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बादशाह अकबर से मिलने कुछ विदेशी मेहमान आए हुए थे| वे अभी दरबार में उपस्थित नहीं हुए थे| कुछ देर बाद एक सेवक आया और बोला – “हुजूर की मां का देहान्त हो गया है, अत: उन्हें आने में देर लगेगी|”

जूतों से ही संबंधित बादशाह अकबर और बीरबल का एक और किस्सा मशहूर है| हुआ यूं कि एक दिन बादशाह अकबर, बीरबल तथा कुछ अन्य दरबारी किसी दावत में गए थे| दावत के बाद जब वे लोग कक्ष से बाहर निकले तो वहां बादशाह को अपने जूते नहीं मिले| जूतों की काफी तलाश की गई पर नहीं मिले… शायद किसी ने चुरा लिए थे|

शाम के समय बादशाह अकबर और बीरबल महल के बुर्ज पर टहल रहे थे| तभी उन्हें ‘पकड़ो-पकड़ो, चोर-चोर’ आदि की आवाजें सुनाई दीं| पता करने पर मालूम हुआ कि कोई चोर एक परदेसी को महल के सामने से ही लूट कर भाग गया है|

बादशाह अकबर ने दरबार में बीरबल से कहा – “मैंने पढ़ा था कि एक बार श्रीकृष्ण हाथी की पुकार पर उसे बचाने पैदल ही दौड़ पड़े थे? ऐसा क्यों… वे नौकर-चाकर भी साथ ले सकते जा थे, रथ पर भी जा सकते थे|”

बादशाह अकबर ने दरबार में सवाल पूछा – “ठंड में हमें ठंड लगती है, गर्मी में गर्मी बेहाल कर देती है, वर्षा में चारों तरफ पानी-ही-पानी हो जाता है, तब कौन-सा मौसम अच्छा कहा जाएगा?”

बादशाह अकबर ने सोचा कि बीरबल को कोई ऐसा काम करने को कहा जाए जिसे वह कर ही न सके| यही सोचकर उन्होंने बीरबल को दरबार में बुलाया और कहा – “बीरबल, वैद्यजी ने एक ओषधि बनाने के लिए बैल के दूध की मांग की है, अत: हमें कहीं से बैल का दूध ला दो|”

बादशाह अकबर को बीरबल से मजाक करने की सूझी| उन्होंने एक दांता बनवाया और उसे इस तरह का रूप दिया कि पता न चले कि वह दांता है, और जो भी उसमें हाथ डाले उसका हाथ फंस जाए| बादशाह ने उसमें एक सेब रख दिया|