अध्याय 158
1 [वै]
ते परतस्थुः पुरस्कृत्य मातरं पुरुषर्षभाः
समैर उदङ्मुखैर मार्गैर यथॊद्दिष्टं परंतपाः
1 [वै]
ते परतस्थुः पुरस्कृत्य मातरं पुरुषर्षभाः
समैर उदङ्मुखैर मार्गैर यथॊद्दिष्टं परंतपाः
एक गांव में एक बूढ़ा किसान अपनी पत्नी के साथ रहता था | उसका एक छोटा-सा खेत था | उस खेत में ही कुछ सब्जियां बोकर और उन्हें बेचकर किसान अपना व अपनी पत्नी का गुजारा करता था |
“Vaisampayana said, ‘Thus addressed, Kunti replied unto her heroic lord,king Pandu, that bull amongst the Kurus, saying, ‘O virtuous one, itbehoveth thee not to say so unto me. I am, O thou lotus-eyed one, thywedded wife, devoted to thee.
1 [स]
केशवस्य तु तद वाक्यं कर्णः शरुत्वा हितं शुभम
अब्रवीद अभिसंपूज्य कृष्णं मधु निषूदनम
जानन मां हिं महाबाहॊ संमॊहयितुम इच्छसि
“Vidura said, ‘In this connection is cited the old story of the discoursebetween the son of Atri and the deities called Sadhyas is as heard by us.
Then Yudhishthira, the son of Pandu, said to the Brahmana, Markandeya,’Do thou now narrate the history of Vaivaswata Manu?
एक राजकुँअर थे| स्कूल में पढ़ने के लिए जाते थे| वहाँ प्रजा के बालक भी पढ़ने जाते थे| उनमें से पांच-सात बालक राजकुँअर के मित्र हो गये| वे मित्र बोले-‘आप राजकुँअर हो, राजगद्दी के मालिक हो| आज आप प्रेम और स्नेह करते हो, लेकिन राजगद्दी मिलने पर ऐसा ही प्रेम निभाएंगे, तब हम समझेंगे कि मित्रता है, नहीं तो क्या है?’ राजकुँवर बोले कि अच्छी बात है|
“Brahmana said, ‘That Mahat who was first produced is called Egoism. Whenit sprang up as I, it came to be called as the second creation. ThatEgoism is said to be the source of all creatures, for these have sprungfrom its modifications.