Homeशिक्षाप्रद कथाएँअंगूरी चाची का मुक्का – शिक्षाप्रद कथा

अंगूरी चाची का मुक्का – शिक्षाप्रद कथा

अंगूरी चाची जहाँ बहुत ही खूबसूरत हट्टी-कट्टी थीं, वहीं उनके पति परमेश्वर विभूति नारायण मिश्रा जी दुबले पतले सींकिया पहलवान थे!

शक्ल ऐसी कि कयामत तक कोई अपनी लड़की नहीं देता, लेकिन बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा समझो कि अंगूरी से उनकी शादी हो गई, वरना कुंवारे ही मरते! 

नाकारा आदमी थे, एकदम उज्जड! घर में सीता नाम की एक गाय और धन्नो नाम की एक घोड़ी थी, उसी से पति पत्नी का गुज़ारा चल जाता था। गाय खूब दूध देती थी तो घोड़ी की भी शादी-ब्याह के समय काफी माँग रहती थी। पर वे भी अंगूरी चाची को ही पहचानती थीं, मिश्रा जी को तो लात मारती थीं।     

अंगूरी चाची, जहाँ प्रेम का सागर थीं, मिश्रा जी फटे हुए दूध का उबाल! हर समय उफनते रहते! बिना बात बिगड़ते रहते! प्यार के दो बोल, बोलना तो उन्होंने सीखा ही नहीं था! 

सुबह उठने के साथ ही उनका अंगूरी चाची पर भड़कना एक बार शुरू होता तो रात को बिस्तर पर जाने तक जारी रहता! 

स्वभाव की भक्तिन अंगूरी चाची रोज भगवान कृष्ण की सच्चे हृदय से पूजा अर्चना करती थीं और रोज ही उनसे कहतीं -“कान्हा जी, हमारे बैलबुद्धि मिश्रा जी को भी कभी थोड़ी सी अक्ल दे दो!”

मिश्राजी का आलम यह था कि चाय बनवाई और खुद की लापरवाही से ठण्डी हो गई तो भी कसूर अंगूरी का और गर्म गर्म चाय से जीभ जल गई तो भी गुनहगार अंगूरी! 

खरबुद्धि विभूति नारायण मिश्रा जी अंगूरी चाची का एक भी दिन चालीस पचास गालियों और दो चार हाथ से खाली नहीं जाने देते थे! 

दोनों की शादी को बारह साल हो गये थे, लेकिन एक भी औलाद नहीं थी! डाक्टरों के चक्कर लगाने से यह तो पता चल गया कि पति पत्नी दोनों में कोई कमी नहीं है, पर मिश्राजी इसका गुनहगार भी अपनी भली सी पत्नी को समझते थे! 

एक दिन स्नान ध्यान के बाद भगवान कृष्ण की पूजा करते हुए अंगूरी चाची रोने लगीं -“आप बहुत बुरे हो कान्हा जी, बहुत ही खराब हो, हम जब बित्ते भर के थे, तब से आपकी पूजा कर रहे हैं, लेकिन आपके कानों पर अब तक जूँ भी नहीं रेंगी! क्या हम मर जायेंगे, तब ही सुनोगे हमारी!”

और भाई लोगों, भगवान तो भगवान हैं, ना पिघलें तो कयामत तक ना पिघलें और पसीजना हो तो मिनट भर में पसीज़ जाते हैं! 

तो उस दिन अचानक वह सामने आ ही गये! प्रकट होकर बोले -“तुमने हमें याद किया अंगूरी?”

अंगूरी ने पहले तो आंखें फाड़ फाड़कर कृष्ण भगवान को देखा! फिर भोलेपन से ही पूछा -“सच कहना कान्हा जी, यह आप ही हो ना…? राधा जी के कान्हा…रुक्मिणी जी के पति परमेश्वर! कहीं कोई डुप्लीकेट तो नहीं हो ना?”

“नहीं, मैं कोई डुप्लीकेट नहीं हूँ! असली हूँ और इस समय किसी और का नहीं, सिर्फ तुम्हारा हूँ! कहो, क्यों याद कर रहीं थीं तुम मुझे?” कृष्ण जी बोले! 

