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शिक्षाप्रद कथाएँ (1569)

प्राचीनकाल की बात है | तब वहां पेड़ों में पत्ते नहीं हुआ करते थे | पशु, पक्षी, मानव सभी को बिना पत्तों के पेड़ देखने की आदत थी | तब उन सभी की आदतें व मौसम सहने की शक्ति उसी के अनुसार होती थी | तब सर्दी के मौसम में बहुत तेज हवा नहीं चल पाती थी, क्योंकि पत्तियों के अभाव में हवा की तेजी बढ़ ही नहीं पाती थी | ठीक इसी प्रकार गर्मियों में सभी लोग गर्मी से बचने के लिए कोई न कोई इंतजाम कर लेते थे, क्योंकि पत्तों के बिना पेड़ छायादार नहीं होते थे |

चुगली करना, इधर-उधर बात फैलाना, द्वेष पैदा करना, कलह करवाना-यह महान हत्या है, बड़ा भारी पाप है| एक नौकर मुसलमान के यहाँ जाकर रहा| रहने से पहले उसने कह दिया कि मेरी इधर-की-उधर करने की आदत है, पहले ही कह दिया हूँ! मियाँ ने सोचा कि कोई परवाह नहीं, ‘मियाँ बीबी राजी तो क्या करेगा काजी’ और रख लिया उसे|

रानी अपने पुत्र को बांहों में उठाकर श्मशान में पहुंची| वंहा पहुंचकर उसके सामने यह समस्या पैदा हो गई कि वह अपने पुत्र का शवदाह कैसे करे| विवश होकर उसने अपनी आधी साड़ी फाड़ी और उसी में अपने पुत्र का शव लपेटकर चिता की ओर बढ़ी|

एक बार की बात है, एक राजा अपने देश के पड़ोस में सैर के लिए निकला | उसने देखा वहां की धरती बहुत उपजाऊ थी, चारों ओर फसलें लहलहा रही थीं | राजा मन में सोचने लगा कि कितना अच्छा होता यदि वह सुंदर और उपजाऊ क्षेत्र उसके राज्य में होता और वह उसका मालिक होता |

एक भक्त इमली के वृक्ष के नीचे बैठे कर भगवान् का भजन कर रहा था| एक दिन वहाँ नारद जी महाराज आ गये| उस भक्त ने नारद जी कहा कि आप इतनी कृपा करें की जब भगवान् के पास जाएं तब उनसे पूछ ले कि वे मुझे कब मिलेंगे? नारद जी भगवान् के पास गये और पूछा कि अमुक स्थान पर एक भक्त इमली के वृक्ष के नीचे बैठा है और भजन कर रहा है, उसको आप कब मिलेंगे?

“हाँ देवी|” हरिश्चंद्र ने जैसे छाती पर पत्थर रखकर कहा, “लेकिन मै कर्तव्य से विवश हूं|श्मशान का कर तुम्हें चुकाना ही होगा|”

आसिफ शेख कपड़े का बहुत बड़ा व्यापारी था | उसने ढेरों दौलत जमा कर रखी थी | उसका व्यापार आस-पास के देशों में भी फैल चुका था | वह कभी-कभी उन देशों की यात्रा भी किया करता था | जब उसका बेटा जवान हो गया तो वह पिता के व्यापार में हाथ बंटाने लगा |

एक बार भरत, लक्ष्मण और शत्रुध्न-तीनों भाइयों ने माता सीता जी से मिलकर विचार किया कि हनुमान जी हमें रामजी की सेवा करने का मौका ही नहीं देते, पूरी सेवा अकेले ही किया करते हैं| अतः अब रामजी की सेवा का पूरा काम हम ही करेंगे, हनुमान जी के लिए कोई भी काम नहीं छोड़ेंगे| ऐसा विचार करके उन्होंने सेवा का पूरा काम आपस में बाँट लिया|

एक गांव में एक बूढ़ा किसान अपनी पत्नी के साथ रहता था | उसका एक छोटा-सा खेत था | उस खेत में ही कुछ सब्जियां बोकर और उन्हें बेचकर किसान अपना व अपनी पत्नी का गुजारा करता था |

