एक व्यक्ति पशु -पक्षियों का व्यापार किया करता था। एक दिन उसे पता चला कि उसके गुरु को पशु-पक्षियों की बोली की समझ है। उसने सोचा कि यदि उसे भी यह विद्या मिल जाए तो वह उसके लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। वह अपने गुरु के पास गया, उनकी खूब सेवा की और उनसे पशु-पक्षियों की बोली सिखाने का आग्रह किया। गुरु ने उसे यह विद्या सिखा दी। पर यह भी चेतावनी दी कि वह अधिक लोभ न करे और अपने फायदे के लिए किसी का नुकसान न करे।
अनाज के एक भण्डार के ढेर में सारे चूहे भय में जीते थे| उस क्षेत्र में एक बड़ी और मोटी बिल्ली रहती थी| जब-जब वह भण्डार में आती थी और कुछ चूहों को पकड़ कर खा जाती थी| वे उस बिल्ली से डरे हुए थे, जो चुपके से आती और बिना आवाज किये आसानी से चूहे पकड़ लेती थी|
प्राचीन काल में तक्षशिला नगरी में चंद्रहास नाम का एक राजा राज्य करता था| उसके पुत्र सोमेश्वर और राज्य के प्रधानमंत्री के पुत्र सोमेश्वर और राज्य के प्रधानमंत्री के पुत्र इन्द्रदत्त में बहुत घनिष्टता थी|
यह उन दिनों की बात है जब शंकराचार्य 8 साल की उम्र में आश्रम में रहकर विद्याध्ययन कर रहे थे। प्रतिभा के धनी शंकराचार्य से उनके गुरु और दूसरे शिष्य अत्यंत प्रभावित थे।
एक बार एक चील एक खरहे के पीछे पड़ी थी| खरहा भ्रमर के पास भागा| भ्रमर ने चील से विनती कीकि वह खरगोश को न पकड़े| चील नहीं मानी, वह शिकार पर झपटी उसे लेकर उड़ गयी| भ्रमर उसकी रक्षा न कर सका|
प्राचीन काल की बात है, रुरु नामक एक मुनि-पुत्र था| वह सदा घूमता रहता था| एक बार वह घूमता हुआ स्थूलकेशा ऋषि के आश्रम में पहुंचा| वहां एक सुंदर युवती को देख वह उस पर आसक्त हो गया|
एक राजकुमार को वृद्धों से घृणा थी। वह कहा करता था, ‘बूढ़ों की बुद्धि कुंठित हो जाती है। वे सदा बेतुकी बातें किया करते हैं। वे किसी काम के नहीं होते।’ उसके दरबारी भी उसकी हां में हां मिलाते रहते थे। एक बार राजकुमार अपने कुछ सैनिकों के साथ शिकार खेलने गया। युवराज का स्पष्ट निर्देश था कि किसी बुजुर्ग व्यक्ति को साथ न ले जाया जाए।
एक शेर बहुत बूढ़ा, दुबला और कमजोर हो गया था| अब वह शिकार करने में असमर्थ था| उसने एक योजना बनायी| उसने चारों तरफ खबर फैला दी कि वह बहुत बीमार है और मरने के निकट है| वह आनेवालों की प्रतीक्षा करने लगा|
किसी समय में गंगा तट पर माकंदिका नाम की एक नगरी थी| वहां एक साधु रहता था, जिसने मौनव्रत धारण किया था| भिक्षा मांगना ही उसकी आजीविका का साधन था|
