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एक दिन गुरु अर्जन देव जी के पास चड्डे जाति के दटू, भानू, निहालू और तीर्था आए| उन्होंने आकर गुरु जी से प्रार्थना की महाराज! हमें तो आपके वचनों की समझ ही नहीं आती| एक जगह आप जी लिखते हैं –  

एक दिन समुंदे ने गुरु अर्जन देव जी से प्रार्थना की कि महाराज! हमारे मन में एक शंका है जिसका आप निवारण करें| उन्होंने कहा सनमुख कौन होता है और बेमुख कौन? गुरु जी पहले उसकी बात को सुनते रहे फिर उन्होंने वचन किया, भाई सनमुख वह होता है जो सदैव अपनी मालिक की आज्ञा में रहता है| जैसे परमात्मा ने मनुष्य को नाम जपने व स्नान करने के लिए संसार में भेजा है|  

बाला और कुष्णा पंडित लोगों को सुन्दर कथा करके खुश किया करते थे और सबके मन को शांति प्रदान करते थे| एक दिन वे गुरु अर्जन देव जी के दरबार में उपस्थित हो गए और प्रार्थना करने लगे कि महाराज! हमारे मन में शांति नहीं है| आप बताएँ हमें शांति किस प्रकार प्राप्त होगी हमें इसका कोई उपाय बताए?  

एक दिन सभी दुकानदार जो गुरु बाज़ार में रहते थे मिलकर गुरु अर्जन देव जी के पास आए और प्रार्थना करना लगे महाराज! आप जी ने हम पर बड़ी कृपा की है| हमें यहाँ बसाया है और काम-काज बक्शा है| पर यहाँ कोई ग्राहक आता है और न ही कोई व्यापर होता है| काम काज न होने के कारण गुजारा करने में बहुत दिक्कत आती है| अब आप ही बताएँ की क्या किया जाए?  

श्री गुरु अर्जन देव जी ने अपने गुरु पिता के वचन याद किए कि हमारी सेवा इन तीर्थों की सेवा है| इस प्रकार अमृत सरोवर के बाद संतोखसर तीर्थ की सेवा आरम्भ करने का विचार बनाया| इस सरोवर को श्री गुरु राम दास जी द्वारा आरम्भ कराया गया था| खोदे हुए गड्डे में वर्षा का पानी एकत्रित हो गया तथा चारों और बेरियों और वृक्षों के झुण्ड थे|  

श्री गुरु रामदास जी की तेरहवी वाले दिन सभी सम्बन्धी इकट्ठे हो गए| वे श्री अर्जुन देव जी को पगड़ी बांधना चाहते थे| प्रिथी चन्द जी एकदम क्रोधित हो गए|

भाई आदम जिला फिरोजपुर गाँव बिन्जू का रहने वाला था| वह पीरो-फकीरों की खूब सेवा करता परन्तु उसकी मुराद कही पूरी न हुई| उसके घर में पुत्र पैदा न हुआ| एक दिन उसे गुरु का सिख मिला| आदम ने उसे श्रधा सहित पानी पिलाया और प्रार्थना की कि मेरे घर संतान नहीं है|

श्री गुरु रामदास जी प्रभु प्यार में सदैव मगन रहते| अनेकों ही सिख आप जी से नामदान लेकर गुरु-२ जपते थे| गुरु सिखी कि ऐसी रीति देख कर एक इर्शालु तपस्वी आपके पास आया| गुरु जी ने उसे सत्कार देकर अपने पास बिठाया और पूछा! आओ तपस्वी जी किस तरह आए हो?

भाई हिन्दाल गुरु घर में बड़ी श्रधा के साथ आता मांडने की सेवा करता था| अचानक ही गुरूजी लंगर में आए| उस समय भाई हिन्दाल जी आटा मांडने की सेवा कर रहें थे|

एक बार सिद्ध योगियों का समूह भ्रमण करता गुरु के चक्क दर्शन करने के लिए आया| आदेश आदेश करते गुरु जी के पास आकर बैठ गया|