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ताजे गुलाब जैसी ताजगी

ताजे गुलाब जैसी ताजगी

एक बार की बात है भारतीय दूरदर्शन या टेलीविजन का पहला कार्यक्रम था| टेली-क्लब के सदस्य एवं कुछ आमंत्रित एकत्रित हुए थे| प्रोड्यूसर श्री देशपांडे ने कार्यक्रम की पूरी तैयारी की हुई थी, पर सारा कार्यक्रम जम नहीं रहा था|

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सब बेचैन हो रहे थे| उसी समय अचानक एक वृद्ध सज्जन कार्यक्रम की नीरसता को खत्म कर घने काले बादलों से एक चमकती हुई ज्योति की तरह वहाँ आमंत्रित प्रधानमंत्री नेहरुजी से पूछ बैठे- “पंडितजी आप 70 वर्ष से ऊपर के हो गए और मैं भी 70 से ऊपर की उम्र का हूँ, लेकिन पता नहीं क्या कारण है कि आप तो ताजे गुलाब के फूल जैसे तरो-ताजा दिख रहे हैं और मैं एक गिरते पीले सूखे पत्ते की तरह?”

इस अटपटे सवाल से एक क्षण के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरु सकपका से गए| एक तरह की उलझन उनके चेहरे पर दिखाई दी| परंतु, तुरंत संभलकर हँसते मुख से आकाशवाणी के स्टूडियो की दीवारों को लांघकर समाज और युग को पुकारते हुए युगपुरुष के रुप में बोल उठे- “शायद तीन बातें हैं, जिनसे मैं बूढ़ा नहीं हुआ| पहली बात तो यह है कि सब बच्चों में बच्चों की तरह मैं हिल-मिल जाता हूँ| और दूसरी बात यह है कि मेरा मन आस-पास की छोटी चीजों में नहीं उलझता, सदा हिमालय में रम जाता है, हिमालय की बर्फीली चोटियों उसके घने जंगलों और वहाँ की निर्मल हवा से मुझे सदा नए प्राण मिलते हैं, आखिरी और  तीसरी बात यह है कि मैं छोटी-छोटी और ओछी किस्म की बातों से ऊपर उठ सकता हूँ| उनका मेरी बुद्धि या प्रतिभा पर कोई असर नहीं पड़ता| मैं जिंदगी, दुनिया और सब सवालों को ऊँची नजर से देखने की कोशिश करता हूँ, इसीलिए मेरी सेहत और विचार ढीले-ढाले नहीं होते|”

शायद यही तीन कारण थे कि 70 वर्ष से अधिक उम्र होने के बावजूद पंडित नेहरु बूढ़े नहीं हुए थे और ताजे गुलाब के फूल जैसे ताजे दिखते थे| इस प्रकार हर व्यक्ति को भी इन्हीं तीनों बातों का पालन करना चाहिए| मनुष्य अपने विचारों के कारण ही बूढ़ा या जवान दिखाई पड़ता है|

बकासुर