एक राज्य का राजा बेहद कठोर और जिद्दी था। वह एक बार जो निर्णय ले लेता था, उसे बदलने को तैयार नहीं होता था। एक बार उसने प्रजा पर भारी कर लगाने की योजना मंत्रिमंडल के सामने रखी। मंत्रियों को यह प्रस्ताव अन्यायपूर्ण लगा। उसने इससे अपनी असहमति जताई। राजा क्रोधित हो उठा। उसने मंत्रिपरिषद को समाप्त करने का फैसला किया। यही नहीं, उसने सारे मंत्रियों के देश निकाले का आदेश दे दिया। मंत्री घबराए। वे समझ नहीं पा रहे थे कि इस स्थिति का सामना कैसे किया जाए।
एक समय की बात है| एक कृपण अपने धन को बहुत प्यार करता था| वह खर्च नहीं करता था| उसने अपने धन को सोने में बदल रखा था| घर में रखने से डरता थ, इसलिए बगीचे में घर के पिछवाड़े एक गड्ढे में गाड़ रखा था| कभी-कभी खोदकर, निकालकर आश्वस्त हो लेता कि सोना सुरक्षित है|
प्राचीन काल में रुद्र शर्मा नामक एक ब्राह्मण की दो पत्नियां थीं| दुर्भाग्य से बच्चे को जन्म देते समय बड़ी पत्नी की मृत्यु हो गई, किंतु उससे उत्पन्न पुत्र बच गया, जिसका पालन-पोषण रुद्र शर्मा की छोटी पत्नी करने लगी|
भगवान बुद्ध श्रावस्ती में ठहरे हुए थे। वहां उन दिनों भीषण अकाल पड़ा था। यह देखकर बुद्ध ने नगर के सभी धनिकों को बुलाया और कहा, ‘नगर की हालत आप लोग देख ही रहे हैं। इस भयंकर समस्या का समाधान करने के लिए आगे आइए और मुक्त हाथों से सहायता कीजिए।’ लेकिन गोदामों में बंद अनाज को बाहर निकालना सहज नहीं था। श्रेष्ठि वर्ग की करुणा जाग्रत नहीं हुई। उन्होंने उन अकाल पीडि़त लोगों की सहायता के लिए कोई तत्परता नहीं दिखाई।
एक दिन एक खरगोश अपना घर छोड़कर निकट के खेत में भोजन के लिए गया| इसी बीच एक नेवले ने उसके घर में घुसकर अपना अधिकार जमा लिया| जब खरगोश लौटा, तब घर में नेवले को पाया|
इस पृथ्वी पर भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा नगरी है| वहां रूपणिका नाम की एक वेश्या रहती थी| उसकी मां मकरदंष्ट्रा बड़ी ही कुरूप और कुबड़ी थी| वह कुटनी का कार्य भी करती थी| रूपणिका के पास आने वाले युवक उसकी मां को देखकर बड़े दुखी होते थे|
पुराने समय में महासेन नाम का एक अत्यंत वीर राजा था| दुर्भाग्य से एक बार वह युद्ध में शत्रु से हार गया| उसके मंत्री बड़े स्वार्थी थे, जिसके कारण उसे शत्रु राजा से दंडित भी होना पड़ा|
एक गुरुकुल में दो राजकुमार पढ़ते थे। दोनों में गहरी मित्रता थी। एक दिन उनके आचार्य दोनों को घुमाने ले गए। घूमते हुए वे काफी दूर निकल गए। तीनों प्राकृतिक शोभा का आनंद ले रहे थे। तभी आचार्य की नजर आम के एक पेड़ पर पड़ी। एक बालक आया और पेड़ के तने पर डंडा मारकर फल तोड़ने लगा। आचार्य ने राजकुमारों से पूछा, ‘क्या तुम दोनों ने यह दृश्य देखा?’
