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कषायों का बोझ

एक आदमी था| वह एक महात्मा के पास गया और बोला – “महाराज, मैं ईश्वर के दर्शन करना चाहता हूं, करा दीजिए|”

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महात्मा ने कहा – “अच्छा, कल सवेरे आना|”

अगले दिन वह आदमी महात्मा के पास पहुंचा तो महात्मा ने उसे पांच-पांच सेर के पांच पत्थर दिए और कहा – “इन्हें एक गठरी में बांधकर सिर पर रखो ओर सामने के पहाड़ की चोटी पर चलो|”

आदमी ने पत्थर उठा लिए और चढ़ाई शुरू कर दी| कुछ ही कदम चलने पर वह थक गया| बोला – “महाराज, अब नहीं चढ़ा जाता|”

महात्मा ने कहा – “अच्छा, एक पत्थर फेंक दो|”

आदमी ने गठरी खोलकर एक पत्थर फेंक दिया| बोझ थोड़ा हल्का हो गया, पर कुछ कदम बढ़ते ही वह फिर परेशान हो गया|

उसने महात्मा से कहा तो उसने एक पत्थर और फिंकवा दिया|

इसके बाद तीसरा, फिर चौथा, फिर पांचवां पत्थर भी फेंक दिया गया और इस तरह वह पहाड़ की चोटी पर पहुंच गया|

चोटी पर खड़े होकर उस आदमी ने कहा – “महाराज हम ऊपर आ गए, अब तो ईश्वर के दर्शन कराइए|”

महात्मा ने कहा – “भले आदमी! पांच-पांच सेर के पांच पत्थर सिर पर रखकर तुम पहाड़ पर नहीं चढ़ सके और काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार का मनों बोझ लेकर ईश्वर के दर्शन करना चाहते हो!”

उस आदमी की समझ में महात्मा की बात अच्छी तरह आ गई|

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