बहुत पुरानी बात है| किसी पहाड़ी प्रदेश में एक राजा राज किया करता था| एक बार उसके राज्य पर दूसरे राजा ने चढ़ाई कर दी| उसे भगाने के लिए राजा ने एक सेना तैयार की| उसमें जो लोग भर्ती हुए, उन सबको उसने एक-एक तलवार दी| फिर राजा ने आदेश दिया – “आगे बढ़ो!”
कौशल नरेश मल्लिक न्यायप्रिय और शक्तिशाली राजा था| लेकिन उसे अपनी योग्यता पर बिल्कुल भी भरोसा नही था| वह सोचता, ‘लोग उसे अच्छा कहते है, क्या मैं सचमुच ही अच्छा हूँ?’
पश्चिम भारत के एक छोटे-से राज्य में, धर्मराज नामक एक बुद्धिमान और न्यायप्रिय राजा रहता था| उसकी प्रजा के मन में उसके लिए बहुत श्रद्धा और अदार था|
दो चींटियां आपस में बातें कर रही थीं। एक ने कहा- बस मुझे एक ही कष्ट है कि मेरा मुंह हर समय खारा ही रहता है। यह सुन दूसरी चींटी ने उसे मीठा पदार्थ खाने को दिया, लेकिन फिर भी उसका कष्ट दूर नहीं हुआ।
भगवती अन्नपूर्ण काशीपुरी में आ चुकी थीं| यहीं पर उन्होंने भगवान् शंकर से पूछा-‘भगवन् आप अपने भक्तों को किस उपाय से दर्शन देते हैं और उनके वश में हो जाते हैं?’
हजरत उमर के जमाने की बात है| एक बार उनके शहर में आग लग गई| आग इतने जोरों की लगी थी कि उसने शहर का बहुत बड़ा हिस्सा जला डाला| पानी से भी वह नहीं बुझी|
कुछ बदमाश एक पेड़ पर टकटकी लगाए रहते थे, जिस पर ज़हरीले फल आते थे| आम जैसे उन फलों को खाकर जो व्यक्ति मर जाता था, उसका सामान ये बदमाश आपस में बाँट लेते थे|
अली के एक गांव में एक युवक रहता था जिसका नाम था अली| अली बढ़ई का कम करता था| गांव के सब लोग उसे बहुत प्यार करते थे| वह छोटा-सा था, तभी उसके माता-पिता की मृत्यु हो गई थी| इसलिए वह अकेला ही रहता था|
जीवन दर्शन. तैमूरलंग गुलामों को बेचने का सौदा करता था। उसने गुलाम अहमदी से अपनी स्वयं की कीमत पूछी। अहमदी ने तर्कपूर्ण जवाब दिया- दो अशर्फी। अहमदी की स्पष्टवादिता से बादशाह बेहद प्रभावित हुआ।
एक बार स्वर्ग अप्सरा मोहिनी ब्रम्हाजी पर अत्यन्त आसक्त हो गयी| वह एकान्त में उनके पास गयी और उनके अनुसार ही बैठकर उनसे प्रेमदान की प्रार्थना करने लगी| ब्रम्हाजी उस समय भगवान् की स्मृति हुई|
समर्थ रामदास ऊंचे दर्जे के संत हुए हैं| वे भिक्षा मांगकर अपना पेट भर लेते थे और भगवान की भक्ति में लीन रहते थे|
एक सुबह रामदीन अपने वृद्ध पिता को बैलगाड़ी में बिठाकर कहीं ले जा रहा था कि उसका पुत्र बोला, ‘पिताजी, आप दादाजी को कहाँ ले जा रहे है?’
