काजल की कोठरी – शिक्षाप्रद कथा
चन्द्रगुप्त और चाणक्य के जमाने में दक्षिण के मैदानी क्षेत्र में एक बहुत छोटा राज्य था – कुसुमगढ़!
कुसुमगढ़ में राजा मलखान सिंह का राज्य था, जो कि खुद को दुनिया का सबसे अक्लमन्द और बहादुर समझता था!
उसने चाणक्य की चतुराई और विद्वता की अनेकों कहानियाँ सुनी थीं, उसके राज्य में जो भी पाटलिपुत्र की ओर से आता, अपने परिचितों में चाणक्य की ढेरों चर्चा करता और बात फैलती-फैलती मलखान सिंह के कानों में भी पहुँचती!
मलखान सिंह थोड़ा सनकी भी था! एक दिन उसके दिल में आया कि चाणक्य तो उसके राज्य में होना चाहिए!
उसने अपने महामंत्री और सेनापति से कहा -“फटाफट तैयारी कर लो! हम आज ही पाटलिपुत्र के लिये निकल रहे हैं!”
“पर क्यों महाराज…?” उसके महामंत्री रामप्रसाद ने सवाल किया!
“चाणक्य को हम अपने राज्य में लेकर आयेंगे!”
रामप्रसाद एक निडर और राजा का मुंहलगा महामंत्री था! वह ठठाकर हंस पड़ा और बोला -“कैसे लायेंगे? गोद में उठाकर या बन्दी बनाकर? गोद में आप उठा नहीं सकेंगे और चन्द्रगुप्त के होते चाणक्य को बन्दी बनाकर लाने का विचार तो त्याग ही दीजिये! सेना लेकर जायेंगे तो चन्द्रगुप्त की विशाल सेना हमारी सेना को बहुत जल्दी तहस-नहस कर देगी! चाणक्य को अगर आप किसी तरह अपने राज्य में ला सकते हैं तो उसके शिष्य बनकर उनका दिल जीत कर, उससे अनुरोध करके…!”
मलखान सिंह सोच में पड़ गया! कुछ देर सोचने के बाद बोला -“ठीक है, हम अकेले ही पाटलिपुत्र जायेंगे और वहाँ जाकर चाणक्य के पैर पकड़ लेंगे और तब तक उनके पैर नहीं छोड़ेंगे, जब तक कि वह हमें अपना शिष्य नहीं बना लेते, तब तक कुसुमगढ़ की सारी जिम्मेदारी तुम सम्भालोगे रामप्रसाद…!”
महामंत्री रामप्रसाद ने बहुत समझाया, लेकिन जिद्दी राजा मलखान सिंह पर कोई असर न पड़ा! वह अपने इरादे से टस से मस नहीं हुआ और एक दिन बहुत सारे वेशकीमती उपहार लेकर चाणक्य से मिलने पाटलिपुत्र की ओर चल दिया!
कई दिनों के सफर के बाद एक शाम मलखान सिंह पाटलिपुत्र पहुँच गया!
वहाँ उसने चाणक्य के बारे में पता किया तो पता चला कि चाणक्य निकट के एक बहुत खूबसूरत बाग सरीखे आश्रम में शाम के समय गरीब बच्चों को ज्ञानदान देते हैं! उन्हें पढ़ाते हैं।
बस, फिर क्या था! जानकारी मिलते ही मलखान सिंह चाणक्य के आश्रम की ओर चल दिया!
आश्रम के बाहर कुछ पहरेदार थे, जब मलखान सिंह ने उन्हें बताया कि वह कुसुमगढ़ का राजा मलखान सिंह है और मीलों दूर से यहाँ सिर्फ चाणक्य का शिष्य बनने के लिए ही आया है तो पहरेदार उसे चाणक्य के पास ले गये!
निकट पहुँच मलखान सिंह ने जमीन में लोट लगाते हुए, चाणक्य के पैर पकड़ लिये और भर्राये स्वर में बोला -“गुरुदेव, मैं बहुत दूर कुसुमगढ़ से आपका शिष्य बनने के लिये आया हूँ! मुझे अपना शिष्य बना लीजिये!”
“मुझे खेद है, मैं तुम्हे अपना शिष्य नहीं बना सकता।” चाणक्य ने कहा -“मेरा एक ही शिष्य है चन्द्रगुप्त। किसी और को मेरा शिष्य बनने के लिये अपने आपको उससे बढ़कर दिखाना होगा, जोकि मैं समझता हूँ – तुम्हारे लिये सम्भव नहीं होगा। ।”
“गलतफहमी त्यागिये गुरुदेव?” मलखानसिंह दर्प से मुँह उठाकर बोला –“ मैं चन्द्रगुप्त से ज्यादा बुद्धिमान हूँ, उससे ज्यादा बहादुर हूँ। एक ही समय दस-दस योद्धाओं से मुकाबला कर सकता हूँ और उससे अधिक अपनी श्रेष्ठता साबित भी कर सकता हूँ।”
“अच्छा…।” चाणक्य हँसे -“कैसे साबित करोगे श्रेष्ठता ?”