एक राजकुँअर थे| स्कूल में पढ़ने के लिए जाते थे| वहाँ प्रजा के बालक भी पढ़ने जाते थे| उनमें से पांच-सात बालक राजकुँअर के मित्र हो गये| वे मित्र बोले-‘आप राजकुँअर हो, राजगद्दी के मालिक हो| आज आप प्रेम और स्नेह करते हो, लेकिन राजगद्दी मिलने पर ऐसा ही प्रेम निभाएंगे, तब हम समझेंगे कि मित्रता है, नहीं तो क्या है?’ राजकुँवर बोले कि अच्छी बात है|

एक धनी पुरुष ने एक मंदिर बनवाया| मंदिर में भगवान् की पूजा करने के लिये पुजारी रखा| मंदिर के खर्च के लिये बहुत-सी भूमि, खेत और बगीचे मन्दिर के नाम लगाये|

प्राचीन काल में अतवाक नाम के एक महर्षि थे| बहुत समय तक उनकी पत्नी के गर्भ से कोई भी पुत्र पैदा नहीं हुआ, इस कारण वे बड़े दुखी रहते थे, लेकिन फिर विधाता की इच्छा को ही अंतिम सत्य मानकर अपने भाग्य पर संतोष कर लेते थे|

एक बाबा जी कहीं जा रहें थे| रास्ते में एक खेत आया| बाबा जी वहाँ लघुशंका के लिये (पेशाब करने) बैठ गये| पीछे से खेत के मालिक ने उनको देखा तो समझा कि हमारे खेत में से मतीरा चुराकर ले जाने वाला यही है; क्योंकि खेत में से मतीरों की चोरी हुआ करती थी| उसने पीछे से आकर बाबा जी के सिर पर लाठी मारी और बोला-‘हमारे खेतो में मतीरा चुराता है?’

मंगल बहुत सीधा और सच्चा था| वह बहुत गरीब था| दिन भर जंगल में सूखी लकड़ी काटता और शाम होने पर उनका गट्ठर बाँधकर बाजार जाता|

एक बार द्वारिका निवासी यदुकुल के कुछ लड़के पानी ढूंढ़ते हुए एक पुराने कुएं के पास पहुंचे| वह कुआं घास और फैली हुई बेलों से पूरी तरह ढका हुआ था| लड़कों ने घास हटाकर देखा तो कुएं में उन्हें एक बड़ा गिरगिट दिखाई पड़ा| उस गिरगिट को उन्होंने बाहर निकालना चाहा और इसी इच्छा से उन्होंने कुएं से रस्सी फेंकी, लेकिन गिरगिट पर्वत की तरह भारी हो गया और वे कितना भी जोर लगाकर उसे नहीं खींच सके|

एक वैश्या थी| उसके मन में विचार आया कि मेरा कल्याण कैसे हो? अपने कल्याण के लिये वह साधुओं के पास  गयी| उन्होंने कहा कि तुम साधुओं का संग करो| साधु त्यागी होते हैं, इसलिये उनकी सेवा करो तो कल्याण होगा| फिर वह ब्राह्मणों के पास गयी तो उन्होंने कहा कि साधु तो बनावटी है, पर हम जन्म से ब्राह्मण हैं| ब्राह्मण सबका गुरु होता है|

यूरोप में यूनान नामका एक देश है| यूनान में पुराने समय में मिदास नामका एक राजा राज्य करता था| राजा मिदास बड़ा ही लालची था| अपनी पुत्री को छोड़कर उसे दूसरी कोई वस्तु संसार में प्यारी थी तो बस सोना ही प्यारा था|वह रात में सोते-सोते भी सोना इकठ्ठा करने का स्वप्न देखा करता था|

एक बार जनमेजय अपने भाई श्रुतसेन, और भीमसेन के साथ यज्ञ कर रहे थे| उस बीच एक कुत्ता यज्ञशाला में घुस गया| कुत्ते को उस पवित्र यज्ञशाला में देखकर सभी बड़े क्रुद्ध हुए और जनमेजय के तीनों भाइयों ने उस कुत्ते को खूब मारा, जिससे कुत्ता रोता हुआ अपनी मां सरमा के पास पहुंचा|

एक बाबा जी थे| कहीं जा रहे थे नौका में बैठकर| नौकामें और भी बहुत लोग थे| संयोग से नौका बीच में बह गयी| ज्यों ही वह नौका जोर से बही, मल्लाह ने कहा-‘अपने-अपने इष्ट को याद करो, अब नौका हमारे हाथ में नहीं रही|

