सर्पदंश से रोहिताश्व की मृत्यु
उधर रानी दिन-रात ब्राह्मण के घर काम में जुटी रहती थी| ब्राह्मण उसके बेटे रोहिताश्व को भी काम बताता रहता था| एक दिन उसने रोहिताश्व को बगीचे से पूजा के फूल लेन को भेजा, जहां एक विषैले सर्प ने उसे डस लिया|
उधर रानी दिन-रात ब्राह्मण के घर काम में जुटी रहती थी| ब्राह्मण उसके बेटे रोहिताश्व को भी काम बताता रहता था| एक दिन उसने रोहिताश्व को बगीचे से पूजा के फूल लेन को भेजा, जहां एक विषैले सर्प ने उसे डस लिया|
प्राचीनकाल की बात है | तब वहां पेड़ों में पत्ते नहीं हुआ करते थे | पशु, पक्षी, मानव सभी को बिना पत्तों के पेड़ देखने की आदत थी | तब उन सभी की आदतें व मौसम सहने की शक्ति उसी के अनुसार होती थी | तब सर्दी के मौसम में बहुत तेज हवा नहीं चल पाती थी, क्योंकि पत्तियों के अभाव में हवा की तेजी बढ़ ही नहीं पाती थी | ठीक इसी प्रकार गर्मियों में सभी लोग गर्मी से बचने के लिए कोई न कोई इंतजाम कर लेते थे, क्योंकि पत्तों के बिना पेड़ छायादार नहीं होते थे |
1 [व]
एवम उक्तस तु विमनास तिर्यग्दृष्टिर अधॊमुखः
संहत्य च भरुवॊर मध्यं न किं चिद वयाजहार ह
“Janamejaya said, ‘O utterer of Brahma, thou hast recited (everythingabout) the extraordinary birth among men, of the sons of Dhritarashtra inconsequence of the Rishi’s grace. Thou hast also said what their namesare, according to the order of their birth.
“Vaisampayana said, ‘King Dhritarashtra endued with great wisdom (then)said to the orderly-in-waiting, ‘I desire to see Vidura. Bring him herewithout delay.’
“Vaisampayana said Yudhishthira, the son of Kunti, once more asked thegreat Muni Markandeya about the future course of the government of theEarth.
चुगली करना, इधर-उधर बात फैलाना, द्वेष पैदा करना, कलह करवाना-यह महान हत्या है, बड़ा भारी पाप है| एक नौकर मुसलमान के यहाँ जाकर रहा| रहने से पहले उसने कह दिया कि मेरी इधर-की-उधर करने की आदत है, पहले ही कह दिया हूँ! मियाँ ने सोचा कि कोई परवाह नहीं, ‘मियाँ बीबी राजी तो क्या करेगा काजी’ और रख लिया उसे|
“Brahmana said, ‘I shall, after this discourse to you on that excellentquality which is the third (in the order of our enumeration).
1 [य]
यौ तु सयातां चरणेनॊपपन्नौ; यौ विद्यया सदृशौ जन्मना च
ताभ्यां दानं कतरस्मै विशिष्टम; अयाचमानाय च याचते च