राजा हरिश्चंद्र का संसार से वैराग्य
कहते हैं कि ‘विपत्ति ही संपति की जननी है| परीक्षा के पलों में ही मनुष्य के महत्व का पता चलता है| जिसके जीवन में कठिनाईयां नहीं आतीं, उसकी आत्म-शक्ति और धैर्य की परीक्षा नहीं हो सकती|’
कहते हैं कि ‘विपत्ति ही संपति की जननी है| परीक्षा के पलों में ही मनुष्य के महत्व का पता चलता है| जिसके जीवन में कठिनाईयां नहीं आतीं, उसकी आत्म-शक्ति और धैर्य की परीक्षा नहीं हो सकती|’
अनोवा और ग्रीट्स बहुत पक्के मित्र थे | वे एक दूसरे पर जाने छिड़कने को तैयार रहते थे | उन्हीं दिनों उनको मोरियो नामक एक व्यक्ति मिला | वह भी उन लोगों से मित्रता बढ़ाने लगा |
डाकुओं का एक दल था| उनमें जो बड़ा-बूढ़ा डाकू था, वह सबसे कहता था कि ‘भाई, जहाँ कथा-सत्संग होता हो, वहाँ कभी मत जाना, नहीं तो तुम्हारा काम बंद हो जाएगा|
उधर रानी दिन-रात ब्राह्मण के घर काम में जुटी रहती थी| ब्राह्मण उसके बेटे रोहिताश्व को भी काम बताता रहता था| एक दिन उसने रोहिताश्व को बगीचे से पूजा के फूल लेन को भेजा, जहां एक विषैले सर्प ने उसे डस लिया|
प्राचीनकाल की बात है | तब वहां पेड़ों में पत्ते नहीं हुआ करते थे | पशु, पक्षी, मानव सभी को बिना पत्तों के पेड़ देखने की आदत थी | तब उन सभी की आदतें व मौसम सहने की शक्ति उसी के अनुसार होती थी | तब सर्दी के मौसम में बहुत तेज हवा नहीं चल पाती थी, क्योंकि पत्तियों के अभाव में हवा की तेजी बढ़ ही नहीं पाती थी | ठीक इसी प्रकार गर्मियों में सभी लोग गर्मी से बचने के लिए कोई न कोई इंतजाम कर लेते थे, क्योंकि पत्तों के बिना पेड़ छायादार नहीं होते थे |
चुगली करना, इधर-उधर बात फैलाना, द्वेष पैदा करना, कलह करवाना-यह महान हत्या है, बड़ा भारी पाप है| एक नौकर मुसलमान के यहाँ जाकर रहा| रहने से पहले उसने कह दिया कि मेरी इधर-की-उधर करने की आदत है, पहले ही कह दिया हूँ! मियाँ ने सोचा कि कोई परवाह नहीं, ‘मियाँ बीबी राजी तो क्या करेगा काजी’ और रख लिया उसे|
रानी अपने पुत्र को बांहों में उठाकर श्मशान में पहुंची| वंहा पहुंचकर उसके सामने यह समस्या पैदा हो गई कि वह अपने पुत्र का शवदाह कैसे करे| विवश होकर उसने अपनी आधी साड़ी फाड़ी और उसी में अपने पुत्र का शव लपेटकर चिता की ओर बढ़ी|
एक बार की बात है, एक राजा अपने देश के पड़ोस में सैर के लिए निकला | उसने देखा वहां की धरती बहुत उपजाऊ थी, चारों ओर फसलें लहलहा रही थीं | राजा मन में सोचने लगा कि कितना अच्छा होता यदि वह सुंदर और उपजाऊ क्षेत्र उसके राज्य में होता और वह उसका मालिक होता |
एक भक्त इमली के वृक्ष के नीचे बैठे कर भगवान् का भजन कर रहा था| एक दिन वहाँ नारद जी महाराज आ गये| उस भक्त ने नारद जी कहा कि आप इतनी कृपा करें की जब भगवान् के पास जाएं तब उनसे पूछ ले कि वे मुझे कब मिलेंगे? नारद जी भगवान् के पास गये और पूछा कि अमुक स्थान पर एक भक्त इमली के वृक्ष के नीचे बैठा है और भजन कर रहा है, उसको आप कब मिलेंगे?
“हाँ देवी|” हरिश्चंद्र ने जैसे छाती पर पत्थर रखकर कहा, “लेकिन मै कर्तव्य से विवश हूं|श्मशान का कर तुम्हें चुकाना ही होगा|”