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मनुष्य का कर्त्तव्य

रायचंद जवाहरात के बहुत बड़े व्यापारी थे। उनकी ईमानदारी प्रसिद्ध थी। अपने व्यापार में वह किसी प्रकार की अनीति नहीं करते थे। वह दूसरे व्यापारियों के हितों का भी ध्यान रखते थे। एक बार उन्होंने किसी व्यापारी से जवाहरात का सौदा किया। उसका भाव तय हो गया और यह भी तय हो गया कि अमुक समय के भीतर उस आदेश की पूर्ति होगी।

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इसकी लिखा-पढ़ी हो गई और दस्तावेज पर दोनों पक्षों के हस्ताक्षर हो गए। संयोग से इस अवधि में जवाहरात का भाव बढ़ गया। इस भाव पर यदि वह व्यापारी माल देता तो उसे भारी हानि होती। बेचारा व्यापारी संकट में पड़ गया, पर उसे अपना वचन तो निभाना ही था।

रायचंद को जवाहरात के मूल्य बढ़ जाने की बात मालूम हुई तो वह उस व्यापारी की दुकान पर गए। लेकिन रायचंद कुछ कहें, उससे पहले ही व्यापारी ने कहा, ‘सेठजी विश्वास रखिए, मैं अपने वादे को हर हाल में पूरा करूंगा।’ रायचंद ने कहा, ‘मैं जानता हूं कि आप अपने वादे को हर हाल में पूरा कर देंगे, लेकिन मैं यह भी जानता हूं कि आप चिंतित हैं। चिंता का मुख्य कारण वह दस्तावेज है, जिस पर हम दोनों ने हस्ताक्षर किए हैं। यदि इस दस्तावेज को नष्ट कर दिया जाए तो चिंता का अपने आप अंत हो जाएगा।’ व्यापारी ने कहा, ‘नहीं नहीं, ऐसा करने की जरूरत नहीं है, मुझे केवल दो दिन का समय दीजिए।’ पर रायचंद ने दस्तावेज निकाला और टुकड़े-टुकड़े करके फेंकते हुए कहा, ‘यह करार हमारे हाथ पैर बांधता था। इस सौदे में भाव बढ़ जाने से मेरे साठ-सत्तर हजार रुपये आपकी ओर निकलते हैं। आपकी वर्तमान स्थिति मैं जानता हूं। आप कहां से देंगे इतनी बड़ी राशि? मेरे भाई, मैं दूध पी सकता हूं, खून नहीं।’ व्यापारी अवाक रह गया। उसने रायचंद के चरण पकड़ लिए। रायचंद ने उसे सीने से लगाते हुए कहा, ‘आड़े समय में एक दूसरे की सहायता करना मनुष्य का सबसे बड़ा कर्त्तव्य है।’