HomePosts Tagged "भक्त तुलसीदास जी दोहावली"

कहिबे कहं रसना रची सुनिबे कहं किये कान|
धरिबे कहं चित हित सहित परमारथहि सुजान||

ग्यान कहै अग्यान बिनु तम बिनु कहै प्रकास|
निरगुन कहै जो सुगन बिनु सो गुरु तुलसीदास||

रसना सांपिनी बदन बिल जे न जपहिं हरिनाम|
तुलसी प्रेम न राम सों ताहि बिधाता बाम|

तुलसी देखत अनुभवत सुनत न समुझत नीच|
चपरि चपेटे देत नित केस गहें कर मीच||