“हे भगवान, तो क्या अब यह भी हमें बताना पड़ेगा! काहे के अन्तर्यामी कहलाते हो! हमारे मिश्राजी को थोड़ा ठीक-वीक क्यों नहीं करते हो आप? बहुत गरियाते हैं और गाहे ब गाहे थप्पड़ और लात भी चला देते हैं!”

“यह तुम क्या कह रही हो अंगूरी?” भगवान ने आंखें फैलायीं! 

“सच कह रहे हैं प्रभु…! हमारी तो ज़िन्दगी नर्क हो रही है! आपसे विनती है कि थोड़ी सी अक्ल हमारे बैलबुद्धि को दे दीजिये!”

“बुद्धि तो मैं दे दूंगा अंगूरी, पर यह तुम कह क्या रही हो? मिश्राजी तुम्हें गालियाँ भी देते हैं और मारते भी हैं और तुम उनकी यह सारी ज्यादती, सारा अत्याचार चुपचाप सह लेती हो?” भगवान कृष्ण ने हैरत से आंखें बड़ी बड़ी करके पूछा! 

“क्या करें प्रभु! वो हमारे पति हैं! हमारे परमेश्वर हैं!” अंगूरी चाची बेचारगी से बोलीं तो भगवान कृष्ण भड़क उठे – “अरे काहे के परमेश्वर! परमेश्वर क्या अपनी पत्नी को गाली देते हैं! मारते हैं! कभी तुमने सुना कि विष्णु जी ने अपनी अर्द्धांगिनी लक्ष्मी जी को गालियाँ दी या उन पर हाथ उठाया, लतियाया?”

“नहीं भगवन, ऐसा तो कभी नहीं सुना!” अंगूरी चाची भोलेपन से बोलीं! 

“अच्छा तो तुमने कभी यह सुना कि भोलेनाथ ने माता पार्वती पर कभी क्रोध किया? उन्हें अपशब्द कहे या उन्हें मारा?” भगवान कृष्ण ने पूछा! 

“नहीं, प्रभु… ऐसा तो किसी वेद पुराण में नहीं पढ़ा, ना ही किसी से सुना!” अंगूरी चाची अपना सिर खुजाते हुए बोलीं! 

“कभी ब्रह्माजी ने ब्रह्माणी से कटु वचन कहे? उन्हें थप्पड़ मारा?” भगवान कृष्ण ने लगभग गरजते हुए पूछा! 

“नहीं कान्हा जी!” अंगूरी चाची माथे पर बल डालते हुए बोलीं -“यह भी हमने अब तक कभी भी न तो पढ़ा है, ना ही सुना है!”

“तो तुम्हीं बताओ अंगूरी! तुम्हारे मिश्राजी या किसी भी अन्य इन्सान को क्या हक है कि वह अपनी पत्नी के साथ दुर्व्यवहार करे! उसे गालियाँ दे! उस पर हाथ या पैर उठाये?” भगवान कृष्ण ने बड़ी कोमलता से अंगूरी से सवाल किया! 

“आप सही कह रहे हैं कान्हा जी!” अंगूरी चाची बोलीं -“पर हमारे बैलबुद्धि यह नहीं समझते हैं ना! और हम ठहरीं अबला नारी!”

“बस…!” ‘अबला नारी’ शब्दों को सुनते ही भगवान कृष्ण गरज़ उठे – “खुद को अबला बताते-बताते तुम स्त्रियों ने ख़ुद ही अपने आपको बहुत छोटा बना लिया है! और तुम लोगों ने ख़ुद को छोटा बनाया है, इसीलिये पृथ्वीलोक के पुरुष खुद को खुदा-परमेश्वर समझने लगे हैं! अरे तुम स्त्रियाँ क्यों नहीं दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती हो सकतीं? किसलिये खुद को अबला कहती हो तुम?” 

“बात तो आप ठीक ही कह रहे हैं कान्हा जी, पर इस धरती पर पुरुष को स्त्री का मालिक और स्वामी कहा जाता है और स्त्री को पुरुष की दासी!” अंगूरी चाची गम्भीर होकर बोलीं! 

