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गुरु जी मरदाने के साथ बैठकर शब्द कीर्तन कर रहे थे तो अचानक अँधेरी आनी शुरू हो गई, जिसका गुबार पुरे आकाश में फ़ैल गया| इस भयानक अँधेरी में भयानक सूरत नजर आनी शुरू हो गई, जिसका सिर आकाश के साथ व पैर पाताल के साथ के साथ थे| मरदाना यह सब देखकर घबरा गया|

गुरु जी होती मरदान और नौशहरे से होते हुआ हसन अब्दाल से बहार पहाड़ी के नीचे आकर बैठ गए| उस पहाड़ी पर एक वली कंधारी रहता था जिसे अपनी करामातो पर बहुत अहंकार था| इसके साथ की पहाड़ी पर ही पानी का एक चश्मा निकलता था| गुरु जी ने उसका अहंकार तोड़ने के लिए मरदाने को उस पहाड़ी पर चश्मे का पानी लाने के लिए भेजा|

मक्के में मुसलमानों का एक प्रसिद्ध पूजा स्थान है जिसे काबा कहते है| गुरु जी (Shri Guru Nanak Dev Ji) रात के समय काबे की तरफ विराज गए तब जिओन ने गुस्से में आकर गुरु जी से कहा कि तू कौन काफ़िर है जो खुदा के घर की तरफ पैर पसारकर सोया हुआ है?

जब गुरु जी (Shri Guru Nanak Dev Ji) पूरब दिशा कि तरफ बनारस जा रहे थे तो रास्ते में मरदाने ने कहा महाराज! आप मुझे जंगल पहाडों में ही घुमाए जा रहे हो, मुझे बहुत भूख लगी है| अगर कुछ खाने को मिल जाये तो कुछ खाकर चलने के लायक हो जाऊंगा| उस समय गुरु जी रीठे के वृक्ष के नीचे आराम कर रहे थे|

मलक भागो ने ब्रह्म भोज करके सभ खत्रियों, ब्राह्मणों और साधुओं, फकीरों  व नगर वासियों को बुलाया|  उसने यह निमंत्रण गुरु जी (Shri Guru Nanak Dev Ji) को भी दिया| पर गुरु जी (Shri Guru Nanak Dev Ji) ने इस भोज में आने को मना कर दिया| बार -२ बुलाने पर गुरु जी वहाँ पहुँचे|

गुरु जी के बचन, “ना कोई हिंदू न मुसलमान” को जब काजी ने सुना तो उसने गुरु जी से इसका भाव पूछा| गुरु जी (Shri Guru Nanak Dev Ji) ने कहा इस समय अपने धरम के अनुसार चलने वाला ना कोई सच्चा हिंदू है ना ही कोई अपने दीन मजहब के अनुसार चलने वाला सच्चा मुसलमान है|

एक दिन महिता जी ने गुरु जी (Shri Guru Nanak Dev Ji) को 20 रुपए देकर सच्चा सौदा करके लाने को कहा तथा भाई बाले को भी साथ भेज दिया| गुरु जी (Shri Guru Nanak Dev Ji) पिता जी को सति बचन कह कर 20 रूपए लेकर तथा भाई बाले को साथ लेकर सच्चे सौदे के लिए निकल पड़े|

एक दिन दुपहर ढलने के समय गुरु जी (Shri Guru Nanak Dev Ji) पेड़ की छाया के नीचे चादर बिछा कर लेट गए| उस वक्त सब वृक्षों की छाया ढल चुकी थी पर जहां गुरु जी (Shri Guru Nanak Dev Ji) लेटे हुए थे उस वृक्ष का परछावां ज्यों का त्यों खड़ा था| दो घडी उपरांत अपने खेतों की रखवाली करता राये बुलार आ उधर आ गया गया|

गुरु जी (Shri Guru Nanak Dev Ji) अब रोजाना ही पशुओं को जंगल जूह में ले जाते| एक दिन वैसाख के महीने में दुपहर के समय पशुओं को छाओं के नीचे बिठा कर गुरु जी लेट गए| सूरज के ढलने के साथ वृक्ष कि छाया भी ढलने लगी| आप के मुख पर सूरज कि धूप देखकर एक सफ़ेद साँप अपने फन के साथ छाया करके बैठ गया|

गुरु जी (Shri Guru Nanak Dev Ji) को चुपचाप व बिना किसे काम के घर में लेटे रहते देख महिता जी ने उन्हें किसे काम धंधे में लगाने कि सोची| पिता का कहना मान कर अगले ही दिन गुरु जी गाये भेसों को चराने ले गए| तीन चार दिन तो सब ठीक चलता रहा, सुबह पशुओं को बाहर ले जाते व सांयकाल वापिस घर ले आते|