-क्रिया को मजबूत करने व रुचि बढ़ाने में यह सहायता प्रदान करती है| यह शरीर के रोगात्मक विषों को नष्ट करने में समक्ष है| मुख्यत: इसको शाक के रूप में प्रयोग किया जाता है| पेट के रोग तथा गंजेपन की शिकायत भी इससे दूर हो जाती है| यह गठिया, ब्लडप्रेशर और हृदय रोगियों को भी लाभ पहुंचती है|
“Sanjaya said, ‘Beholding Vrishasena slain, Karna, filled with grief andrage, shed tears from his eyes for the death of his son. Endued withgreat energy, with eyes red as copper from rage, Karna proceeded in theface of his foe, having summoned Dhananjaya to battle.
1 बृहदश्व उवाच
ततस तु याते वार्ष्णेये पुण्यश्लॊकस्य दीव्यतः
पुष्करेण हृतं राज्यं यच चान्यद वसु किं चन