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एक दिन गुरु साहिब जी का दीवान सजा था| गुरु जी स्वयं भी उसमें विराजमान थे| सभी गुरु जी से अपनी शंकाओं का निवारण कर रहे थे|

अकबर बादशाह लाहौर से वापिस आ रहे थे| वापिस आते हुए दिल्ली को जाते हुए गोइंदवाल पड़ाव किया| अकबर बादशाह यह देखकर दंग रह गए कि गुरु जी का अटूट लंगर चल रहा है|

श्री गुरु रामदास ने आषाढ़ संवत् १६३४ को अमृत सरोवर की खुदाई का कार्य जोर-शोर से आरम्भ करा दिया| श्री गुरु अमरदास जी ने यह समझाया था कि यहां अमृत सरोवर तीर्थ प्रगट होगा| दुनीचन्द को अपने पिंगले जवाई के जब आरोग्य होने की खबर मिली| वह बड़े सत्कर के साथ गुरु जी को अपने घर पट्टी नगर में ले गया|

एक दिन श्री गुरु अमरदास जी ने श्री (गुरु) रामदास जी को अपने पास बिठाया और कहने लगे – हे सुपुत्र! अब आप रामदास परिवार वाले हो गए हो|

तलवंडी का रहने वाला एक लंगड़ा क्षत्री सिख गुरु जी के भोजन के लिए बड़ी श्रधा के साथ दही लाता था| एक दिन रास्ते में गाँव के चौधरी ने उसकी बैसाखी छीन ली और मजाक उड़ाने लगा कि रोज दुखी होकर अपने गुरु के लिए दही लेकर जाता है, तेरा गुरु तेरी टांग नहीं ठीक कर सकता?

हरिद्वार से २०वी तीर्थ यात्रा करके पंडित दुर्गा प्रसाद ने जब गुरु अमरदास जी के पाँव में पदम देखकर कहा था कि आपके शीश पर जल्दी ही छत्र झूलेगा, जब उसने यह सुना कि आप गुरुगद्दी पर आसीन हुए है तो अपना मुँह माँगा वरदान लेने के लिए गुरु अमरदास जी के पास आये| उन्होंने गुरु जी को अपना वरदान पूरा करने की मांग की|

मुग़ल बादशाह के समय दिल्ली व लाहौर के रास्ते में व्यास नदी से पार होने के लिए गोईंद्वाल का पत्तन बहुत प्रसिद्ध था| बड़ी-२ सराए शाही सेनओं के लिए यहाँ बनी हुई थी जिसके कारण यह रौनक रहती थी| यह व्यापर पेशा कुछ शेखों के घर भी थे जो कि गुरु के सिखों से सदैव नोक-झोक लगाई रखते थे| वे पानी के घड़े गुलेले मार कर तोड़ देते थे व सिख स्त्रियों को भला बुरा भी कहते थे|

बाउली की कार सेवा में भाग लेने के लिए सिख बड़े जोश के साथ दूर दूर से आने लगे| इस तरह काबुल में एक प्रेमी सिख की पति व्रता स्त्री को पता लगा| 

भाई खानू, मईया और गोबिंद गुरु अमरदास जी के पास आए| इन्होने प्रार्थना की हमें भक्ति का उपदेश दो ताकि हमारा कल्याण हो जाये| गुरु जी ने कहा भक्ति तीन प्रकार की होतो है-नवधा, प्रेमा और परा|

एक दिन भाई जग्गा गुरु जी के दर्शन करने आया| उसने प्राथना कि सच्चे पादशाह जी मुझे एक दिन जोगी ने बताया कि कल्याण तभी हो सकता है अगर घर – बाहर, स्त्री – पुत्र आदि का त्याग किया जाये जो कि बन्धन हैं|