पूर्व समय की बात है, संपूर्ण देवता और तपोधन ऋषिगण जब कार्य आरंभ करते तो उसमें उन्हें निश्चय ही सिद्धि प्राप्त हो जाती थी| कालांतर में ऐसी स्थिति आ गई कि अच्छे मार्ग पर चलने वाले लोग विघ्न का सामना करते हुए किसी प्रकार कार्य में सफलता पाने लगे और निकृष्ट कार्यशील व्यक्ति की कार्य-सिद्धि में कोई विघ्न नही आता था|
किसी नगर में एक जुलाहा रहता था| वह बहुत बढ़िया कम्बल तैयार करता था| कत्तिनों से अच्छी ऊन खरीदता और भक्ति के गीत गाते हुए आनंद से कम्बल बुनता| वह सच्चा था, इसलिए उसका धंधा भी सच्चा था, रत्तीभर भी कहीं खोट-कसर नहीं थी|
किसी छोटे से गाँव में, एक किसान को बदकिस्मती से गाँव के साहूकार से कुछ धन उधार लेना पड़ा। बूढा साहूकार बहुत चालाक और धूर्त था, उसकी नज़र किसान की खूबसूरत बेटी पर थी। अतः उसने किसान से एक सौदा करने का प्रस्ताव रखा। उसने कहा कि अगर किसान उसकी बेटी की शादी साहूकार से कर दे तो वो किसान का सारा कर्ज माफ़ कर देगा। किसान और उसकी बेटी, साहूकार के इस प्रस्ताव से कंपकंपा उठे।
राजा धृतराष्ट्र ने विवश होकर निश्चय किया की वे भीष्म की सलाह मानेंगे| उन्होंने विदुर को भेजकर पांडवों को हस्तिनापुर में रहने के लिए आमंत्रित किया| पांडव, माता कुंती और कृष्ण के साथ हस्तिनापुर आ गए|
प्राचीन काल में अश्वशिरा नामक एक परम धार्मिक राजा थे| उन्होंने अश्वमेघ यज्ञ के द्वारा भगवान् नारायण का यजन किया था, जिसमें बहुत बड़ी दक्षिण बाँटी गई| यज्ञ की समाप्ति पर राजा ने अवभृथ-स्नान किया| इसके पश्चात् वे ब्रह्मणों से घिरे हुए बैठे थे, उसी समय भगवान् कपिल देव वहाँ पधारे|
वे सवेरे-सवेरे टहल कर लौटे तो कुटिया के बाहर एक दीन-हीन व्यक्ति को पड़ा पाया| उसके शरीर से मवाद बह रहा था| वह कुष्ठ रोग से पीड़ित था|
अकबर के दरबार में श्रीपति नाम का कवि था। दूसरे दरबारी अकबर की प्रशंसा करते थे, जबकि वह श्रीराम का ही गुणगान करता था। फिर भी अकबर उसे पुरस्कार देते थे। इससे दरबारी उससे जलने लगे थे।
पांडवों ने अब पांचाल का रास्ता पकड़ा| वहां के राजा द्रुपद (जिन्हें अर्जुन, द्रोण के सामने बंदी बनाकर लाये थे) की कन्या, राजकुमारी द्रौपदी का स्वयंवर होने वाला था|
‘मृत्यु क्या कर सकती है? मैंने मृत्युंजय शिव की शरण ली है|’ श्वेत मुनि ने पर्वत की निर्जन कंदरा में आत्मविश्वास का प्रकाश फैलाया| चारों ओर सात्विक पवित्रता का ही राज्य था, आश्रम में निराली शांति थी| मुनि की तपस्या से वातावरण की दिव्यता बढ़ गई|
एक राक्षस था| उसने एक आदमी को अपनी चाकरी में रखा आदमी बड़ा भला था, राक्षस जो भी कहता वह फौरन कर देता, लेकिन राक्षस तो राक्षस ठहरा! उसे इतने से ही संतोष न होता| वह बात-बात पर आंखें फाड़कर कहता – “काम में जरा-भी ढील हुई तो मैं तुझे जिंदा नहीं छोडूंगा|”
