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‘तज़करात-उल-औलिया’ मुसलमानों की एक रूहानी पुस्तक है| उसमें एक छोटी-सी कहानी आती है कि एक बार एक फ़क़ीर जब सफ़र पर निकला तो उसने साथ में रोटी बाँध ली कि वह रास्ते में खायेगा|

ज़िक्र है कि बुल्लेशाह बड़ा आलिम-फ़ाज़िल था| चालीस साल खोज की, बहुत-से शास्त्र और धार्मिक किताबें पढ़ीं, अनेक महात्माओं और नेक लोगों से वार्तालाप किया लेकिन कुछ हासिल न हुआ|

शेख़ फ़रीद को बहुत कम आयु में ही रूहानियत की गहरी लगन थी| उन्होंने ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती का नाम सुना हुआ था जो राजस्थान के एक शहर अजमेर में रहते थे|

ऋषि वेदव्यास का पुत्र शुकदेव जिसको गर्भ में ही ज्ञान था, राजा जनक को गुरु धारण करने के लिए उसके दरबार में तेरह बार गया| शुकदेव के पिता ने उसे यह बताया था कि इस समय राजा जनक ही पूर्ण गुरु हैं, इसलिए गुरु धारण करने के लिए उसके पास जाओ|