बबूल से मनुष्य-जन्म
एक अभ्यासी सत्संगी ने एक पेड़ की ओर इशारा करते हुए बड़े महाराज जी से पूछा, “अच्छे कर्म करने से क्या यह पेड़ भी मनुष्य-देह प्राप्त कर सकता है?”
एक अभ्यासी सत्संगी ने एक पेड़ की ओर इशारा करते हुए बड़े महाराज जी से पूछा, “अच्छे कर्म करने से क्या यह पेड़ भी मनुष्य-देह प्राप्त कर सकता है?”
लक्खा सिंह अमृतसर में एक प्रेमी सत्संगी था| एक बार वह दक्षिण में नांदेड़ शहर गया| वहाँ उसको एक बूढ़ा व्यक्ति मिला|
बाबा जी महाराज के वक़्त का ज़िक्र है कि डेरे में हुकम सिंह नाम का एक सत्संगी रहता था| वह एक मिनट भी बेकार नहीं बैठता था| रात को भजन करता और दिन में सेवा करता|
एक दिन जब बड़े महाराज जी बाबा जी महाराज के पास आये, तो वे मंडाली गांव के दो जाट सत्संगियों – मच्छर और रामदित्ता – से मिले| वे अच्छे प्रेमी थे|
एक बार बाबा जैमल सिंह जी के पास कुछ पण्डित आये| शास्त्रों के कुछ अर्थ को लेकर उनकर आपस में विवाद था|
एक बार का ज़िक्र है, बाबा जैमल सिंह जी महाराज अम्बाला शहर तशरीफ़ ले गये| वहाँ मोतीराम दर्ज़ी प्रेमी सत्संगी थे, उन्होंने बाबा जी महाराज से सत्संग के लिए अर्ज़ की|
बहुत समय पहले का ज़िक्र है| एक बार बड़े महाराज जी शिमला गये| दो सत्संगी भाई काहन सिंह और भाई मग्घर सिंह आपके साथ थे| कुछ लोग आये और सत्संग में बैठ गये|
हुज़ूर महाराज सावन सिंह जी को संगत प्रेम से बड़े महाराज जी कहती है| उनके पिता जी सूबेदार मेजर थे| उन्हें साधुओं से मिलने का शौक़ था|
जब शुकदेव गुरु धारण करके, नाम लेकर उसके आदेशानुसार कमाई करके अपने पिता वेदव्यास के पास गया, तो उसने पूछा, “गुरु कैसा है?” शुकदेव चुप!
एक शिष्य अपने गुरु के साथ जंगल में रहता था| एक बार सर्दियों की अँधेरी रात में ज़ोर की वर्षा होने लगी और झोंपड़ी की छत से पानी टपकने लगा|