किसी नगर में एक आदमी रहता था| वह पढ़ा-लिखा और चतुर था| एक बार उसमें धन कमाने की लालसा पैदा हुई| उसके लिए उसने प्रयत्न आरंभ किया| देखते-देखते उसके पास लाखों की संपदा हो गई, पर उसके पास ज्यों-ज्यों पैसा आता गया, उसका लोभ बढ़ता गया| साथ ही धन का ढेर भी ऊंचा होता गया|
कदीशा की घाटी में, जिसमें होकर एक वेगवती नदी बहती थी, दो छोटे-छोटे जल प्रवाह आ मिले और परस्पर बातचीत करने लगे। एक जल प्रवाह ने पूछा- मेरे मित्र! तुम्हारा कैसे आना हुआ, रास्ता ठीक था न? दूसरे ने उत्तर दिया- रास्ते की न पूछो बड़ा ही बीहड़ था।
एक बार की बात है भारतीय दूरदर्शन या टेलीविजन का पहला कार्यक्रम था| टेली-क्लब के सदस्य एवं कुछ आमंत्रित एकत्रित हुए थे| प्रोड्यूसर श्री देशपांडे ने कार्यक्रम की पूरी तैयारी की हुई थी, पर सारा कार्यक्रम जम नहीं रहा था|
चलते-चलते पांडवों एकचक्र नामक नगर पहुंचे| वहां एक गरीब ब्राह्मण के घर उन्हें शरण मिली| धीरे-धीरे दिन गुजर रहे थे| एक दिन कुंती ने ब्राह्मण और ब्राह्मणी को विलाप करते देखा और पूछा, “आप इतने दुखी क्यों हैं?” ब्राह्मणी ने उत्तर दिया, “इस नगरी के पास बका नामक एक राक्षस रहता है|
एक बार ऋषियों ने सूत जी से पूछा- ‘भगवान्! आप ऐसा उपाय बताएँ, जिससे सभी पापों से छुटकारा मिल जाए, अलक्ष्मी (दरिद्रा) छोड़ कर चली जाए और निरंतर लक्ष्मी का निवास हो|’ सूत जी ने कहा- ‘ऋषियों! इसके लिए मनुष्य को निरंतर विहित कर्म करते हुए भगवान् के नाम का जप करना चाहिए|
एक आदमी था| वह एक महात्मा के पास गया और बोला – “महाराज, मैं ईश्वर के दर्शन करना चाहता हूं, करा दीजिए|”
किसी नगर में एक आदमी रहता था| वह पढ़ा-लिखा और चतुर था| एक बार उसमें धन कमाने की लालसा पैदा हुई| उसके लिए उसने प्रयत्न आरंभ किया| देखते-देखते उसके पास लाखों की संपदा हो गई, पर उसके पास ज्यों-ज्यों पैसा आता गया, उसका लोभ बढ़ता गया| साथ ही धन का ढेर भी ऊंचा होता गया|
रसायनशास्त्री नागार्जुन एक राज्य के राज वैद्य थे। एक दिन उन्होंने राजा से कहा, ‘मुझे एक सहायक की जरूरत है।’ राजा ने उनके पास दो कुशल युवकों को भेजा और कहा कि उनमें से जो ज्यादा योग्य लगे उसे रख लें। नागार्जुन ने दोनों की कई तरह से परीक्षा ली पर दोनों की योग्यता एक जैसी थी। नागार्जुन दुविधा में पड़ गए कि आखिर किसे रखें।
पांडव जलते हुए लाक्षागृह से बचकर, सुरंग के रास्ते, अधंकार में चलते रहे और गंगा नदी के तट पर जा पहुँचे| वहां विदुर द्वारा भेजा हुआ नाविक उनकी प्रतीक्षा कर रहा था| नदी पार करने के बाद उन सबको दूर तक पैदल चलना पड़ा| कुंती जब थक जातीं तब विशालकाय भीम उन्हें कन्धों पर उठा लेते| भीम इतने शक्तिशाली थे कि कई बार वे चारों भाइयों और कुंती को एक साथ उठा लेते थे|
