Homeशिक्षाप्रद कथाएँममता से बड़ा कर्तव्य

ममता से बड़ा कर्तव्य

ममता से बड़ा कर्तव्य

“हाँ देवी|” हरिश्चंद्र ने जैसे छाती पर पत्थर रखकर कहा, “लेकिन मै कर्तव्य से विवश हूं|श्मशान का कर तुम्हें चुकाना ही होगा|”

“ममता से बड़ा कर्तव्य” सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio

“पर मैं कर कहां से दूं स्वामी? आप देख ही रहे हैं कि मैंने पहले ही अपनी आधी साड़ी  फाड़कर अपने पुत्र के मृत शरीर को ढका हुआ है|” रानी ने कातर स्वर में कहा|

“तुम चाहो तो अपनी साड़ी का आधा भाग कर के रूप में चूका कर अपने पुत्र का दाह कर सकती हो|” हरिश्चंद्र बोले, “किन्तु बिना कर चुकाए मै तुम्हें इसको जलाने नहीं दूंगा| मेरे स्वामी का ऐसा ही आदेश है|”

रानी का हाथ अपनी साड़ी की ओर बढ़ा, तभी एक अनहोनी-सी बात हो गई| पीछे से एक हाथ ने शैव्या का हाथ पकड़ लिया|