दार्शनिक कन्फ्यूशियस के एक शिष्य को ध्यान लगाने और मन पर संयम स्थापित करने में कठिनाई होती थी। तब उन्होंने समझाया कि अपने को पूरी तरह से आत्मा में डुबो दो, तभी तुममें संयम आएगा।
दर्शाण देश में एक राजा रहता था वज्रबाहु| वज्रबाहू की पत्नी सुमति अपने नवजात शिशु के साथ किसी असाध्य रोग से ग्रस्त हो गयी| यह देख दृष्टिबुद्धि राजा ने उसे वन में त्याग दिया| अनेक प्रकार के कष्ट भोगती हुई वह आगे बढ़ी|
एक दिन दस लड़के यात्रा पर रवाना हुए| उन्होंने तय कर लिया कि अमुक स्थान पर उन्हें पहुंचना है| सब अपने-अपने हिसाब से चलने लगे| कोई तेज चलता तो कोई धीरे| सब अलग-अलग हो गए|
करनपुर का राजा विशाल सिहं अपने जिद्दी, घमंडी व निरंकुश पुत्र दलवीर सिंह की वजह से बहुत चिंतित था|
किसी शहर में बहुत दूर से एक विद्वान पहुंचा। उसने लोगों से कहा कि वह यहां के विद्वानों से शास्त्रार्थ करना चाहता है।
पुरुषोत्तम क्षेत्र (जगन्नाथधाम)-का महत्व वर्णनातीत है| यहाँ भगवान् श्रीकृष्ण पुरुषोत्तम नाम से विख्यात है| अतः इस क्षेत्र को पुरुषोत्तम क्षेत्र भी कहते हैं| इस क्षेत्र का नाम लेने मात्र से मनुष्य मुक्त हो जाता है|
हजरत लुकमान बड़े ऊंचे दर्जे के आदमी थे| उनके दिल में न किसी के लिए ईर्ष्या थी, न किसी प्रकार का मोह| उनका मालिक उन्हें बहुत चाहता था| जब भी कोई बढ़िया चीज आती वह लुकमान के लिए भेज देता| लुकमान ने अपने प्रेम से उसे एकदम वश में कर लिया था|
एक बूढ़े व्यापारी की देखरेख में माल से लदी बैलगाडियों का काफ़िला रेगिस्तान में प्रवेश करनेवाला था| तभी एक व्यापारी दूसरे व्यापारी से बोला, ‘इस रेगिस्तान को पार करने के नाम से ही मुझे तो कपकपी छूटने लगती है|’
जीवन दर्शनः एक युवा संन्यासी एक वृद्ध संन्यासी के सान्निध्य में रहकर ज्ञान प्राप्ति के लिए उनके आश्रम में आया।
(1) पितृतीर्थ-नरोत्तम नाम का एक तपस्वी ब्राह्मण था| वह माता-पिता की सेवा छोड़कर तीर्थयात्रा के लिये निकल पड़ा| तीर्थ-सेवन की महिमा से उसके गीले कपड़े आकाश में सूखते थे|
एक सेठ थे| उनके पास लाखों रुपए की संपत्ति थी| बड़े हवेली थी, देश-विदेश में फैला कारोबार था, तिजोरियां में बंद पैसा था| एक दिन एक महानुभाव उनसे मिलने आए| बातचीत में उन्होंने कहा – “सेठजी, अब तो महंगाई बेहिसाब बढ़ गई है| चीजों के दाम दुगने हो गए हैं| आपकी संपत्ति भी बढ़कर अब करोड़ों रुपए की हो गई है|”
एक दिन एक भूखे सियार का एक सिहं से सामना हो गया| सिहं को देखकर सियार की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई| उसने किसी तरह डरते-डरते कहा, ‘हे जंगल के राजा| मुझे अपनी शरण में ले लो| मैं आपकी हर आज्ञा मानूँगा|’
दिल्ली के बादशाह गयासुद्दीन के तीर से एक बालक की मौत हो गई। उसकी मां ने काजी से न्याय मांगा। बादशाह को अदालत में हाजिर होना पड़ा। काजी के सही न्याय से बादशाह खुश हो बोला- मुझे आप पर गर्व है ।
जब विश्व पर घोर संकट आता है और उसके प्रतिकारक कोई उपाय नहीं रहता, जब आदिशक्ति का आविर्भाव होता है| इसी प्रकार एक बार भण्डासुर से सारा विश्व त्रस्त हो गया था, तब उन्होंने ललिता के के रूप में लोकोद्धार का कार्य किया|
एक व्याकरण का पण्डित नाव में बैठा था| उसने मल्लाह से व्याकरण की बड़ी प्रशंसा की और फिर उससे पूछा – “क्यों भाई, क्या तुमने व्याकरण पढ़ा है?”
काशी में पावन सलिला गंगा के तट पर एक मुनि का बहुत बड़ा आश्रम था| उसमें रहकर अनेक शिष्य वेद-वेदांग की शिक्षा ग्रहण करते थे| शिष्य में एक का नाम दुष्कर्मा था| वह सब शिष्यों में सबसे ज्यादा आज्ञाकारी, समझदार और दयालु प्रवृति का था|
एक फकीर श्मशान में बैठा था। थोड़ी देर बाद वहां दो अलग-अलग समूहों में कुछ लोग मृत देह लेकर आए और चिता सजाकर उन्हें अग्नि को समर्पित कर दिया। जब चिताएं ठंडी हो गईं तो लोग वहां से चले गए। तब वह फकीर उठा और अपने हाथों में दोनों चिताओं की राख लेकर बारी-बारी से उन्हें सूंघने लगा। लोगों ने आश्चर्य से उसके इस कृत्य को देखा और उसे विक्षिप्त समझा। एक व्यक्ति से रहा नहीं गया।
कांचीपुर में वज्र नामक एक चोर था| उस चोर का यह नाम विशेष सार्थक था| किसी की सम्पत्ति चुराने पर उसके स्वामी को जो कष्ट होता है, उसे सहृदय व्यक्ति ही आँक सकता है| चोर का हृदय वस्तुतः वज्र का बना होता है|