“गलत सोच है – यहाँ के पुरुषों की और स्त्रियों की भी…!” कृष्ण भगवान बोले -“और हर धर्मग्रन्थ में भी यह समझाया गया है कि अन्याय और अत्याचार कभी सहन नहीं करना चाहिए! अगर तुम चाहती हो – तुम्हारे बैलबुद्धि तुम्हें गालियाँ ना दें! तुम पर हाथ या पैर ना चलायें तो तुम भी रणचण्डी बन जाओ! दुर्गा बन जाओ! और हाँ, अब से तुम खुद को अबला भी मत समझना, क्योंकि अब मैं तुम्हारी शक्ति में – अपनी शक्ति भी प्रवाहित कर रहा हूँ!” 

और यह कहकर कृष्ण भगवान तुरन्त ही अन्तर्ध्यान हो गये!

“अरे! यह तो गायब हो गये! हमारी विकट समस्या का समाधान किये बिना ही गायब हो गये!” अंगूरी चाची बड़बडायीं- “हम ही बुड़बक हैं, अपने कान्हा जी से आस लगाकर बैठे थे, पर वो भी तो आखिर पुरुष जाति ही हैं ना!”

और फिर अंगूरी चाची की ज़िन्दगी फिर से उसी ढर्रे पर चलने लगी! रोज पति की गालियाँ, रोज गाल पर थप्पड़, पीठ पर मुक्का! अंगूरी चाची सहती रहीं, सहती रहीं! मगर कब तक…? 

आखिर पुरुष की ज्यादती पर एक न एक दिन स्त्री भी खौल ही जाती है! 

उस दिन अंगूरी चाची नहाने के बाद अपने कान्हा जी की पूजा-वूजा करने के बाद गीले कपड़े सुखाने के लिये छत पर गयीं थीं! 

नीचे से विभूति नारायण मिश्रा जी ने चार पांच आवाज लगाई होंगी, जो अंगूरी चाची ने कपड़े फटकारने में नहीं सुनीं! बस, फिर क्या था! दनदनाते हुए मिश्रा जी छत पर आये और आते ही अंगूरी चाची के गीले बाल, जो कि नहाने के बाद अभी तक सूखे भी नहीं थे, पकड़ लिये और ढेर सारी गालियों का वजन फेंक कर अंगूरी चाची पर गरियाये -“घण्टे भर से चिल्ला रहा हूँ, एक लोटा पानी दे दे! कुल्ला दातून करना है! सुनाई नहीं देता बहरी!”

अंगूरी चाची चिल्लायीं – “अरे बाल छोड़िये हमारा! दुखता है! पानी ही तो चाहिये था, खुद ले लेते!”

“मुझसे जुबान लड़ाती है!” दबंग मिश्रा जी ने रैहपटा मारने के लिये हाथ उठाया ही था कि बौखलाहट में अपना बचाव करने की कोशिश में, अंगूरी चाची का हाथ मुक्का बनकर चल गया! 

मुक्का सीधे मिश्रा जी के जबाड़े पर लगा और उनके अग्रभाग के ऊपरी दो दांत खड़ाक से नीचे गिरे व मिश्रा जी का शरीर ऊपर उड़ता चला गया! 

अंगूरी चाची चीखीं- “अरे यह क्या? एरोप्लेन की तरह कहाँ उड़े जा रहे हो……?”

लेकिन अंगूरी चाची चिल्लाती रह गयीं, उनके परमेश्वर आसमान में उड़ते हुए न जाने कहाँ, कितनी दूर चले गये कि कुछ ही क्षणों में अंगूरी चाची को दिखाई देने भी बन्द हो गये! 

अंगूरी चाची रोने लगीं -“अरे कान्हा जी, यह क्या गज़ब कर दिये? हमारे प्राणनाथ को हमसे ही मुक्का खिलवा कर गायब कर दिये!”

अब… अंगूरी रोयें और कान्हा जी सामने न आयें, ऐसा तो हो ही नहीं सकता था! सो प्रकट हुए कृष्णमुरारी, बोले -“क्या हुआ अंगूरी? क्यों गला फाड़ रही हो?”

अंगूरी रिरियायीं -“गला न फाड़ें तो और क्या करें! आज पहली बार हमने अपने भरतार के मुंह पर मुक्का मारा और वो तो देखते ही देखते जेट प्लेन की तरह हवा में उड़ते हुए गायब हो गये!”

“अरे तो मुक्का थोड़ा धीरे से मारना था न अंगूरी! मैंने तुम्हें बताया तो था कि मैं तुम्हारी शक्ति में – अपनी शक्ति भी प्रवाहित कर रहा हूँ!”

