वक्षःस्थल में राम (भगवान हनुमान जी की कथाएँ) – शिक्षाप्रद कथा
जगजननी जानकी और जगत्त्राता प्रभु श्रीराम को अयोध्या के सिंहासन पर आसीन देखकर सर्वत्र हर्ष व्याप्त हो गया|
जगजननी जानकी और जगत्त्राता प्रभु श्रीराम को अयोध्या के सिंहासन पर आसीन देखकर सर्वत्र हर्ष व्याप्त हो गया|
एक बार हनुमान जी ने अपने प्रभु श्रीराम से अपनी माता अजना के दर्शनार्थ जाने की आगया मांगी| प्रभु ने उन्हें सहर्ष आज्ञा प्रदान कर दी|
श्रीरामश्वमेध का अश्व भ्रमण करता हुआ महर्षि वाल्मीकि के पुनीत आश्रम के समीप पहुंचा| प्रातःकाल का समय था|
श्रीराम के अश्वमेध का अश्व भ्रमण करता हुआ प्रख्यात कुंडलपुर के समीप पहुंचा| वहां के अत्यंत धर्मात्मा नरेश का नाम सुरथ था|
भगवान श्रीराम के अश्वमेध का अश्व घूमता हुआ हेमकूट पर्वत के एक विशाल उद्यान में पहुंचा ही था कि वहां अकस्मात उसका सारा शरीर अकड़ गया|
महाराज वीरमणि देवपुर नामक नगर के नरेश थे|
भगवान श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के अश्व के साथ शत्रुघ्न की सेना चक्रांका नगरी के समीप पहुंची| उस नगरी के नरेश धर्मात्मा सुबाहु थे|
हनुमान अगस्त्य जी की प्रेरणा से भगवान श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ करने का संकल्प किया|
लंकाधीश रावण क्रोध से दांत किटकिटा रहा था| उसके सारे प्रमुख बलशाली योद्धा युद्ध में मारे जा चुके थे|
श्रीराम और रावण युद्ध चरमसीमा पर पहुंच चुका था| एक-एक करके रावण के अनेक सेनापति, पुत्र मेघनाथ, भाई कुंभकर्ण समेत कई राक्षस मारे जा चुके थे|