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फ़क़ीर और चीटियाँ

‘तज़करात-उल-औलिया’ मुसलमानों की एक रूहानी पुस्तक है| उसमें एक छोटी-सी कहानी आती है कि एक बार एक फ़क़ीर जब सफ़र पर निकला तो उसने साथ में रोटी बाँध ली कि वह रास्ते में खायेगा| रात को एक मस्जिद में सोया, सुबह उठकर दस बारह मील सफ़र किया| फिर ख़याल आया कि रोटी खा लूँ| जब रोटी की गठरी खोली तो देखा कि रोटी चीटियों से भरी पड़ी थी| फ़क़ीर को बहुत दुःख हुआ कि मैं इनको कितनी दूर ले आया हूँ, इस जगह कोई घर-बार नहीं है| कोई अपनी माँ छोड़कर आयी है, कोई अपना बाप छोड़कर आयी है, कोई बच्चे छोड़कर आयी है| यह सोचकर वह वापस चल पड़ा और दस बारह मील का सफ़र करके वापस उसी मस्जिद में आया| रोटी झाड़ी और चीटियों से कहा कि जाओ अपने-अपने घर को| मज़हब क़त्लो-ग़ारत (मारना-काटना) नहीं सिखाता, बल्कि दया सिखाता है|

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