“आप जिस भी तरह चाहें – मेरी श्रेष्ठता की परीक्षा ले सकते हैं गुरुदेव। यदि मैं परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ, तब तो आप मुझे अपना शिष्य बना लेंगे ना ?”
“अवश्य बना लूंगा!” चाणक्य ने कहा -“यदि मेरी परीक्षा में तुम उत्तीर्ण हो गए तो……..!” चाणक्य ने ‘तो’ को लम्बा खींचते हुए कहा -“और परीक्षा के रूप में तुम्हें मेरे तीन बहुत सरल से प्रश्नों के सही सही उत्तर देने होंगे ! अगर तुम प्रश्नों के सही उत्तर नहीं दे सके तो तुम्हें तुरन्त ही वापस अपने राज्य कुसुमगढ़ लौटना होगा !”
मलखानसिंह ने चाणक्य की बात स्वीकार कर ली।
चाणक्य ने पहले सवाल के रूप में कहना आरम्भ किया -“राम और श्याम दो भाई हैं। दोनों एक दिन एक नदी के किनारे पहुँचे। नदी के किनारे एक काजल की कोठरी थी, जिसमें हर तरफ काजल ही काजल था। दोनों भाई उत्सुकतावश काजल की कोठरी में गये और जब बाहर निकले तो राम पूरी तरह काला हो गया था, जबकि श्याम पूरी तरह सफ़ेद था। पास ही नदी तो थी ही। तुम केवल यह बताओ – राम और श्याम में से नदी में नहाने के लिये पहले कौन नदी में कूदेगा ?”
“राम कूदेगा।” मलखानसिंह ने शीघ्रतापूर्वक जवाब दिया।
“तुम्हारा जवाब गलत है मलखानसिंह।” चाणक्य बड़े प्यार से बोले -“पहले श्याम ही नदी में कूदेगा।”
“ऐसा कैसे हो सकता है। काला तो राम है।” मलखानसिंह ने कहा।
“वही तो…….।” चाणक्य मुस्कुराते हुए बोले -“जब राम और श्याम बाहर निकलेंगे तो सबसे पहले राम श्याम को और श्याम राम को देखेगा। राम जब श्याम को देखेगा तो सोचेगा। मैं भी श्याम की तरह सफेद हूँ और श्याम जब राम को देखेगा तो सोचेगा -अरे बाप रे, मैं तो बिल्कुल काला हो गया और झट से नहाने के लिये नदी में कूद जायेगा।”
“हाँ, आप सही कह रहे हैं गुरुदेव।” मलखान सिंह कुछ खिसियाता हुआ बोला।
“अब दूसरा सवाल पूछूँ……?” चाणक्य ने प्रश्न किया।
“अवश्य गुरुदेव।” मलखानसिंह बोला -“और देखियेगा, इस बार मैं बिल्कुल सही उत्तर दूँगा।”
चाणक्य ने दूसरे सवाल के रूप में बोलना आरम्भ किया -“राम और श्याम दो भाई हैं। दोनों एक दिन एक नदी के किनारे पहुँचे। नदी के किनारे एक काजल की कोठरी थी……..।”
“यह तो वही सवाल है….पहले वाला सवाल है।” मलखान सिंह ने टोका।
“नहीं, यह दूसरा सवाल है। तुम ध्यान से सुनो।” चाणक्य ने कठोर स्वर में कहा और फिर से सवाल सुनाने लगे -“राम और श्याम दो भाई हैं। दोनों एक दिन एक नदी के किनारे पहुँचे। नदी के किनारे एक काजल की कोठरी थी, जिसमें हर तरफ काजल ही काजल था। दोनों भाई उत्सुकतावश काजल की कोठरी में गये और जब बाहर निकले तो राम पूरी तरह काला हो गया था, जबकि श्याम पूरी तरह सफ़ेद था। पास ही नदी तो थी ही। तुम केवल यह बताओ – राम और श्याम में से नदी में नहाने के लिये पहले कौन नदी में कूदेगा ?”
मलखानसिंह हँसा। बड़े जोर से हँसा और बोला -“इस सवाल का जवाब आप मुझे पहले ही बता चुके हैं गुरुदेव। निश्चय ही श्याम ही नदी में कूदेगा।”
“गलत जवाब….।” मलखानसिंह के जवाब में चाणक्य बर्फ जैसे सर्द और पत्थर से कठोर स्वर में बोले -“इस बार राम ही नदी में कूदेगा। राम ही नहायेगा।”
“वो कैसे गुरुदेव ?” मलखानसिंह ने रुँआसा होकर पूछा।
“ऐसे कि काजल की कोठरी से बाहर आने पर जब श्याम राम को देखेगा तो पायेगा कि राम काला है तो खुद पर भी नज़र डालेगा कि क्या मैं भी ऐसा ही काला हो गया हूँ। और इसी प्रकार राम श्याम को देखकर चकित होयेगा कि काजल की कोठरी में जाकर बाहर आने पर भी श्याम चकाचक सफ़ेद कैसे है, तब वह खुद पर भी नज़र डालेगा तो जानेगा कि वह तो पूरी तरह काला हो गया है और तब वह झटपट नदी में कूद पडेगा।”
मलखानसिंह का चेहरा मरे हुए चूहे जैसा हो गया।
तभी चाणक्य ने मलखान सिंह को पुनः सम्बोधित किया -“अब मैं तीसरा सवाल पूछूँ मलखानसिंह ?”