एक किसान ने एक नेवला पाल रखा था| नेवला बहुत चतुर और स्वामिभक्त था| एक दिन किसान कहीं गया था| किसान की स्त्री ने अपने छोटे बच्चे को दूध पिलाकर सुला दिया और नेवले को छोड़कर वह घड़ा और रस्सी लेकर कुएँ पर पानी भरने चली गयी|

कसी के पास धन बहुत है तो यह कोई विशेष भगवत्कृपा की बात नहीं है| ये धन आदि वस्तुएँ तो पापी को भी मिल जाती हैं-‘सुत दारा अरु लक्ष्मी पापी के भी होय|’ इनके मिलने में कोई विलक्षण बात नहीं है|

बादशाह सुबुक्तगीन पहले बहुत गरीब था| वह एक साधारण सैनिक था| एक दिन वह बंदूक लेकर, घोड़ो पर बैठकर जंगल में शिकार खेलने गया था| उस दिन उसे बहुत दौड़ना और हैरान होना पड़ा| बहुत दूर जाने पर उसे एक हिरनी अपने छोटे बच्चे के साथ दिखायी पड़ी| सुबुक्तगीन ने उसके पीछे घोड़ा दौड़ा दिया|

संसार में किसी का कुछ नहीं| ख्वाहमख्वाह अपना समझना मूर्खता है, क्योंकि अपना होता हुआ भी, कुछ भी अपना नहीं होता| इसलिए हैरानी होती है, घमण्ड क्यों? किसलिए? किसका? कुछ रुपये दान करने वाला यदि यह कहे कि उसने ऐसा किया है, तो उससे बड़ा मुर्ख और कोई नहीं और ऐसे भी हैं, जो हर महीने लाखों का दान करने हैं, लेकिन उसका जिक्र तक नहीं करते, न करने देते हैं| वास्तव में जरूरतमंद और पीड़ित की सहायता ही दान है, पुण्य है| ऐसे व्यक्ति पर सरस्वती की सदा कृपा होती है|

वृन्दावन में एक भक्त को बिहारी जी के दर्शन नहीं हुए| लोग कहते कि अरे! बिहारी जी सामने ही तो खड़े हैं| पर वह कहता कि भाई! मेरे को तो नहीं दिख रहे! इस तरह तीन दिन बीत गये पर दर्शन नहीं हुए|

एक जवान बाप अपने छोटे पुत्र को गोद में लिये बैठा था| कहीं से उड़कर एक कौआ उनके सामने खपरैल पर बैठा गया| पुत्र ने पिता से पूछा- ‘यह क्या है?’

अर्जुन ने अपने-आपको श्रीकृष्ण को समर्पित कर दिया था| अर्जुन होता हुआ भी, नहीं था, इसलिए कि उसने जो कुछ किया, अर्जुन के रूप में नहीं, श्रीकृष्ण के सेवक के रूप में किया| सेवक की चिंता स्वामी की चिंता बन जाती है|

दातादीन अपने लड़के गोपाल को नित्य शाम को सोने से पहले कहानियाँ सुनाया करता था| एक दिन उसने गोपाल से कहा- ‘बेटा! एक बात कभी मत भूलना कि भगवान् सब कहीं हैं|

भीम को यह अभिमान हो गया था कि संसार में मुझसे अधिक बलवान कोई और नहीं है| सौ हाथियों का बल है उसमें, उसे कोई परास्त नहीं कर सकता… और भगवान अपने सेवक में किसी भी प्रकार का अभिमान रहने नहीं देते| इसलिए श्रीकृष्ण ने भीम के कल्याण के लिए एक लीला रच दी|

गृहस्थी में रहने वाले एक बड़े अच्छे त्यागी पंडित थे| त्याग साधुओं का ठेका नहीं है| गृहस्थमें, साधुमें, सभी में त्याग हो सकता है| त्याग साधु वेष में ही हो; ऐसी बात नहीं है| पण्डित जी बड़े विचारवान थे| भागवत की कथा कहा करते थे|  एक धनी आदमी ने उनसे दीक्षा ली और कहा-‘महाराज! कोई सेवा बताओ|’

दुर्गादास था तो धनी किसान; किन्तु बहुत आलसी था| वह न अपने खेत देखने जाता था, न खलिहान| अपनी गाय-भैंसों की भी वह खोज-खबर नहीं रखता था| सब काम वह नौकरों पर छोड़ देता था|