“अरे तो हम कहाँ जोर से मारे थे, हम में ताकत ही कहाँ है! वो तो आपकी शक्ति ने बेड़ा गर्क कर दिया! अब जल्दी से बताइये कि कहाँ हैं हमारे परमेश्वर – ताकि हम उन्हें ढूँढ कर लायें!” अंगूरी कान्हा जी पर क्रोध करते हुए बोलीं तो कृष्णमुरारी प्यार से बोले -“उन्हें फिर से लाकर क्या करोगी अंगूरी? वो फिर से तुम्हें गालियाँ देंगे, पीटेंगे!”

“ठीक है, हम गालियाँ भी खा लेंगे और पिट भी लेंगे, बारह साल से आदत पड़ गयी है उन्हें झेलने की! झेल लेंगे, पर अलग नहीं रहेंगे! बताइये कहाँ हैं मिश्रा जी!” अंगूरी चाची सुबकते हुए बोलीं तो कृष्ण कन्हैया मुस्कुराये-“तुमने मुक्का कितना कसकर मारा था, मुझे क्या पता अंगूरी? हो सकता है वह बिना पासपोर्ट वीज़ा के अमेरिका, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया या कनाडा जा गिरे हों!”

“हाय मोरी मैया!” अंगूरी चाची चीखीं – “फिर तो विदेशी पुलिस मिश्रा जी को पकड़ कर जेल में डाल देगी!”

“हाँ!” कृष्ण भगवान मुंह सिकोड़ कर धीरे से बोले! 

“ऐसे कैसे जेल में डाल देगी विदेशी पुलिस!” अंगूरी चीखीं-“हमारे मिश्रा जी को बचाने के लिये आप कुछ नहीं करोगे क्या?”

“मैं क्या कर सकता हूँ?” भगवान कृष्ण बुरा-सा मुंह बना धीरे से बोले! 

“अरे..!” अंगूरी चाची गरजीं -“तुम तो अन्तर्यामी हो, सबके स्वामी हो! भला तुम्हारी मर्जी के बिना कहीं कोई पत्ता भी हिलता है! अब देर न करो! जल्दी से बताओ! कहाँ हैं हमारे मिश्रा जी? आज तो उन्होंने नाश्ता भी नहीं किया और भूख उनसे जरा भी बर्दाश्त नहीं होती है!”

भगवान कृष्ण गम्भीर हो गये और बोले -“अंगूरी, मैं ध्यान लगाकर पता करता हूँ – कहाँ हैं तुम्हारे परमेश्वर!” 

और कृष्ण भगवान ने अपनी आँखें मूंद लीं और कुछ क्षण बाद जब आंखें खोलीं तो मुस्कुरा कर बोले -“पता चल गया अंगूरी, तुम्हारे मिश्रा जी, यहाँ से पश्चिम में चार कोस दूर कीचड़ और दलदल भरे एक तालाब में जा गिरे हैं!”

“अरे तो खड़े क्यों हैं प्रभु, जल्दी से जाइये और उन्हें लेकर आइये!” अंगूरी चाची भगवान से विनती कर उठीं, मगर कृष्ण कन्हैया एकदम भड़क उठे, बोले -“मैं क्यों जाऊँ, वो कोई मेरा भक्त थोड़े ही है और कीचड़ में गिरकर वो इतना गन्दा हो गया है कि उसे छूते ही मैं भी गन्दा हो जाऊँगा! इसलिये तुम ही जाओ और तुम ही गन्दे तालाब से निकाल कर लाओ, अपने परमेश्वर को!” इतना कहने के साथ ही भगवान कृष्ण अन्तर्ध्यान हो गये! 

“डाल गये न मुसीबत में…!” भगवान के अन्तर्ध्यान होते ही अंगूरी चाची बड़बड़ाईं -“अब हमें ही भटकना पड़ेगा चार कोस तक…!”