“पूछिये गुरुदेव।” मलखानसिंह ने कहा।
चाणक्य ने तीसरा सवाल कहना आरम्भ किया -“राम और श्याम दो भाई हैं। दोनों एक दिन एक नदी के किनारे पहुँचे। नदी के किनारे एक काजल की कोठरी थी, जिसमें हर तरफ काजल ही काजल था। दोनों भाई उत्सुकतावश काजल की कोठरी में गये और जब बाहर निकले तो राम पूरी तरह काला हो गया था, जबकि श्याम पूरी तरह सफ़ेद था। पास ही नदी तो थी ही। तुम केवल यह बताओ – राम और श्याम में से नदी में नहाने के लिये पहले कौन नदी में कूदेगा ?”
मलखानसिंह ने चाहा कि कह दे गुरुदेव यह वही पहला और दूसरा सवाल है। पर ऐसा कहकर कहीं वह चाणक्य की नज़रों में मूर्ख न सिद्ध हो जाये, यह सोचकर मन ही मन बड़बड़ाता रहा -“यह वही सवाल है तो इसका उत्तर कौन सा सही होगा। पहला या दूसरा ? नदी में पहले राम कूदेगा या श्याम।”
वह बड़बड़ाने लगा -कभी ‘राम’ कभी ‘श्याम’, लेकिन जोर से कुछ भी न बोला।
उसके होठों के स्पंदन से उसकी बड़बड़ाहट का अन्दाज़ा लगाकर चाणक्य बोले -“मलखानसिंह, क्या तुम चन्द्रगुप्त से नहीं मिलना चाहोगे ? क्या यह जानना नहीं चाहोगे कि चन्द्रगुप्त क्यों मेरा शिष्य है।”
“हाँ, इच्छा तो है। उस जैसे यशस्वी सम्राट से मिलने की।” मलखानसिंह धीरे से बोला।
चाणक्य ने अपने एक सेवक को आदेश दिया कि तत्काल पाटलिपुत्र के राजदरबार में जाकर चन्द्रगुप्त से कहो कि हम अभी इसी समय उससे मिलना चाहते हैं।
सेवक ने जैसे ही पाटलिपुत्र के दरबार में जाकर सम्राट चन्द्रगुप्त से चाणक्य का सन्देश कहा, चन्द्रगुप्त तत्काल ही सबसे तेज़ गति वाले घोड़े पर सवार होकर चाणक्य के आश्रम में पहुँचा और घोड़े से कूद, निकट आकर चाणक्य के पाँव छूते हुए बोला -“कैसे स्मरण किया गुरुदेव ?”.
“यह कुसुमगढ़ के राजा मलखानसिंह हैं। इन्हें तुमसे एक सवाल का जवाब चाहिये।”
“क्या सवाल है गुरुदेव ?” चन्द्रगुप्त ने पूछा।
चाणक्य ने वही सवाल एक बार फिर दोहराना आरम्भ किया -“राम और श्याम दो भाई हैं। दोनों एक दिन एक नदी के किनारे पहुँचे। नदी के किनारे एक काजल की कोठरी थी, जिसमें हर तरफ काजल ही काजल था। दोनों भाई उत्सुकतावश काजल की कोठरी में गये और जब बाहर निकले तो राम पूरी तरह काला हो गया था, जबकि श्याम पूरी तरह सफ़ेद था। पास ही नदी तो थी ही। तुम केवल यह बताओ – राम और श्याम में से नदी में नहाने के लिये पहले कौन नदी में कूदेगा ?”
चन्द्रगुप्त पहले तो मुस्कुराया। फिर गम्भीर होकर बोला -“धृष्टता क्षमा करें गुरुदेव । सच तो यह है कि आपका यह प्रश्न ही गलत है। ऐसा कैसे हो सकता है कि काजल की कोठरी में एक साथ दो लोग जाएँ और बाहर आएँ तो उनमे से एक पूरा काला हो और एक पूरा सफ़ेद। सयाने लोग कह गये हैं –
काजल की कोठरी में कैसो ही सयानो जाये
एक लीक काजल की लागिहैं पे लागिहैं…!”
चन्द्रगुप्त के जवाब के बाद चाणक्य ने मलखानसिंह की ओर देखा -“अब समझे मलखानसिंह। चन्द्रगुप्त क्यों मेरा शिष्य है और तुम क्यों नहीं बन सकते।”
मलखानसिंह ने सिर झुका लिया।
और फिर………।
मलखानसिंह चाणक्य के लिये जितने भी वेशकीमती उपहार लाया था, सभी चाणक्य के चरणों में समर्पित कर, उसी दिन कुसुमगढ़ के लिए प्रस्थान कर गया।