HomePosts Tagged "बादशाह अकबर और बीरबल" (Page 9)

रामदास और मोतीराम दोनों बहुत अच्छे मित्र थे| एक बार मोतीराम को किसी काम से दूसरे शहर में जाना पड़ा| काम अधिक समय तक चलने वाला था, अत; वह सपरिवार गया और जाते समय अपने मकान की चाबी तथा कीमती समान अपने मित्र रामदास को सौंप दिया|

बादशाह अकबर अक्सर बीरबल की पगड़ी की तारीफ किया करते थे, क्योंकि वे पगड़ी बहुत ही बढ़िया ढंग से बांधा करता था, किंतु मुल्ला दोप्याजा को इससे जलन होती थी| मुल्लाजी ने तय कर लिया कि वह भी एक दिन इतनी अच्छी तरह से पगड़ी बांधेंगे कि उसकी तारीफ बादशाह को करनी ही पड़ेगी|

बीरबल बुद्धिमान तो थे किंतु रूपरंग में कुछ खास न थे| एक दिन दरबार में सुंदरता की बात चल पड़ी तो मुल्ला दोप्याजा ने बीरबल को नीचा दिखाने के उद्देश्य से कहा – “बीरबल जब भगवान सुंदरता बांट रहा था तो तुम कहां थे?”

बादशाह अकबर के साले साहब ने एक बार फिर से स्वयं को दीवान बनाने की जिद की| अब बादशाह सीधे-सीधे तो साले साहब को इंकार कर नहीं सकते थे, सो उन्होंने फिर एक शर्त रखी और कहा – “ठीक है, मैं तुम्हें दीवान बना दूंगा|

बादशाह अकबर शिकार से लौट रहे थे| हमेशा की तरह बीरबल भी उनके साथ था| लौटते समय अचानक बादशाह अकबर की नजर एक पेड़ पर पड़ी, जिस पर बैठे दो उल्लू आपस में बहस कर रहे थे|

एक गरीब अनपढ़ ब्राह्मण मांगकर अपना गुजारा चलाता था| उस ब्राह्मण की हार्दिक इच्छा यह थी कि लोग उसे पंडितजी कहें किंतु उस अनपढ़ को पंडितजी कौन कहता|