Chapter 300
“Yudhishthira said, ‘O grandsire, learned men praise truth,self-restraint, forgiveness, and wisdom. What is thy opinion of thesevirtues?’
“Yudhishthira said, ‘O grandsire, learned men praise truth,self-restraint, forgiveness, and wisdom. What is thy opinion of thesevirtues?’
एक विधवा माई जो की गोइंदवाल में रहती थी उसका पुत्र बुखार से मर गया| वह रात्रि से समय ऊँची ऊँची रोने लगी| उसका ऐसा विर्लाप सुनकर गुरु अमरदास जी माई के घर गये और अपने चरण बच्चे के माथे पर धरे| गुरु जी के चरण माथे पर लगते ही बेटा जीवित हो गया|
गुरु अमरदास जी ने सावण मल को लकड़ी की जरूरत पूरी होने के पश्चात गोइंदवाल वापिस बुलाया| परन्तु सावण मल मन ही मन सोचने लगा अगर मैं चला गया तो गुरु जी मुझसे वह रुमाल ले लेंगे जिससे मृत राजकुमार जीवित हुआ था| इससे मेरी कोई मान्यता नहीं रहेगी| सारी शक्ति वापिस चली जायेगी|
एक दिन बल्लू आदि सिखो ने गुरु जी से बिनती की महाराज! अनेक जातियों के लोग यहाँ दर्शन करने आतें हैं पर उनके रहने के लिए कोई खुला स्थान नहीं है, इसलिए कोई खुला माकन बनाना चाहिए|
एक दिन श्री गुरु अमरदास जी के समक्ष भाई पारो ने प्रार्थना की कि महाराज! आप जी के दर्शन करने के लिए संगत दूर-दूर से आती है|
श्री गुरु अमरदास जी संगतो के लिए बाऊली बनाना चाहते थे| एक दिन आपने भाई पारों से कहने लगे कि संगतों के स्नान के लिए बाऊली बनानी है|
एक बार कुछ सिक्ख गुरु जी को बड़े प्रेमपूर्वक गाँव में ले गए| वहां पृथी मल्ल आप जी के दर्शन करने के लिए पहुंचे|
एक बार एक सिक्ख जिसका नाम भाई मल्ल था| वह गुरु जी के पास आया| उसने गुरु जी से पूछा, महाराज! मेरा मन भटकन में रहता है|
डल्ला गांव के कुछ सिक्ख गुरु जी के पास आए| उनमें से उगरसैन, दीपा व रामू गौरी गुरु जी के पास आकर बैठ गए|
गुरु जी अपने आसन पर विराजमान थे| कुछ सिक्ख गुरु जी के दर्शन करने के लिए पहुंचे|