त्रेतायुग में कौशिक नाम के एक ब्राहमण थे| भगवान् में उनका अत्यधिक अनुराग था| खाते-पीते, सोते-जागते प्रतिक्षण उनका मन भगवान् में लगा रहता था| उनकी साधना का मार्ग था संगीत| वे भगवान् के गुणों और चरित्रों को निरंतर गाया करते थे| ये सभी गान प्रेमार्द्र-ह्रदय से उपजे होते थे|
कौशिक के स्वागत-समारोह में नारद जी को जो लक्ष्मी-नारायण के समीप से दूर हटाया गया था और उनकी जगह तुम्बुरु को बैठाया गया था, वह नारद जी को बहुत ही खला| वे समझ गए कि मेरा इतना बड़ा अध्ययन, इतनी बड़ी तपस्या आदि सब कुछ संगीत के सामने तुच्छ- सा हो गया| इस पर वे भी संगीत के ज्ञान के लिए उत्सुक हो गए और घोर तप करने लगे|
किसी नगर में एक आदमी रहता था| वह पढ़ा-लिखा और चतुर था| एक बार उसमें धन कमाने की लालसा पैदा हुई| उसके लिए उसने प्रयत्न आरंभ किया| देखते-देखते उसके पास लाखों की संपदा हो गई, पर उसके पास ज्यों-ज्यों पैसा आता गया, उसका लोभ बढ़ता गया| साथ ही धन का ढेर भी ऊंचा होता गया|
संत तुकोजी महाराज अपने प्रिय शिष्यों के साथ भजन-कीर्तन में मग्न रहा करते थे। सभी के प्रति सद्भावना और शुभ चिंतन ही उनका धर्म था। एक बार उनके प्रति आस्था रखने वाले एक व्यक्ति ने अपनी दुकान का नाम गुरुदेव सैलून रख दिया। संतजी के एक अन्य शिष्य रामचंद्र ने जब यह सुना तो वह क्रोधित हो उठा। संतजी के सामने ही वह बड़बड़ाते हुए बोला- यह तो आपका अपमान है।
जिन दिनों पांडव, कौरव राजकुमारों के साथ हस्तिनापुर में रहते थे, दुर्योधन को उनका वहां रहना तनिक न सुहाता था| पांडवों को देखकर उसका रोम-रोम जल उठता परंतु वह कुछ कर नहीं पाता|
एक माँ चाहे तो अपना बेटा ऐसा बना सकती है कि बकरी से भी बच्चा डर जाए और ऐसा बहादुर भी बना सकती है कि वह शेर को भी मार दे|
किसी गांव में एक ब्राह्मण रहा करता था| वह बड़ा भला आदमी था, लेकिन साथ ही काम को टाला करता था| वह यह मानकर चलता था कि जो कुछ होता है, भाग्य से होता है, वह अपने हाथ-पैर नहीं हिलाता था|
राजकुमार सिद्धार्थ सुंदरी पत्नी यशोधरा, दूध पीते बालक राहुल और कपिलवस्तु का राजपाट त्यागकर तपस्या के लिए चल पड़े|
एक दार्शनिक ने पढ़ा- वास्तव में सौंदर्य ही विश्व की सबसे बड़ी विभूति है। भक्ति, ज्ञान, कर्म और उपासना आदि परमात्मा को पाने के तुच्छ मार्ग हैं। सही मार्ग तो सौंदर्य ही है।
कुंती यादवों के राजा कुंतीभोज की पुत्री थी| बाल्यावस्था से ही कुंती अपनी सुन्दरता, धर्म और सदाचार के लिए प्रसिद्ध थी| एक बार ऋषि दुर्वासा राजा कुंतीभोज के यहाँ रहने आये| वे एक वर्ष तक रहे| कुंती ने उनकी बहुत सेवा की| कुंती की सेवा से प्रसन्न होकर उन्होंने उसे एक मन्त्र सिखाया जिससे देवताओं का आह्वान हो सकता था|
हस्तिनापुर के राजभवन में कौरवो और पांडव राजकुमार एक साथ रहते थे| भीष्म और विदुर उनकी देखभाल किया करते थे| भीष्म की राजकुमारों को धनुर्विद्या का ज्ञान देने के लिए उपयुक्त शिक्षक की आवश्कता थी|