पर मरती क्या न  करतीं। अंगूरी चाची अस्तबल में बंधी अपनी घोड़ी के पास गयीं। वहीं पास से एक लम्बी और मज़बूत रस्सी को लपेटकर उठाया और घोड़ी पर सवार होकर बोलीं-“चल बेटी धन्नो, आज तेरी मैया की इज़्ज़त का सवाल है।”

धन्नो आंधी-तूफ़ान की तरह उड़ चली। फिर चार कोस तय करने में भला कितना समय लगना था। दो घण्टे से पहले धन्नो कीचड और दलदल से भरे उस तालाब तक पहुँच गयी, जहाँ मिश्राजी गले तक डूबे उछल-कूद कर रहे थे।    

अंगूरी को देखते ही मिश्रा जी की जान में जान आई! चिल्ला कर बोले -“अंगूरी, जल्दी से मुझे यहाँ से निकाल, दुर्गन्ध के मेरा सिर फटा जा रहा है!”

“हमारा सिर भी भन्ना रहा है बैलबुद्धि…! सुबह सुबह इतना कसकर बाल खींचे थे कि अब तक जान निकली जा रही है!” अंगूरी बिगड़ कर बोलीं तो मिश्राजी घिघियाये -“अरे अंगूरी, मैं तेरा पति हूँ! जल्दी निकाल! दलदल में डूब गया तो करवा चौथ का व्रत किसके लिये रक्खेगी?”

“हम कोई पागल हैं, जो दिन भर भूखा रहने के लिये तुम्हें इस दलदल से निकालें! हम तो यहाँ इसलिये आये हैं कि आज तुमने नाश्ता भी नहीं किया! भूखे मरोगे तो नरक में ना जाने क्या-क्या अगड़म-बगड़म खाओगे!” अंगूरी चाची सर्द लहज़े में बोलीं तो मिश्रा जी रोने लगे! 

“देखो, देखो रोवो मत!” अंगूरी चाची बोलीं-“तुम्हारे रोने से हम नहीं पसीजने वाले! हमें भी बहुत रुलाया है तुमने! अच्छा बताओ तो कभी सुना है कि भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी से झगड़ा किया हो, उन्हें गालियाँ दी हों!”

“नहीं सुना…!” मिश्रा जी पल-पल दलदल में धंसते रोते हुए बोले! 

“कभी सुना है – भोले बाबा, पार्वती मैया से झगड़े हों!” अंगूरी फिर बोलीं! 

“नहीं सुना…!” मिश्रा जी फिर से रोये! 

“और ब्रह्मा जी कभी ब्रह्माणी के रैहपटा मारे हैं क्या?” अंगूरी ने मिश्रा जी की ओर देखते हुए उंगली घुमाई! 

“नहीं मारे और मैं भी अब कभी तुझे नहीं मारूंगा!” मिश्रा जी ने आश्वासन दिया! 

“अच्छा, तो सिर्फ गालियाँ दिया करोगे?” अंगूरी चाची ने पूछा! 

“नहीं-नहीं, गालियाँ भी नहीं दूंगा!’ मिश्रा जी जल्दी से बोले! 

“ठीक है! निकालते हैं आपको…दलदल से!” अंगूरी चाची ने यह कहते साथ लाई रस्सी का फंदा बना एक सिरा मिश्राजी की ओर दलदल में फेंका और बोलीं -“मगर ध्यान रहे बैलबुद्धि अगली बार तुम्हें कभी नहीं बचायेंगे। सड़ते रहना -मरने तक दलदल में।” 

‘अगली बार’ ये दो शब्द सुनते ही मिश्राजी को गश आ गया! खैर, अंगूरी चाची ने मिश्रा जी को फंदे में फँसा, दलदल से निकाला और घर ले आयीं! 

सुना है – उस दिन के बाद से मिश्राजी ने अंगूरी चाची को न तो कभी डाँटा, न गालियाँ दीं, ना ही मारा और अब प्रेमपूर्वक रहते हैं और मिश्रा जी में बदलाव का एक खुशनुमा परिणाम और जान लीजिये – पिछले पांच साल में उनके आंगन में तीन लल्ला और दो लल्ली आ गयीं हैं! लगता है परिवार नियोजन के बारे में उन्हें किसी ने कुछ भी नहीं बताया!

Moral:

सदियों से पुरुष वर्ग अपनी सत्ता और प्रभुता के दर्प में स्त्रियों को अपनी सम्पत्ति या गुलाम समझते आये हैं। यह हास्य व्यंग – ऐसे पुरुषों की सोच पर एक तमाचा है।  

काजल की