कुत्तों के एक दल को कई दिनों तक कुछ भी खाने को नहीं मिला| भूखे कुत्ते भोजन की खोज में इधर-उधर भटकते रहे| भूख से उनकी हालत दयनीय हो गयी थी| अंत में वे एक तालाब के पास पहुँचे, जिसके तल में चमड़ा फुलाया गया था| चमड़े को निकालने का उन्होंने अनथक प्रयास किया, मगर वे सफल न हुए|
बहुत समय पहले हरिद्वार के कनखल क्षेत्र में एक दक्षिण भारतीय ब्राह्मण रहता था| उसके तीन बेटे थे| युवा होने पर ब्राह्मण ने उन्हें विद्या प्राप्त करने के लिए राजगृह भेज दिया| जब वे तीनों अपनी शिक्षा पूरी करके घर लौटे तो कुछ ही दिन पश्चात उनके पिता का देहांत हो गया|
साबरमती आश्रम के लिए जगह की तलाश में गांधीजी एक दिन वर्धा से पांच किलोमीटर ऊंची पहाड़ी पर गए। वहां एक झुग्गी बस्ती थी। गांधीजी को पता चला कि यह एक हरिजन बस्ती है। उन्होंने कहा, ‘साबरमती आश्रम के लिए यह उपयुक्त जगह है।’ जमनालाल बजाज उनके साथ थे। उन्होंने कहा, ‘लेकिन यहां बहुत गंदगी है।’ गांधी जी बोले, ‘यहां देश की आत्मा बसती है, इसलिए हरिजन बस्ती के फायदे के लिए यहां आश्रम बनाना ठीक रहेगा।’
वृद्ध और अंधे महर्षि च्यवन ने अपनी युवा पत्नी सुकन्या से कहा, “तुम युवा हो और एक लम्बा जीवन तुम्हारे सामने है| तुम किसी युवक से विवाह कर लो|”
प्राचीन काल में गंगातट पर बसे एक गांव बहुसुवर्ण में गोविंद दत्त नाम का एक ब्राह्मण रहता था| वह प्रकांड विद्वान और शास्त्रों का ज्ञाता था| उसकी पत्नी अग्निदत्ता परम पतिव्रता स्त्री थी|
प्राचीन समय की बात है| युवक मूलशंकर, ‘ब्रह्मचारी शुद्ध चैतंय’ बनकर ज्ञानार्जन के लिए, सच्चे शिव की खोज में किसी अच्छे गुरु से दीक्षा ग्रहण करने के लिए देशाटन कर रहे थे कि एक दिन उन्होंने देखा कि कुछ लोग गाजे-बाजे के साथ जा रहे थे|
महाराज युधिष्ठिर ध्यानमग्न बैठे थे। जब उन्होंने आंखें खोलीं, तो द्रौपदी ने कहा, ‘धर्मराज! आप भगवान का इतना ध्यान करते हैं, उनका भजन करते हैं, फिर उनसे यह क्यों नहीं कहते कि हमारे संकटों को दूर कर दें। इतने सालों से हम वन में भटक रहे हैं। इतना कष्ट होता है, इतना क्लेश। कभी पत्थरों पर रात बितानी होती है तो कभी कांटों में। कहीं प्यास बुझाने को पानी नहीं मिलता, तो कभी भूख मिटाने को भोजन नहीं। इसलिए भगवान से कहिए कि वे हमारे कष्टों का अंत करें।’
जब शिक्षा पूरी हो गयी, तब शिष्यों ने आचार्य से दक्षिणा माँगने के लिए कहा| पहले तो आचार्य ने माँगना न चाहा, किन्तु शिष्यों के बार-बार आग्रह करने पर उन्होंने कहा, “कोई ऐसी चीज लाओ, जब कोई देखे नहीं|”
प्राचीन काल में कान्यकुब्ज (वर्तमान कन्नौज) नगर में शूरदत्त नाम का एक ब्राह्मण रहता था| वह सौ गांवों का स्वामी था|
रायचंद जवाहरात के बहुत बड़े व्यापारी थे। उनकी ईमानदारी प्रसिद्ध थी। अपने व्यापार में वह किसी प्रकार की अनीति नहीं करते थे। वह दूसरे व्यापारियों के हितों का भी ध्यान रखते थे। एक बार उन्होंने किसी व्यापारी से जवाहरात का सौदा किया। उसका भाव तय हो गया और यह भी तय हो गया कि अमुक समय के भीतर उस आदेश की पूर्ति होगी।
एक राजा को एक मन्त्री की आवश्यकता थी| उसने घोषणा की, “जो तालाब के जमवत को बिना पानी में उतारे हुए बाँध देगा वही मन्त्री होगा|”
प्राचीन काल में पाटलिपुत्र में वररुचि नाम का एक विद्वान ब्राह्मण युवक रहता था| वह भगवान शिव का परम भक्त था और प्रतिदिन नियमपूर्वक भगवान शिव के मंदिर में जाकर उनकी आराधना किया करता था|
एक बार काशी के निकट के एक इलाके के नवाब ने गुरु नानक से पूछा, ‘आपके प्रवचन का महत्व ज्यादा है या हमारी दौलत का?‘ नानक ने कहा, ‘इसका जवाब उचित समय पर दूंगा।’ कुछ समय बाद नानक ने नवाब को काशी के अस्सी घाट पर एक सौ स्वर्ण मुद्राएं लेकर आने को कहा। नानक वहां प्रवचन कर रहे थे।